टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
टीम इंडिया ने शनिवार को सिडनी में हुआ सीरीज़ का आख़िरी वनडे तो जीत लिया। लेकिन इस जीत के बावजूद कप्तान एमएस धोनी की चिंताएं ख़त्म नहीं हुई हैं। सबसे बड़ा सिरदर्द इन दिनों ख़ुद उनकी निजी फ़ॉर्म है - और ये बात उन्होंने ख़ुद भी मानी है।
एमएस धोनी एक बेहतरीन मैच फ़ीनिशर माने जाते रहे हैं लेकिन पिछले कुछ समय से वो अपने रंग में दिखाई नहीं दिए हैं।
पिछले साल दक्षिण अफ़्रीका के साथ हुए सीरीज़ के कानपुर वनडे में आख़िर के 10 ओवर में भारत को जीत के लिए 90 रन की ज़रूरत थी। उस मैच में कप्तान धोनी के बल्ले से 30 गेंद पर 31 रन निकले।
इसी सीरीज़ के राजकोट वनडे में भी वो मैच जीताने में नाकाम रहे और 61 गेंद पर 47 रन बनाए।
ऑस्ट्रेलिया में भी कैनबरा वनडे में ऐसा ही स्थिती में कप्तान एक बार फिर मैच फ़िनिशर का रोल नहीं निभा सके।
एक खिलाड़ी के तौर पर धोनी का फ़ॉर्म सवालों के घेरे में हैं। अगर धोनी के एक साल के प्रदर्शन पर नज़र डाले तो कप्तान ने पिछले 12 महीनों में 23 वनडे में 39.58 की औसत से 673 रन बनाए हैं। इसमें सिर्फ़ चार अर्द्धशतक शामिल है।
बल्ले से धोनी नाकाम रहने के साथ-साथ एक कप्तान के तौर पर भी बेरंग दिखे है। ऑस्ट्रेलिया में उनके कई फ़ैसलों पर सुनील गावस्कर जैसे पूर्व खिलाड़ियों ने सवाल उठाए।
धोनी ने मेलबर्न में आर अश्विन को प्लेइंग इलेवन से बाहर रखा और इसी मैच में रविंद्र जडेजा को ज़रूरत के वक़्त गेंदबाज़ी से हटाया।
पिछले एक साल में टीम इंडिया के सबसे सफल कप्तान का रिकॉर्ड भी उनके पक्ष में नहीं है। धोनी ने 23 मैचों में कप्तानी करते हुए 11 मैच जीते और 11 हारे एक मैच बेनतीजा रहा है।
भारत के लिए क्रिकेट के सभी फ़ॉर्मेट को मिलाकर 300 से ज़्यादा मैचों में कप्तानी करने वाले माही अपने गिरते फ़ॉर्म से वाकिफ़ हैं।
धोनी कहते हैं, 'जब तक 5, 6 या 7 पर एक अच्छा बल्लेबाज़ नहीं मिलता मुझे नीचे बल्लेबाज़ी करनी पड़ेगी। जाते ही बड़े शॉट्स खेलना मुश्किल होता है। मैं जानता हूं ये मेरी ज़िम्मेदारी है क्योंकि इस काम के लिए कोई दूसरा नहीं है। मैं ऊपर बल्लेबाज़ी करना चाहता हूं लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। मुझे अपनी बल्लेबाज़ी में गियर बदलान होगा ताकि जिससे मैं पिच पर आते ही बड़े शॉट्स खेल सकूं।'
हालांकि धोनी ये भी कहते हैं, 'जब एक बड़ा शॉट खेलने वाला बल्लेबाज़ शॉट खेलता है और आउट हो जाता है तो लोग कहते हैं ऐसा शॉट खेलने की क्या ज़रूरत थी। अगर वही शॉट छक्का चला जाता है तो सभी तारीफ़ करते हैं। जब एक खिलाड़ी नीचे बल्लेबाज़ी करता है तो उसका लक्ष्य मैच जीतना होता है। लोगों के मुताबिक अगर 51 फ़ीसदी मौक़ों पर आप सफल होते हैं तो ये अच्छा है।
