भीड़ अपने आप में पुलिस हो गई है और अदालत भी जो किसी को पकड़ती है और मार देने का फैसला कर लेती है. कोई सवाल न करे इसलिए सबसे अच्छा है गौ तस्करी का आरोप लगा दो ताकि धर्म का कवच मिल जाए जबकि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि धर्म और आस्था की रक्षा के नाम पर किसी की हत्या की जा सकती है. आस्था का इस्तेमाल टीवी से लेकर सोशल मीडिया पर होने वाली बहसों के लिए किया जाता है ताकि ऐसी घटनाओं की छोटी मोटी निंदा करने के साथ इसके पीछे की वैचारिक और राजनीतिक सोच का बचाव भी किया जाता रहे. भीड़ एक को मारती है मगर उस एक को मारने के पीछे भीड़ में शामिल कितने लोग हत्यारे बनते हैं और कितने लोग दंगाई बनते हैं, सिर्फ इतना ही सोच लेंगे तो समझ आएगा कि यह प्रोजेक्ट मारने का नहीं है, यह प्रोजेक्ट है समाज के भीतर आस्था के नाम पर हत्यारा बनाने का. ताकि नासमझ लोग कानून हाथ में लें और किसी की हत्या कर दें. इंडिया स्पेंड के एलिसन सल्दन्हा, प्रणव राजपूत और जय हज़ारे ने 9 जुलाई 2018 को एक रिपोर्ट लिखी. मीडिया पर छपी रिपोर्ट के आधार पर भीड़ के द्वारा की जाने वाली हत्या की खबरों से एक आंकड़ा तैयार किया है.
2010 से अबतक गाय को लेकर भीड़ के 85 हमले दर्ज हुए हैं. जिनमें 98 प्रतिशत घटनाएं 2014 के बाद घटी हैं. इसके पहले 2012 और 2013 में मात्र एक एक घटना होती है. इन हमलों में 56 फीसदी मुसलमान शिकार हुए और मरने वालों में 88 फीसदी मुसलमान थे. 2018 के साल में जितने भी लोग मारे गए, सभी मुसलमान थे.
कथित रूप से गाय तस्करी के मामले में पिटाई के शिकार कुछ हिन्दू भी हुए हैं. अजीब तरह से समाज में कभी बच्चा चोरी तो कभी गौ तस्करी तो कभी लव जिहाद के नाम पर टेस्टिंग कर रही है. मर लोग रहे हैं और राजनीतिक जनाधार किसी और का मज़बूत हो रहा है. इंडिया स्पेंड के अनुसार 1 जनवरी 2017 से जुलाई 2018 के बीच बच्चा चोरी की अफवाह से जुड़े हमलों के 69 मामले दर्ज किए गए हैं. जिसमें 33 से अधिक लोगों की मौत हुई है और 99 से ज़्यादा घायल हुए हैं. अगर आपको लगता है कि भीड़ रात के अंधेरे में अपना काम करती है तो आप और भी ग़लत हैं. वो दिन दहाड़े ये काम करती है और बिल्कुल कोर्ट परिसर के करीब अपना काम करती है.
17 जुलाई को भारत का सर्वोच्च न्यायालय ने भीड़ की हिंसा पर काबू पाने के लिए एक व्यापक दिशा निर्देश में बताया है कि पुलिस की व्यवस्था कैसे काम करेगी, खुफिया व्यवस्था कैसे काम करेगी और किसकी क्या जवाबदेही होगी. इसके चार दिन बाद अलवर में भीड़ रकबर ख़ान को मार देती है. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जवाबदेही तय की थी मगर लोगों और पुलिस पर क्या असर पड़ा है आपने अलवर में देखा, अब हम आपको गाज़ियाबाद वाली रिकार्डिंग फिर से दिखाना चाहते हैं.
यह बताने के लिए जिस जगह पर ये लोग इस लड़के को मार रहे हैं वो गांव का खेत नहीं है बल्कि गाज़ियाबाद ज़िले के तहसील कोर्ट के बाहर का दृश्य है. कोर्ट के करीब ये लोग बिना किसी कानून और कोर्ट के ख़ौफ के इस लड़के को मार रहे हैं. जो मार खा रहा है वो भोपाल का रहने वाला सोहेल है. सोहेल ने अगर कोई संविधान विरोधी, कानून विरोधी काम किया होता तो वह कोर्ट नहीं जाता. उसने एक लड़की से मोहब्बत की इसलिए वह अदालत के पास गया शादी करने जो इत्तफाक से हिन्दू है जैसे कि सोहेल इत्तेफाक से मुस्लिम है. प्रीति और सोहेल एक ही जगह काम करते थे, प्यार हो गया और शादी करना चाहते थे. दोस्तों ने इनसे कहा कि कोर्ट में शादी करने से सुरक्षित रहेगा मगर कोर्ट पहुंचने के रास्ते में ही गुंडों ने घेर लिया. पुलिस ने अपनी तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है क्योंकि सोहेल और प्रीति ने मामला दर्ज नहीं कराया.
