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रांची के राजकुमार से क्रिकेट के सम्राट तक: महेंद्र सिंह धोनी और हॉल ऑफ़ फ़ेम की कहानी

MS Dhoni - ICC Hall of Fame 2025: पूर्व कप्तान एमएस धोनी को प्रतिष्ठित आईसीसी हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया है, जो उनके शानदार क्रिकेट करियर का एक और अद्भुत अध्याय है.

रांची के राजकुमार से क्रिकेट के सम्राट तक: महेंद्र सिंह धोनी और हॉल ऑफ़ फ़ेम की कहानी
Dhoni - ICC Hall of Fame 2025

 एक मुकम्मल सफ़र, जो क़िस्मत से ज़्यादा फ़ैसलों का नतीजा था

“मेरे पीछे तो सिर्फ़ मेरी क़िस्मत होगी, डावर साहब…”

ICC Hall of Fame 2025, MS Dhoni: यह डायलॉग सिर्फ़ अमिताभ बच्चन की फ़िल्म दीवार में ही नहीं गूंजा, बल्कि यह महेंद्र सिंह धोनी के पूरे करियर का सार बन गया.  धोनी की कहानी उस नौजवान की है, जिसने क़िस्मत को भी अपने पीछे चलने पर मजबूर कर दिया. और अब इस कहानी का अगला पड़ाव है — ICC हॉल ऑफ़ फ़ेम. अब जब ICC ने सात महान खिलाड़ियों को हॉल ऑफ़ फ़ेम में शामिल किया है, तो भारत के लिए यह बड़े गर्व का क्षण है — क्योंकि उनमें से एक नाम है महेंद्र सिंह धोनी का.

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क्यों ख़ास है ‘7 अगस्त 2007'

धोनी की क़िस्मत और संख्या 7 का रिश्ता महज़ इत्तिफ़ाक़ नहीं, एक गहरा जुड़ाव है,  7 अगस्त 2007 — इस दिन BCCI ने एक लंबे बालों वाले, 26 साल के विकेटकीपर को भारत की T20 टीम का कप्तान घोषित किया। यह सलाह सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ की थी. उस तारीख़ में भी दो बार 7 आया, और संयोग देखिए — धोनी की जन्मतिथि है 7/7/1981. यही नहीं, उनकी जर्सी नंबर, शादी की तारीख़, गाड़ियों के नंबर — हर जगह ‘7' दिखाई देती है. 

लेकिन क्या वाक़ई सिर्फ़ ‘7' की ताक़त ने उन्हें वो सब दिलाया? नहीं, धोनी की सफलता उसके पीछे छिपे फ़ैसलों, जोखिमों और सब्र की कहानी है।

कप्तानी का परीकथा जैसा आग़ाज़

जब धोनी को कप्तानी मिली, भारत ने अभी तक सिर्फ़ एक T20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था.. सीधे T20 वर्ल्ड कप में भेजे गए  कोई अनुभव नहीं, लेकिन आत्मविश्वास भरपूर.

2007 वर्ल्ड T20 फ़ाइनल में जब पाकिस्तान को 13 रन चाहिए थे और सिर्फ़ एक विकेट बचा था, तब धोनी ने जोगिंदर शर्मा को गेंद थमा दी. पहली गेंद वाइड, अगली डॉट, फिर छक्का… और फिर मिस्बाह-उल-हक़ आउट.

भारत बना T20 चैंपियन

धोनी का एक फ़ैसला इतिहास बन गया

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Photo Credit: BCCI

मिडास टच: फ़ैसलों से क़िस्मत बनाना

धोनी की सबसे बड़ी ताक़त थी — अपने फ़ैसलों पर यक़ीन.वो रिकॉर्ड्स से नहीं, अपनी समझ से चलते थे. 2011 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में युवराज इनफ़ॉर्म थे, लेकिन धोनी ने ख़ुद को ऊपर भेजा और छक्का मारकर भारत को ट्रॉफ़ी दिलाई। उन्होंने सुरेश रैना पर भरोसा जताया, जो ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ वर्ल्ड कप में मैच विजेता साबित हुए. आशीष नेहरा को पाकिस्तान के सेमीफ़ाइनल में खिलाकर दो अहम विकेट दिलवाए. IPL 2011 में उन्होंने रविचंद्रन अश्विन से नई गेंद डलवाई, जिससे अश्विन को अपनी क्षमता दिखाने का भरपूर मौक़ा मिला.

