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This Article is From Oct 14, 2015

दिखी बदलाव की बयार, अगर साइकिल न होती तो न होता यह बिहार

Ravish Kumar
  • चुनावी ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 14, 2015 16:53 pm IST
    • Published On अक्टूबर 14, 2015 16:36 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 14, 2015 16:53 pm IST
सूरज अभी-अभी निकला ही था कि समस्तीपुर स्टेशन रोड पर दूर से अख़बार बांटती एक लड़की दिखी। पटना से दो घंटे की दूरी पर इस शहर में एक लड़की का अख़बार बांटते हुए मिल जाना पांच बजे सुबह उठकर टहलने का फैसला सार्थक कर गया। नाम तो अपना प्रियंका बता गई, मगर पूछने पर इतना ही कह गई कि पापा से बात कर लीजिएगा।
 

समस्तीपुर में ट्रैफिक जाम से बचने के लिए एक सुनसान रास्ते पर निकला तो रेलवे फाटक से टकरा गया। रेलगाड़ी आने वाली थी और एक लड़की अपनी बाइक तिरछी कर फाटक के नीचे से निकल रही थी। चश्मा लगाए वह कार के पास आकर रुकी और अपनी मां को बिठाकर चली गई।
 

बिंदास अंदाज़ में गया शहर की श्रेया सिन्हा से मिलिए। श्रेया का दावा है कि उसने इस शहर में दो-तीन लड़कियों के अलावा किसी को बाइक चलाते नहीं देखा है। बी.कॉम. प्रथम वर्ष की छात्रा ने बताया कि वह साइकिल से बाइक पर आ गई है। पापा ने चलाने दिया और अब कई लड़कियां कहती हैं कि बाइक चलाना सिखा दो। एक आंटी को स्कूटी चलाना सिखा चुकी है। गया से लौटते वक्त देखा कि एक लड़का एक लडकी को बाइक चलाना सिखा रहा है।
 

बिहार में बाइक-सवार लड़कियां कम दिखती हैं, मगर गली-गली में साइकिल-सवार लड़कियों को देख लगता है कि काफी कुछ बदला है। हमारी राजनीति शायद लड़कियों के बदलाव को बदलना नहीं मानती, मगर आप किसी भी सड़क पर झुंड में या अकेले साइकिल चलाती लड़कियों को देख गदगद हो सकते हैं। साइकिल ने लड़कियों की ज़िन्दगी बदल दी है और लड़कियों ने साइकिल से समाज बदल दिया है।
 

लड़कियां सुबह-सुबह तैयार होकर कोचिंग जाने लगी हैं। वे अब शादी के लिए नहीं, अपने लिए पढ़ना चाहती हैं। गरीब घर की लड़कियों में ग़ज़ब का आत्मविश्वास आया है। घर और स्कूल या घर और कोचिंग के रास्ते में वे खुद को और एक-दूसरे को एक आज़ाद स्पेस में बेहतर तरीके से समझ रही हैं। अपने सपने बुन रही हैं। अपनी दोस्ती को गाढ़ा कर रही हैं। घरों में इनके प्रति नज़रिया बदला है। मां अब इन्हें खाना निकालकर दे रही है। स्कूल के बाद काम के लिए घर में रुकना कम हो गया है। मां-बाप चाहते हैं कि ये कोचिंग करें और इंजीनियर-डाक्टर बनें। इनकी ज़िन्दगी में साइकिल न आई होती तो ये होम साइंस छोड़ साइंस न लेतीं।

साइकिल चलाती ये लड़कियां बिहार की ब्रांड एम्बैसेडर हैं। अपने घर की भी ब्रांड एम्बैसेडर हैं। मां-बाप अब बेटों की जगह बेटियों को सामान लाने की ज़िम्मेदारी दे रहे हैं। लड़कियां अपनी माताओं को पीछे के कैरियर पर बिठाकर कहीं पहुंचा दे रही हैं। उन्हें सड़कों पर अकेले चलना आ गया है और सड़क पर अपनी दावेदारी ज़माना भी। वे हर जगह एक सीध में साइकिल चलाती नज़र आ रही हैं।
 

एक और सुखद तस्वीर और है। लड़कियों के दिलो-दिमाग से लड़कों का भय निकल गया है। सड़क पर छेड़खानी नहीं दिखी। बिहार की गाड़ियों ने साइकिल वाली लड़कियों का सम्मान करना सीख लिया है। कोई गाड़ी इन्हें सड़क के किनारे की ओर दबाते हुए नहीं निकलती है। लड़के भी तंग नहीं करते और साइकिल छिनने की घटना सुनने को नहीं मिली। बिहार की सड़कों पर यह जो नया समन्वय बन रहा है, वह किसी क्रांति से कम नहीं।
 

पटना से गया जा रहा था। रास्ते में प्रिया और लक्ष्मी मिली। प्रिया पंप से टायर में हवा भर रही थी और लक्ष्मी टायर को संभाले हुए थी। अब अगर साइकिल खराब भी हुई तो इन्हें संभालना आ गया है। बिहार में बदलाव की इस बुनियाद को ज़माना आने वाले समय में महसूस करेगा, फिलहाल आप देखिए और आनंद लीजिए।

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