सोमवार को जब संसद से लेकर मीडिया में अलवर की घटना पर बहस हो रही थी, बेकाबू होती भीड़ को लेकर सवाल हो रहे थे, उसी दिन यानी सोमवार को कुछ लोग सोहेल और प्रीति को कोर्ट परिसर के पास घेर कर मार रहे थे. यहीं संसद से घंटे भर की दूरी पर गाज़ियाबाद में. इसी गाज़ियाबाद में दिसंबर 2017 में पिछले साल बीजेपी, शिवसेना, बजरंग दल और जय शिवसेना जैसे संगठनों के 100 लोग राजनगर के एक घर के बाहर जमा हो गए. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में लिखा है कि एक हिन्दू लड़की एक मुस्लिम लड़के से शादी करने वाली थी. बीजेपी के नेता अजय शर्मा भी उस भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे. मगर जब बात सामने आई तो उन्हें नगर अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया. अजय शर्मा बीजेपी में ही हैं और उनके फेसबुक से पता चलता है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय मंत्री हैं. नगर अध्यक्ष के बाद लगता है कि प्रमोट होकर क्षेत्रीय मंत्री बने हैं. सवाल यह नहीं, सवाल यह है कि उस भीड़ का क्या हुआ, जो घर घेरने आई थी. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार भीड़ पर दंगा भड़काने, घातक हथियार लेकर जमा होने, किसी की जान पर खतरा डालने, हमला करने की धाराएं लगाई गई थीं. इतनी गंभीर धाराओं के क्या नतीजे रहे, कानून से कैसे काम किया, यह सब अब सुप्रीम कोर्ट ही पूछे तो ठीक रहेगा. एक साल से कम समय में गाज़ियाबाद में दोबारा ऐसी घटना घट जाती है. शुक्र है लड़की और लड़के के मां बाप इस दबाव में नहीं आए और शादी हुई और वहीं पर हुई.
न अलवर में कुछ बदला और न गाज़ियाबाद में कुछ बदला. राजस्थान के ही बाड़मेर में एक दलित लड़के खेतराम भील को एक मुस्लिम लड़की से प्यार हो गया. उस लड़के ही हत्या कर दी है. खेतराम को भी भीड़ ने घेर कर मारा है. उसकी मौत हुई. पुलिस ने पठाई खान और अनवर खान को गिरफ्तार किया है. इसी मार्च में केरल की हादिया के मामले में फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा था कि हादिया को अपने सपने पूरे करने की पूरी आज़ादी है. हादिया के मां बाप ने एतराज़ ज़ाहिर किया था कि वो धर्म बदल कर शफीन जहां से शादी कर रही है. केरल हाई कोर्ट ने दोनों की शादी खारिज कर दी थी मगर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया. अदालत ने कहा कि हादिया के पिता की सोच हादिया के अधिकारों पर अंकुश नहीं लगा सकती है. हादिया को ख़ुद पर संपूर्ण स्वायत्तता हासिल है. आस्था किसी व्यक्ति के अर्थपूर्ण अस्तित्व के लिए बेहद ज़रूरी है. अपनी आज़ादी से आस्था का चुनाव करना भी बहुत ज़रूरी है. और यह संविधान की मूल भावनाओं को मज़बूत करता है.
अदालत के फैसलों का समाज और संस्थाओं पर क्या असर पड़ता है, गाज़ियाबाद और अलवर में दिख रहा है. भीड़ गोली चलाती है, रकबर को घेर कर मारती है और उसका पता भी नहीं चलता है. पुलिस पहुंच कर भी रकबर को घुमाती रह जाती है और आदमी से पहले गाय बचाने के लिए घूमती रह जाती है. एक साल पहले पहलू खान की हत्या को लेकर इतनी बहस हुई, पुलिस के कामकाज़ में कुछ तो बदलाव आना चाहिए था. रकबर ख़ान से पहले 20 जुलाई को भी भीड़ ने एक ट्रक ड्राईवर को उतार कर मारा था. इसका मतलब है अलवर में भीड़ अब स्थायी हो चुकी है. हमारी सहयोगी निमिशा जयसवाल ने हाशिम ट्रक ड्राईवर से बात की. हाशिम ने अपने साथ हुई मारपीट को लेकर पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई मगर अभी तक कुछ नहीं हुआ है.
