अरविंद सुब्रमणियन से बात करते रवीश कुमार
नई दिल्ली:
आज वित्त मंत्री अरुण जेटली आम बजट पेश करेंगे. इससे पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने एनडीटीवी ने ख़ास बातचीत की. उन्होंने नोटबंदी पर सरकार का नज़रिया रखा और कहा कि टैक्स कलेक्शन कम नहीं हुआ.
जितना हम अखबारों में पढ़तें हैं, विशेष कर नोटबंदी के दौर में भी तो ऐसा लगता है कि आम लोगों की दिलचस्पी अर्थव्यवस्था के बारे में गहरी हुई है. हम अखबारों में पढ़ते हैं कि जैसे आसमान में काले बादल छाए हुए हैं, लेकिन आपकी रिपोर्ट से ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा. ऐसा लगता है कि आप जो कहना चाह रहे हैं वो नहीं कह पा रहे हैं, या शायद आप जिस जगह पर हैं तो शायद कह नहीं सकते कि अर्थव्यवस्था की हालत खराब है. तो आपके हिसाब से कैसी है हमारी अर्थव्यवस्था? इसपर अरविंद सुब्रमणियन ने कहा, 'जहां तक नोटबंदी की बात है तो इस मामले में हम संतुलित रहना चाहते हैं. हमने कहा है कि थोड़े समय के लिए इससे तकलीफ होगी, खास कर असंगठित क्षेत्रों पर ज्यादा असर होगा. लेकिन लंबी अवधि में इसके फायदे देखने को मिल सकते हैं. जैसे काला धन कम हो सकता है, कर संग्रह बढ़ सकता है, घरों में पड़ी नकदी बैंकों में वित्तीय इस्तेमाल के लिए जमा हो सकती है. इसलिए कुछ समय के लिए तकलीफ होगी लेकिन बाद में फायदा होगा.' 
तो क्या कुछ बढ़ने के कुछ संकेत मिले हैं? क्या कोई आंकड़ा सामने आ रहा है?
आपने अखबरों में भी कई बार आंकड़ों को देखा होगा जिन्हें कोई भी पढ़ सकता है. जब हम आंकलन करते हैं कि इसके क्या फायदे नुकसान हैं तो हमें आंकड़ों के हिसाब से चलना चाहिए. जहां तक गंभीर आंकलन की बात है तो हमें संकेतकों के हिसाब से चलना पड़ता है. वैसे संकेतक जो हमें हाई फ्रीक्वेंसी से मिलते हैं और जो किसी एक सेक्टर को नहीं बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को दिखाते हैं. तो हमने ऐसे 6-7 हाई फ्रीक्वेंसी संकेतक देखे जिनके आंकड़े हर महीने मिलते हैं. जैसे रबी फसलों की बुवाई जो पिछले साल की तुलना में ज्यादा हुई है. 
टैक्स रेवेन्यू की अगर बात करें तो 8 नवंबर के बाद कर संग्रह में ज्यादा गिरावट नहीं दिख रही है. हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि कर संग्रह स्थिर रहा है लेकिन वह बहुत ज्यादा घटा भी नहीं है. इसलिए इन मानकों पर अगर देखें तो नोटबंदी का कम समय के लिए नकारात्मक असर होगा. 
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने चीन की तुलना में भारत को रेटिंग देने में ‘असंगत’ मानकों का पालन करने के लिए वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की. सुब्रमणियम ने कहा है कि इन एजेंसियों ने जीएसटी जैसे सुधारात्मक कदमों को ध्यान में नहीं रखा जो कि उनके साख का खराब ‘प्रतिबिंब’ है. उन्होंने कहा कि भारत ने एडीआई उदारीकरण, दीवाला संहिता, मौद्रिक नीति रूपरेख समझौता, जीएसटी व आधार बिल जैसी सुधारात्मक पहलें की हैं. सुब्रमणियन ने कहा,‘इन सारी उपलब्धियों के बावजूद यह हैरान करने वाला है कि रेटिंग एजेंसियों ने इसको ध्यान में नहीं रखा .. हमने (समीक्षा में) दिखाया है कि इन रेटिंग एजेंसियों के मानक कितने ‘असंगत’ हैं. उन्होंने कहा,‘ हमें इन्हें खराब मानक कह रहे हैं क्योंकि एसएंडपी ने पिछले साल कहा कि जीडीपी व राजकोषीय घाटे के कारण वे भारत की रेटिंग उन्नत नहीं कर सकती, इसका कोई तरीका नहीं है.’
जितना हम अखबारों में पढ़तें हैं, विशेष कर नोटबंदी के दौर में भी तो ऐसा लगता है कि आम लोगों की दिलचस्पी अर्थव्यवस्था के बारे में गहरी हुई है. हम अखबारों में पढ़ते हैं कि जैसे आसमान में काले बादल छाए हुए हैं, लेकिन आपकी रिपोर्ट से ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा. ऐसा लगता है कि आप जो कहना चाह रहे हैं वो नहीं कह पा रहे हैं, या शायद आप जिस जगह पर हैं तो शायद कह नहीं सकते कि अर्थव्यवस्था की हालत खराब है. तो आपके हिसाब से कैसी है हमारी अर्थव्यवस्था? इसपर अरविंद सुब्रमणियन ने कहा, 'जहां तक नोटबंदी की बात है तो इस मामले में हम संतुलित रहना चाहते हैं. हमने कहा है कि थोड़े समय के लिए इससे तकलीफ होगी, खास कर असंगठित क्षेत्रों पर ज्यादा असर होगा. लेकिन लंबी अवधि में इसके फायदे देखने को मिल सकते हैं. जैसे काला धन कम हो सकता है, कर संग्रह बढ़ सकता है, घरों में पड़ी नकदी बैंकों में वित्तीय इस्तेमाल के लिए जमा हो सकती है. इसलिए कुछ समय के लिए तकलीफ होगी लेकिन बाद में फायदा होगा.'

