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This Article is From Sep 08, 2015

आखिर मुलायम सिंह यादव को इतना गुस्सा क्यों आता है...

Manish Kumar
  • चुनावी ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 21, 2015 17:49 pm IST
    • Published On सितंबर 08, 2015 20:15 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 21, 2015 17:49 pm IST
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव इन दिनों नाराज चल रहे हैं। हर राजनीतिक व्यक्ति इन दिनों इसी सवाल का जवाब खोज रहा हैं कि 'नेताजी'  को गुस्सा क्यों आता है। फिलहाल उनकी नाराजगी के शिकार हैं उनके बेटे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। अखिलेश यादव से मुलायम सिंह यादव का संबंध खट्टा-मीठा है। अपेक्षा और उस पर खरे उतरने का मामला है। आप कह सकते हैं कि घर की बात है।

लेकिन मुलायम नीतीश से क्यों नाराज हैं। जिस नीतीश कुमार पर जीतन राम मांझी को हटाकर मुख्यमंत्री बनने का दबाब डालने में सबसे ज्यादा प्रभावी भूमिका मुलायम सिंह यादव ने निभाई, जिस नीतीश कुमार को कुछ माह पूर्व बिहार में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने में कुछ घंटों में आम सहमति बनाकर संयुक्त संवाददाता सम्मेलन करने वाले मुलायम आजकल उन्हीं नीतीश से खफा क्यों हैं?

अब तक मुलायम सिंह यादव ने अपने समर्थकों और लालू यादव, शरद यादव के साथ मुलाकात में जो मन की बात की हैं उसमें उन्होंने सीटों के तालमेल में नजरअंदाज किए जाने के अलावा, कांग्रेस से बढ़ती नजदीकी को मुख्या कारण बताया है। इससे भी ज्यादा मुलायम अरविन्द केजरीवाल के साथ नीतीश कुमार की सार्वजनिक मंच पर बढ़ती नजदीकी को भी पसन्द नहीं किया। उससे भी ज्यादा कांग्रेस पार्टी को बिहार में 40 सीटें देने और स्वाभिमान रैली में कांग्रेस अध्यक्ष  सोनिया गांधी को बुलाने पर भी मुलायम ने नाराजगी जताई।

मुलायम के समर्थक भी मानते हैं कि पर्याप्त सीटें न मिलना एक बहाना है, क्योंकि नीतीश कुमार ने न केवल उन्हें महागठबंधन का अध्यक्ष बल्कि संसदीय दाल का भी अध्यक्ष घोषित किया था। आज भी लालू यादव ने सार्वजनिक रूप से कहा कि अगर नेताजी तैयार हो जाएं तो साइकिल चुनाव चिन्ह पर 200 सीटों पर लड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन सभी जानते हैं कि मुलायम अब इस मामले में शायद ही लचीला रुख अपनाएं।

समाजवादी पार्टी की बिहार इकाई के नेता भी मानते हैं कि महागठबंधन से लड़ने में भले ही शायद कुछ उम्मीदवारों के विधायक बनने की संभावना थी लेकिन अब सभी सीटों पर लड़ने में शायद ही कोई गारंटी दे। पार्टी की चाबी वोटकटवा की होगी और इस बार बिहार में जो चुनावी माहौल है उसमें शायद ही कोई वोटकटवा को वोट दे।      

असल सवाल यह है कि आखिर मुलायम बिहार के महागठबंधन को मझधार में छोड़कर क्यों चले गए और उनके तेवर इतने गरम क्यों हैं? अगर राष्ट्रीय जनता दाल के नेताओं की मानें तो बीजेपी कुछ पुराने और नए मुकदमों में साक्ष्यों के आधार पर समाजवादी  पार्टी के कुछ बड़े नेताओं को ब्लैकमेल कर रही है। इन नेताओं का कहना है कि सीबीआई ने लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले के एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय में जिस प्रकार से अपील दायर की उससे साफ हैं कि लालू यादव को भी यह डर दिखाया गया। हालांकि लालू यादव ने स्वाभिमान रैली में साफ किया था कि उन्हें सीबीआई चाहे तो गिरफ्तार कर सकती है, उन्हें कोई डर नहीं है।

अंत में सवाल है कि इस उठापटक का आखिर क्या हश्र होगा। कुछ महिने पहले समाजवादी पार्टी के राज्य सभा में नेता रामगोपाल यादव और नीतीश कुमार में विलय के मुद्दे पर बहस हो रही थी। रामगोपाल यादव ने नीतीश कुमार को सलाह दी कि आप और लालू यादव अपनी पार्टियों का विलय कर चुनाव लड़ जाएं, लेकिन तब नीतीश कुमार ने तर्क दिया था कि अगर बिहार में हम लोग मिलकर बीजेपी को रोक नहीं पाए तो आप कल्पना भी मत कीजिएगा कि आप 2017 में उत्तर प्रदेश बचा सकते हैं।

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