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This Article is From Dec 01, 2015

जनलोकपाल: बहस के लिए इसलिए तैयार नहीं हो रहे केजरीवाल

Written by Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 14:10 pm IST
    • Published On दिसंबर 01, 2015 19:36 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 14:10 pm IST
अरविंद केजरीवाल अपने पुराने साथी प्रशांत भूषण के साथ बहस के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। प्रशांत ने दिल्ली सरकार के जनलोकपाल पर बहस की चुनौती दी है। वे इस लोकपाल को 'जोकपाल' बता रहे हैं। केजरीवाल खुद जाने के बजाए आशीष खेतान को भेज रहे हैं। केजरीवाल जो आंदोलन के वक्त पूरी दुनिया को बहस के लिए ललकारा करते थे, अब क्यों भाग रहे हैं।

'उस लोकपाल' से अलग है यह लोकपाल
केजरीवाल लोकसभा चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी को भी बनारस के किसी भी नुक्कड़ पर बहस करने की चुनौती देते थे। वे  दिल्ली चुनाव के वक्त किरण बेदी ,शीला दीक्षित को बहस की चुनौती देते थे। सोनिया और राहुल को भी वे बहस की चुनौती देते थे तो अब वे क्‍यों बहस से भाग रहे हैं। वजह है दिल्ली सरकार का लोकपाल जिसे विधानसभा ने पारित किया है, यह लोकपाल उस लोकपाल से अलग है जिसके लिए अण्णा हजारे और टीम केजरीवाल ने आंदोलन किया था। 2011 के वक्त लोकपाल में 7 सदस्यों की समिति थी जिसमें एक ही सदस्य सरकार का था जबकि दिल्ली लोकपाल में 4 सदस्यों की समिति होगी जिसमें सरकार के दो सदस्‍य होंगे।

केंद्र के अफसर भी इस लोकपाल के दायरे में
2011 में लोकपाल को हटाने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट को था मगर अब विधानसभा के दो तिहाई बहुमत से ही लोकपाल को हटाया जा सकता है। 2011 के लोकपाल में केन्द्र और राज्यों के लिए अलग-अलग लोकपाल की व्यवस्था थी मगर दिल्ली के लोकपाल के दायरे में सीएम के दफ्तर समेत दिल्ली की सीमा में हुए किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की जांच शामिल है। तात्‍पर्य यह कि केन्द्र के मंत्री और अधिकारी भी इसी के दायरे में होंगे। 2011 में लोकपाल की जांच के लिए एक अलग से एजेंसी बनाने की बात थी मगर अब सरकारी विभाग के अफसर ही जांच करेंगे।

अण्‍णा ने नहीं दिया कोई पक्‍का जवाब
2011 में गलत शिकायत मिलने पर एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान था मगर अब एक साल की सजा या एक लाख का जुर्माना या फिर दोनों होगा। प्रशांत भूषण के मुताबिक,  केजरीवाल ने दिल्ली के लोकपाल को कमजोर बनाया है। केजरीवाल ने अपने दो साथियों को अण्णा हजारे के पास भेजा कि यदि केन्द्र इस लोकपाल को मंजूरी नहीं देता है तो वो आंदोलन करें मगर अण्णा ने पक्का जबाब नहीं दिया। उन्‍होंने भी लोकपाल को हटाने और चयन समिति में सरकार के लोग अधिक होने पर आपत्ति जताई है और इसमें बदलाव का सुझाव दिया है।

यही वजह है कि हर किसी से बहस करने की धमकी देने वाले केजरीवाल इस बार चुप हैं। बहुत पहले लालकृष्ण आडवाणी, सोनिया गांधी को चुनाव के वक्त बहस की चुनौती देते थे। क्या करें, केजरीवाल ब्रांड की राजनीति में सब पर आरोप लगाना  ही काफी होता है उसे साबित करना नहीं। आप ने किया, वही अंतिम सत्य होता है। यहां मेरी कमीज सबसे सफेद मानी जाती है मगर इस तरह की राजनीति में ये भी होता है कि आपकी कमीज पर लगा एक छोटा सा दाग भी बड़ा धब्बा बन जाता है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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