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This Article is From Feb 05, 2018

रेलवे परीक्षा की उम्र 30 साल से घटाकर 28 साल क्यों?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 05, 2018 22:00 pm IST
    • Published On फ़रवरी 05, 2018 22:00 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 05, 2018 22:00 pm IST
लाखों की संख्या में रेलवे की परीक्षा देने वाले नौजवानों का शनिवार और रविवार इस इंतज़ार में बीता है कि कब सोमवार आएगा और कब प्राइम टाइम की नौकरियों पर चल रही सीरीज़ में उम्र का मसला उठेगा. छात्रों का कहना है कि इतने साल के बाद रेलवे की वैकेंसी आई और उम्र सीमा 30 से घटा कर 28 कर दी गई. इससे तीन से चार साल से तैयारी कर रहे छात्रों की नींद उड़ गई है. वे बहुत परेशान हैं. उनकी संख्या हज़ारों में है. ये सभी परीक्षा नहीं दे पाएंगे. रेल मंत्री इनसे एक बार मिल लें तो पता चल जाएगा कि इन नौजवानों का दर्द कितना गहरा है. 3 फ़रवरी 2018 को सेंट्रलाइज़्ड एम्प्लायमेंट नोटिफिकेशन निकाला है. सहायक लोको पायलट और और टेक्निशियन कैटगरी के लिए. 26,502 पदों की वेकैंसी आई है. इस बार फार्म भरने की उम्र सीमा 30 से घटा कर 28 कर दी गई है. 2014 में इसी पद के लिए जब भर्ती निकली थी तब अधिकतम उम्र सीमा 30 थी.

यही नहीं, इस बार फार्म भरने की फीस 500 रुपये रखी गई है. 2014 में जब वेकेंसी आई थी तब फार्म भरने की फीस 40 रुपये थी. 40 रुपये का फार्म 460 रुपये महंगा हो गया जबकि आवेदन ऑनलाइन हो रहा है. ऑनलाइन में तो सस्ता होना चाहिए मगर हो गया महंगा. हर बार के फार्म में लिखा होता है कि सीट की संख्या घटाई बढ़ाई जा सकती है सो इस बार भी लिखा हुआ है. 2015 की परीक्षा में अंतिम चरण के बाद 4000 सीट कम कर दी गई थी. रेल मंत्री को देखना चाहिए कि उम्र सीमा में दो साल की कटौती करने से नौजवानों पर क्या असर पड़ता है. यह समस्या तमाम सांसदों को भी रेल मंत्री के पास रखनी चाहिए.

दिल्ली के मुखर्जी नगर में विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी के लिए यहां कुंजी वालों, किताबों की दुनिया, अखबार और न्यूज़ चैनलों की दुनिया से अलग है. रेलवे की परीक्षा से संबंधित कई किताबें हैं, फार्म बिक रहे हैं. यहां आएंगे तो हज़ारों की संख्या में नौजवान सरकारी नौकरियों की तैयारी में लगे मिलेंगे. उनके चेहरे पर तैयारी की एकाग्रता नज़र आती है. कोचिंग चलाने वाले भी कह रहे हैं कि रेलवे की जो भर्ती निकली है उसमें अधिकतम उम्र सीमा 30 वर्ष होनी चाहिए थी, उसे घटाकर 28 साल नहीं करना चाहिए था. इससे हज़ारों की संख्या में वैसे छात्र बाहर हो गए हैं जो कई साल से तैयारी कर रहे थे.

रेलवे की नौकरी के लिए देश में कितने लाख नौजवान तैयारी करते हैं, हम और आप नहीं जान सकते हैं. बकवास प्रवक्ताओं से टीवी का स्पेस न भरा होता तो आज भारत का यही चेहरा आपको टीवी पर दिखता. हमने बिहार चुनाव के दौरान आरा शहर में देखा था कि नौजवान कैसे पेड़ के नीचे बैठकर रेलवे की परीक्षा की तैयारी करते हैं.

