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This Article is From May 24, 2015

बिहार में किसकी सरकार बनेगी, फैसला मुलायम, लालू और सोनिया के हाथों में

Manish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 24, 2015 11:45 am IST
    • Published On मई 24, 2015 10:34 am IST
    • Last Updated On मई 24, 2015 11:45 am IST
पटना : बिहार की राजनीति में क्या हो रहा है, इसे लेकर इन दिनों हर व्यक्ति काफी उत्सुक है। क्या जनता परिवार का विलय हो पाएगा या लालू-नीतीश और कांग्रेस का गठबंधन हो पाएगा?

राजनीति में नौसिखिया इंसान भी अपने तर्कों से आपको ये बता देगा कि बिहार विधानसभा चुनावों में जीत नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लड़ने वाले एनडीए की होगी या नीतीश को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर लड़ने वाला नया गठबंधन सत्ता हासिल करेगा?

हालांकि ये इस बात पर निर्भर करेगा कि लालू, नीतीश, कांग्रेस का कितने दिल से राजनैतिक गठबंधन हो पाता है। अगर यह गठबंधन पिछले साल हुए 10 सीटों के विधानसभा उपचुनावों की तरह हो गया, तो परिणाम वही होगा, जो उस समय हुआ था। इस गठबंधन को 60 प्रतिशत सीटें मिलेंगी और एनडीए 243 सदस्यों वाली विधानसभा में 40 फीसदी सीटों पर सिमट कर रह जाएगी।

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को दावा किया कि बिहार में बीजेपी की सरकार बनेगी। लेकिन क्या वाकई बीजेपी बिहार में सत्ता हासिल करने में कामयाब हो पाएगी? बिहार चुनाव के नतीजे काफी हद तक निर्भर करते हैं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और उससे कहीं ज्यादा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के ऊपर। यह भी साफ है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस गठबंधन के लिए तुरुप का पता साबित हो सकती हैं।

आज की तारीख में कुछ बातें स्पष्ट हैं, जैसे कि बीजेपी फ़िलहाल अपने किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उमीदवार नहीं बनाएगी। उसका कारण भी साफ है कि बीजेपी के पास नीतीश कुमार के टक्कर का कोई नेता नहीं है। ऐसे में नरेंद्र मोदी ही बीजेपी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक होंगे और एक बार फिर बीजेपी इस बात पर वोट मांगेगी कि 'कुरता दिया तो पायजामा भी पहना दीजिए' और तब देखिये बिहार को गुजरात के बराबर नहीं ला दिया तो... ये तो नारा या कहिए जुमला होगा, लेकिन दिल्ली से पटना और बिहार के किसी कस्बे तक बीजेपी के नेता जानते हैं कि अगर उनके खिलाफ नीतीश, लालू और कांग्रेस का गठबंधन खड़ा हो गया, तब शायद मोदी की चमक भी फीकी पर जाएगी।

लेकिन अरुण जेटली ने दावा किया है कि बिहार में सरकार बीजेपी की ही बनेगी, तब आपको उनके बयान को भी गंभीरता से लेना होगा। अरुण जेटली न केवल वित्त मंत्री हैं, बल्कि कानून के सबसे अच्छे जानकारों में से एक हैं और बीजेपी के नेता या उनके घोर विरोधी भी मानते हैं कि उनकी 'कृपा' हो जाए तो आप एक से अधिक मुश्किलों से निजात पा सकते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में करार हार के बाद बिहार चुनावों में बीजेपी के लिए जीत हासिल करना बेहद जरूरी है, वरना नरेंद्र मोदी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर आ सकती है। बिहार चुनावों में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी सब कुछ झोंकने को तैयार है और वह साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ अपनाने को आतुर है।

मौजूदा माहौल में अगर आप जेडीयू के नेताओं से बात करेंगे तो उनकी शिकायत हैं कि लालूजी ठीक थे, लेकिन जिस दिन से जयललिता का फैसला आया है, उनके सुर बदल गए हैं... मतलब बीजेपी के नेताओं ने उन्हें चारा घोटले से बरी करने का आश्वासन दे दिया है। उनके अनुसार लालू के तीन सहायक हैं, जिनमें एक प्रेम गुप्ता हैं। कोयला घोटाले में उनका और उनके बेटे का नाम आया, लेकिन बीजेपी के नेताओं की मानें, तो फ़िलहाल विधानसभा चुनावों तक उनके खिलाफ कुछ नहीं होगा।

दूसरे सलाहकार जगदानन्द सिंह हैं, जिन्होंने 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान लालू यादव को कांग्रेस पार्टी को 5 से ज्यादा सीटें न देने की सलाह दी थी। चुनाव परिणाम के बाद लालू को खामियाजा उठाना पड़ा और कांग्रेस ने उन्हें सरकार में भी शामिल नहीं कराया और नीतीश के कार्यकाल में उनके दो बेटों को जेल की हवा खानी पड़ी। जगदानन्द का एक बेटा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेगा और उन्हें मालूम हैं कि गठबंधन होने पर बेटे की हार हो जाएगी, इसलिए उनका प्रयास है कि अपनी सूझबूझ से इस गठबंधन को पहले ही पंक्चर कर दिया जाए।

लालू के तीसरे सलाहकार हैं रघुवंश प्रसाद सिंह, जिनके बारे में लोकजन शक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान कहते हैं कि इनकी खासियत हैं की ये लालू यादव के 'तोता' हैं और ये सहयोगी बना नहीं सकते, बल्कि उन्हें भगा जरूर सकते हैं।

इस पृष्ठभूमि में ये साफ़ है कि लालू यादव अगर आज गठबंधन के खलनायक बन रहे हैं, तो ऐसा इसलिए क्योंकि वह हर उन लोगों की सुन रहे हैं, जिनके कारण पूर्व में उनकी राजनीतिक दुर्गति हो चुकी है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि शायद उन्होंने उन गलतियां से कुछ नहीं सीखा।

अगर बात मुलायम सिंह यादव की करें, तो सब जानते हैं कि कैसे उन्होंने न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर सीपीएम द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव और राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के साथ आकर उन्होंने अपने सहयोगियों को धोखा दिया। मुलायम के कट्टर समर्थक भी मानते हैं कि बिहार के चुनावों में अगर वो किंकर्तव्यविमूढ़ रहे तो न केवल उनकी साख गिरेगी, बल्कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी मुस्लिम वोटों से उनको हाथ धोना पर सकता है। अगर बिहार में मुलायम और लालू की गलतियों के चलते बीजेपी की सरकार बन गई, तो उसका सीधा असर उत्तर प्रदेश चुनावों में भी पड़ेगा।

अब बात सोनिया गांधी की। बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का रवैया तय करेगा कि वो हवा का रुख पहचानने में कितना सक्षम है। सोनिया आने वाले दिनों में अपने एक-दो निर्णय से बिहार में बीजेपी विरोधी गठबंधन को मजबूत कर सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर मुलायम, लालू और सोनिया, बीजेपी को रोकने के प्रति कितने गंभीर हैं। क्या नीतीश कुमार पांचवीं बार बिहार के सीएम के रूप में शपथ ले पाएंगे या बीजेपी नेता सुशील मोदी पहली बार सीएम की कुर्सी संभालेंगे, यह काफी हद मुलायम, लालू और सोनिया के रुख पर ही निर्भर करता है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
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