आंकड़ों से इतर एक कप्तान की विरासत

धोनी के आँकड़े भी उतने ही प्रभावशाली हैं। 538 अंतरराष्ट्रीय मैच, 17,266 रन, 829 विकेट के पीछे शिकार। वे T20, वनडे और चैंपियंस ट्रॉफ़ी – तीनों ICC ख़िताब जीतने वाले एकमात्र कप्तान हैं। IPL में 5 बार चेन्नई सुपरकिंग्स को विजेता बनाया। 2009 में भारत को टेस्ट रैंकिंग में नंबर 1 पर पहुँचाया। 2008 से 2012 तक लगातार 5 साल वनडे वर्ल्ड इलेवन का हिस्सा बने। धोनी ने क्रिकेट को सिर्फ़ एक खेल नहीं, बल्कि रणनीति, सब्र और समझ की प्रयोगशाला बना दिया।
धोनी ने क्रिकेट को सिर्फ़ एक खेल नहीं, बल्कि रणनीति, सब्र और समझ की प्रयोगशाला बना दिया।

संन्यास: जैसे वो हमेशा करते आए — चुपचाप

15 अगस्त 2020 — देश आज़ादी का जश्न मना रहा था. ठीक 7:29 PM पर धोनी ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया
बैकग्राउंड में गाना था – “मैं पल दो पल का शायर हूं…” न कोई प्रेस कॉन्फ़्रेंस, न आँसू, न तामझाम.

बस एक लाइन —
“अब मुझे रिटायर्ड समझा जाए…” जैसे वो हमेशा करते आए — बिना शोर के, अपने फ़ैसले से सबको चौंकाना.

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क्या है हॉल ऑफ़ फ़ेम?

ICC हॉल ऑफ़ फ़ेम दुनिया के सबसे सम्मानित क्रिकेटरों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. यह उन खिलाड़ियों को दिया जाता है जिन्होंने न सिर्फ़ खेल में अतुलनीय योगदान दिया, बल्कि उसे एक नई दिशा भी दी. धोनी को इसमें शामिल करना सिर्फ़ एक सम्मान नहीं, बल्कि एक युग को सलाम करना है.

धोनी: सिर्फ़ नाम नहीं, एक सोच

धोनी ने हमें सिखाया कि:
•    लीडर वही होता है जो पीछे रहकर सबको चमकने दे
•    शांत रहकर भी तूफ़ान पैदा किए जा सकते हैं
•    क़िस्मत उन्हीं का साथ देती है, जो हिम्मत रखते हैं
उनकी कहानी में सिर्फ़ क्रिकेट नहीं, ज़िंदगी के सबक भी हैं
रांची से चला एक लड़का आज हॉल ऑफ़ फ़ेम में खड़ा है 
लेकिन उसके पीछे हैं हज़ारों फ़ैसले, हज़ारों घंटों की मेहनत, और एक भरोसा — ख़ुद पर

धोनी को देखने का सौभाग्य
हमारी पीढ़ी ख़ुशक़िस्मत है।

हमने तेंदुलकर को बल्ला थामे देखा, और धोनी को टीम उठाते देखा, धोनी अब भले मैदान से दूर हैं, लेकिन वह हर उस खिलाड़ी में ज़िंदा हैं, जो अपने फ़ैसले से क़िस्मत बदलना चाहता है...धोनी सिर्फ़ कप्तान नहीं — वो एक विचारधारा हैं।
और हॉल ऑफ़ फ़ेम में उनका नाम — उस विचारधारा का सम्मान है.

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