विराट कोहली, केदार जाधव के साथ 200 रन जोड़कर आउट हो गए (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
टीम इंडिया की इंग्लैंड पर पुणे वनडे में असंभव दिख रही जीत को हकीकत में बदलने का श्रेय कप्तान विराट कोहली (Virat Kohli) और केदार जाधव (Kedar Jadhav) को दिया जा रहा है. होना भी यही था, क्योंकि दोनों ने बल्लेबाजी ही कुछ ऐसी की थी. फिर भी क्रिकेट एक टीम गेम है और इसमें खिलाड़ियों के छोटे योगदान भी कई बार बड़े बन जाते हैं, लेकिन कई बार यह बड़े प्रदर्शनों की चकाचौंध में खो से जाते हैं. कुछ ऐसा ही पुणे वनडे में भी हुआ, जब टीम इंडिया के एक क्रिकेटर के हरफनमौला योगदान को वह श्रेय नहीं मिला जो मिलना चाहिए था. उसकी चर्चा हुई, लेकिन वह एक या दो लाइन में सिमटकर रह गई, जबकि क्रिकेट के जानकारों की मानें और टीम इंडिया के अंतिम समय में बिखर जाने के इतिहास को देखें, तो उसका प्रदर्शन बेहद अहम रहा..
इस खिलाड़ी की पिछले साल सितंबर से पहले तक लापरवाही के लिए कई बार आलोचना हो चुकी थी. वह अहम मौकों पर विकेट फेंक देता था. हां गेंदबाजी में जरूर वह कुछ हद तक नियंत्रित था. फिर भी उसके खेल में निखार तो भारत-ए टीम के सितंबर के ऑस्ट्रेलिया दौरे में आया... आइए जानते हैं आखिर टीम इंडिया का यह खास खिलाड़ी है कौन... और उसके खेल में किसकी वजह से निखार आया... (पढ़ें- कप्तान विराट से पहले धोनी ने कर दिया यह 'खास इशारा', फिर क्या था...)
पुणे वनडे में जिस खिलाड़ी के योगदान की चर्चा कम हुई, वह हैं ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या (Hardik Pandya). सबसे पहले हम टीम इंडिया के उस पूर्व कप्तान की बात करते हैं, जिसे खुद हार्दिक पांड्या ने अपने कायाकल्प का श्रेय दिया है. अगस्त-सितंबर में भारत-ए टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जब हार्दिक पांड्या गए थे, उससे पहले भी उन्हें टीम इंडिया की ओर से खेलने का मौका मिल चुका था, लेकिन उन्होंने कई मौकों पर बल्लेबाजी में निराश किया था और गेंदबाजी में भी उनमें गति और विविधता में कमी थी. इस दौरे में उन्हें राहुल द्रविड़ का सानिध्य मिला और फिर यहीं से उनमें बदलाव की शुरुआत हो गई... (कोहली की “विराट” पारियों से ही टीम इंडिया ने जीते हैं सबसे बड़े लक्ष्य वाले यह 3 मैच...)
ऑस्ट्रेलिया में सीखा... इंग्लैंड खिलाफ मिली सीख की झलक...
हार्दिक पांड्या ने अपने क्रिकेटर भाई क्रुणाल पांड्या से कहा था कि उन्होंने असली क्रिकेट खेलना, तो ऑस्ट्रेलिया दौरे में राहुल द्रविड़ से सीखा है. हार्दिक ने कहा था कि डेढ़ महीने के इस पीरियड में उन्होंने क्रिकेट की जो बारीकियां सीखीं, उसके जैसा उन्हें कभी सीखने को नहीं मिला और अब वह खुद को सही मायनों में पूर्ण क्रिकेटर कह सकते हैं. तब से हार्दिक की गेंदबाजी में रफ्तार आ गई और वह लगभग 140 किमी की गति से गेंदें फेंकने लगे, साथ ही स्विंग भी कराने लगे. इतना ही नहीं बल्लेबाजी में टिककर खेलने और शॉट लगाते समय गेंद के सही चयन का महत्व भी समझा. (क्या बुमराह की बीमर गेंद को लेकर अंपायर से हुई गलती! जानिए क्या है ICC का नियम...)
हार्दिक पांड्या के खेल में यह सुधार इंग्लैंड के खिलाफ पुणे वनडे में साफ झलका. जहां इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने टीम इंडिया के अन्य गेंदबाजों की खूब धुनाई की, वहीं पांड्या की गेंदों पर वह 5.11 के इकोनॉमी रेट से 9 ओवर में 46 रन ही ले पाए. पांड्या के पहले ओवर में 9 रन बने थे, लेकिन उन्होंने इससे सबक लेते हुए अपनी गेंदों की लाइन-लेंथ पर नियंत्रण पा लिया और रवींद्र जडेजा (5.00 रन प्रति ओवर) के बाद दूसरे सबसे किफायती गेंदबाज रहे. हालांकि पांड्या का असली कमाल तो अभी आना बाकी था, जो बल्लेबाजी के दौरान देखने को मिला. हार्दिक पांड्या ने पुणे में जरूरत के अनुसार सधी हुई पारी खेली और जिताकर लौटे (फाइल फोटो)
टीम इंडिया को कई बार ताश के पत्तों की तरह गिरते देखा है...
