उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव के घर का दंगल खूब सुर्खियां बटोर रहा है. हालत यह है कि लोग यूपी चुनाव की बात तो कर ही नहीं रहे, किसी और पार्टी की चर्चा भी नहीं कर रहे हैं... राजनीति के जानकारों की मानें, तो लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि मुलायम सिंह के घर का यह दंगल कहीं किसी राजनैतिक रणनीति का हिस्सा तो नहीं, वरना जब पहले दौर के पर्चे भरने का समय आ गया हो, तो यादव परिवार आपसी झगड़े में क्यों उलझा हुआ है...
एक ऐसे वक्त, जब पूरी समाजवादी पार्टी को एकजुट रहना चाहिए, क्या यह सब पार्टी हित में है...? इतनी-सी बात क्या मुलायम सिंह नहीं समझ पा रहे हैं... अखिलेश के बारे में यदि आम लोगों से बात की जाए तो ऐसा लगता है कि उनकी छवि अच्छी है, विकास को बढ़ावा देने वाले की है, सो, ऐसे में मुलायम अपने बेटे अखिलेश को पार्टी क्यों नहीं सौंप दे रहे हैं... यादव कुनबे के करीब 18 लोग राजनीति में हैं, और ऐसे में ऊंच-नीच चलती ही रहती है, मगर चुनाव के वक्त मुलायम और अखिलेश का पार्टी के चुनाव चिह्न साइकिल को लेकर चुनाव आयोग जाना राजनैतिक रूप से अच्छा कदम नहीं माना जाएगा... यहां तक नौबत आ गई थी कि लगने लगा था कि मुलायम और अखिलेश एक-दूसरे के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारेंगे...
इस दंगल के कुछ दिलचस्प पहलू भी हैं, जो पर्दे के पीछे हैं... सबसे महत्वपूर्ण हैं अमर सिंह, जिनकी वजह से यह सारा झगड़ा शुरू हुआ था... उन्हें राज्यसभा में लाने से अखिलेश और रामगोपाल यादव नाराज़ हो गए, मगर शिवपाल यादव, जो यूपी के पार्टी प्रदेश अध्यक्ष हैं, उनके सबसे बड़े पैरोकार हैं. खुद मुलायम कह चुके हैं कि अमर सिंह के उनके ऊपर काफी एहसान हैं... और इसी तिराहे पर मुलायम फंस गए और नए साल के मौके पर पूरा देश यादव परिवार के दंगल का मज़ा लेता रहा...
अखिलेश पार्टी से लेकर सरकार तक पर पूरा कब्जा चाहते थे... मुलायम उसमें अपना हिस्सा भी चाहते थे, और वजह परिवार के बाकी लोग थे, मगर अखिलेश पीछे हटने को तैयार नहीं थे... वजह साफ थी, उन्हें मालूम था कि मुलायम अपनी राजनैतिक पारी खेल चुके हैं और अब उनकी ही बारी है... पार्टी के लोग भी आने वाले कल को देखकर अखिलेश के पीछे खड़ा होना ही उचित समझ रहे थे, मगर पूरे झगड़े के बारे में यह भी कहा जाने लगा कि यह सब सोची-समझी रणनीति थी, जिससे अखिलेश विजयी और सबसे बड़े नेता बनकर उभरें, और उनके बारे में यह संदेश जाए कि कि वह अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए कुछ भी कर सकते हैं... ताकि परिवार या बाहुबलियों या राजनैतिक दलालों का जो दबाव मुलायम झेलते थे, उसे अखिलेश को न झेलना पड़े...
फिर मुलायम का यह बयान भी आया कि अखिलेश मुसलमानों के उतने हितैषी नहीं हैं, जितने वह खुद थे... इसमें भी गहरा संदेश है. अभी तक सपा पर यही आरोप लगता रहा है और मुलायम अब अखिलेश को उस छवि से निकालना चाहते हैं...
मगर अब लगता है परिवार में शांति है... मुलायम ने अपनी छोटी-सी लिस्ट अखिलेश को दी है... यह भी ख़बर है कि शिवपाल यादव अपने बजाय अपने बेटे के लिए टिकट चाहते हैं... यानि अखिलेश की चली तो इस बार चुनाव में न अंसारी बंधु होंगे और न अतीक अहमद और न अमरमणि त्रिपाठी... यानी अखिलेश सपा की राजनीति के साथ ही यूपी की राजनीति भी बदल सकते हैं... यही नहीं, कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अखिलेश ने एक ऐसी राजनैतिक पहल की है, जिसके बाद बीजेपी को अपनी रणनीति बदलनी ही होगी...
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया के राजनैतिक संपादक हैं...
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This Article is From Jan 17, 2017
क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति भी बदल डालेंगे अखिलेश यादव...?
Manoranjan Bharati
- पोल ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 07, 2017 14:23 pm IST
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Published On जनवरी 17, 2017 16:52 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 07, 2017 14:23 pm IST
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