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This Article is From May 30, 2019

भारतीय समाज में जातिवाद का जहर

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 10, 2019 12:54 pm IST
    • Published On मई 30, 2019 00:06 am IST
    • Last Updated On जून 10, 2019 12:54 pm IST

17 जनवरी 2016 को रोहित वेमुला ने एक पत्र लिखा था. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला ने ख़ुदकुशी से पहले लिखे इस पत्र में लिखा था कि इंसान की कीमत उसकी पहचान में सिमट कर रह गई है. एक वोट हो गई है. एक संख्या हो गई है. एक चीज़ होकर रह गई है. मेरा जन्म महज़ एक जानलेवा दुर्घटना थी. मैं बचपन के अपने अकेलपन से कभी बाहर नहीं आ सकूंगा, जिसकी किसी ने सराहना नहीं की. मैं न तो दुखी हूं और न उदास. मैं बस ख़ाली हो चुका हूं. ख़ुद से बेपरवाह हो चुका हूं. रोहित वेमुला की आत्महत्या पर देश भर में बहस हुई, लेकिन उस बहस के बाद भी जाति की मार से आ रही उदासियों का दौर नहीं थमा. बल्कि हम सभी का ध्यान इस बात पर गया ही नहीं, जाता भी नहीं है कि हम जाति की पहचान को लेकर जो तंज करते हैं वो हमारी मानसिक बनावट को किस तरह प्रभावित करता है.

मुंबई में डॉ. पायल तड़वी की आत्महत्या को लेकर नागरिक समाज के एक हिस्से में बहुत बेचैनी है. पायल तड़वी के लिए इंसाफ की मांग कर रहे इन लोगों को देखकर आपको लग सकता होगा कि यह एक रूटीन विरोध प्रदर्शन है. मेरी यही गुज़ारिश है कि जिस कारण से पायल ने आत्महत्या की है, हम उसे पुलिस की कार्रवाई तक न सीमित रखें. अब तो पायल के अस्पताल ने भी अपनी रिपोर्ट में माना है कि उसे उसकी जाति को लेकर प्रताड़ित किया जा रहा था. ताने मारे जा रहे थे. डॉ. हेमा आहूजा, डॉ. अंकिता खंडेलवाल और डॉ. भक्ति मेहर पर कथित रूप से आरोप लगा कि इन तीनों ने कई मौकों पर पायल तड़वी को उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण प्रताड़ित किया.


बताया जाता है कि आत्महत्या वाले दिन से पहले ऑपरेशन थियेटर में उसके साथ इन तीनों ने बुरा बर्ताव किया और वह रोते हुए बाहर आ गई थी. तीनों डॉक्टरों को गिरफ्तार कर लिया गया है. हमारे सहयोगी सोहित मिश्र ने बताया है कि पायल का सुसाइड नोट नहीं मिला है. आत्महत्या से 9 दिन पहले पायल के पति सलमान ने भी टी एन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज से शिकायत की कि उसकी पत्नी पायल को सीनियर डॉक्टर मानसिक रूप से परेशान कर रहे हैं. मां का दावा है कि उन्होंने दिसंबर 2018 में भी लिखा था कि उनकी बेटी को जाति के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है. 26 साल की उम्र थी पायल की. मुमकिन है इस उम्र में पायल इन तानों को नहीं झेल सकी हो. वह डिप्रेशन में चली गई है जहां उसे लगता हो कि अब इस तरह की प्रताड़ना से उबरा नहीं जा सकता है.

पायल तड़वी अनुसूचित जनजाति की हैं. तड़वी भील समाज से आती हैं, जिनकी आबादी में 80 लाख है. पायल तड़वी डॉक्टर बनकर महाराष्ट्र के जलगांव में अपने समाज की सेवा के लिए अस्पताल खोलना चाहती थी. 30 साल पहले कोई इस समाज से डॉक्टर बना था. उसके बाद पायल तड़वी ने पांच साल मेडिकल की पढ़ाई के बाद डॉक्टरेट में एडमिशन लिया था. किसी भी पैमाने से इस समाज में हर तरह का पिछड़ापन है. ऐसे समाज से कोई पायल मेडिकल तक पहुंच जाए, साधारण बात नहीं है. मार्च 2014 में तमिलनाडु के मुथुकृष्णन ने आत्महत्या कर ली थी.
मुथु जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर थे. मुथू ने अपने आखिरी पोस्ट में लिखा था कि जब समानता नहीं तो कुछ भी नहीं. ऐसी अनेक घटना आपको मिल जाएगी. 2008 में थोराट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 69 फीसदी अनुसूचित जाति, जनजाति के छात्रों को शिक्षकों का सहयोग नहीं मिलता है. 72 फीसदी छात्रों ने पढ़ाई के समय भेदभाव की बात मानी है. 84 फीसदी छात्रों ने प्रैक्टिल परीक्षा में नाइंसाफी की बात कही है.

