क्या मोदी अपने गृह प्रदेश में हार रहे हैं? इसे आप इस प्रकार पढ़ें, 'क्या गुजरात में मोदी को हराया जा सकता है?' कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग इस सवाल में रुचि रखते हैं. कुछ परेशान हैं, कुछ उत्साहित हैं और कुछ उदास हैं. यहां तक कि जो लोग मानते हैं कि मोदी को कोई नहीं हरा सकता, वे घबराए हुए लग रहे हैं. भाजपा में यह चिंता स्पष्ट रूप से झलक रही है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है और जिसका छुपाया जाना अब मुश्किल है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम के कुछ महीनों बाद, यह सोचना बहुत मुश्किल था कि मोदी को हराया जा सकता है या कांग्रेस ऐसी करामात कर सकती है. लेकिन कुछ ही महीनों में चीजें बदल गईं.
कांग्रेस विकास, गुजरात, मोदी और पसीने से नफरत करती है: पीएम
पहला बदलाव यह देखने को मिल रहा है कि अब कांग्रेस में एक नया आत्मविश्वास आ गया है. राहुल गांधी अब पप्पू नहीं हैं जैसा कि ट्रेडिशनल और सोशल मीडिया में पेश किया जा रहा था. अब उन्हें अधिक गंभीरता से लिया जा रहा है, खासकर उनके बर्कले प्रवास के बाद. राहुल को लेकर मेनस्ट्रीम टीवी के कवरेज में भी एक बदलाव देखने को मिला है. अब पहले से बेहतर रूप से कवर किया जा रहा है और ज्यादा स्पेस भी दी जा रही है. दूसरा बदलाव मोदी की लोकप्रियता में एक निश्चित गिरावट के रूप में सामने आ रही है. उन्हें प्रत्यक्ष तौर पर नोटबंदी और जीएसटी को लेकर आर्थिक विकास में तेज गिरावट के लिए दोषी ठहराया जा रहा है. तीसरा और सबसे सबसे बड़ा कारण यह है कि मोदी राहुल गांधी, और कांग्रेस तथा उसके गुजरात कनेक्शन पर काफी हमला बोल रहे हैं.
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चुनावों के दौरान, मोदी सिर्फ अपने ऊपर चर्चा को केंद्रित करने में सफल रहते हैं. चाहे वह नाकारात्मक हो या साकारात्मक सबकुछ उनके इर्द-गिर्द ही घूमते रहता है. उनकी शैली ऐसी ही है कि वह अपने आसपास एक ध्रुवीकृत वातावरण बना लेते हैं जिसमें कोई उन्हें पसंद करे या उनसे घृणा करे लेकिन कभी भी उनकी अनदेखी नहीं कर सकता. लेकिन इस बार वह ऐसा जादू चलाने में असमर्थ दिख रहे हैं. राहुल और हार्दिक पटेल के गठबंधन ने मोदी को सकते में डाल दिया है और बीजेपी को डिफेंसिव मूड में ला दिया है. मोदी अब अपनी नीतियों पर सफाई देते नजर आ रहे हैं. इससे पहले, मोदी सारी दुनिया में विकास का 'गुजरात मॉडल' सफलतापूर्वक बेचते आए हैं. इस बार, उन्हें अपना रास्ता बदलना पड़ रहा है. सोशल मीडिया, जिस पर मोदी की काफी मजबूत पकड़ है, उसी ने उनके विकास के गुब्बारे को फोड़ दिया है और वहीं 'विकास पागल हो गया है' का संदेश वायरल हो चला है. मोदी को इससे मुकाबले के लिए एक रणनीति बनानी चाहिए थी, लेकिन वह इसमें सफल नहीं रहे और इसी फ्रस्टेशन में वह कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं. कांग्रेस पर मोदी का हमला अब इन तीन बिन्दुओं पर केंद्रित हो रहा है-
1. गुजरात से नफरत करती है कांग्रेस,
2. कांग्रेस का मतलब है 'गुजरात में दंगा'
3. 'राष्ट्र विरोधी' पार्टी है कांग्रेस
गुजरात के 'उप राष्ट्रवाद' के विचार को फिर से जिंदा करने के लिए मोदी को श्रेय जाता है. जब से वह गुजरात के मुख्यमंत्री बने, हरदम '6 करोड़ गुजराती लोगों' के बारे में बात की. 'वाइब्रेंट गुजरात' एक मजबूत ब्रांड और 'गुजरात गौरव' एक शक्तिशाली संदेश बन गया. फिर उन्होंने चालाकी से खुद को गुजरात के गौरव का सबसे शक्तिशाली प्रतीक बनाया. उन पर होने वाले प्रत्येक हमले को गुजरात और उसके गौरव पर हमले के रूप में बदल दिया. अपने तर्क को मजबूत करने के लिए उन्होंने सरदार पटेल को भी इसमें जोड़ दिया. यह सारी कवायद इस बात को दिखाने के लिए की गई कि कैसे नेहरू की अगुवाई वाली कांग्रेस ने सरदार पटेल के साथ बुरा व्यवहार किया. भुज में प्रचार के दौरान मोदी ने कहा, ''कांग्रेस ने सरदार पटेल के साथ कितना बुरा व्यवहार किया था उस दर्द का जिक्र अच्छी तरह से उनकी बेटी मनीबेन ने अपनी किताब में दर्ज़ किया है."
