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This Article is From Nov 02, 2015

मैं बताता हूं बिहार के विधानसभा चुनाव में कौन जीतेगा - रवीश कुमार

Written by Ravish Kumar
  • चुनावी ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 07, 2015 20:24 pm IST
    • Published On नवंबर 02, 2015 07:06 am IST
    • Last Updated On नवंबर 07, 2015 20:24 pm IST
इस बात की सटीक भविष्यवाणी कर देने का जुनून चुनाव लड़ने वालों से ज्यादा खतरनाक होता है। कौन जीतेगा यह बता देना अंदाज़ीटक्कर वालों की दुनिया में आपको हीरो बना सकता है। चुनाव के दौरान हम जैसों के पास खूब फोन आते हैं। बताओ कौन जीतेगा? क्या लग रहा है? कौन कह रहा है? यह न हो तो चुनाव का मज़ा चला जाता है। कई बार मैं खुद को अलग कर लेता हूं, लेकिन कई बार जिज्ञासा के इस जंजाल में खुद को फंसने से नहीं रोक पाता।

आप क्या चाहते हैं, क्या होता दिख रहा है, देखने वाला कौन है और क्या होगा इन चार बातों की कसौटी पर किसी भी चुनावी भविष्यवाणी को परखा जाना चाहिए। बिहार की भविष्यवाणी को लेकर लोग दो खेमों में बंट गए हैं। एक चाहता है कि आप यह कह दें कि बीजेपी हारेगी तो वह खुश हो जाता है। दूसरा सिर्फ यह सुनना चाहता है कि बीजेपी जीते। कई बार इन दोनों खेमों के लोगों के चेहरे पर तनाव देखकर सहानुभूति हो जाती है। लगता है कि अगर कह दिया कि आप जो चाहते हैं वो नहीं होगा तो कहीं ये खाना-पीना न छोड़ दें। उम्र और कमज़ोर दिल भांप कर झूठ बोल देने में कोई बुराई नहीं है!

एक तीसरा खेमा होता है, जो इन चाहने वालों से ज्यादा उग्र होता है। वो सिर्फ यह नहीं चाहता कि बीजेपी या नीतीश हारे, बल्कि यह भी चाहता है कि मेरे मन की पार्टी एक बार जीत जाए तो हारने वाले के समर्थकों पर धौंस जमा सकूं। उन्हें चिढ़ा सकूं। उनके सामने डांस कर सकूं। इनका जीत के वक्त की विनम्रता से कोई लेना-देना नहीं होता। मान लीजिये बीजेपी जीत गई तो यह तबका उन लोगों को फोन करेगा, हड़काएगा और लेख लिखकर कुंठा निकालेगा। ठीक इसी तरह से नीतीश के जीतने पर करेगा।

कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने मन के मुताबिक नतीजे की खबर सुनकर डर जाते हैं। अभी मत बोलो। आठ को ही देखेंगे। मैंने तो फिंगर क्रॉस कर लिया है। अभी जश्न नहीं मनाएंगे। पिछली बार ऐसा ही किया था, लेकिन वो पार्टी तो हार गई। अचानक वो किसी अंधविश्वासी-सा बर्ताव करने लगता है। बहुत लोग ऐसे भी होते हैं, जो यह सोचकर किसी के हारने जीतने की अफवाह फैलाने लगते कि इससे हारने वाला और हारेगा या हारने वाला जीतने लगेगा या जीतने वाला और जीतेगा। इस खेल में पत्रकार भी शामिल हैं। दोनों तरफ से 'वैचारिक पेरोल' पर पत्रकार ऐसा कर रहे हैं। अगर आप पत्रकार हैं और किसी के हारने जीतने की भविष्यवाणी कर रहे हैं तो इस नजर से देखे जाने का खतरा तो उठाना ही होगा। यह एक सच्चाई है।

मीडिया का पार्टीकरण पूरा हो चुका है। ऐसा नहीं कि मोदी सरकार के आने के बाद ही हुआ है, बल्कि पहले से ही होता आया है। कॉरपोरेट ने पत्रकारों के इस पार्टीकरण को और बढ़ावा दिया है। आप बस यही करते हैं कि एक को विरोधी घोषित कर दूसरे को देखने लगते हैं। जबकि जिसे देख रहे हैं वह भी किसी का घोर समर्थक बताया जाता है। मीडिया को समर्थक और विरोधी घोषित करने का एक फैशन-सा भी चल पड़ा है। कई दर्शक भी अपनी राजनीतिक निष्ठा के हिसाब से खबर देखना चाहते हैं। संतुलन की मांग और समझ में काफी अंतर दिखता है।  बहरहाल कौन किसका समर्थक है यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि सब इस हमाम में नंगे हैं। अपने को चंगा और दूसरे को नंगा कह रहे हैं। जो लोग कहीं नहीं हैं, जो देख रहे हैं वही बोल रहे हैं उनकी भी शामत आने वाली है।

बिहार में कौन जीतेगा क्या इस दावेदारी की खबर से हारने वाला जीत जाता होगा या जीतने वाला हार जाता होगा? इस पर शोध होना चाहिए। चुनाव शुरू होने से पहले जीतने के दावे होते हैं और नतीजे की पूर्व संध्या तक होते रहते हैं। मतदाताओं में ऐसा प्रतिशत तो है ही जो यह सुनकर वोट करता है कि कौन जीत रहा है। वो अपना वोट ख़राब नहीं करना चाहता। यह भी मतदाताओं के बीच एक किस्म का बकलोल और चालाक कैटेगरी है, जो विजयी पक्ष के साथ होने की धूर्तता से ज़्यादा कुछ नहीं। पर कुछ तो है कि राजनीतिक दल भी हम जीतेंगे के प्रचार प्रसार पर काफी जोर देते हैं ।

बिहार में कौन जीतेगा यह एक जोखिम का काम है। बताने का पुख्ता पैमाना किसी के पास नहीं है। भविष्यवाणी करने वाले पर भी कम दबाव नहीं है। वो सही साबित होना चाहता है। गलत होने से उसकी साख खराब हो सकती है। दिनभर अलग- अलग तरह के लोगों को फोन करता रहता हूं। उन सभी से अलग-अलग तरह के लोगों को फोन कर फीडबैक देने के लिए कहता हूं। फिर दूसरे पत्रकार को फोन करता हूं। उसकी भविष्यवाणी से अपनी भविष्यवाणी मिलाता हूं। कई बार पता चलता है कि दोनों एक सोर्स से बात कर भविष्यवाणी पर अपना ट्रेड मार्क लगाकर मार्केट में ठेल रहे हैं! जिस सोर्स से पूछा है वो भी ठीक यही कर रहा होता है।

इसलिए हार जीत के बारे में बता देना इतना आसान काम नहीं है। सोच-समझ कर कीजियेगा वरना नतीजा आने पर आपके ही दोस्त खोज-खोज कर ताने देंगे कि तुम तो बोल रहे थे कि महागठबंधन जीतेगा, तुम तो बोल रहे थे कि एनडीए जीतेगा। लेकिन जोखिम ही नहीं लिया तो जीवन क्या जीया। आप ही बताइये दोनों में से कौन जीतेगा !

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