हाशिम अकेला कमाने वाला है और जब वह घर से नहीं निकल सकता तो सोचिए उसकी आर्थिक स्थिति क्या होगी. जब हंगामा नहीं होता है तब भी क्या पुलिस ऐसे मामलों में सख्ती से काम करने के लिए तत्पर रहती है, अगर रहती है तो उसका क्या रिज़ल्ट है. अलवर में इस बेलगाम भीड़ के पीछे गंभीरता से जांच होनी चाहिए. इसका मतलब है कि सबकुछ अचानक और संयोग से नहीं हो रहा है. रकबर को गौ तस्कर बताने का प्रयास चल रहा है. जैसे भीड़ को इस कारण से मार देने का कानून ने अधिकार दिया हो. स्थानीय वकील मोहम्मद इशरक़ ने बताया है कि रकबर पर गौ तस्करी का कोई मामला दर्ज नहीं है. रकबर के परिवार वालों ने इस तरह के पहले के आरोप से इंकार किया है. वकील इशरक का कहना है कि केस था मगर अकबर के खिलाफ था.
निमिशा रकबर के गांव कोलगांव गईं. वहां जाकर परिवार का हाल देखा. इस हिन्दू मुस्लिम डिबेट के कारण ग़रीब लोग किस तरह लपेटे में आ रहे हैं यह जानने के लिए रकबर के घर जाना ज़रूरी है. ग़रीबी को समझने के लिए और इस हिंसा के परिणाम को समझने के लिए.
रकबर की पत्नी सदमे के कारण बेसुध है. चलने फिरने की हालत में नहीं है. वह उठकर न तो चिल्ला सकती है और न अपने पति के इंसाफ के लिए लड़ सकती है. रकबर के सात बच्चे हैं. 28 साल का रकबर 11 लोगों का परिवार चला रहा था. पत्थर काटता था और दूध बेचता था. बहुत दिनों से पैसे बचा रहा था ताकि गाय ख़रीद सके. 50,000 लेकर खानपुर गया था, दो गाय ख़रीदने. मज़दूरी करने के अलावा वह दूध बेचकर गुज़ारा कर रहा था. वह पैदल लेकर आ रहा था ताकि पैसे बच जाते.
निमिशा यहां से 60 किमी दूर पहलू ख़ान के घर गईं जिसे पिछले साल अप्रैल में भीड़ ने मार दिया था. पहलू खान को मारने वालों का आज तक पता नहीं चला. जिन्हें पकड़ा गया था, वे बरी हो गए और उनके खिलाफ केस बंद हो चुका है. पहलू के दोनों बेटे बेल पर बाहर हैं क्योंकि इन पर गौ तस्करी का मामला दर्ज हो गया है.
पहलू का दस लोगों के परिवार का दूध बेचकर गुज़ारा चलता है. गायें भी थीं मगर बेच दी क्योंकि अब डर लगता है कब क्या मुसीबत आ जाए. इंसाफ के इंतज़ार में पहलू ख़ान का बेटा अब समझ गया है कि इंसाफ का सिर्फ इंतज़ार ही किया जा सकता है, पाया नहीं जा सकता है. रकबर की मौत ने इस परिवार को फिर से डरा दिया है. वे जानते हैं इस डर का मतलब.
रकबर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है. इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि रकबर के फेफड़े में सिकुड़न आ गई थी. चोट की वजह भीतर भीतर खून काफी बह गया था. सदमे के कारण उसका शरीर हाइपर टेंशन में चला गया और ऑक्सीजन न मिलने के कारण शरीर के अंग फेल होते चले गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि वक्त पर अस्पताल ले जाया जाता तो रकबर की जान बच सकती थी. यह बात हज़म नहीं होती है कि पुलिस से ऐसी चूक होगी. ये पुलिस की बेसिक ट्रेनिंग का हिस्सा होता है कि कोई घायल है तो तुरंत अस्पताल ले जाना है. इसके बाद भी पुलिस चाय पीती रही और गाय बचाती रही. सस्पेंड किए गए एएसआई मोहन सिंह का एक वीडियो सामने आया है. वो पता नहीं किसी से कह रहा है कि गलती हो गई, माफ कर दो या सज़ा दे दो.
