लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election) से चंद ही महीने पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) ने अपने आखिरी बजट (Budget 2019) को लोक-लुभावन बनाने की कोशिश में निम्न मध्यम वर्ग को बड़ी राहत देने की घोषणा कर दी है, लेकिन यह राहत अगले वित्तवर्ष, यानी 2019-20 से नहीं, 2020-21 से लागू की जाएगी. वित्तमंत्री के रूप में अंतरिम बजट 2019 पेश करते हुए पीयूष गोयल ने घोषणा की कि अब पांच लाख रुपये तक की करयोग्य आय वाले लोगों को कोई इनकम टैक्स नहीं देना होगा, हालांकि करयोग्य आय इससे ज़्यादा होने की स्थिति में मौजूदा दरों से ही टैक्स अदा करना होगा.
इस घोषणा से उन सभी लोगों को कम से कम 13,000 रुपये की बचत होगी, जिनकी कुल करयोग्य आय पांच लाख रुपये या उससे कम होगी. अब तक ढाई लाख से पांच लाख रुपये तक की करयोग्य आय पर पांच फीसदी टैक्स देना पड़ता था. पांच लाख रुपये से ज़्यादा करयोग्य होने की स्थिति में पांच फीसदी टैक्स की यही दर अब भी लागू होगी.
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इसके अलावा, पिछले दो सालों की तरह 1 फरवरी को ही पेश किए गए बजट में वित्तमंत्री ने पिछले साल मेडिकल और परिवहन खर्च के नाम पर शुरू की गई मानक कटौती को भी 40,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया है, जो सब पर लागू होगी. इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80सी के तहत निवेश पर मिलने वाली कर छूट की सीमा को नहीं बढ़ाया गया है, और वह अब भी डेढ़ लाख रुपये ही है, सो, अगर कैलकुलेट कर देखें, तो अब ऐसा कोई शख्स, जिसका 80सी में निवेश डेढ़ लाख रुपये है, और जिसने 10,000 रुपये बैंक से ब्याज के रूप में अर्जित किए हैं, उसे 6,60,000 रुपये तक की कुल आय होने पर कोई टैक्स नहीं देना होगा.
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बताया जा रहा है कि चुनावी बजट होने के अलावा इस फैसले में इस सच्चाई का भी दखल है कि कुछ ही वक्त पहले BJP तीन अहम राज्यों में कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवा चुकी थी, और अब उनके पास मध्यम वर्ग को साधने के अलावा ज़्यादा विकल्प शेष नहीं थे. इसी उद्देश्य से कुछ ही दिन पहले अफरातफरी में केंद्र सरकार ने सवर्ण जातियों के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक भी पारित करवाया था. इस नए कानून में आरक्षण का हकदार होने के लिए जिन शर्तों का उल्लेख था, उनमें से एक यह भी था कि अभ्यर्थी की वार्षिक आय आठ लाख रुपये सालाना से ज़्यादा न हो.
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लेकिन विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की, क्योंकि इनकम टैक्स की मौजूदा दरों के मुताबिक, आठ लाख रुपये की आय वालों से 20 फीसदी आयकर वसूला जाता है. विपक्ष का कहना था कि जो शख्स अपनी कमाई का पांचवां हिस्सा इनकम टैक्स के रूप में सरकार को दे रहा है, वह आर्थिक रूप से कमज़ोर कैसे माना जा सकता है, या दूसरे शब्दों में जिसे सरकार आरक्षण कानून में 'गरीब' बता रही है, उससे वह 20 फीसदी टैक्स कैसे ले सकती है. सो, अब अगर कोई शख्स बैंक से मिलने वाले ब्याज सहित कुल 6,60,000 रुपये कमा रहा है, और 80सी के तहत डेढ़ लाख रुपये का निवेश भी कर रहा है, तो उसे कतई कोई टैक्स नहीं देना होगा.
शेष भारतीय करदाताओं के लिए इनकम टैक्स की दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, सो, ढाई लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक पांच फीसदी, पांच लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक की आय पर 20 फीसदी, और 10 लाख रुपये से अधिक की आय पर अब भी 30 फीसदी टैक्स देना होगा.
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