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This Article is From Aug 02, 2013

जांच समिति को लेकर बीसीसीआई सर्वोच्च न्यायालय की शरण में

जांच समिति को लेकर बीसीसीआई सर्वोच्च न्यायालय की शरण में
नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने शुक्रवार को बम्बई उच्च न्यायालय के उस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया, जिसमें न्यायालय ने उसके द्वारा इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग मामलों की जांच के लिए गठित दो सदस्यीय समिति को अवैध और असंवैधानिक करार दिया था।

राजधानी में शुक्रवार को बीसीसीआई की कार्यकारिणी की बैठक होनी थी लेकिन इसकी अध्यक्षता कौन करेगा, इस मुद्दे पर आमराय नहीं बन पाने के बाद इसे फिलहाल स्थगित कर दिया गया।

बोर्ड के सदस्य इस बात को लेकर आम राय नहीं बना सके कि एन. श्रीनिवासन को बैठक की अध्यक्षता करनी चाहिए या नहीं। जगमोहन डालमिया कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर काम करते रहेंगे।

बीसीसीआई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रत्नाकर शेट्टी ने कहा कि बोर्ड सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करेगा। शेट्टी ने कहा कि बीसीसीआई की कार्यकारिणी की अगली बैठक कानूनी मामले हल होने के बाद आयोजित की जाएगी।

शेट्टी ने कहा, "अरुण जेटली ने बम्बई उच्च न्यायालय के फैसले को आईपीएल गवर्निग काउंसिल की बैठक में पढ़कर सुनाया। इसके बाद इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी लाने का फैसला किया गया।"

सूत्रों ने कहा कि बीसीसीआई संविधान के मुताबिक कार्यकारिणी की बैठक एक सप्ताह में दो बार नहीं हो सकती। बीते रविवार को ही कोलकाता में कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। उस बैठक में बीसीसीआई की दो सदस्यीय जांच समिति ने आईपीएल में सट्टेबाजी मामले की रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मय्यप्पन और राजस्थान रायल्स टीम के सहमालिक राज कुंद्रा को सट्टेबाजी के आरोपों से बरी कर दिया गया था।

बाद में बम्बई उच्च न्यायालय ने इस समिति को अवैध करार दिया था लेकिन श्रीनिवासन इसके बावजूद बोर्ड अध्यक्ष के तौर पर वापसी को आमादा थे। श्रीनिवासन ने अपने दामाद की गिफ्तारी के बाद सक्रिय कामकाज से हाथ खींच लिया था। इसके बाद बंगाल क्रिकेट संघ के अध्यक्ष डालमिया को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। डालमिया ने आईसीसी की बैठक में बीसीसीआई का प्रतिनिधित्व किया था।

शुक्रवार की बैठक में श्रीनिवासन अध्यक्ष के तौर पर वापसी चाहते थे लेकिन बोर्ड के कई सदस्य इसके खिलाफ दिखे। श्रीनिवासन ने अरुण जेटली और आईपीएल कमिश्नर राजीव शुक्ला के साथ लम्बी बातचीत की। इन तीनों की मुलाकात आईपीएल गवर्निग काउंसिल की बैठक से पहले हुई। इसी बैठक के बाद बीसीसीआई कार्यकारिणी की बैठक होनी थी।

सूत्रों का कहना है कि आईपीएल गवर्निंग काउंसिल का सदस्य नहीं होने के बावजूद श्रीनिवासन जबरदस्ती आईपीएल की बैठक में पहुंच गए। श्रीनिवासन बोर्ड अध्यक्ष का कामकाज अपने हाथ में लेने को आतुर दिखे लेकिन इस मामले में उन्हें पुरजोर समर्थन नहीं मिल सका। इसी के बाद बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय जाने का फैसला किया।

उल्लेखनीय है कि बम्बई उच्च न्यायालय ने 30 जुलाई को बीसीसीआई को करारा झटका देते हुए उसके द्वारा गठित समिति को अवैध करार दिया था। न्यायालय ने बिहार एवं झारखंड क्रिकेट संघों द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इस मामले की नए सिरे से जांच की जरूरत है। न्यायालय ने साथ ही साथ इस समिति के गठन पर सवाल खड़े किए थे।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि बीसीसीआई मैच और स्पॉट फिक्सिंग जैसे गम्भीर मामलों की जांच खुद कैसे करा सकता है। उसे इन मामलों की सुनवाई के लिए समिति गठित करने का कोई अधिकार नहीं है। बोर्ड की इस समिति में सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर. बालासुब्रमण्यन और जयराम टी. चौटा शामिल थे। ये पी. रमन के करीबी हैं। रमन को मय्यप्पन के वकील के तौर पर जाना जाता है।

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