अच्छे प्रशासन, विकास और लोकतंत्र की परिभाषा में अपराध नियंत्रण का क्या स्थान है? क्या अराजकता और उसे बढ़ावा देना सिर्फ इसलिए माफ़ किया जाना चाहिए, क्योंकि लोगों का एक वर्ग प्रभावशाली होने के कारण किसी भी कार्रवाई से बाहर होना अपना अधिकार मानता है? यह बहस कोई आज की नहीं है और न ही केवल भारत तक सीमित है।
कुछ ऐसा ही नजरिया हमारे देश में अपराध नियंत्रण में पुलिस भूमिका को लेकर होता चला जा रहा है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपराध रोकने और कानून व्यवस्था संभालने के नाम पर पुलिस की मनमानी और लापरवाही होती है, लेकिन इसका विरोध करने का सिलसिला कुछ ऐसी हद तक पहुंच रहा है कि पुलिस के लिए अपना रूटीन काम करना भी मुश्किल होता जा रहा है। कम से कम उत्तर प्रदेश में तो स्थिति ऐसी सीमा तक बिगड़ती नजर आ रही है कि पुलिस ने कई मामलों में गैरकानूनी गतिविधियों की ओर ध्यान देना तक बंद कर दिया है, क्योंकि किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने पर अगले ही पल ऊपर से फ़ोन आने के साथ ही स्थानीय नेता या विधायक तक आरोपी को छुड़वाने और कार्रवाई करने वाले पुलिसकर्मी को ही सज़ा दिलाने पुलिस थाने पहुंच जाते हैं।
होली के पहले ही उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि होली के दिनों में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर नज़र रखी जाए। शराब पीकर गाड़ी चलाने पर रोक लगाई जाए। सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए सड़कों पर यातायात पर नियंत्रण रखा जाए और छेड़खानी, मारपीट आदि से सख्ती से निपटा जाए, लेकिन इस बार प्रदेश में दो दिन तक मनाई गई होली के दौरान न केवल तीन दर्जन लोगों ने सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाई, बल्कि 30 से ज्यादा लोगों की झगड़ों, मारपीट आदि में जान गई। पिछले दिनों तो एक जिले में कुछ मोटर साइकिल के चालान करने पर वहां के विधायक और सपा नेता संबंधित थाने पहुंचकर विरोध करने के बाद भी उन पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कराने के बाद ही माने।
प्रदेश में आए दिन ट्रैफिक पुलिस द्वारा रोके जाने पर या चालान करने पर पुलिसवालों को धमकी देना और छोटी सी बात पर भी वर्दी उतरवा देने की धमकी देना भी अब रोजाना की घटनाओं में शामिल हो चुका है। पुलिसवाले भी अब इन घटनाओं से इतना आजिज़ आ चुके हैं कि वे चालान भी तब ही करते हैं जब उन्हें अंदाज़ हो जाता है कि जिसे वे पकड़ रहे है वह दिखने में ही कमजोर और प्रभावहीन लग रहा है। जिले के पुलिस अधिकारी और उनसे ऊपर के अधिकारी भी मानते हैं कि बिना बात की राजनीतिक दखलअंदाजी से उनके काम करने के तरीके पर बहुत गलत असर पड़ रहा है। यही नहीं, पुलिस कर्मियों का मनोबल इतना गिर चुका है कि अपराधों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं रह गई है। कारण- अगर अपनी जांच में उनके हत्थे कोई जरा सा भी प्रभावशाली व्यक्ति आया तो उसे लगभग तुरंत ही उन्हें छोड़ना पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों के हतोत्साहित होते जाने से कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इस बात से चिंतित हैं कि आने वाले दिनों में सार्वजनिक तौर पर कहीं पुलिसकर्मियों का असंतोष सामने आ सकता है, क्योंकि अभी भी मातहत पुलिसकर्मी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश अक्सर या तो सुनते नहीं हैं, या स्पष्ट कह देते हैं कि अधिकारी को जो करना है कर लें, उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला। इसका नतीजा यह हुआ है कि नियमों के बावजूद मोटरसाइकिल पर तीन लोगों का बैठना अब सामान्य हो चला है। सड़क पर या सार्वजनिक स्थानों पर दुर्व्यवहार की शिकायत करने पर पुलिसवाले मामले का संज्ञान लेने के बजाए संबंधित लोगों को आपस में ही सुलह करने की सलाह देने लगे हैं। ऐसे में पुलिस के पास रिपोर्ट लिखवाने की संख्या पर भी प्रभाव पड़ने लगा है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है और पार्टी का झंडा लगाकर चलना अब एक तरह का लाइसेंस हो चला है कि उस गाड़ी को कोई पुलिसवाला रोकने की हिम्मत नहीं करेगा। जिले के पुलिस अधिकारी हालांकि अधिकारिक तौर पर ऐसा होने से इनकार करते हैं, लेकिन कई बड़े अपराधों में किसी प्रभावशाली व्यक्ति से जुड़े होने की स्थिति में उस मामले की जांच कमजोर पड़ने की घटनाएं भी सामान्य हो चुकी हैं। पुलिसकर्मियों पर हाथ चला देने से लेकर किसी आरोपी को छुड़वाने के लिए थानों पर हमला बोल देने की घटनाएं भी कई जिलों में आम हैं।
ऐसे में आम लोगों द्वारा अपनी सुरक्षा के लिए अपने दम पर ही निपटने की प्रवृति भी बढ़ रही है। अभी अपने पास आत्म-रक्षा के लिए हथियार रखने का चलन कुछ ही लोगों तक सीमित है, लेकिन ऐसी स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता जब लोग अमेरिका की तरह बंदूकें रखने की स्वतंत्रता की मांग करने लगें। अमेरिका में ऐसा कानून वहां के लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े हुए अधिकारों में है, लेकिन वहां पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक स्थानों पर गोली चलाए जाने से बच्चों और छात्रों समेत कई लोगों की जान जा चुकी है, जिसके बाद इस कानून में बदलाव की मांग उठ रही है, लेकिन इस बदलाव के लिए देश का एक बड़ा वर्ग तैयार नहीं है।
सपा सरकार के सामने कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण एक बड़ी समस्या है और इसके आगे सरकार के कई बड़े प्रोजेक्ट जैसे एक्सप्रेस-वे, लखनऊ मेट्रो, आदि भी हल्के पड़ने लगे हैं। सत्तारुढ़ पार्टी के कई नेता और यहां तक कि मंत्री भी ऐसे बयान देते हैं जिससे अराजक तत्वों के हौंसले बढ़ते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान पुलिस के इकबाल का हो रहा है, और यह किसी पार्टी से जुड़ी समस्या नहीं है।
रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...
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This Article is From Mar 30, 2016
अराजक तत्वों के सामने क्यों बेबस है पुलिस?
Ratan Mani Lal
- ब्लॉग,
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Updated:मार्च 30, 2016 18:18 pm IST
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Published On मार्च 30, 2016 18:07 pm IST
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Last Updated On मार्च 30, 2016 18:18 pm IST
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