रूस के उफा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की मुलाकात हो चुकी है। ये वो मुलाकात थी जिसका आधिकारिक ऐलान तक नहीं हुआ और सूत्रों के हवाले से ही खबर आती रही कि मुलाकात होगी, और जब बातचीत चल रही थी तो खबर कि साझा बयान आएगा। बीस मिनट के तय वक्त के बजाय करीब एक घंटे तक दोनों नेताओं की बीच बातचीत चली और साझा बयान दोनों देशों के विदेश सचिवों ने साथ बैठकर दिया जो भारत पाकिस्तान कवर करने वाले सभी पत्रकार जानते हैं कि एक लीक से हटकर घटना है।
आखिर इस मुलाकात को ऐसे अंजाम क्यों दिया गया। आपको याद होगा कि यहां तक कि विदेश सचिवों की बातचीत का जब ऐलान होता है तो मीडिया की इस पर लागातार नज़र लगी रहती है। एक से एक ऐंगल पर घंटों बहसें होती हैं, पन्ने के पन्ने एडिटोरियल लिखे जाते हैं और ऐसा सरहद के दोनों तरफ होता है। उम्मीदें और नाउम्मीदी का पहाड़ बातचीत पर लटकता रहता है। ज़रा सोचिए कि अगर प्रधानमंत्रियों की बातचीत का पहले एलान हो जाता तो क्या होता। शायद इस पहाड़ के बोझ से ना दबने और एक खुले माहौल में बात करने का ये तरीका सबसे अच्छा था।
और अब बात साझा बयान की। इस बयान को लेकर पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर कई सवाल उठे, आलोचना हुई। असल में साझा बयान में कुछ चीज़ों का नहीं होना वहां विपक्ष और मुखर मीडिया को नागवार गुज़रा। पूछा जा रहा है कि इस बयान में बलोचिस्तान में भारत की (तथाकथित) भूमिका पर कुछ नहीं कहा गया है। पाकिस्तान के तरफ से आरोप लगते रहे हैं कि भारत बलोचिस्तानी अलगाववादियों की मदद कर रहा है। ये भी पूछा जा रहा है कि कश्मीर का ज़िक्र तक नहीं है, आखिर क्यों? ये साझा बयान पूरी तरह भारत के पक्ष में झुका हुआ लग रहा है। लेकिन पाकिस्तान के अखबार Dawn को दिए एक इंटरव्यू में राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश मामलों पर नवाज़ शरीफ के सलाहकार सरतज अज़ीज़ ने कहा कि कश्मीर, सियाचिन और सर क्रीक जैसे मामलों पर ट्रैक टू डिप्लोमेसी चलेगी।
भारत के नज़रिए से देखने पर ये आभास होता है कि एक साल में काफी कुछ बदला और सबसे बड़ा बदलाव है भारत सरकार के नज़रिए में। अगस्त 2014 में जब भारत ने विदेश सचिवों की बैठक भारत ने रद्द की, उसके बाद हालात पर लागातार दिल्ली की नज़र रही है और ये लगा है कि बातचीत ना करके जितना दबाव बनाना था तो वो तो बना लिया, अब बातचीत कर दबाव बनाने का वक्त है।
माना ये भी जा रहा है कि अमेरिका का दबाव दोनों देशों पर है। बात ना करके अब भारत रिश्तों को सामान्य करने की कोशिश नहीं करते नहीं दिखना चाहता। लेकिन बातचीत के बाद भी अगर ऐसे ही सीमा पर पाकिस्तान के तरफ से गोलियां बरसती रहीं, आतंकवादियों का एक्सपोर्ट बदस्तूर जारी रहा तो भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने और आर्थिक बंदिशें लगवाने की कोशिशें भी कर सकता है। और अगर हालात सुधरते हैं तो उससे बेहतर तो कुछ नहीं। चीन से भी पाकिस्तान से चल रही आतंकवादी गतिविधियों का मुद्दा शी चिनफिंग से सीधा नरेंद्र मोदी ने उठाया।
उधर, नवाज़ शरीफ को भले ही कमज़ोर प्रधानमंत्री माना जा रहा हो और पाकिस्तानी सेना को फैसले करने वाला, लेकिन हालात ये हैं कि सेना कई फ्रंट पर उलझी है और भारत के साथ फ्रंट पर कुछ सांस लेने के लम्हे उसके हित में हैं। कुल मिलाकर तारे अभी बातचीत के हक हैं लिहाज़ा दोनों भारत और पाकिस्तान ने कदम आगे बढ़ाए हैं।
This Article is From Jul 12, 2015
आइए समझें क्यों लीक से हटकर घटना है ये भारत-पाक की बातचीत
Reported by Kadambini Sharma, Edited Rajeev Mishra
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Updated:जुलाई 12, 2015 19:42 pm IST
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Published On जुलाई 12, 2015 19:21 pm IST
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Last Updated On जुलाई 12, 2015 19:42 pm IST
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