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This Article is From May 08, 2018

क्या राहुल को पीएम स्वीकार करेंगे कांग्रेस के सहयोगी दल?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 14, 2018 21:17 pm IST
    • Published On मई 08, 2018 21:18 pm IST
    • Last Updated On मई 14, 2018 21:17 pm IST
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि अगर 2019 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी तो वे प्रधानमंत्री बन सकते हैं. राहुल का यह बयान ऐन कर्नाटक चुनावों के बीच आया है. ठीक वैसे ही जैसे गुजरात चुनावों के बीच राहुल गांधी की बतौर कांग्रेस अध्यक्ष ताजपोशी की गई थी. तो कहा जा सकता है कि शायद कर्नाटक चुनाव में मतदाताओं को राहुल और कांग्रेस पार्टी के आत्मविश्वास की झलक दिखाने के लिए राहुल ने यह कह दिया हो. राहुल यह दावा करते हुए नहीं दिख रहे हैं कि कांग्रेस को बहुमत मिलेगा. सिर्फ कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने भर पर ही वे प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैं.

यह न सिर्फ कांग्रेस बल्कि खुद गांधी परिवार के लिए भी रुख में एक बड़ा बदलाव है. पीवी नरसिंहराव की अल्पमत सरकार और मनमोहन सिंह की गठबंधन की सरकार कांग्रेस की रही लेकिन नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य ने अल्पमत की या फिर सहयोगी दलों की सरकार की खुद अगुवाई नहीं की है. इसके पीछे शायद यह भी वजह है कि वे सहयोगी दलों के नाज़-नखरे नहीं उठाना चाहते.

एक दशक से भी अधिक समय तक राजनीति में सक्रिय रहने के बावजूद राहुल बड़ी ज़िम्मेदारी संभालने के इच्छुक नज़र नहीं आते थे. लेकिन महज छह महीनों के भीतर ही उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस की कमान संभाल ली बल्कि अब प्रधानमंत्री बनने को भी तैयार हैं. यह वही राहुल हैं जिन्हें कभी उनकी मां ने कहा कि सत्ता ज़हर है पर अब उन्हें सत्ता से परहेज नहीं है. ज़ाहिर है राजनीतिक वनवास झेल रही कांग्रेस राहुल के इस ऐलान को हाथोंहाथ लेगी क्योंकि उसने अपनी सारी उम्मीदें अब राहुल की पोटली में रख दी हैं.

लेकिन एक बात का जिक्र करना जरूरी है. वो यह है कि विपक्षी एकता के नाम पर बीस पार्टियां सोनिया गांधी के नाम पर ही जुटती हैं. दस साल शासन कर चुके करीब एक दर्जन पार्टियों के यूपीए की कमान अब भी सोनिया गांधी के पास ही है. तो क्या इसका मतलब यह है कि मौजूदा और संभावित सहयोगी पार्टियां क्या अब भी राहुल के नाम पर पसोपेश में हैं. क्या अब भी राहुल को गठबंधन का नेता मानने से उन्हें परहेज़ है?

राहुल को अब भी खुद को साबित करना बाकी है. उनके उपाध्यक्ष और अब अध्यक्ष रहते हुए पंजाब और कुछ उपचुनावों को छोड़कर हर जगह कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हुई है. राहुल का प्रशासनिक अनुभव शून्य है. संसद में उनके प्रदर्शन के बारे में भी कई बार सवाल उठे हैं. तो ऐसे में राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी जैसे ममता बनर्जी, मायावती, शरद पवार या करुणानिधि क्या उन्हें अपना नेता मानेंगे. इनमें से कई फेडरल फ्रंट की खिचड़ी पका रहे हैं. ऐसे में राहुल ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश कर कहीं कर्नाटक के मतदाताओं के साथ इन क्षेत्रीय पार्टियों को भी संदेश तो नहीं दिया है कि वे अब हर तरह की ज़िम्मेदारी संभालने को तैयार हैं?

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कल ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई है. इसमें कश्मीर के ताजा हालात पर चर्चा की जाएगी.

पर एक बड़ा सवाल कांग्रेस की अपनी हालत को लेकर भी है. कई राज्यों में कांग्रेस का संगठन पूरी तरह से चरमरा चुका है. यूपी, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस हाशिए पर पहुंच चुकी है. तो क्या ऐसे में कांग्रेस 2019 में सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है? सिर्फ कर्नाटक, पंजाब, पुदुचेरी और मिज़ोरम में शासन कर रही कांग्रेस क्या 2019 में इस हालत में होगी कि वो अपना पीएम बनवा सके?

देश भर की विपक्षी पार्टियां अगर बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की अगुवाई में एक ही उम्मीदवार उतारें तो शायद ऐसा हो. लेकिन ताकतवर और महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय नेताओं के इस दौर में क्या ऐसा हो पाना मुमकिन है?

एक गणित यह भी है कि बीजेपी अगर 200 से कम सीटों पर रहे तो उसके लिए जादुई आंकड़ों को छूने के लिए नए सहयोगी जुटाना मुश्किल होगा जबकि कांग्रेस 150 पाकर भी नए सहयोगी पा सकती है. और सबसे बड़ा सवाल- बीस से भी ज्यादा राज्यों में शासन कर रही बीजेपी क्या अगले सिर्फ एक साल में इस बुरी हालत में पहुंच सकती है कि कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभर सके?

चार साल सत्ता में रहने के बावजूद लोकप्रियता के पैमाने में बीजेपी से भी आगे निकल चुके नरेंद्र मोदी को क्या राहुल गांधी पछाड़ सकेंगे? और क्या 2019 का चुनाव मोदी बनाम राहुल होगा?

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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