तो क्या कुछ बढ़ने के कुछ संकेत मिले हैं? क्या कोई आंकड़ा सामने आ रहा है?
आपने अखबरों में भी कई बार आंकड़ों को देखा होगा जिन्हें कोई भी पढ़ सकता है. जब हम आंकलन करते हैं कि इसके क्या फायदे नुकसान हैं तो हमें आंकड़ों के हिसाब से चलना चाहिए. जहां तक गंभीर आंकलन की बात है तो हमें संकेतकों के हिसाब से चलना पड़ता है. वैसे संकेतक जो हमें हाई फ्रीक्वेंसी से मिलते हैं और जो किसी एक सेक्टर को नहीं बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को दिखाते हैं. तो हमने ऐसे 6-7 हाई फ्रीक्वेंसी संकेतक देखे जिनके आंकड़े हर महीने मिलते हैं. जैसे रबी फसलों की बुवाई जो पिछले साल की तुलना में ज्यादा हुई है.

टैक्स रेवेन्यू की अगर बात करें तो 8 नवंबर के बाद कर संग्रह में ज्यादा गिरावट नहीं दिख रही है. हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि कर संग्रह स्थिर रहा है लेकिन वह बहुत ज्यादा घटा भी नहीं है. इसलिए इन मानकों पर अगर देखें तो नोटबंदी का कम समय के लिए नकारात्मक असर होगा.

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने चीन की तुलना में भारत को रेटिंग देने में ‘असंगत’ मानकों का पालन करने के लिए वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की. सुब्रमणियम ने कहा है कि इन एजेंसियों ने जीएसटी जैसे सुधारात्मक कदमों को ध्यान में नहीं रखा जो कि उनके साख का खराब ‘प्रतिबिंब’ है. उन्होंने कहा कि भारत ने एडीआई उदारीकरण, दीवाला संहिता, मौद्रिक नीति रूपरेख समझौता, जीएसटी व आधार बिल जैसी सुधारात्मक पहलें की हैं. सुब्रमणियन ने कहा,‘इन सारी उपलब्धियों के बावजूद यह हैरान करने वाला है कि रेटिंग एजेंसियों ने इसको ध्यान में नहीं रखा .. हमने (समीक्षा में) दिखाया है कि इन रेटिंग एजेंसियों के मानक कितने ‘असंगत’ हैं. उन्होंने कहा,‘ हमें इन्हें खराब मानक कह रहे हैं क्योंकि एसएंडपी ने पिछले साल कहा कि जीडीपी व राजकोषीय घाटे के कारण वे भारत की रेटिंग उन्नत नहीं कर सकती, इसका कोई तरीका नहीं है.’
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