ये नौजवान कोचिंग का ख़र्चा नहीं उठा सकते इसलिए पेड़ के नीचे जमा होकर तैयारी करते हैं. मैंने अपने जीवन में ऐसा दृश्य नहीं देखा था. आरा के एक कॉलेज की इमारत में नौजवान सर झुकाए तैयारी कर रहे थे. हमें दिल्ली में बैठकर पता भी नहीं चलता है कि नौकरियों के लिए भारत का नौजवान किस मानसिक, आर्थिक और मनौवैज्ञानिक हालात का सामना करता है. छात्रों का कहना है कि इतने साल बाद बहाली आई है. हम सब इस भर्ती की आस में कई महीनों से तैयारी कर रहे हैं और अब उम्र के कारण इम्तहान से पहले ही बाहर हो गए. हमारी तैयारी बेकार हो गई. ये तस्वीर बताती है कि नौजवान नौकरी की आस में दधिचि ऋषि की तरह हड्डी गला रहे हैं. इनके साथ इनके मां बाप भी अपनी कमाई गला रहे हैं. आप जब इन नौजवानों के नज़दीक जाएंगे तो पता चलेगा कि इस वक्त वो क्या सुनना चाहते हैं. 2 मार्च 2017 को मैंने एक ब्लॉग लिखा था. ब्लॉग का आधार था टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी प्रदीप ठाकुर की रिपोर्ट. ख़बर थी कि रेलवे में दो लाख नौकरियां कम कर दी गई हैं. अगर दो लाख नौकरियां कम होंगी तो इन नौजवानों पर क्या बीतेगा, क्या इन्हें बताया गया है कि आप अपनी तैयारी न करें, क्योंकि सरकार नौकरियां कम करने वाली है. मेरी राय में इन्हें बता देना चाहिए.

2 मार्च 2017 को मैंने रेलवे की बहाली पर एक ब्लॉग लिखा था. तब बहुत से लोग मेरा ब्लॉग पढ़ने से पहले ही नाराज़ हो जाते थे मगर अब तीन चार साल बाद अपने लिखे का भी मूल्यांकन किया जा सकता है कि जो लिखा वो समय के अनुसार था या नहीं, कितना सही था कितना ग़लत था. इस ब्लॉग का आधार था उस रोज़ टाइम्स ऑफ इंडिया के आख़िरी पन्नों पर चुपके से छपी प्रदीप ठाकुर की रिपोर्ट. प्रदीप ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि 2015 से 2018 तक रेलवे के मैनपावर में कोई बदलाव नहीं होगा. क्या वाकई ऐसा हुआ? इसके लिए हमने बजट पत्र में दिए गए आंकड़ों को ही आधार माना है. आप भी चाहें तो बजट का लिंक चटका कर यह आंकड़ा चेक कर सकते हैं. एक्सपेंडिचर प्रोफाइल में पार्ट 4- एस्टेबलिशमेंट एंड पब्लिक एंटरप्राइजेज़ के पहले सेक्शन में जाना होगा. हमने 2014 के बजट से चेक किया है. रेलवे में नौकरियों की संख्या 13 से ही कम होती जा रही है. 2014 से लेकर 2018 तक वही बरकरार है. रेलवे के मैनपावर की संख्या में कोई चेंज नहीं है.

2014-15 के बजट में 1 मार्च 2013 तक मैनपावर था- 13,07,109
2015-16 के बजट में 1 मार्च 2014 तक मैनपावर था- 13,33,966
2016-17 के बजट में 1 मार्च 2015 तक मैनपावर था- 13,08,472
2017-18 के बजट में 1 मार्च 2016 तक मैनपावर था- 13,08,472
2018-19 के बजट में 1 मार्च 2017 तक मैनपावर था- 13,08,472

तीन साल से रेलवे के मैनपावर में कोई वृद्धि नहीं है. नौकरियों में कमी यूपीए के समय से ही होने लगी थी. 1 जनवरी 2014 को मंज़ूर क्षमता यानी sanctioned strength था 15 लाख 57 हज़ार. तब भी 13 लाख सात हज़ार लोग ही काम कर रहे थे. इस तरह पिछले कुछ सालों में आप कह सकते हैं कि रेलवे में दो लाख नौकरियां कम हुई हैं. आंकड़ों की बात है इसलिए भूलचूक लेनी देनी की गुंज़ाइश रहनी चाहिए. रेलवे की नौकरियों की तैयारी कर रहे छात्रों को सांसद ही जाकर बता सकते हैं कि आप तैयारी न करें. रेलवे में दो लाख नौकरियां कम कर दी गईं हैं. वैसे भी पारदर्शिता का ज़माना है, सांसद के मुंह से सुनकर कि दो लाख नौकरियां कम हुई हैं, भारत का कोई भी नौजवान देशहित में कुछ नहीं बोलेगा. ताली बजाएगा.

