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This Article is From Oct 29, 2019

आंतरिक मामले में विदेशी सांसदों का दख़ल क्यों?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 30, 2019 00:37 am IST
    • Published On अक्टूबर 29, 2019 23:53 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 30, 2019 00:37 am IST

भारत का अभिन्न अंग है. भारत का आंतरिक मामला है. तो फिर भारत के अभिन्न और आंतरिक कश्मीर में बाहरी देशों के सांसदों के दौरे को सुविधाएं क्यों उपलब्ध कराई जा रही हैं. यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि जब भारत की लाइन अभिन्न और आतंरिकता की रही है तो इन सांसदों के निजी दौरे की सरकारी व्यवस्था क्यों कराई गई.

श्रीनगर के एक होटल से बाहर आ रहा यह काफिला घाटी की राजनीति के इतिहास में एक अजीबोगरीब दस्तक है. काली कारों के काफिले का ताल्लुक कश्मीर पर मंडरा रहे काले बादलों के छंटने से है या गहराने से. भारत अब तक इसी नीति पर चलता रहा है कि कश्मीर आंतरिक मामला है लेकिन जिस तरह से इस दरवाज़े से विदेशी सांसदों को लेकर काली कारों का काफिला निकल रहा है वह कश्मीर की आतंरिकता को अंतरराष्ट्रीय रंग दे रहा है. दे रहा है या नहीं, इस पर बहस होगी लेकिन यह तस्वीर भी कश्मीर के विचलित इतिहास में पहली तस्वीर है जिसे आज के पहले कभी नहीं देखा गया. कश्मीर मसले की आंतरिकता भारत के स्वाभिमान का भी मसला रही है लेकिन उसकी ज़मीन पर विदेशी सांसदों का यूं गुज़रना किसी का दिल धड़का रहा होगा या किसी की राजनीतिक चेतना शून्य हो रही होगी? इस यात्रा का जो भी मकसद रहा होगा लेकिन काफिले की यह तस्वीर उन हिन्दी प्रदेशों के नेताओं के बीच किस तरह से देखी जाएगी, क्या नेता इस तस्वीर का भी स्वागत करेंगे कि कश्मीर की धरती पर थर्ड पार्टी यानी तीसरे गुट को चलने की इजाज़त दी गई है. इस तस्वीर को देखते रहिए, यह तस्वीर उस कश्मीर के इतिहास में एक मील का पत्थर है जो सरदार पटेल से शुरू होती है और सरदार पटेल पर खत्म होती है. क्या ऐसा नेहरू के वक्त हुआ था. अगर होता तो सरदार पटेल क्या कहते, यह वैसा ही सवाल है जैसा कि यदि सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते.

बड़ा सवाल तो यह है कि इन सांसदों को बुलाया किसने है? आखिर इनके बुलाने के पीछे होमवर्क किसका था? इस बात को रहस्य रखा जा रहा था मगर रहस्य से पर्दा उठ गया है. आप हैरान होंगे कि कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले पर एक एनजीओ पहल कर रहा था, वो ईमेल भेज कर सांसदों को बुला रहा था जिस कश्मीर पर भारत की नीति है कि किसी तीसरे का हस्तक्षेप नहीं होगा. इस ईमेल की भाषा बता रही है कि इनके बुलाने की तैयारी में भारत उतना भी अनजान नहीं था, वर्ना कोई एनजीओ यह ईमेल नहीं भेज पाता कि आप भारत आएं 28 अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात होगी और 29 अक्तूबर को कश्मीर का दौरा होगा. आप हिन्दी या भोजपुरी में सोच कर देखिए क्या बगैर प्रधानमंत्री की जानकारी के दौरा हो सकता है? आप अवधी और मैथिली में सोच कर देखिए कि क्या इस दौरे के बारे में विदेश मंत्रालय को जानकारी थी? दरअसल हम भले न इस एनजीओ के बारे में जानते हों, इनके चेहरों को न पहचानते हों, लेकिन ये लोग इतने भी गुमनाम नहीं हैं.

