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This Article is From Aug 12, 2014

बाबा की कलम से : सचिन-रेखा की गैर-हाजिरी पर बवाल क्यों?

Manoranjan Bharti, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 15:13 pm IST
    • Published On अगस्त 12, 2014 16:31 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 15:13 pm IST

राज्यसभा में सचिन और रेखा की गैर-हाजिरी को लेकर बवाल मचा हुआ है। सचिन ने निजी कारणों से छुट्टी ले ली है, जिसके लिए वह नियमों के आधार पर सही हैं, दूसरी ओर रेखा मंगलवार को संसद भवन में दिखीं। अब ये सवाल है कि रेखा या सचिन का राज्यसभा न आना क्या बहस का विषय है। हां, यदि आप बहस करने पर उतारू हैं तो कर सकते हैं, मगर यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो किसी को प्रभावित करता हो।

सचिन का इस देश को योगदान 780 सांसदों में से किसी से भी कम नहीं होगा, वह भारत रत्न हैं। राज्यसभा में अपना मनोनयन उन्होंने मांगा नहीं था। आपने उन्हें स्वयं इस पद से नवाजा। सचिन ने दिल्ली में कोई सरकारी मकान नहीं लिया। उससे जुड़ी कोई सुविधा नहीं ली।

यहां तो ऐसे सांसद भी आपको मिलेंगे जो रोज के 2000 का भत्ता लेने के लिए संसद आते हैं। रजिस्टर पर दस्तखत करते हैं और चले जाते हैं। 780 में से कितने सांसदों को आप जानते हैं जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में पांच बार भी अपनी बात रखी होगी।

16वीं लोकसभा के आंकड़ें देता हूं तब शायद बात साफ हो पाएगी। 16वीं लोकसभा में 197 लोकसभा सांसदों ने पांच साल में एक भी सवाल नहीं पूछा, तो 265 लोकसभा सांसदों ने पांच से कम सवाल पूछे। वहीं राज्यसभा में 70 सांसदों ने कोई सवाल नहीं पूछा और 79 सांसदों ने पांच से कम सवाल पूछे। यदि 50 सांसदों को छोड़ दें जो कि रोज टीवी के बक्से में बहस के प्रोग्राम में आते हैं तो बाकियों का नाम भी आपको नहीं मालूम होंगे।

फिर कोई मनोनीत सांसद यदि किसी कारण से नहीं आ पा रहा है तो इतना ववाल क्यों। क्या किसी को इस बात का ध्यान है कि तृणमूल से राज्यसभा के सांसद मिथुन चक्रवर्ती कहां हैं। वह इस सत्र में एक दिन आए हैं और नियम के अनुसार पूरे सत्र के लिए छुट्टी ले कर चले गए। हेमामालिनी भी इस सत्र में दो तीन बार ही दिखी हैं।

हालांकि वह लोकसभा की चुनी सांसद हैं और मथुरा का प्रतिनिधित्व करती हैं। मथुरा में उनके गुमशुदा होने के पोस्टर भी लग गए थे। यदि आप एनडीए के दिनों को याद करें तो लता मंगेशकर भी राज्यसभा में बहुत ही कम आती थीं। ऐसा नहीं है कि मनोनीत सदस्य सदन की कार्यवाही में कम हिस्सा लेते हैं।

मौजूदा समय में जावेद अख्तर काफी सक्रिय हैं। यही नहीं, उन्होंने पूरे सदन में आमराय बना कर कॉपीराइट बिल भी पास करवाया जिससे लेखकों गीतकारों को रॉयल्टी मिलेगी। श्याम बेनेगल हों या दिलीप कुमार या मृणाल सेन ये सब भी अपने दिनों में सक्रिय रहे। कोई कम तो कोई ज्यादा, यानी राज्यसभा का मनोनयन एक सजावटी उपाधि या कहें एक सम्मान है जो उस शख्सियत को दिया जाता है जिसने देश के लिए कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की हो।

लेकिन, क्या करें संसद में कुछ लोगों में सस्ती लोकप्रियता बटोरने की होड़, 24 घंटे न्यूज चैनलों की खबर बेचने की मानसिकता ने कई बार उस बात को भी मुद्दा बना दिया जिस ओर आपका ध्यान भी नहीं जाता।

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