बजट से पहले चमड़ा उद्योग याद दिला रहा है कि उसे अब भी अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में मंदी के असर से जूझना पड़ रहा है. चमड़ा उद्योग भी चाहता है कि वित्त मंत्री टैक्स में राहत का एलान करें. 'पहले फ्रांस की मैसन हेरिटेज कंपनी 40000 जूतों का ऑर्डर देती थी, अब सिर्फ 18000 जूतों का ऑर्डर आया है. मेरी फैक्ट्री की क्षमता 2200 से 2400 जूते रोज बनाने की है. लेकिन हम अभी 1000 जूते ही रोज बना रहे हैं. यानी हमारा उत्पादन 60 फीसदी तक घट गया है आर्थिक मंदी की वजह से.' 10 सितंबर 2019 को जूता एक्सपोर्टर सुनील हरजाई ने एनडीटीवी से ये बात कही थी. अब उनकी फ़िक्र दूसरी है. विदेशी कंपनियों की ओर से मांग कुछ बढ़ी है, लेकिन दबाव दाम कम करने का है.
सिद्धार्थ फुटवियर एक्सपोर्ट्स के एमडी सुनील हरजाई एनडीटीवी से कहते हैं, "जो जूता हम सितंबर में 18 डॉलर में एक्सपोर्ट करते थे, अब विदेशी कंपनियां कह रही हैं कि हम उन्हें सिर्फ 13 से 14 डॉलर में ही एक्सपोर्ट कर दें. सुनील हरजाई की कंपनी सिद्धार्थ फुटवीयर एक्सपोर्ट्स 11 अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के लिए जूते बनाती है.
सुनील हरजाई कहते हैं, 'फुटवियर एक्सोर्ट उद्योग को बचाने के लिए ज़रूरी है कि बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण टैक्स में राहत दें. सुनील हरजाई कहते हैं, "जूता के सोल पर 18% जीएसटी लगता है, जूता बनाने में इस्तेमाल होने वाले adhesives पर 18% जीएसटी लगता है लेकिन 1000 रुपये तक के जूते पर 5% जीएसटी है. हम चाहते हैं कि जूते पर सिर्फ 10% से 12% जीएसटी लगना चाहिये.
सुनील हरजाई जैसे क़रीब 3500 चमड़ा उद्योग से जुड़े निर्यातक हैं जो ये दबाव झेल रहे हैं. 2017-18 में भारत के चमड़ा और जूता उद्योग ने 5.74 अरब डॉलर का निर्यात किया इस उद्योग से 44 लाख से ज्यादा लोगों को रोज़गार मिलता है. भारत में विदेशी मुद्रा कमाने वाले दस सबसे बड़े क्षेत्रों में चमड़ा उद्योग भी है.
नीति आयोग में विशेषज्ञ के तौर पर पांच साल काम कर चुके अर्थशास्त्री टी हक कहते हैं, 'वित्त मंत्री को बजट 2020 में मंदी की मार झेल रहे एक्सपोर्टरों को एक्सपोर्ट सब्सिडी देने पर विचार करना चाहिये.' साफ है, अंतरराष्ट्रीय मंदी की वजह से सुनील हरजाई जैसे लेदर एक्सपोर्टर की चुनौतियां बढ़ रही हैं.
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