आप इस तस्वीर में देखिए. प्रधानमंत्री के साथ जो महिला हैं वो मादी शर्मा हैं. भारत के सबसे ताकतवर नेता के साथ सहजता के साथ खड़ी मादी शर्मा को ट्विटर पर मात्र 2,427 लोग फॉलो करते हैं. मादी शर्मा खुद को सोशल कैपिटलिस्ट बताती हैं. खुद को इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर कहती हैं. शिक्षा उद्यमी कहती हैं. स्पीकर कहती हैं. इनकी वेबसाइट भी है. मादी का मतलब मेक ए डिफरेंस आइडियाज़. अपनी बेवसाइट में मादी शर्मा लिखती हैं कि एथनिक माइनॉरिटी के अकेले मां बाप को सहारा देती हैं. लेकिन मादी शर्मा उन दलों को कश्मीर के लिए न्यौता भेजती हैं जिनकी राजनीति एथनिक माइनॉरिटी के खिलाफ है. तो क्या कमज़ोर की मदद का सहारा लेकर छवि बनाने का यह मामला है या कोई पर्दा है जिसके पीछे का काम कुछ और है.

खुद को इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर कहने वाली महिला का कश्मीर के मामले में इतना दखल कैसे हो सकता है. ये कौन हैं जो प्रधानमंत्री से मिलाने का वादा यूरोपीयन संघ के सांसदों से कर सकती हैं. आखिर मादी शर्मा की इतने संवेदनशील मामले में इतनी पहुंच या भूमिका कैसे बनी. क्या भारत के विदेश मंत्रालय की जानकारी में ये मादी शर्मा के एनजीओ ने यूरोपीयन संघ के सांसदों को ईमेल भेजा था. हमारे सहयोगी संकेत उपाध्याय को यह ईमेल मिला है जिसकी भाषा बता रही है कि जिस दौरे को निजी बताया जा रहा है वह उतना भी निजी नहीं है. बुलाने वाले के पास पहले से प्रधानमंत्री मोदी की सहमति रही होगी कि ये सांसद आएंगे तो मुलाकात होगी. आखिर ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गई कि भारत सरकार को कश्मीर जैसे मामले में एक एनजीओ की मदद लेनी पड़ती है, एक महिला की मदद लेनी पड़ती है जो खुद को इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर कहती हैं. क्या ब्रोकर भी कश्मीर का मामला डील कर रहे हैं?

मादी शर्मा 7 अक्तूबर को यूरोपि‍यन संघ के सांसद क्रिस डेविस को ईमेल करती हैं. डेविस को लिख रही हैं कि मैं इस वीआईपी दौरे का आयोजन कर रही हूं ताकि प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात हो सके. मैं आपको आमंत्रित करते हुए खुद को सौभाग्यशाली समझती हूं; मोदी यूरोपियन संघ के प्रभावशाली नेताओं से मिलना चाहते हैं. क्या आप प्रधानमंत्री मोदी से मिलना चाहेंगे जो 28 अक्तूबर को होगी. 29 अक्तूबर को कश्मीर का दौरा होगा और 30 अक्तूबर को प्रेस कांफ्रेंस होगी. इस प्रतिनिधिमंडल में यूरोप भर से अलग अलग दल के नेता होंगे. तीन दिनों का दौरा होगा. जहाज़ और ठहरने का प्रबंध इंटनरेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नॉन एलाइट स्टडीज़ की तरफ से किया जाएगा.

आठ अक्तूबर को मादी शर्मा क्रिस डेविस को फिर ईमेल करती हैं और धन्यवाद देती हैं कि अच्छा लगा कि आपने दौरे में शामिल होने की इच्छा जताई है. मैं कुछ वीआईपी के दौरे को कॉर्डिनेट कर रही हूं. मुझे पता है कि इस दौरे का मकसद प्रधानमंत्री से मिलना, कश्मीर जाना और वहां लोगों से मुक्त रूप से मिलना है.

इसके बाद 10 अक्तूबर को मादी शर्मा क्रिस डेविस को फिर ईमेल करती हैं. सब्जेक्ट में लिखा है भारत के लिए आमंत्रण, प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात. पत्र में मादी शर्मा ने लिखा है कि डियर डेविस, आपने प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के मिशन में शामिल होने की इच्छा जताई है, उसके लिए शुक्रिया. मैं माफी चाहूंगी कि अब और सांसदों को इस दौरे में शामिल नहीं कर सकती, इसलिए गुरुवार को तय मीटिंग रद्द कर रही हूं. जब मैं भारत से आ जाऊंगी तब आपके दफ्तर से संपर्क कर मिलने का प्रयास करूंगी.

