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This Article is From May 17, 2016

आखिर क्यों उड़ रही हैं आनंदीबेन पटेल की विदाई की अफवाहें?

Rajiv Pathak
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 17, 2016 18:10 pm IST
    • Published On मई 17, 2016 18:09 pm IST
    • Last Updated On मई 17, 2016 18:10 pm IST
इस हफ्ते गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल दिल्ली गईं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलीं और फिर पूरी दिल्ली और गुजरात में ये चर्चा शुरू हो गई कि गुजरात में मुख्यमंत्री बदला जा रहा है। जबकि सच्चाई ये थी कि आनंदीबेन राज्य में सूखे की स्थिति पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री से मिलीं थीं। क्या बिना चिंगारी के ही ये हवा उठी कि आनंदीबेन को बदला जा रहा है। ये बात सच है कि दिल्ली में भाजपा के किसी वरिष्ठ नेता ने ही ये बात फैलाई होगी वर्ना मीडिया में ये हवा नहीं उठती। आखिर ऐसा कौन है जो आनंदीबेन को अस्थिर करना चाहता है और क्यों।

आइये आपको गुजरात की राजनीति के कुछ ऐसे तथ्यों से परिचित करवाएं जिससे ये तो कम से कम साफ हो जाएगा कि गुजरात भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं है इसलिए ये चर्चा लगातार चलती रही है।

आनंदीबेन पटेल के हटाये जाने की चर्चा पहली बार नहीं उठी है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने तभी से गुजरात में उनके नैसर्गिक उत्तराधिकारी के तौर पर उनके चहेते अमित शाह को देखा जा रहा था। गुजरात भाजपा में ज्यादातर लोग ये मानते थे कि अमित शाह ही मोदी के बाद गुजरात की गद्दी संभालेंगे। लेकिन नरेन्द्र मोदी ये नहीं चाहते थे और वो अमित शाह को हटा भी नहीं सकते थे, आखिर अमित शाह हमेशा से ही नरेन्द्र मोदी के सबसे करीबी लोगों में से रहे हैं।

साथ ही नरेन्द्र मोदी की सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में अमित शाह के अलावा थीं आनंदीबेन पटेल। लेकिन मज़े की बात थी कि अमित शाह और आनंदीबेन के बीच कभी नहीं बनी। दोनों को हमेशा से ही एक दूसरे से खतरा था। इसलिए दोनों को नरेन्द्र मोदी को संभालना था। लिहाज़ा आनंदीबेन गुजरात की गद्दी पर बैठीं और अमित शाह को कहा गया राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहने को और ये भी भरोसा दिया गया कि वो पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे। बाहर सबकुछ ठीक दिखे इसलिए आनंदीबेन के नाम का प्रस्ताव भी करवाया अमित शाह से। एक तीर से दो शिकार किये मोदी ने। अमित शाह नाराजगी के बावजूद मान गये, संकेत अच्छे गये और अमित शाह के गुजरात से दूर रहने की वजह से आनंदीबेन की मुश्किलें कम रहीं।

लेकिन सिर्फ अमित शाह ही नहीं पार्टी में ज्यादातर लोग आनंदीबेन से खफा थे। आनंदीबेन स्वभाव से थोड़ी बेबाक हैं, किसी की बात जंची नहीं तो राजनैतिक नहीं एकदम बोल्ड जवाब दे देती हैं। इसलिए आनंदीबेन जब से मुख्यमंत्री बनीं, भाजपा में उनके खिलाफ असंतोष रहा लेकिन नरेन्द्र मोदी की पसंद थीं इसलिए किसी की खुलकर विरोध करने की हिम्मत नहीं थी।

इसलिए सबसे पहले उनके खिलाफ कैंपेन किया गया कि वो बूढ़ी हो गई हैं और उन्हें कैंसर हो गया। इसके बारे में किसी ने खुले तौर पर चर्चा नहीं की लेकिन जब भी छुपी बातें होती थीं तो इसकी चर्चा होने लगी। बात यहां तक बढ़ गई कि स्वास्थ्य की वजह से उन्हें हटाया जा सकता है। आनंदीबेन ने चूंकि ये खुली चर्चा नहीं थी, कभी इस पर बात नहीं की। लेकिन वो दिन में 15-16 घंटे काम करती रहीं। जवाब साफ था, क्या कोई बीमार आदमी इतना काम कर सकता है।

तब दिनेश शर्मा गुजरात के प्रभारी थे। सभी के बावजूद चर्चा यहां तक पहुंची कि दिनेश शर्मा को कहना पड़ा कि आनंदीबेन को बदलने की बातें निरर्थक हैं और वो बहुत अच्छा काम कर रही हैं।