सुरेश प्रभु जब रेल मंत्री थे तब उन्होंने 12 दिसंबर 2014 को राज्यसभा में एक बयान दिया था कि रेलवे में संरक्षा से जुड़े 1 लाख 2 हज़ार पद ख़ाली हैं. मुझे नहीं लगता कि तब से लेकर अब तक 1 लाख वेकैंसी आई है. रेल मंत्री चाहें तो दस मिनट में ट्वीट कर बता सकते हैं. फिर उस ट्वीट को सभी सांसद अपने अपने क्षेत्र के नौजवानों को पढ़ा सकते हैं. रेलवे की नौकरियों पर मार्च 2017 के बाद अक्टूबर 2017 में एक और ब्लॉग लिखा. तब तक रेल में मंत्री बदल गए थे. सुरेश प्रभु की जगह पीयूष गोयल आ चुके थे. हमने देखा कि 30 सितंबर को रेल मंत्री बनने के बाद पीयूष गोयल ने रोज़गार को लेकर अभी तक क्या क्या बयान दिए हैं और उसे कैसे छापा गया है. कई बार होता है कि वही वाले टॉपिक के कारण ऐसे बयानों पर ठीक से चर्चा नहीं हो पाती है. ज़िला संस्करणों में ऐसी ख़बरें छपते छपते सिंगल कॉलम से भी छोटी हो जाती हैं.

29 अक्टूबर 2017 को बयान छपता है कि रेलवे पांच साल में 150 अरब रुपये का निवेश करेगा और 10 लाख अतिरिक्त रोज़गार पैदा करेगा. यह अतिरिक्त रोज़गार क्या है, किसी को ठोस रूप से नहीं पता. जब 2013-2018 के बीच रेलवे के मैनपावर में कोई बढ़ोतरी नहीं है तो किस हिसाब से 13 लाख मैनपावर वाले रेलवे में दस लाख लोग और जुड़ जाएंगे. क्या यह सोच समझ कर दिया गया बयान था या यूं ही कह दिया गया और हेडलाइन छप गई.

1 अक्टूबर 2017 को रेल मंत्री पीयूष गोयल का यह दूसरा बयान मिला जिसमें वे दावा कर रहे हैं कि एक साल के भीतर दस लाख रोज़गार पैदा हो सकते हैं. रेल मंत्री रेलवे की जगह रेल इकोसिस्टम कहते हैं. यह सीधे-सीधे रेलवे में जॉब नहीं होगा मगर रेलवे के इको सिस्टम के भीतर एक साल के भीतर कम से कम 10 लाख रोज़गार पैदा कर सकते हैं. पीयूष गोयल को रेल मंत्री बने हुए 5 महीने हो गए हैं, तो क्या रेलवे के इकोसिस्टम में 4 लाख से अधिक रोज़गार पैदा हुआ है? अगर 12 महीने से कम में 10 लाख रोज़गार पैदा हो सकता है तो 5 महीने में करीब चार लाख 20 हज़ार रोज़गार पैदा हुया या नहीं. या यह भी हेडलाइन भर के लिए था. हेडलाइन छपी, गुड फीलिंग आई और उसके बाद ख़बर ग़ायब. यह खबर सारे प्रमुख अखबारों में छपी थी.