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अब उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर इस बहस में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को भी शामिल कर लिया है. भुज में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, "मोरारजी भाई ने स्वयं कहा था कि उन्हें कैसे बैंगन और आलू की तरह बाहर निकाल दिया गया." और वह कौन था जिसे मोरारजी देसाई के 'तथाकथित' अपमान के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए था? इंदिरा गांधी के अलावा कोई नहीं! इसलिए मोदी ने गुजरात के लोगों को याद दिलाया कि 1980 में, जब मोरबी का बांध टूट गया, तब इंदिरा गांधी ने अपनी नाक पर रुमाल रखकर उस इलाके का दौरा किया था. उन्होंने राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर के दौरे पर भी निशाना साधा और इसका जिक्र किया कि कैसे नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुर्निर्माण का विरोध किया था.
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गुजरात में सांप्रदायिक दंगों की आशंका बनी रही है. 2002 के पहले हर दशक में दो से तीन बड़े दंगे हुए और कांग्रेस हरदम बीजेपी/आरएसएस को दोषी ठहराती रही है. अब बीजेपी इसका ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ रही है. इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि 2002 के बाद से गुजरात में पहले की तुलना में काफी शांति है. मोदी इसका श्रेय लेते हैं. साथ ही अपने चुनावी भाषणों में वे लोगों को इस बात की याद दिला रहे हैं कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो राज्य में फिर से दंगों की भी वापसी होगी. जसदान में एक रैली में उन्होंने कहा, "गुजरात को 2002 से पहले याद रखना. अक्सर दंगे होते थे. अहमदाबाद आने से पहले, लोग फोन करके इस बात की पुष्टि करते थे कि शहर में शांति है." रात में सुरक्षा के मुद्दे को लेकर मोदी अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम डॉन की ओर इशारा कर रहे हैं जिन्होंने एक बार अंडरवर्ल्ड की तरह राज्य पर शासन किया था. वास्तव में, 1994 का विधानसभा चुनाव दाऊद इब्राहिम से जुड़े अब्दुल लतीफ शेख पर एक जनमत संग्रह जैसा ही था. उस समय अब्दुल लतीफ कांग्रेस के काफी करीबी था. फिर गुजरात में व्यापारी समुदाय की बहुलता के कारण सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है, और मोदी से बेहतर इसे कौन जानता है? वह गुजरात के लोगों को डराना चाहते हैं.
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यह कितनी बड़ी विडंबना है कि पाकिस्तान को दो देशों में बांटने के लिए जिम्मेदार एक पार्टी को आज 'राष्ट्र-विरोधी' के तौर पर दोषी ठहराया जा रहा है. सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि कांग्रेस इसका विरोध करने में असमर्थ है. मोदी एकबार फिर राष्ट्रवाद का मुद्दा वापस ले आए हैं. इस अभियान में मोदी का लक्ष्य इस बात को स्थापित करना है कि राहुल के हाथ में राष्ट्र सुरक्षित नहीं होगा. उनका दावा है कि कांग्रेस ने 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की रिहाई पर खुशी जताई थी और पिछले साल सेना के सर्जिकल हमलों पर भी संदेह जाहिर किया था. उन्होंने डोकलाम संकट के दौरान चीनी एंबेस्डर के साथ राहुल की बैठक के मुद्दे को भी उठाया. राहुल का नाम लिए बिना मोदी ने कहा, "आप चीन के एंबेस्डर से मिलना पसंद करते हैं और हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों की रिहाई पर ताली बजाते हैं."
कांग्रेस और राहुल पर मोदी के उलझाने वाले हमले ने पार्टी और उसके नेता को एक नए तरह के प्राइम टाइम में ला खड़ा किया है. 2002, 2007 और 2012 का विधानसभा चुनाव मोदी और उनकी नीतियों पर केंद्रित था. इसे लेकर वह साफ थे और कोई दूसरा गोल नहीं था. लेकिन अब समय उलट गया है. कांग्रेस इस आइडिये को इंज्वाए कर रही है. अब दोनों ओर पलड़ा संतुलित लग रहा है. लेकिन एक बात निश्चित है - मोदी कमजोर विकेट पर बल्लेबाजी कर रहे हैं. वह उन्हीं गलतियों को दोहरा रहे हैं जो उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान की थीं. उस समय वो लगातार 'आप' और अरविंद केजरीवाल पर हमला कर रहे थे और उन्हें सभी तरह के नामों से बुला रहे थे. उन्होंने इस हद तक जाकर कहा कि 'आप' जंगल से आए हैं. और जब जनता का निर्णय आया तो इतिहास ही बन गया. मोदी उस समय अतिआत्मविश्वासी थे, लेकिन ढाई साल बाद वह घबराए हुए दिख रहे हैं. उनके पुराना आकर्षण गायब है. उनकी बयानबाजी ने अपनी चमक खो दी है. उनकी आक्रामकता अब आत्मविश्वास का संकेत नहीं है. लेकिन क्या कांग्रेस इसको कैश करा पाएगी? मोदी हार सकते हैं - लेकिन क्या राहुल जीत दर्ज करा पाएंगे?
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This Article is From Nov 30, 2017
मोदी हार सकते हैं लेकिन क्या राहुल गांधी की सही में जीत होगी?
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