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जम्मू एवं कश्मीर के चुनाव पर क्यों है दुनिया की नज़र...?

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 12, 2024 14:59 pm IST
    • Published On सितंबर 12, 2024 14:59 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 12, 2024 14:59 pm IST

जम्मू एवं कश्मीर में 18 सितंबर से विधानसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होने वाला है. इस एक घटना ने जहां चीन और पाकिस्तान के होश उड़ा दिए हैं, वहीं दुनिया के बाकी देश भारत की ताकत और रणनीति को दम साधकर देख रहे हैं. पिछले दो दशक में जिस जम्मू एवं कश्मीर की पहचान दुनिया में सिर्फ बुलेट के लिए थी, आज उसी जम्मू एवं कश्मीर की जनता भारत के संविधान के तले बैलेट को अपना रही है. जम्मू एवं कश्मीर के इस चुनाव से भारत का विश्व को सीधा संदेश है कि भारत वह भूमि है, जो युद्ध नहीं, बुद्ध में विश्वास करती है और युद्ध से बुद्ध की इस जम्मू एवं कश्मीर की यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति और नीति का बहुत बड़ा योगदान है. इस योगदान को दिग्गज कांग्रेस नेता और भारत के पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के उस बयान से भी समझा जा सकता है, जिसमें वह स्वीकार करते हैं कि देश के गृहमंत्री होते हुए भी उन्हें कश्मीर में जाने से डर लगता था, मगर आज तो चुनाव के वक्त भी कश्मीर की घाटियां खुले दिल से हर किसी की अगवानी कर रही हैं.

कैसे संभव हुआ यह चुनाव

15 अगस्त, 1947 को देश की आज़ादी के साथ भारत का बंटवारा हुआ, जिसने जहां दो राष्ट्रों - भारत और पाकिस्तान - का निर्माण किया, वहीं इन दोनों राष्ट्रों के बीच जम्मू एवं कश्मीर को एक विवाद और कलह का मुद्दा भी बना दिया. इस कलह को तात्कालिक तौर पर रफा-दफा करने के लिए संविधान में आर्टिकल 370 का प्रावधान बनाया गया, लेकिन यह मुद्दा सुलझने के बजाय ऐसा उलझता गया कि सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर ही नहीं, पूरे देश की ताकत मात्र इस एक मुद्दे पर फोकस हो गई.

यह सिलसिला कई दशक तक चलता रहा, जिसमें पाकिस्तान के साथ भारत के तीन युद्ध हुए. पाकिस्तान लगातार आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता रहा, पूरे जम्मू एवं कश्मीर को हिंसा की आग में झुलसाने का काम करता रहा, लेकिन पाकिस्तान जिस आधार पर जम्मू एवं कश्मीर में तांडव कर रहा था, उस आधार को ही 5 अगस्त, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने संसद के ज़रिये पूरी तरह समाप्त कर दिया. आर्टिकल 370 की समाप्ति की इस घोषणा ने 1947 में शुरू हुए इस विवाद को न केवल खत्म किया, जम्मू एवं कश्मीर की जनता को नया जीवन भी दिया. आज वे देश के बाकी हिस्सों की तरह ही भारत के संविधान में विश्वास करते हुए अपनी विधानसभा को चुन रहे हैं.

यह चुनाव सबका है

जम्मू एवं कश्मीर में आर्टिकल 370 की समाप्ति के साथ ही वहां विधानसभा की सीटों का पुर्नगठन किया गया, और भारत की संसद ने 6 दिसंबर, 2023 को जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पारित किया. इस बदलाव ने जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा की सीटों की संख्या को 90 कर दिया, जिसमें जम्मू क्षेत्र की 43 सीटें और कश्मीर क्षेत्र की 47 सीटें हैं. यही नहीं, 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू एवं कश्मीर के लिए भी आरक्षित की गई हैं. इसका साफ मतलब है कि जम्मू एवं कश्मीर की विधानसभा की सीटों की संख्या 114 है और वह तभी पूर्ण होगी, जब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भारत का चुनाव आयोग भविष्य में चुनाव कराएगा.

इस विधानसभा चुनाव की सबसे खास बात यह है कि इन चुनावों में सभी राजनीतिक दल - कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और भारतीय जनता पार्टी के अलावा वे पार्टियां और नेता भी हिस्सा ले रहे हैं, जो कभी राज्य में आतंक और हिंसा के साथ खड़े थे. जमात-ए इस्लामी एक ऐसा ही संगठन है, जिस पर आतंकी गतिविधियों के लिए भारत सरकार ने पाबंदी लगा रखी है, लेकिन इस संगठन से जुड़े लोग भी चुनाव मैदान में हैं. यही नहीं, भारत-पाकिस्तान की सीमा से सटे सबसे संवेदनशील गांव मकरी में भी चुनाव हो रहे हैं. यहां चुनाव का सबसे आखिरी मतदान केंद्र है. यह गांव आतंकी हमले और आतंकवादियों के साये में अब तक जीता था.