गेंदबाजी के बाद बल्लेबाजी में भी सुधार का प्रदर्शन कर पांड्या ने असली ऑलराउंडर होने का परिचय दिया, जिसकी टीम इंडिया को लंबे समय से तलाश है. जब पांड्या बल्लेबाजी करने आए, तो मैच रोमांचक दौर में पहुंच चुका था. यह वह समय था, जब विराट कोहली शानदार शतक (122 रन) बनाकर बेन स्टोक्स का शिकार बन गए थे और मैच में 13.3 ओवर का खेल बचा हुआ था और टीम इंडिया को जीत के लिए 88 रन और चाहिए थे, पांच विकेट हाथ में थे, लेकिन हम टीम इंडिया को ऐसे मौकों पर कई बार लुढ़कते देख चुके थे. ऐसे में डर तो लग ही रहा था. दूसरे शतकवीर केदार जाधव उनके साथ थे, लेकिन वह भी पांड्या के साथ 28 रन जोड़कर लौट गए. अब पूरी जिम्मेदारी पांड्या और रवींद्र जडेजा पर थी. पांड्या ने जडेजा के साथ 27 रन जोड़े. फिर जडेजा भी लौट गए, उन्होंने चिरपरिचित अंदाज में लापरवाही दिखाई, लेकिन दूसरी ओर आमतौर पर आसानी से विकेट फेंक देने वाले पांड्या ने धैर्य बनाए रखा और गेंद के अनुसार शॉट खेलते हुए सिंगल पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि 35 गेंदों में 33 रन ही चाहिए थे.
इसके बाद हार्दिक पांड्या ने आर अश्विन (15) के साथ आठवें विकेट के लिए 38 रनों की नाबाद साझेदारी करके मैच जिता दिया. ऐसा नहीं था कि हार्दिक पांड्या ने धीमी पारी खेली. उन्होंने 37 गेंदों में 40 रन नाबाद बनाए, जिसमें तीन चौके और एक छक्का लगाया. मतलब उन्होंने 40 में से 22 रन सिंगल और डबल से बनाए. उनकी सूझबूझ भरी पारी के कारण ही टीम इंडिया अंत में जीत दर्ज कर पाई और बिखर जाने का इतिहास नहीं दोहराया... यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन अगर हार्दिक पांड्या ऐसा ही खेल दिखाते रहे, तो टीम इंडिया की तेज गेंदबाजी ऑलराउंडर की लंबे समय से जारी तलाश उन पर खत्म हो जाएगी...
इस खिलाड़ी की पिछले साल सितंबर से पहले तक लापरवाही के लिए कई बार आलोचना हो चुकी थी. वह अहम मौकों पर विकेट फेंक देता था. हां गेंदबाजी में जरूर वह कुछ हद तक नियंत्रित था. फिर भी उसके खेल में निखार तो भारत-ए टीम के सितंबर के ऑस्ट्रेलिया दौरे में आया... आइए जानते हैं आखिर टीम इंडिया का यह खास खिलाड़ी है कौन... और उसके खेल में किसकी वजह से निखार आया... (पढ़ें- कप्तान विराट से पहले धोनी ने कर दिया यह 'खास इशारा', फिर क्या था...)
पुणे वनडे में जिस खिलाड़ी के योगदान की चर्चा कम हुई, वह हैं ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या (Hardik Pandya). सबसे पहले हम टीम इंडिया के उस पूर्व कप्तान की बात करते हैं, जिसे खुद हार्दिक पांड्या ने अपने कायाकल्प का श्रेय दिया है. अगस्त-सितंबर में भारत-ए टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जब हार्दिक पांड्या गए थे, उससे पहले भी उन्हें टीम इंडिया की ओर से खेलने का मौका मिल चुका था, लेकिन उन्होंने कई मौकों पर बल्लेबाजी में निराश किया था और गेंदबाजी में भी उनमें गति और विविधता में कमी थी. इस दौरे में उन्हें राहुल द्रविड़ का सानिध्य मिला और फिर यहीं से उनमें बदलाव की शुरुआत हो गई... (कोहली की “विराट” पारियों से ही टीम इंडिया ने जीते हैं सबसे बड़े लक्ष्य वाले यह 3 मैच...)