क्रिस डेविस ब्रिटेन के नार्थ वेस्ट से यूरोपीयन संघ में सांसद हैं. इन्हें दो बार श्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार मिल चुका है. क्रिस डेविस लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद हैं. क्रिस डेविस ने दावा किया है कि जब उन्होंने बग़ैर सुरक्षा दलों की घेराबंदी के मुक्त रूप से घूमने और किसी से भी बात करने की अनुमति मांगी तो उन्हें श्रीनगर नहीं जाने दिया गया. उत्तर पश्चिम इंग्लैंड से सांसद क्रिस डेविस ने कहा है कि 7 अक्तूबर को उन्हें आमंत्रम मिला था, उन्होंने अगले ही दिन जवाब दे दिया, लेकिन 10 अक्तूबर को बताया गया कि उन्हें बुलाने का प्रस्ताव रद्द हो गया है. लेकिन डेविस की पार्टी के दूसरे सहयोगी श्रीनगर गए हैं. डेविस ने अपने बयान में कहा है कि 'मैं मोदी सरकार के किसी जनसंपर्क अभियान का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं हूं ताकि जताया जा सके कि सब ठीक है. यह बहुत साफ है कि कश्मीर में लोकतांत्रिक सिद्धांतों से छेड़छाड़ की गई है और दुनिया को चाहिए कि इस बात का संज्ञान ले.'

डेविस ने कहा कि वे जिस क्षेत्र से सांसद हैं वहां के बहुत से लोगों के संबंध जम्मू कश्मीर से हैं, जो अपने रिश्तेदारों से बात करना चाहते थे, उनकी आवाज़ सुनना चाहते थे जो होने नहीं दिया गया. डेविस ने बताया कि Women's Economic and Social Think Tank ने उन्हें बुलाया था कि 28 अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी से मिलना है. 29 अक्तूबर को जम्मू और कश्मीर जाना है. 30 अक्तूबर को प्रेस कांफ्रेंस होगी.

इनके आने जाने का किराया International institute for Non-Aligned Studies' ने दिया है. तो इस आयोजन में दो दो संस्थाएं लगी हैं. यह सारा आयोजन जिसे प्राइवेट बताया जा रहा था उतना भी प्राइवेट नहीं है क्योंकि ईमेल में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री किस तारीख को मिलेंगे यानी प्रधानमंत्री की सहमति पहले से ली गई होगी, वर्ना उनसे मुलाकात की तारीख यूं ही तय नहीं हो जाती है. तो भले ही यह दौरा यूरोपीयन संघ की तरफ से आधिकारिक न हो लेकिन भारत की तरफ से आधिकारिक ही लगता है. क्या आप Women's Economic and Social Think Tank के बारे में जानना चाहेंगे कि जो भारत की विदेश नीति और वो भी कश्मीर के बारे में दखल देने की हैसियत रखती हो.

अब जब यह बात सामने आ चुकी है कि एक एनजीओ के ज़रिए कश्मीर में थर्ड पार्टी का दौरा हुआ है, इसके क्या राजनीतिक परिणाम होंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हिन्दी अखबारों से यह सब सूचनाओं को कैसे गायब कर दिया जाएगा. करोड़ों पाठकों तक कैसे इन सूचनाओं को पहुंचने से रोका जाएगा. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि भारत को यह सब करना पड़ा? अभी तक भारत की यह प्रतिक्रिया होती थी कि आंतरिक मामला है और ऐसी छोटी मोटी हलचलों से फर्क नहीं पड़ता है. न्यूयार्क में हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा में कश्मीर को लेकर चर्चा से भारत प्रभावित नहीं हुआ. क्या भारत कश्मीर को लेकर अभिन्नता और आंतरिकता से अंतरराष्ट्रीयकरण की तरफ खुद ही ले जा रहा है या कश्मीर का मसला भारत के नहीं चाहते हुए भी अंतरराष्ट्रीय होता जा रहा है? आज आपने अपने हिन्दी अख़बारों में इस दौरे की खबर पढ़ी होगी, एक बार फिर से उस खबर को देखिए कि क्या उस खबर में इन सांसदों और इनकी राजनीति के बारे में विस्तार से कोई जानकारी दी गई है?