दस लाख रोज़गार पैदा करने की बात करते करते रेल मंत्री पीयूष गोयल का यह बयान भी अजीब है. 7 अक्टूबर के इकोनोमिक टाइम्स और वायर में मंत्री जी का बयान छपा है. विश्व आर्थिक फोरम में एयरटेल के सुनील मित्तल ने कहा था कि भारत की 200 बड़ी कंपनियां हर साल नौकरियां कम कर रही हैं. अगर ये 200 बड़ी कंपनियां नौकरी नहीं देंगी तो पूरे समाज को साथ लेकर चलना कठिन से कठिन होता जाएगा. तब इस पर पीयूष गोयल ने कहा कि जो सुनील मित्तल ने कहा है कि नौकरियां कम हो रही हैं वह एक बहुत अच्छा संकेत है. सच्चाई यह है कि कल का युवा नौकरी खोजने वाला नहीं होगा, वह नौकरी देने वाला बनना चाहता है. देश ज़्यादा से ज़्यादा युवाओं को उद्यमी के रूप में देखना चाहता है.

नौजवानों को ही सोचना चाहिए कि कहीं उनकी सोच और सरकार की सोच में अंतर तो नहीं आ गया है. सरकार आपको उद्यमी के रूप में देखना चाहती है और आप हैं कि उससे नौकरी मांगने में टाइम ख़राब कर रहे हैं. रेलवे में नौकरियां आ नहीं रही हैं और नौजवान नौकरियों की तैयारी में लगे हैं. सरकार को भी इन नौजवानों को ईमेल भेज देना चाहिए कि हम चाहते हैं कि आप नौकरी देने वाला बनें, नौकरी मांगने वाला नहीं. हमसे नौकरी न मांगें. वैसे सरकार अपनी यह बात हर मोर्चे पर कह रही है कि हम युवाओं को जॉब सीकर नहीं, गिवर बनाना चाहते हैं. सीकर यानी राजस्थान वाला सीकर नहीं, अंग्रेज़ी वाला सीकर यानी नौकरी मांगने वाला नहीं, नौकरी देने वाला बना रहे हैं.

अमित शाह इस बार सीरीयस हैं. उन्होंने इस बार प्रधानमंत्री के बयान को जुमला नहीं कहा. चुनावों में जब हर किसी को 15 लाख देने की बात पर किशोर अजवानी ने सवाल किया तो अमित शाह ने कहा कि वो जुमला था. प्रधानमंत्री ने जब ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी से कहा कि पकौड़े तल कर जो 200 रुपए कमाता है वो भी तो रोज़गार है. पता नहीं कुछ लोग क्यों उम्मीद कर रहे थे कि अमित शाह इस बार भी बोल देंगे कि वो जुमला था. मगर अमित शाह ने इस बार जुमला नहीं बोला. इसका मतलब है कि पकौड़ा तलने या तलवाने को लेकर वे काफी गंभीर हैं.

लखनऊ के कुछ नौजवान नौकरी देने नहीं, मांगने के लिए लखनऊ में जमा हुए. हमारे सहयोगी कमाल ख़ान की रिपोर्ट है कि अखिलेश सरकार के दौरान 40,000 लोगों के इंटरव्यू या तो हो गए थे या होने वाले थे लेकिन योगी सरकार ने आते ही गड़बड़ी का आरोप लगाकर रोक लगा दी. सरकार को आए 11 महीने बीत गए हैं, लेकिन न तो इसकी जांच हुई है न ही इन्हें नौकरी मिली है. राजनीति ने तीन साल तक न्यूज़ चैनलों पर तिरंगे को लेकर इतनी बहस कराई कि अब नौजवान भी समझ गए हैं इसकी ताकत. इनके हाथों में तिरंगा था और मांग थी कि 9 महीने तक किसी को अधीनस्थ चयन सेवा आयोग का अध्यक्ष नहीं बनाया. कोर्ट की फटकार भी लगी. इतनी देरी से हमारा जीवन बर्बाद हो रहा है. ये वो प्रदर्शन हैं जो कभी मीडिया की स्क्रीन पर नहीं पहुंच पाते, पहुंचते भी हैं तो किसी किनारे लगा दिए जाते हैं.