हार्दिक पांड्या ने पुणे वनडे में शानदार गेंदबाजी की (फाइल फोटो: AFP)
ऑस्ट्रेलिया में सीखा... इंग्लैंड खिलाफ मिली सीख की झलक...
हार्दिक पांड्या ने अपने क्रिकेटर भाई क्रुणाल पांड्या से कहा था कि उन्होंने असली क्रिकेट खेलना, तो ऑस्ट्रेलिया दौरे में राहुल द्रविड़ से सीखा है. हार्दिक ने कहा था कि डेढ़ महीने के इस पीरियड में उन्होंने क्रिकेट की जो बारीकियां सीखीं, उसके जैसा उन्हें कभी सीखने को नहीं मिला और अब वह खुद को सही मायनों में पूर्ण क्रिकेटर कह सकते हैं. तब से हार्दिक की गेंदबाजी में रफ्तार आ गई और वह लगभग 140 किमी की गति से गेंदें फेंकने लगे, साथ ही स्विंग भी कराने लगे. इतना ही नहीं बल्लेबाजी में टिककर खेलने और शॉट लगाते समय गेंद के सही चयन का महत्व भी समझा. (क्या बुमराह की बीमर गेंद को लेकर अंपायर से हुई गलती! जानिए क्या है ICC का नियम...)
हार्दिक पांड्या के खेल में यह सुधार इंग्लैंड के खिलाफ पुणे वनडे में साफ झलका. जहां इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने टीम इंडिया के अन्य गेंदबाजों की खूब धुनाई की, वहीं पांड्या की गेंदों पर वह 5.11 के इकोनॉमी रेट से 9 ओवर में 46 रन ही ले पाए. पांड्या के पहले ओवर में 9 रन बने थे, लेकिन उन्होंने इससे सबक लेते हुए अपनी गेंदों की लाइन-लेंथ पर नियंत्रण पा लिया और रवींद्र जडेजा (5.00 रन प्रति ओवर) के बाद दूसरे सबसे किफायती गेंदबाज रहे. हालांकि पांड्या का असली कमाल तो अभी आना बाकी था, जो बल्लेबाजी के दौरान देखने को मिला.
टीम इंडिया को कई बार ताश के पत्तों की तरह गिरते देखा है...
गेंदबाजी के बाद बल्लेबाजी में भी सुधार का प्रदर्शन कर पांड्या ने असली ऑलराउंडर होने का परिचय दिया, जिसकी टीम इंडिया को लंबे समय से तलाश है. जब पांड्या बल्लेबाजी करने आए, तो मैच रोमांचक दौर में पहुंच चुका था. यह वह समय था, जब विराट कोहली शानदार शतक (122 रन) बनाकर बेन स्टोक्स का शिकार बन गए थे और मैच में 13.3 ओवर का खेल बचा हुआ था और टीम इंडिया को जीत के लिए 88 रन और चाहिए थे, पांच विकेट हाथ में थे, लेकिन हम टीम इंडिया को ऐसे मौकों पर कई बार लुढ़कते देख चुके थे. ऐसे में डर तो लग ही रहा था. दूसरे शतकवीर केदार जाधव उनके साथ थे, लेकिन वह भी पांड्या के साथ 28 रन जोड़कर लौट गए. अब पूरी जिम्मेदारी पांड्या और रवींद्र जडेजा पर थी. पांड्या ने जडेजा के साथ 27 रन जोड़े. फिर जडेजा भी लौट गए, उन्होंने चिरपरिचित अंदाज में लापरवाही दिखाई, लेकिन दूसरी ओर आमतौर पर आसानी से विकेट फेंक देने वाले पांड्या ने धैर्य बनाए रखा और गेंद के अनुसार शॉट खेलते हुए सिंगल पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि 35 गेंदों में 33 रन ही चाहिए थे.
इसके बाद हार्दिक पांड्या ने आर अश्विन (15) के साथ आठवें विकेट के लिए 38 रनों की नाबाद साझेदारी करके मैच जिता दिया. ऐसा नहीं था कि हार्दिक पांड्या ने धीमी पारी खेली. उन्होंने 37 गेंदों में 40 रन नाबाद बनाए, जिसमें तीन चौके और एक छक्का लगाया. मतलब उन्होंने 40 में से 22 रन सिंगल और डबल से बनाए. उनकी सूझबूझ भरी पारी के कारण ही टीम इंडिया अंत में जीत दर्ज कर पाई और बिखर जाने का इतिहास नहीं दोहराया... यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन अगर हार्दिक पांड्या ऐसा ही खेल दिखाते रहे, तो टीम इंडिया की तेज गेंदबाजी ऑलराउंडर की लंबे समय से जारी तलाश उन पर खत्म हो जाएगी...
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