यूरोपि‍यन संघ में 751 सीटें हैं. इनमें से हाल ही में 73 सांसदों ने मिलकर धुर दक्षिणपंथी दलों का एक समूह बनाया है. हालांकि इनके बीच रूस से नज़दीकी को लेकर दो राय है मगर यह गुट 751 सांसदों की संसद में पांचवा बड़ा समूह है. भारत में इसी गुट से संबंधित दल और सांसद आए हैं. 27 सांसदों में से 22 धुर दक्षिणपंथी पार्टी के हैं. दो सांसद सेंटर लेफ्ट दलों के हैं. फ्रांस से आए 6 सांसद नेशलन रैली के हैं जिनकी नेता मरीन ला पे हैं. पोलैंड से छह सांसदों का समूह आया है जो लॉ एंड जस्टिस पार्टी का है. ब्रिटेन के पांच में से चार सांसद धुर दक्षिणपंथी पार्टी ब्रेक्सिट पार्टी के हैं. चेक गणराज्य स्लोवाकिया और इटली से आए तीन सांसद सेंटर राइट के हैं और दो सांसद सेंटर लेफ्ट के हैं. एक सांसद जर्मनी का है. alternative for Germany। जर्मनी की समाचार एजेंसी डोयचे वेला की साइट पर इस पार्टी के बारे में डिटेल पढ़ रहा था. यह पार्टी एक तरह से ईसाई धर्म की कट्टरता में यकीन रखती है. मानती है कि गर्भपात नहीं होना चाहिए. एकल परिवार होना चाहिए. इनकी प्रेस कांफ्रेंस में प्रेस को आने की इजाज़त नहीं है. अगर कोई रिपोर्टर फोन करता है तो पहले से रिकार्ड किया हुआ संदेश जवाब के तौर पर मिलता है. इसके अलावा alternative for Germany इस्लाम को लेकर हौव्वा खड़ा करती है. तरह तरह के डर फैलाती है जिसे इस्लामोफोबिया कहते हैं. मानती है कि युद्ध की तबाही से और अपने शासकों की यातना से बच कर आने वाले शरणार्थियों को जर्मनी में रहने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए. माइग्रेंट को कोई अधिकार नहीं दिए जाने चाहिए. जो पार्टी इस तरह की राय रखती हो उसके सांसद भारत आए हैं और श्रीनगर का दौरा करने गए हैं. उसी तरह यह जानना ज़रूरी है कि ब्रिटेन की पार्टी ब्रेक्सिट और फ्रांस की नैशनल रैली जैसी पार्टियों की नीति क्या है.

इसके पहले अमरीकी सिनेटर क्रिस वान होलेन को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर जाने की इजाज़त नहीं दी थी. क्रिस देखने जाना चाहते थे कि घाटी में क्या हो रहा है. नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने इसे पीआर स्टंट बताया है. वैसे आज विश्व इंटरनेट डे है और कश्मीर में 5 अगस्त से इंटरनेट शटडाउन है. 14 लाख बच्चे तीन महीने से स्कूल नहीं गए हैं. 29 तारीख को जम्मू कश्मीर में दसवीं के इम्तहान भी हुए.

भारत के राजनीतिक दल यूरोपियन संघ के सांसदों को श्रीनगर जाने की अनुमति पर सवाल उठा रहे हैं. जब सीपीएम नेता सीताराम येचुरी अपनी पार्टी के बीमार नेता युसूफ तारीगामी को देखने जाना चाहते थे तब भारत सरकार के सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में विरोध किया था. कहा था कि जम्मू कश्मीर की स्थिति नार्मल है, लेकिन सीताराम येचुरी के दौरे से शांति पर असर पड़ेगा. उनका दौरा राजनीतिक है. सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के साथ सीताराम येचुरी और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद को जाने की अनुमति दी थी. अब विपक्ष के नेता पूछ रहे हैं कि जब उन्हें नहीं जाने दिया गया तो किस आधार पर यूरोपियन संघ के सांसदों का दौरा कराया जा रहा है.

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने ट्विट किया है कि 'कश्मीर में यूरोपियन सांसदों को सैर-सपाटा और हस्तक्षेप की इजाज़त लेकिन भारतीय सांसदों और नेताओं को पहुंचते ही हवाई अड्डे से वापस भेजा गया. बड़ा अनोखा राष्ट्रवाद है यह.'

