धींगानमाल में बैलगाड़ी से पानी की ढुलाई।
मुंबई:
मुंबई से 100 किलोमीटर शाहपुर, बरसात के बाद भी इलाके में पानी की भारी किल्लत है। धींगानमाल जैसे कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां लोग शादी के लिए अपनी बेटी देने से कतराने लगे हैं। इलाके तक पानी पहुंचाने की योजना कागजों पर तो दस साल पहले बनी, पाइप भी आ गए, लेकिन उनमें पानी बहने का अभी भी इंतजार है।
14 गांवों के लिए एक कुंआ
धींगानमाल के किसान बुधराम बाला ने बताया कि "हमारे गांव में कोई लड़की देने को तैयार नहीं है। पानी नहीं है, इसलिए सब यहां शादी करने से कतराते हैं।" मुंबई से शाहपुर की दूरी ज्यादा नहीं है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं के मामले में आदिवासी बहुल यह इलाका महानगर से दशकों पीछे है। शाहपुर में बसे धींगानमाल जैसे 14 गांवों के लिए पानी का जरिया एक कुंआ है, जिससे पानी लाने की कीमत हर फेरी 60 रुपये है। 2007-08 में इन 14 गांवों की प्यास बुझाने के लिए लगभग 52 लाख रुपये की योजना स्वीकृत हुई थी। इस योजना के नाम पर पाइप खरीदे गए, कुछ खड्डे खोदे गए लेकिन पानी एक बूंद भी नहीं मिला।
समस्या जल्द हल करने का दावा
विधायक अब दावा कर रहे हैं जंगल की जमीन की वजह से सालों से चली आ रही दिक्कत अब वे महीने भर में हल कर देंगे। एनडीटीवी से बातचीत में इलाके के विधायक पांडुरंग बरोरा ने कहा "वह दिक्कत फॉरेस्ट लैंड की थी हमने अधिकारियों से बात की है। उसे महीने भर में हल कर लेंगे।'' वहीं जल आपूर्ति विभाग के अभियंता मोहन पाटिल का कहना था "हमने बैठक में स्पष्ट किया है, पहले जो लोग थे उन्होंने अतिरिक्त खर्च मांगा नहीं है, एक फैसला लेकर मामले को हल करेंगे।"
गांव में बांध, लेकिन पानी मुंबई को
सालों से इलाके में चल रही पानी की किल्लत की वजह से शाहपुर के इन गांवों में लोग बेटी ब्याहने से कतराने लगे हैं। इलाके के लोग, नेताओं के साथ मिलकर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पानी के मुद्दे को उठाने की रणनीति बना तो रहे हैं, लेकिन पानी आएगा कब तक इसे लेकर ठोस जवाब किसी के पास नहीं है। मुंबई को पानी देने वालीं ज्यादातर झीलें ठाणे ग्रामीण और आसपास के इलाकों में हैं। कई गांव ऐसे हैं जिनमें बांध हैं, लेकिन शहरी लोगों की प्यास बुझाने के लिए उन गांवों को प्यासा रखा जाता है। सरकार चाहे किसी की हो, इन आदिवासी बहुल गांवों के अच्छे दिन कब आएंगे यह कोई नहीं जानता।
14 गांवों के लिए एक कुंआ
धींगानमाल के किसान बुधराम बाला ने बताया कि "हमारे गांव में कोई लड़की देने को तैयार नहीं है। पानी नहीं है, इसलिए सब यहां शादी करने से कतराते हैं।" मुंबई से शाहपुर की दूरी ज्यादा नहीं है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं के मामले में आदिवासी बहुल यह इलाका महानगर से दशकों पीछे है। शाहपुर में बसे धींगानमाल जैसे 14 गांवों के लिए पानी का जरिया एक कुंआ है, जिससे पानी लाने की कीमत हर फेरी 60 रुपये है। 2007-08 में इन 14 गांवों की प्यास बुझाने के लिए लगभग 52 लाख रुपये की योजना स्वीकृत हुई थी। इस योजना के नाम पर पाइप खरीदे गए, कुछ खड्डे खोदे गए लेकिन पानी एक बूंद भी नहीं मिला।
पानी ढोकर लाना मजबूरी।
समस्या जल्द हल करने का दावा
विधायक अब दावा कर रहे हैं जंगल की जमीन की वजह से सालों से चली आ रही दिक्कत अब वे महीने भर में हल कर देंगे। एनडीटीवी से बातचीत में इलाके के विधायक पांडुरंग बरोरा ने कहा "वह दिक्कत फॉरेस्ट लैंड की थी हमने अधिकारियों से बात की है। उसे महीने भर में हल कर लेंगे।'' वहीं जल आपूर्ति विभाग के अभियंता मोहन पाटिल का कहना था "हमने बैठक में स्पष्ट किया है, पहले जो लोग थे उन्होंने अतिरिक्त खर्च मांगा नहीं है, एक फैसला लेकर मामले को हल करेंगे।"
गांव में बांध, लेकिन पानी मुंबई को
सालों से इलाके में चल रही पानी की किल्लत की वजह से शाहपुर के इन गांवों में लोग बेटी ब्याहने से कतराने लगे हैं। इलाके के लोग, नेताओं के साथ मिलकर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पानी के मुद्दे को उठाने की रणनीति बना तो रहे हैं, लेकिन पानी आएगा कब तक इसे लेकर ठोस जवाब किसी के पास नहीं है। मुंबई को पानी देने वालीं ज्यादातर झीलें ठाणे ग्रामीण और आसपास के इलाकों में हैं। कई गांव ऐसे हैं जिनमें बांध हैं, लेकिन शहरी लोगों की प्यास बुझाने के लिए उन गांवों को प्यासा रखा जाता है। सरकार चाहे किसी की हो, इन आदिवासी बहुल गांवों के अच्छे दिन कब आएंगे यह कोई नहीं जानता।
बैलगाड़ी से पानी की ढुलाई।
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