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This Article is From Jul 26, 2015

अबू सलेम क्यों खा रहा है ‘बिरयानी’ और याक़ूब को क्यों हो रही है फांसी!

Reported by Umashankar Singh, Edited by Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    जुलाई 26, 2015 19:35 pm IST
    • Published On जुलाई 26, 2015 19:32 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 26, 2015 19:35 pm IST
अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम भी 1993 मुंबई सीरियल धमाकों में सज़ायाफ़्ता है। इसके अलावा उस पर टी सीरीज़ के गुलशन कुमार और अभिनेत्री मनीषा कोईराला के सेक्रेटरी की हत्या समेत पचासों मामले हैं। उसे नवंबर 2005 में पुर्तगाल से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया। क़ायदे से उसे भी फांसी होनी चाहिए थी। लेकिन वो ‘जेल में बिरयानी खा रहा है’। आख़िर क्यों उसे फांसी नहीं हुई और याक़ूब मेमन को फांसी हो रही है?

जवाब सीधा सा है। अबू सलेम और फांसी के फंदे के बीच पुर्तगाल का कानून है जिसके तहत सलेम को इस शर्त के साथ भारत को सौंपा गया कि उसे मौत की सज़ा नहीं दी जाएगी। वो 2002 में ही लिस्बन में पकड़ा गया था। लेकिन उसे पाने में भारत को क़रीब तीन साल लग गए क्योंकि सलेम अपने प्रत्यर्पण के ख़िलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा था। भारत लाए जाने के बाद 2006 में टाडा कोर्ट में उसे और उसके साथी रियाज़ सिद्दीक़ी को मुंबई बम धमाकों मामले में हथियार ढ़ोने और बांटने का दोषी पाया गया। तब से वो आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहा है।

जुलाई 2012 में जब उसके ख़िलाफ़ कुछ नए केस दर्ज किए गए जो उसे फांसी तक ले जा सकते थे तो पुर्तगाल की अदालत फिर हरक़त में आयी। वहां की एक निचली अदालत ने सलेम को भारत भेजे जाने की शर्तों के उल्लंघन की वजह से उसका प्रत्यर्पण ख़ारिज कर दिया। वहां के सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ भारत को अपील करने के अधिकार पर भी सवाल उठा दिया। कुल मिला कर अबू सलेम को फांसी देने पर भारत सरकार के हाथ बंधे हैं, लेकिन याक़ूब मेमन के मामले में ऐसा नहीं है।

याक़ूब मेमन को नेपाल से भारत लाया गया। याक़ूब की इच्छा भारत आकर ख़ुद को निर्दोष साबित करने की थी। इसके लिए भारतीय अथॉरिटी से संपर्क में आया। उसके पीछे पुर्तगाल जैसे किसी देश की सरकार नहीं थी जो उसे ऐसी कानूनी छतरी देती जिसके ज़रिए उसे किसी भी हाल में फांसी की सज़ा नहीं होती जैसे अबू सलेम को नहीं हुई है।

याक़ूब को फांसी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर भी लग चुकी है। ऐसे में न्यायपालिका के फैसले पर बेशक कोई सवाल नहीं उठा रहा हो लेकिन टाडा कोर्ट के फैसले में कानूनी प्रक्रियाओं के पालन पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं। कई ये भी कह रहे हैं कि याक़ूब को जिन शर्तों के साथ लाया गया उस पर धोखा हुआ है और उसे बलि का बकरा बनाया जा रहा है। असल दोषी टाइगर मेमन है फांसी उसे होनी चाहिए। याक़ूब बेक़सूर नहीं है, लेकिन उसे फांसी की सज़ा मुनासिब नहीं है। मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने हैं।
याक़ूब के परिवारवालों समेत उसके शुभचिंतकों की उम्मीद भी इसी पर टिकी हैं। शायद कोई राहत मिल जाए।

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