एएसआई मोहन सिंह के गलती मानने से बात ख़त्म नहीं हो जाती है. बाकायदा जांच होनी चाहिए कि साढ़े बारह बजे रात से लेकर सुबह के चार बजे के बीच उनके फोन पर किस किस का फोन आया, क्या कोई विधायक फोन कर रहा था, कोई कार्यकर्ता फोन कर रहा था, क्या मोहन सिंह अपने वरिष्ठ अधिकारियों के संपर्क में था, था तो कितने बजे और किस अफसर के संपर्क में आया. तब जाकर मोहन सिंह की गलती का सही नक्शा सामने आ सकेगा. वैसे पुलिस की उच्च स्तरीय कमेटी ने एक दिन में मान लिया कि गलती हुई है. गंभीर चूक हुई है. अगर हर्षा कुमारी सिंह मौके से संबंधित हर पहलू तक नहीं पहुंचती तो क्या इस मामले में वैसी त्वरित कार्रवाई होती, इसका जवाब इस बात से मिलेगा कि पुलिस ने 20 जुलाई को हाशिम के साथ मारपीट के मामले में क्या किया. राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने भी घटनास्थल का दौरा किया है.
एक्शन कैसे होगा, इसका सीधा मतलब इस बात से जाता है कि क्या हमारी पुलिस राजनीतिक दबावों से मुक्त है. इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट के पास है जिसने दस साल पहले पुलिस सुधार के लिए इसी तरह का साफ-साफ दिशानिर्देश दिया था जैसे भीड़ के मामले में पुलिस को क्या करना है दिया गया है. पुलिस अगर सत्ता की हवा को नहीं समझती तो फिर आप ही बताइये कि जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा को लेकर दिशा निर्देश तय किया उसी दिन झारखंड के पाकुड़ में स्वामि अग्निवेश को भीड़ ने किस तरह से मारा. अब अगर इनके पहनावे से भी आप भीड़ की विचारधारा को नहीं देखना चाहते हैं तो आपको इस सहनशीलता का पद्म श्री तो मिलना ही चाहिए. छह दिन हो गए मगर स्वामि अग्निवेश को मारने वाली इस भीड़ में से कोई गिरफ्तार नहीं हुआ है. जबकि पुलिस चाहे तो इस वीडियो रिकार्डिंग से साफ-साफ पहचान सकती है. एफआईआर में प्रसन्न मिश्र, आनंद तिवारी, पिंटू मंडल, के नाम हैं. मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रसन्न मिश्र भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं. आनंद तिवारी भाजपा के किसान मोर्चा के सदस्य हैं. पिंटू मंडल बजरंग दल के स्थानीय संयोजक हैं. अशोक कुमार वार्ड पार्षद हैं. क्या इन लोगों के बीजेपी और संघ से जुड़े होने के कारण गिरफ्तारी नहीं हो रही है. इंडियन एक्सप्रेस के प्रशांत पांडे ने लिखा है कि एफआईआर में नामजद आठ लोगों का सीधा सबंध भारतीय जनता पार्टी, उसकी युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा और आरएसएस से है. ज़ाहिर है यह भीड़ शून्य में पैदा नहीं हो रही है, कहीं से बनकर आ रही है. अगर पुलिस खुद से भी काम नहीं करेगी, सवाल उठाने पर भी काम नहीं करेगी, सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के बाद भी काम नहीं करेगी तो फिर इंसाफ का भरोसा कैसे पैदा होगा. क्या भीड़ सुप्रीम कोर्ट और पुलिस से भी बड़ी हो गई है.
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से बच्चा चोरी के संदेह पर चार औरतों को पीटने और दो को नंगा कर घुमाने का मामला सामने आया है. ये घटना भी सोमवार को हुई है. पुलिस ने मौके पर पहुंच कर बचाया न होता तो भीड़ इनके साथ क्या करती, बताने की ज़रूरत नहीं है. ये चारों औरतें दाऊकिमरी बाज़ार गई थीं. दो औरतें माइक्रो फाइनांस कंपनी चली गईं और एक अपने संबंधी के पास और एक कपड़ा बेचने निकल गई. तब तक किसी ने हल्ला कर दिया कि बच्चा चोर औरतें आई हैं. बस तुरंत भीड़ जमा हो गई और औरतों को मारने लगी. दो औरतों के कपड़े उतार लिए गए. फिर उन्हें लोकल क्लब में ले जाया गया. इसी इलाके में एक सप्ताह पहले एक औरत को खंभे से बांध कर पीटा गया था. बीते शनिवार की रात मध्यप्रदेश के सिंगरौली में मानसिक रूप से बीमार एक महिला को बच्चा चोर बताकर मार दिया गया. ये आपका हमारा आज का भारत है. वैसे हम लोग स्त्री को देवी भी मानते हैं, शायद दुनिया के किसी भी देश में स्त्री को न देवी मानते हैं और न स्त्री मानते होंगे, ये कम बड़ी बात नहीं है कि हम देवी मानते हैं.
This Article is From Jul 24, 2018
कानून हाथ में क्यों लेती जा रही है भीड़?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 24, 2018 23:22 pm IST
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Published On जुलाई 24, 2018 23:22 pm IST
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Last Updated On जुलाई 24, 2018 23:22 pm IST
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