आईसीसी T20 वर्ल्ड कप में क़रीब एक महीने का वक़्त बाक़ी है। उम्मीद है कप्तान धोनी 2007 के चमत्कार को दोहराकर आलोचकों का मुंह बंद कर देंगे।
एमएस धोनी एक बेहतरीन मैच फ़ीनिशर माने जाते रहे हैं लेकिन पिछले कुछ समय से वो अपने रंग में दिखाई नहीं दिए हैं।
पिछले साल दक्षिण अफ़्रीका के साथ हुए सीरीज़ के कानपुर वनडे में आख़िर के 10 ओवर में भारत को जीत के लिए 90 रन की ज़रूरत थी। उस मैच में कप्तान धोनी के बल्ले से 30 गेंद पर 31 रन निकले।
इसी सीरीज़ के राजकोट वनडे में भी वो मैच जीताने में नाकाम रहे और 61 गेंद पर 47 रन बनाए।
ऑस्ट्रेलिया में भी कैनबरा वनडे में ऐसा ही स्थिती में कप्तान एक बार फिर मैच फ़िनिशर का रोल नहीं निभा सके।
एक खिलाड़ी के तौर पर धोनी का फ़ॉर्म सवालों के घेरे में हैं। अगर धोनी के एक साल के प्रदर्शन पर नज़र डाले तो कप्तान ने पिछले 12 महीनों में 23 वनडे में 39.58 की औसत से 673 रन बनाए हैं। इसमें सिर्फ़ चार अर्द्धशतक शामिल है।
बल्ले से धोनी नाकाम रहने के साथ-साथ एक कप्तान के तौर पर भी बेरंग दिखे है। ऑस्ट्रेलिया में उनके कई फ़ैसलों पर सुनील गावस्कर जैसे पूर्व खिलाड़ियों ने सवाल उठाए।
धोनी ने मेलबर्न में आर अश्विन को प्लेइंग इलेवन से बाहर रखा और इसी मैच में रविंद्र जडेजा को ज़रूरत के वक़्त गेंदबाज़ी से हटाया।
पिछले एक साल में टीम इंडिया के सबसे सफल कप्तान का रिकॉर्ड भी उनके पक्ष में नहीं है। धोनी ने 23 मैचों में कप्तानी करते हुए 11 मैच जीते और 11 हारे एक मैच बेनतीजा रहा है।
भारत के लिए क्रिकेट के सभी फ़ॉर्मेट को मिलाकर 300 से ज़्यादा मैचों में कप्तानी करने वाले माही अपने गिरते फ़ॉर्म से वाकिफ़ हैं।
धोनी कहते हैं, 'जब तक 5, 6 या 7 पर एक अच्छा बल्लेबाज़ नहीं मिलता मुझे नीचे बल्लेबाज़ी करनी पड़ेगी। जाते ही बड़े शॉट्स खेलना मुश्किल होता है। मैं जानता हूं ये मेरी ज़िम्मेदारी है क्योंकि इस काम के लिए कोई दूसरा नहीं है। मैं ऊपर बल्लेबाज़ी करना चाहता हूं लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। मुझे अपनी बल्लेबाज़ी में गियर बदलान होगा ताकि जिससे मैं पिच पर आते ही बड़े शॉट्स खेल सकूं।'
हालांकि धोनी ये भी कहते हैं, 'जब एक बड़ा शॉट खेलने वाला बल्लेबाज़ शॉट खेलता है और आउट हो जाता है तो लोग कहते हैं ऐसा शॉट खेलने की क्या ज़रूरत थी। अगर वही शॉट छक्का चला जाता है तो सभी तारीफ़ करते हैं। जब एक खिलाड़ी नीचे बल्लेबाज़ी करता है तो उसका लक्ष्य मैच जीतना होता है। लोगों के मुताबिक अगर 51 फ़ीसदी मौक़ों पर आप सफल होते हैं तो ये अच्छा है।
आईसीसी T20 वर्ल्ड कप में क़रीब एक महीने का वक़्त बाक़ी है। उम्मीद है कप्तान धोनी 2007 के चमत्कार को दोहराकर आलोचकों का मुंह बंद कर देंगे।
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