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This Article is From Dec 22, 2017

क्‍या मीडिया और विपक्ष का घालमेल रहा 2जी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 27, 2017 10:48 am IST
    • Published On दिसंबर 22, 2017 23:26 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 27, 2017 10:48 am IST
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में 1 लाख 76 हज़ार घोटाले को साबित करने के लिए कोई पक्के सबूत नहीं मिले हैं. स्पेशल सीबीआई कोर्ट के फैसले के बाद यह बात हज़म नहीं हो पा रही है कि जिस घोटाले को भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला बताया गया, उसे साबित करने के लिए आखिर सीबीआई सात साल में सबूत क्यों नहीं पेश कर पाई. 2010 में सीएजी की रिपोर्ट में 1 लाख 76 हज़ार करोड़ के घोटाले की बात थी. जिसके आधार पर मीडिया के तमाम मंचों पर जमकर बहस हुई और यह घोटाला जन जन तक पहुंचा. आज जब इसके सारे आरोपी छूट गए हैं और कोई सबूत नहीं मिला है, यह फैसला एक सदमे की तरह हम सबके सामने आ खड़ा हुआ है. इस मामले के मुख्य आरोपी ए राजा ने डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा है कि 'उन्हें कौन सज़ा देगा जिन्होंने आपके 80 साल के राजनीतिक जीवन को दागदार कर दिया. मैं 2जी फैसले को आपके चरणों में श्रद्धा के साथ अर्पित करता हूं. आपने मुझे बर्फ में सुरक्षित रखा ताकि मैं इस लड़ाई में पिघल न जाऊं. मैं आपके शब्दों का इंतज़ार कर रहा हूं. स्पेक्ट्रम हमले ने एक वैचारिक आंदोलन को दागदार कर दिया. उन लोगों को हथियार मिल गया जो आपकी सरकार को डुबोने की सोच तक नहीं सकते थे. कुछ लोगों ने इसकी योजना बनाई थी जिसे सीएजी, सीवीसी, सीबीआई जैसी संस्थाओं ने युद्ध में बदल दिया. दुनिया के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. शर्म की बात है कि यूपीए सरकार को भी पता नहीं चला कि उसे गिराने का प्लॉट रचा गया है. 2012 तक 60 करोड़ लोगों तक मोबाइल कनेक्शन पहुंचाना था, हमने 2009 में ही 59 करोड़ लोगों तक कनेक्शन पहुंचा दिया. स्पेक्ट्रल कार्टल को तोड़ दिया गया ताकि व्हाट्सऐप, ट्विटर और फेसबुक क्रांति के लिए रास्ता साफ हो सके. प्रेस और मीडिया ने रिसर्च नहीं किया और स्पेक्ट्रम के सामाजिक संदर्भों को नहीं देखा.'

राजा की किताब का इंतज़ार रहेगा. सात सालों की जांच के बाद सभी का बरी हो जाना एक सदमे की तरह है. क्या वाकई जैसा राजा कह रहे हैं वो सही होगा, क्या कोई ऐसा प्लॉट रचा गया जिसके अनुसार सीएजी ने काम किया, सीएजी की रिपोर्ट को लेकर फिर मीडिया ने काम किया. मीडिया को भी सीएजी की रिपोर्ट से ही मान्यता मिली. विनोद राय ने सीएजी की रिपोर्ट में 1 लाख 76 हज़ार करोड़ के आंकड़े ही नहीं दिए थे, उसके अलावा भी कई आंकड़े दिए थे. सीएजी ने नुकसान की चार तरह से गिनती की थी. 67,364, 69,626, 57,666 और चौथा आंकलन था 1 लाख 76 हज़ार 645 करोड़ का.

21 दिसंबर को बिजनेस टुडे ने लिखा है कि सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कभी भी 1 लाख 76 करोड़ का आंकड़ा नहीं दिया था. सीएजी ने कहा था कि यह सही है कि 2जी स्पेक्ट्रम के बंटवारे में सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा मगर कितना नुकसान पहुंचा, इस पर बहस हो सकती है. अप्रैल 2011 में सीबीआई ने जब राजा के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया तब कहा था कि सरकारी खजाने को 30,984 करोड़ का नुकसान हुआ है. फर्स्ट पोस्ट में उस समय सीएजी रहे विनोद राय का एक इंटरव्यू छपा है. उस वक्त उनकी किताब आई थी. उनसे 1 लाख 76 हज़ार करोड़ की गिनती के बारे में पूछा गया कि आप इस पर कैसे पहुंचे तो उनका जवाब था कि 'हमारा तर्क सरल है, 2008 में नीति थी पहले आओ पहले पाओ. आप को मिला X राशि, 2010 में  आपने ही नीति बदल कर नीलामी ले आए और आपको मिली Y राशि. और Y में से X घटाने पर होता है 1.76 लाख करोड़. हमने बस इतना किया और कुछ नहीं, हमने तीन और आंकड़े भी दिए थे लेकिन पब्लिक इमेजिनेशन ने 1.76 लाख करोड़ पकड़ा, हां यह बड़ी रकम थी.'