अगर ये नौजवान पकौड़ा बेच रहे होते तो आज इनका पूरा दिन एक मामूली नौकरी के लिए प्रदर्शन करने में ख़राब नहीं होता. वैसे हमारा फोकस पकौड़ा पर नहीं है, इस पर है तो परीक्षाएं हो रही हैं, जिसके लिए चयन आयोग में लोग नौकरी कर रहे हैं, एक कार्मिक मंत्री मौज करता है, उन सबका क्या नतीजा है. प्राइम टाइम की नौकरी सीरीज़ 8 में हमने राजस्थान का हाल बताया था. राजस्थान में 77,413 भरतियां कोर्ट के कारण अटकी पड़ी हैं. कई मामलों में कोर्ट ने नियुक्ति के आदेश दे दिए हैं मगर वो भी पूरी नहीं हो रही हैं. 2013 से 2018 का जनवरी बीत गया. राजस्थान लोक सेवा आयोग ने वरिष्ठ अध्यापक माध्यमिक के लिए 13 जुलाई 2016 को विज्ञापन निकाला. बताया गया कि 20 से 25 नवंबर 2016 के बीच परीक्षा ली जाएगी लेकिन चार-चार बार परीक्षा की तारीख बदली गई. अंत में जाकर यह परीक्षा होती है जुलाई 2017 में. विज्ञापन निकालने के एक साल बाद लिखित परीक्षा होती है. उसके छह महीने बाद नतीजे आते हैं मगर वो भी दो विषयों के. विज्ञान के लिए 306 उम्मीदवारों को सफल घोषित कर दिया गया है. पंजाबी भाषा के लिए 27 उम्मीदवारों को सफल घोषित किया गया है. हिन्दी के 1269, अंग्रेज़ी के 626, सामाजिक विज्ञान के 1531 पदों के नतीजे आने बाकी हैं.

हर नतीजे के बाद कुछ न कुछ विवाद होता है. इस कारण भी परीक्षाएं लटकती हैं मगर ये दिक्कत तो यूपीएससी के साथ भी है. तो फिर यूपीएससी की कोई परीक्षा तीन साल के लिए अटकती है, कभी आपने सुना है. हमने प्राइम टाइम के सीरीज़ आठ में बताया था कि राजस्थान में 77,413 पदों की भर्तियां कोर्ट में अटकी पड़ी हैं. 61,800 भर्तियां कांग्रेस शासन के समय की हैं, 15,613 भर्तियां भाजपा शासन के समय की हैं. 2013 से विद्यालय सहायक के लिए 33,000 भर्तियां निकली थीं, अभी तक नियुक्ति नहीं हुई है.

इस मामले में हम इंतज़ार कर रहे हैं कि सरकार जल्दी कुछ करेगी. वरिष्ठ अध्यापक माध्यमिक शिक्षा के दो विषयों का जो रिजल्ट आया है, प्रतियोगियों को लगता है कि हमारी सीरीज़ के कारण कुछ तेज़ी आती दिख रही है.

यह बेहद उत्साहजनक बात है कि बड़ी संख्या में नौजवानों ने मुझे शपथ पत्र भेजा है कि वे हिन्दू मुस्लिम नहीं करेंगे, न तो इस टॉपिक पर कोई टीवी डिबेट देखेंगे. उम्मीद है वे शपथ पर कायम रहेंगे. कभी कभी कोई बहस ज़रूरी हो जाती है मगर आए दिन खोज खोजकर इस पर डिबेट करना हमारे समाज के लिए शर्मनाक है. अब हम कुछ नाम लेंगे ताकि छात्रों को भरोसा हो जाए कि उनकी शिकायतें पहुंच गई हैं. एसएससी के कई विभागों से भी अभी नियुक्ति का भरोसा नहीं मिल रहा है. टेक्सटाइल मंत्रालय के अफसर ज़रा हैंडिक्राफ्ट विभाग के लिए चुने गए नौजवानों को जल्दी चिट्ठी भेज दें. कई जगह से पता चला रहा है कि चिट्ठी में गोल मोल बातें हैं ताकि मामला टल जाए. अगर मामला टलेगा तो हम नौकरी सीरीज़ अप्रैल तक करेंगे. हम नहीं टलने वाले हैं.

नौकरियों पर हमारी 12वीं सीरीज़ हो गई है. इतने मेल आ गए हैं अब हमें भी पोस्टल आफिसर बहाल करने पड़े जाएंगे. कई लोग तबादले को लेकर भी लिख रहे हैं या नौकरियों के विवाद को, प्लीज़ ऐसा न करें. हम कोशिश करेंगे कि सभी की बात आ जाए, देखते हैं.

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