नमस्कार, मैं रवीश कुमार... राज्यसभा में ऐसा क्या संकट आ गया है कि सरकार या विपक्ष चाहे तो समाधान नहीं निकल सकता है। सरकार और विपक्ष दोनों अपने-अपने तर्कों के साथ अड़े हैं। बात इतनी सी है कि प्रधानमंत्री जवाब दें या न दें, लेकिन बात इतनी बड़ी हो गई है कि इसी को लेकर कई दिनों से राज्यसभा ठीक से नहीं चल पा रही है। वही मामला है धर्म परिवर्तन को लेकर दिए गए बयान का, लेकिन जवाब तो प्रधानमंत्री ने लोकसभा में भी इस पर नहीं दिया है, मगर वहां कार्रवाई चल रही है। फिर राज्यसभा में क्यों नहीं चल रही है। अगर सदस्यों की ऐसी मांग ही है, तो प्रधानमंत्री जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं।
आज तीसरे दिन भी राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही लेफ्ट, कांग्रेस, तृणमूल, एनसीपी और जेडीयू ने सवाल उठाने शुरू कर दिए कि प्रधानमंत्री सदन में आकर जवाब दें। विपक्ष धर्मांतरण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से जवाब की मांग कर रहा है। शरद यादव ने कहा कि बाहर अशांति के खतरे हों और सदन शांति से चले, ये नहीं हो सकता।
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने भी पार्टी की मंशा साफ कर दी कि पूरे सदन की मांग है कि प्रधानमंत्री आकर जवाब दें, वर्ना सदन नहीं चलेगी। सीताराम येचुरी भी आसंदी से पूछने लगे कि बताइए प्रधानमंत्री सदन में आकर जवाब देंगे या नहीं। उस वक्त प्रधानमंत्री लोकसभा में मौजूद थे। बीजेपी ने कहा कि यह मामला गृह मंत्रालय से संबंधित है, आप चर्चा कीजिए, गृहमंत्री जवाब देंगे।
नतीजा आज भी राज्यसभा की कार्यवाही को कई बार स्थगित करना पड़ा और जरूर काम नहीं हो सका। लेकिन राज्यसभा में उस वक्त मामला बिगड़ गया, जब कांग्रेस के सदस्य वी हनुमंत राव के एक बयान को लेकर बीजेपी के सांसद नाराज हो गए। हनुमंत राव को एक दिन के लिए सदन से निलंबित भी कर दिया गया।
बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने इस बात का विरोध किया कि प्रधानमंत्री के बारे में अवमानना के शब्द इस्तेमाल किए जा रहे हैं। सदन को रोककर अपनी मांग पर अड़े रहना ये सदस्यों का वैधानिक अधिकार है। लेकिन इस अधिकार की एक सीमा भी जरूर होगी। आपको अप्रैल, 2013 का लोकसभा और राज्यसभा का एक प्रसंग दिखाते हैं। तब मनमोहन सिंह कह रहे थे कि वे और वित्तमंत्री इस्तीफा नहीं देंगे। विपक्ष के हंगामे से हमारा दुनिया भर में मज़ाक उड़ रहा है। बीजेपी के यशवंत सिन्हा ने कहा कि सरकार की वजह से मज़ाक उड़ रहा है, न कि विपक्ष के कारण। यशवंत सिन्हा ने कहा कि कब प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर संसद को चलाने का प्रयास किया है। जवाब में संसदीय कार्य मंत्री राजीव शुक्ला कहते हैं कि उस प्रधानमंत्री पर आरोप लगाना ठीक नहीं, जिन्होंने 2009 में यशवंत सिन्हा के लौह पुरुष आडवाणी जी को हरा दिया था।
अप्रैल, 2013 में ही राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी सदस्यों से विनती करते दिख रहे हैं कि कम से कम प्रश्नकाल तो चलने दीजिए। बीजेपी के सदस्य पूछ रहे थे कि प्रधानमंत्री इस्तीफा कब देंगे। सभापति ने यह कर सदन स्थगित कर दिया कि हालात बेकाबू हो गए हैं। चार हफ्ते के विराम के बाद जब संसद की कार्यवाही शुरू हो रही थी, तब हामिद अंसारी ने सभी पक्षों के नेताओं को बुलाकर अपनी चिंता जताई। इस बैठक में टीवी को टीबी की बीमारी मान लिया गया गया…
क्या तब कांग्रेस की भाषा, सरकार में आई बीजेपी की भाषा में कोई खास अंतर दिखता है आपको। पंद्रहवीं लोकसभा में जो कम काम हुए, उसका नुकसान देश ने भी भुगता ही होगा राज्यसभा में जो हो रहा है, उसका नुकसान भी देश भुगत ही रहा है। पचास साल में यह पहली बार हुआ कि पांच साल तक लोकसभा ने अपने तय समय का 61 फीसदी ही काम किया। पिछले पांच साल में राज्यसभा में तय समय का 66 प्रतिशत ही काम हुआ। 15वीं लोकसभा में 328 बिल पास होने थे, लेकिन हुए 179 ही। 2014 का अंतरिम बजट तो बिना चर्चा के ही पास हो गया था। 2013 में वित्त विधेयक और 16 लाख करोड़ से अधिक के अनुदान की मांग बिना चर्चा के ही पास हो गए।
16वीं लोकसभा ने अपनी शुरुआत में ही पिछले रिकॉर्ड बेहतर कर लिए। लेकिन राज्यसभा में जो हो रहा है, उससे पंद्रहवीं लोकसभा की याद ताज़ा होने लगी है। तब राज्यसभा में भी यही होता था। आज सरकार की तरफ से रविशंकर प्रसाद और वेकैंया नायडू ने प्रेस को संबोधित किया। रविशंकर प्रसाद ने याद भी दिलाया कि प्रधानमंत्री ने साध्वी निरंजन ज्योति के मामले में दोनों सदनों में बयान तो दिया ही था। पहली बार किसी सदस्य ने सदन में माफी भी मांगी। आज भी चर्चा होनी थी, मगर विपक्ष ने होने नहीं दी। कांग्रेस के सदस्यों ने प्रधानमंत्री के लिए अवमानना के शब्दों का इस्तमाल किया है। अब इन शब्दों पर सोनिया गांधी जवाब दें।
नायडू ने कहा कि मैं उन्हें हर कुछ देने के लिए तैयार हूं, सिवाय सत्ता के, जो जनता ने हमें दी है। वे सांप्रदायिक हिंसा पर बहस चाहते थे, हम तुरंत तैयार हो गए। सब कुछ शांत है। रोज़ धर्म परिवर्तन हो रहे हैं। मैंने कहा कि कानून पास करो, तो वे तैयार नहीं हैं। इस सदन में मुलायम सिंह यादव ने भी कहा है कि ये कोई मुद्दा नहीं है। जो लोग मोदी की लोकप्रियता को पचा नहीं पा रहे हैं, समस्याएं पैदा कर रहे हैं। ठीक है कि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, हम इस मुद्दे पर लोगों से कहेंगे कि वे फैसला करें।
वो प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहे हैं और ये अब सोनिया गांधी से जवाब मांग रहे हैं। अगर इन दोनों से कोई हल नहीं निकल सकता है तो क्या आप दर्शकों के साथ क्या हम लोग कुछ रास्ता निकाल सकते हैं, प्राइम टाइम में...
(प्राइम टाइम इंट्रो)