हम देख तो रहे हैं कि जाति को लेकर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रताड़ना के कितने रूप हैं. कई मेडिकल कॉलेज में जाति के आधार पर सीनियर और जूनियर का क्लब बंटा होता है, जो पहली बार इन संस्थानों में प्रवेश कर रहा है और सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर तबके से होता होगा उसकी इन जाति समूहों में बंटे सीनियरों के सामने क्या हालत होती होगी, हम नहीं जानते. हम नहीं जानते कि कमज़ोर जातियों को प्रताड़ित करने वाले सीनियर अपने डॉक्टर होने की कामयाबी के पीछे इस तरह के अपराध को कैसे छिपा ले जाते होंगे. हम यह भी नहीं जानते कि जब आप किसी को जाति के आधार पर प्रताड़ित करते हैं, भेदभाव करते हैं.

लंदन में क्रॉस कल्चर मनोचिकित्सक हैं सुश्रुत जाधव. इनका एक इंटरव्यू सेमिनार में प्रकाशित हुआ है. सुश्रुत जाधव ने भारत में मेंटल हेल्थ थ्योरी और समझ की धज्जी उड़ा दी है यह कहते हुए कि यह विषय सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से करप्ट है और खोखला है. मतलब यह हुआ कि मनोचिकित्सक की दुनिया में इस बात को लेकर समझ ही नहीं है कि जाति को लेकर होने वाले भेदभाव का किसी पर क्या असर पड़ता होगा. उसके व्यक्तित्व में किस तरह का बदलाव आता होगा, कैसे वह व्यक्ति इन कारणों से गहरे अवसाद में चला जाता होगा. जाति का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है.

Blue Dawn से जुड़े लोग मनोचिकित्सक नहीं हैं, बल्कि एक सामुदायिक नेटवर्क हैं जो अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी समुदाय के प्रताड़ित लोगों को मनोचिकित्सक तक पहुंचने का रास्ता बताते हैं. उनको एक माहौल देते हैं ताकि वे अपने ज़ख्मों से उबर सकें. आंध्र की रहने वाली दिव्या कंदकुरी का वीडियो आप ज़रूर देखें. अंग्रेज़ी में हैं. दिव्या ने बेहद सफाई से बताया है कि कैसे हम बोलचाल में जानबूझ कर और अनजाने में जाति और समाज के प्रति तंज करते हैं. अनजाने में बोलने से आपको छूट नहीं मिल जाती है बस ज़रा सा प्रयास करें तो पता चलेगा कि आपने एक मुहावरे के ज़रिए किसी को कैसे ज़ख्म दे दिया, जिसे हम अनजाने में आया शब्द कहते हैं वो हमें आसमान से नहीं मिलता है बल्कि घर परिवार में किसी के ज़रिए ही आता है. अपने मां बाप से और परिवेश से. इसलिए किसी को अच्छा और बुरा कहने के लिए किसी समुदाय, भाषा और इलाके का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. कानूनन आप कई जातिसूचक शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं और दिव्या ने भी इस वीडियो में बताया है कि अपराध है तब भी अपराध करते हैं लोग. इसके कारण जो अवसाद डिप्रेशन पैदा होता है वह कभी-कभी जानलेवा हो जाता है. बहुजन के मेंटल हेल्थ की ज़रूरतों को पूरा करने का यह प्रयास सराहनीय है. Thebluedawn56 इंस्टाग्राम हैंडल है. पब्लिक स्पेस में आपको जानकारी मिलेगी कि कहां-कहां जाति के आधार पर नौजवानों को प्रताड़ित किया जाता है.

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