पंजाबी लोक गायिका डॉली गुलेरिया
नई दिल्ली:
पंजाबी सॉन्ग सिर्फ रैप या हिप हॉप तक ही सीमित नहीं हैं. पंजाबी लोक गायिका डॉली गुलेरिया ने इस बात को बखूबी सिद्ध भी किया है. पंजाबी सिंगर रैप और हिप हॉप के इस दौर में मेलॉडियस गानों की एल्बम 'रेनेसां' लेकर आई हैं, और इस एल्बम के 13 गानें सभी सुर, ताल और लय के मामले में वाकई कमाल हैं. इनमें आधुनिक वाद्य यंत्रों का शोर नहीं है बल्कि दिल को छू लेने वाली लिरिक्स और कमाल की मेलॉडी है डॉली गुलेरिया के एल्बम यूट्यूब पर मौजूद है. डॉली गुलेरिया उर्फ रूपिंदर कौर गुलेरिया पंजाब की सुर कोकिला (The Nightingale of Punjab) कही जाने वाली लोक गायिका सुरिंदर कौर की बेटी हैं. डॉली गुलेरिया ने पंजाबी लोक गीत 'अंबर सरे दे पापड़' को गाया था, और यह काफी पॉपुलर भी हुआ था.
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डॉली गुलेरिया का जन्म वैसाखी के मौके पर हुआ था, और बचपन से ही उनके कानों में उनकी मम्मी की सुरीली आवाज की चाशनी घुलती आई थी. हालांकि डॉली डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन 1970 में उनकी शादी ले. कर्नल एस.एस गुलेरिया से हो गई और वे अपने परिवार में रम गईं. डॉली ने पटियाला घराने के साहिब अब्दुल रहमान खान से संगीत की शिक्षा ली थी. इस तरह सिंगिंग उनकी स्वाभाविक पसंद था. उनकी पति ने भी उन्हें संगीत के लिए प्रेरित किया. इस तरह डॉली गुरबानी की अपनी पहली एल्बम लेकर आईं. इसके साथ ही उन्होंने कुछ पंजाबी लोक गीतों को भी गाया, और अपनी मम्मी सरिंदर कौर के साथ भी एल्बम में काम किया. डॉली गुलेरिया ने शिव कुमार बटालवी, भाई वीर सिंह और अन्य लेखकों की कविताओं को भी अपने सुरों से सजाया है.
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डॉली गुलेरिया ने 'रब दिया राखां', 'देसों परदेस' और 'मैं मां पंजाब दी' जैसी फिल्मों में प्लेबैक सिंगिग भी की है. डॉली गुलेरिया ने 1997 में पाकिस्तान के साथ गुडविल प्रोग्राम के दौरान परफॉर्म किया था, और उनकी बेटी भी उनके साथ थी. डॉली को स्टेज पर गाना पसंद हैं. हालांकि वे चाहती हैं कि पंजाबी संगीत की असल आत्मा कायम रहे. तभी तो वे नाइटेंगेल म्यूजिक एकेडमी में भविष्य के टैलेंट्स को तैयार करती हैं.
हालांकि डॉली मानती हैं कि अब बच्चों में संगीत की वह लगन बची नहीं है. वे बताती हैं, "संगीत के लिए लगन नहीं बची है. बच्चे आते हैं, और रातोंरात सिंगर बनना चाहते हैं. अगर मेरे पास 100 बच्चे आते हैं तो उसमें से 3-4 भी ऐसे नहीं होते जो संगीत को साधना मानते हों. सबको झटपट सिंगर बनना है." यही नहीं, डॉली संगीत के मौजूदा हालात से भी खुश नहीं हैं. डॉली मानती हैं, "लिरिक्स बदलकर, लफ्ज चेंज करके संगीत पेश किया जा रहा है. रैप के नाम पर गाने बिक रहे हैं. संगीत बहुत ही दुखद अवस्था में है. मेलॉडी पर कोई तवज्जो नहीं है."
इसी दौर में डॉली गुलेरिया 'रेनेसां' टाइटल से एल्बम लेकर आई हैं, और उसमें उन्होंने पंजाबी की लोक गायकी की खुशबू को बरकरार रखने की कोशिश की है. डॉली बताती हैं, "मैंने 'रेनेसां' में संगीत के मधुर पक्ष को रखने की कोशिश की है." वाकई उनके गानों में लोक गायकी महक है, और मधुर स्वर लहरी भी है.
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हालांकि डॉली मानती हैं कि अब बच्चों में संगीत की वह लगन बची नहीं है. वे बताती हैं, "संगीत के लिए लगन नहीं बची है. बच्चे आते हैं, और रातोंरात सिंगर बनना चाहते हैं. अगर मेरे पास 100 बच्चे आते हैं तो उसमें से 3-4 भी ऐसे नहीं होते जो संगीत को साधना मानते हों. सबको झटपट सिंगर बनना है." यही नहीं, डॉली संगीत के मौजूदा हालात से भी खुश नहीं हैं. डॉली मानती हैं, "लिरिक्स बदलकर, लफ्ज चेंज करके संगीत पेश किया जा रहा है. रैप के नाम पर गाने बिक रहे हैं. संगीत बहुत ही दुखद अवस्था में है. मेलॉडी पर कोई तवज्जो नहीं है."
इसी दौर में डॉली गुलेरिया 'रेनेसां' टाइटल से एल्बम लेकर आई हैं, और उसमें उन्होंने पंजाबी की लोक गायकी की खुशबू को बरकरार रखने की कोशिश की है. डॉली बताती हैं, "मैंने 'रेनेसां' में संगीत के मधुर पक्ष को रखने की कोशिश की है." वाकई उनके गानों में लोक गायकी महक है, और मधुर स्वर लहरी भी है.
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