चीन-पाकिस्तान सकते में

जम्मू एवं कश्मीर में आर्टिकल 370 के हटने से चीन और पाकिस्तान की रणनीति पूरी तरह फेल हो गई है. लेकिन इसे विवादित बनाए रखने में इन दोनों देशों ने कोई कोर-कसर अभी तक नहीं छोड़ी है. इस साल 4 जून को लोकसभा चुनाव के परिणामों ने जब यह स्पष्ट कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरे टर्म के लिए वापसी कर रहे हैं, तो चीन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने 7 जून को बीजिंग में एक संयुक्त प्रेस नोट जारी किया और कहा, "पाकिस्तानी पक्ष ने चीनी पक्ष को जम्मू एवं कश्मीर की स्थिति के नवीनतम घटनाक्रम के बारे में जानकारी दी, और चीनी पक्ष ने दोहराया कि जम्मू एवं कश्मीर विवाद इतिहास से बचा हुआ है, और इसे उचित और शांतिपूर्ण तरीके से संयुक्त राष्ट्र चार्टर, प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के अनुसार सुलझाया जाना चाहिए..."

चीन और पाकिस्तान के इस संयुक्त बयान से साफ था कि प्रधानमंत्री मोदी जम्मू एवं कश्मीर की अपनी रणनीति पर उसी तरह आगे बढ़ेंगे, जैसे वह अगस्त, 2019 से करते आ रहे हैं. इसलिए दोनों दबाव बनाकर प्रधानमंत्री मोदी को रोकना चाहते थे.

भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए 9 जून को जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी अपने तीसरे टर्म की शपथ ले रहे थे, उसी दिन जम्मू के रियासी में माता वैष्णो देवी के दर्शन करने गए श्रदालुओं की बस पर आतंकी हमला किया गया, जिसमें 9 यात्री मारे गए. इस घटना के बाद लगातार 11 जून और 12 जून को कठुआ और डोडा में आतंकी हमले हुए. इसमें सेना के जवान भी शहीद हुए और आतंकवादी भी मारे गए. इसके बाद से जम्मू एवं कश्मीर में आतंकी हमले हो रहे हैं, क्योंकि चीन और पाकिस्तान किसी भी हाल में जम्मू एवं कश्मीर में इस चुनाव को सफल नहीं होने देना चाहते हैं, लेकिन भारत हर हाल में चुनाव कराने को दृढ़ संकल्पित है, इसीलिए भारत-पाकिस्तान की पूरी सीमा पर, जंगलों में और पहाड़ों की चोटियों पर सेना के जवानों को मुस्तैदी से तैनात कर दिया गया है. चप्पे-चप्पे पर सेना निगरानी कर रही है. ऐसे में अभी तक पाकिस्तान, चीन के सहयोग के बावजूद, अपने मंसूबे में फेल रहा है.

जम्मू एवं कश्मीर पर बदला दुनिया का रुख

यह बात याद रखनी चाहिए कि वैश्विक महाशक्तियां जम्मू एवं कश्मीर को विश्व की शांति के लिए उसी तरह खतरा मानती थीं, जैसे आज इज़रायल और फिलस्तीन के बीच चल रहा सीमा विवाद विश्व शांति के लिए खतरा बन गया है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के एक ही मास्टरस्ट्रोक ने जम्मू एवं कश्मीर को वैश्विक मुद्दों की लिस्ट से हटा दिया. आज संयुक्त राष्ट्र भी जम्मू एवं कश्मीर पर कोई बयान जारी करने से परहेज़ करता है.

अमेरिका समेत पश्चिम के सभी देश जम्मू एवं कश्मीर को अब भारत का अंदरूनी मामला मानते हैं. एक दशक पहले यही ताकतें जम्मू एवं कश्मीर को भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला मानती थीं और सुलझाने के लिए मध्यस्थता की बात करती थीं.

बराक ओबामा ने 2009 के अक्टूबर माह में 'टाइम' पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा था, "कश्मीर ऐसा स्थान है, जहां वह एक विशेष दूत को भेजने के लिए गंभीर कूटनीतिक संसाधन लगाना चाहते हैं, ताकि एक व्यावहारिक दृष्टिकोण निकाला जा सके..." लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी की जम्मू एवं कश्मीर की रणनीति ने चीन और पाकिस्तान को इस मुद्दे पर अलग-थलग तो किया ही है, जम्मू एवं कश्मीर में ऐसा माहौल तैयार कर दिया है कि वहां किसी भी विदेशी राजनयिक के आने-जाने पर कोई पाबंदी नहीं है. भारत के इसी विश्वास का परिणाम है कि चुनाव के इस दौर में भी अमेरिकी राजनयिकों के दल के साथ-साथ पश्चिमी और अन्य मित्र देशों के राजनयिक जम्मू एवं कश्मीर की यात्रा कर रहे हैं और वहां के राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं.

भारत के संविधान के तहत जम्मू एवं कश्मीर में होने वाला यह पहला चुनाव इतिहास की हर उस गलती का अंत है, जिसने भारत के सिरमौर जम्मू एवं कश्मीर को सिरदर्द बना दिया था.

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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