विरोधियों के मुंह कुछ दिनों के लिए चुप हो गये। लेकिन फिर पिछले साल अगस्त में पाटीदार आंदोलन शुरू हुआ। प्रचार ऐसा किया गया कि आनंदीबेन पाटीदारों से समाधान नहीं चाहतीं इसलिए वो आंदोलन चलने नहीं दे रही हैं। पाटीदारों की बड़ी रैली के एक दिन पहले हि आनंदीबेन ने अखबारों में विज्ञापन देकर साफ कर दिया कि उन्हें आरक्षण देना संविधान के मुताबिक संभव नहीं।

उसी साल दिसंबर में स्थानीय निकायों के चुनाव में विरोधियों को उम्‍मीद थी कि आनंदीबेन बुरी तरह हार सकती हैं। भाजपा हारी लेकिन सिर्फ ग्रामीण इलाकों में, अपने गढ़ में शहरों में पूरी तरह हावी रहीं। विरोधियों को फिर मौका नहीं मिला। लेकिन पिछले कुछ दिनों में कुछ घटनाएं हुईं जिसने फिर इस चर्चा को हवा दी।

सबसे पहले 29 अप्रील को भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह गुजरात आये। शाह, आनंदीबेन और प्रदेश अध्यक्ष विजय रूपाणी की बैठक हुई भाजपा मुख्यालय में। मीटिंग के बाद रूपाणी ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करके 10 प्रतिशत आर्थिक सवर्ण पिछड़ों के लिए आरक्षण की घोषणा की। आनंदीबेन पटेल बगल में बैठीं। हालांकि ये फैसला सरकारी होना चाहिए था लेकिन रूपाणी की घोषणा के बाद लगा कि पावर शिफ्ट हो रहा है।

लेकिन बात ये थी कि आनंदीबेन पटेल अब भी इस फैसले से सहमत नहीं थीं, लेकिन नरेन्द्र मोदी के ग्रीन सिग्नल के बाद विरोध की गुंजाइश नहीं थी। इसलिए खुद घोषणा से बचती रहीं। व्‍हाट्सऐप पर बिना नाम के मैसेज घूमने लगे कि गुजरात में सत्ता परिवर्तन हो रहा है। विरोधियों ने कभी खंडन नहीं किया। रूपाणी अमित शाह खेमे के माने जाते हैं तो इसका खंडन न करना एक तरह से इसे हवा देना ही है।

इसलिए सोमवार को आनंदीबेन नरेन्द्र मोदी से मिलने गईं सूखे पर चर्चा के लिए। नितिन पटेल, गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री, दिल्ली गये नीट परीक्षा के मुद्दे पर चर्चा के लिए। नितिन पटेल अमित शाह से भी मिले। अमित शाह के करीबियों ने इसे जोड़ दिया और चर्चा छेड़ दी कि नितिन पटेल नये मुख्यमंत्री बन सकते हैं।

सभी कह रहे हैं कि अमित शाह अब गुजरात के शाह नहीं बनना चाहते हैं। बात ये रखी जाती है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के आगे 10 मुख्यमंत्री लाईन लगाते हैं, आखिर अमित शाह मुख्यमंत्री क्यों बनना चाहेंगे। लेकिन इसका जवाब किसी के पास नहीं है कि आखिर अमित शाह क्यों गुजरात के मामूली विधायक बने रहना चाहते हैं। जबकि वो विधानसभा में भी मौजूद नहीं रहते। पूरे साल सिर्फ बजट सेशन में एक दिन ही आ पाते हैं। वजह साफ है, अमित शाह अब भी गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक हैं।

इन सब चर्चाओं को हालांकि आनंदीबेन ने खुद विराम दिया है। लेकिन आनंदीबेन से पहले नरेन्द्र मोदी ने खुद उनके काम का बखान करते हुए ट्वीट करके ये जाहिर कर दिया है कि वो अब भी मोदी की भरोसेमंद हैं। ऐसे में भाजपा में विरोध चलता रहेगा आनंदीबेन के खिलाफ लेकिन उन्हें नुकसान कर पाना मुश्किल लग रहा है। हां, लेकिन 2017 में गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं। गुजरात में जीतना मोदी के लिए भी अहम है। इसलिए विवाद चलते रहें तो पार्टी के पर्फोर्मेन्स पर असर पड सकता है। इसलिए शायद मोदी खुद आनंदीबेन को चुनावों से पहले एक गौरवपूर्ण विदाय दें, गवर्नर बनाकर। लेकिन उसमें अभी वक्त है।

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