सत्यपाल मलिक तो अब गोवा के राज्यपाल हो गए हैं लेकिन जब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे तब उन्होंने राहुल गांधी को ट्वीट किया था कि आप कश्मीर आकर हालात देख सकते हैं लेकिन जब राहुल गांधी श्रीनगर पहुंचे तो एयरपोर्ट से ही वापस कर दिए गए. यह घटना 24 अगस्त की है. सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं बल्कि विपक्ष के 11 नेताओं को वापस कर दिया गया था. यूरोपि‍यन यूनियन के 23 सांसद श्रीनगर गए हैं. फिर केंदीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी चाहते हैं कि भारत का विपक्ष कश्मीर का दौरा करने आए यूरोपि‍यन संघ के सांसदों का स्वागत भी करे.

इस दौरे से जिस तरह से यूरोपीय संघ अलग कर रहा है वह भी दिलचस्प है. जिसकी संसद में कश्मीर पर चर्चा हुई थी आखिर वह अपने सांसदों के दौरे से खुद को अलग करने को लेकर उत्सुक क्यों है. आज उत्तर पश्चिम ब्रिटेन से यूरोपियन संघ में सांसद थेरेसा ग्रिफिन ने ट्वीट किया है कि 'यह बिल्कुल साफ हो जाना चाहिए कि घुर-दक्षिण पंथी सांसदों का समूह कश्मीर का दौरा कर रहा है वो आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल नहीं है. वे यूरोपियन संघ का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. कश्मीर में जो शटडाउन है वो खत्म होना चाहिए और संवैधानिक शासन फिर से बहाल होना चाहिए. हम भारतीय प्रशासित कश्मीर की आबादी को लेकर बेहद चिन्तित हैं जिन्हें कई प्रकार के मानवाधिकार से वंचित किया जा रहा है. हम भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि उन मानवाधिकारों को पूरी तरह बहाल किया जाए जो उन्हें नहीं दिए जा रहे हैं.'

UNHumanRights के इस ट्वीट में भारतीय प्रशासित कश्मीर का इस्तमाल किया गया है. आखिर भारत सरकार ने इन सांसदों को इजाज़त देकर हासिल क्या किया, कहीं सरकार के इस कदम से कश्मीर का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मुखर तो नहीं हो गया. हाल ही अमरीकी संसद के विदेश मामलों की समिति दक्षिण एशिया में मानवाधिकार के सवालों पर पूछताछ कर रही थी. इस कमेटी के सामने कई लोग पेश हुए थे. इस कमेटी के सामने टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार आरती टिक्कू सिंह भी पेश हुई थीं. जब उन्होंने कहा कि कश्मीर में 30 साल से जिहाद चल रहा है. पाकिस्तानी आतंक का शिकार कश्मीरी मुस्लिम हुए हैं. इस पर किसी का ध्यान नहीं गया है तब अमरीकी कांग्रेस की प्रतिनिधि इल्हान उमर ने उनसे कह दिया कि आप टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार हैं, जिसके पाठकों की संख्या बहुत अधिक है. आपका दायित्व बनता है कि आप सही तस्वीर पेश करें. इल्हान ओमर ने कहा कि एक रिपोर्टर का काम होता है सत्य के प्रति ऑब्जेक्टिव रहना. क्या हो रहा है उसे सही सही अपने पाठकों को बताना. मैं रिपोर्टर की मजबूरियों को समझती हूं लेकिन प्रेस तब और बुरा हो जाता है जब वह सरकार का भोंपू बन जाता है. आरती टिक्कू ने इस कमेटी को पूर्वाग्रह ग्रसित बताया था. इसी कमेटी के सामने खुद को कश्मीरी मूल और कश्मीरी पंडित कहने वाली डॉ. निताशा कौल का भाषण भी काफी सुना गया. नितिशा कौल यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिनिस्टर में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की एसोसिएट प्रोफेसर हैं. नितिशा कॉल ने कहा था कि कश्मीर में मानवाधिकार संकट है.

सवाल यही है कि क्या यूरोपीय संघ के सांसदों का दौरा भारत की तरफ से कश्मीर के मसले में तीसरी पार्टी को आमंत्रण है.

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