विनोद राय मानते हैं कि यह बड़ी रकम थी. क्या यह चालाकी थी. फिर भी यह बड़ी रकम थी तो इस बात को कैसे स्वीकार कर लिया जाए कि कोई दोषी ही न हो. क्या हिसाब लगाने वाले ने ख्याली पुलाव बनाया या जांच करने वाले ने सारा पुलाव खा लिया. अगर जो लोग इस पर ज़ोर दे रहे हैं कि घोटाला हुआ था तो इस पर क्यों नहीं ज़ोर दे रहे हैं कि आरोपी बरी कैसे हो गए. क्यों उनके खिलाफ सबूत नहीं पेश किए जा सके. विनोद राय अभी तक नहीं बोल पाए हैं. उस दौरान मीडिया की भूमिका को लेकर भी बहस हो रही है. आपको याद दिला दें कि राडिया टेप के खुलासे के बाद मीडिया की भूमिका भी 2जी के लपेटे में आ गई थी. आज सब बरी हो कर खड़े हैं. इस घोटाले को कवर करने में मीडिया की सक्रियता ने भारत की मीडिया को आने वाले कई साल के लिए बदल दिया.

उस वक्त 1 लाख 76 हज़ार का आंकड़ा मोटे फोंट में हेडलाइन बनकर छपता था. लोग इसे पढ़कर हैरत में पड़ जाते थे. आउटलुक और ओपन मैगज़ीन के कवर पर 2जी के खुलासे ने सनसनी फैला दी थी. आउटलुक ने राडिया टेप छाप दिया. इसी के कवर पर सीएजी विनोद राय नायक की तरह छपे थे. इनके लिए शीर्षक लगा था 'द मैन हु रॉक्ड द यूपीए', टाइम्स आफ इंडिया की हेडलाइन बनी थी, 'सीएजी ड्राफ्ट रिपोर्ट नेल्स राजा रोल इन स्कैम', टीवी चैनलों में डिबेट ने यहीं से रवानगी पकड़ी. अन्ना हज़ारे का आंदोलन यूपीए के सामने खड़ा किया गया.

सेंटर फॉर मीडिया की एक रिपोर्ट है. इसके अनुसार 2011 में 2005 के मुकाबले टीवी पर भ्रष्टाचार के मामलों का कवरेज 11 गुना बढ़ गया था. क्या इसके पीछे कोई प्लॉट था या फिर मीडिया ने सीएजी की बात पर भी भरोसा किया. मीडिया में कई पत्रकार सीएजी की रिपोर्ट से आगे जाकर रिसर्च भी कर रहे थे, और रिपोर्ट भी कर रहे थे. आज सबके बरी होने के संदर्भ में जिन्होंने प्रोपेगैंडा किया वो भी, जिन्होंने पत्रकारिता की वो भी, सब एक ही कतार में नज़र आते हैं. कैरवन पत्रिका के हरतोष सिंह बल ने उस वक्त बड़ी साहसिक रिपोर्टिंग की थी. उनका कहना है कि पूरे मीडिया को खारिज करना सही नहीं होगा. हरतोष सिंह बल उस वक्त ओपन पत्रिका में थे जिसके कवर पर 2जी की खबरों का खूब जलवा होता था.

हरतोष की बात में दम है कि सारी रिपोर्ट को खारिज करना मुश्किल है. सीबीआई की जांच में भूमिका पर सवाल होने चाहिए कि आखिर इतने लोग कैसे बच गए, लेकिन जब सबूत ही नहीं मिले तो फिर वो सवाल किससे पूछना चाहिए, विनोद राय तो हैं नहीं, क्या उस वक्त सीएजी के अधिकारी की बात सही है कि उनसे जबरन रिपोर्ट पर दस्तखत कराया गया. आर के सिंह अब दुनिया में नहीं हैं. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा है कि मीडिया को आत्ममंथन करना चाहिए. मीडिया के ज़रिए देश में दूषित माहौल तैयार किया गया. दि प्रिंट वेबसाइट पर शेखर गुप्ता ने लिखा है कि 'उस वक्त टेलकॉम घोटाला हुआ था. घोटाला बहुत बड़ा था मगर कोई इसके बारे में जज को बताना भूल गया. बड़े घोटालों की तरह इसे भी इस तरह से खड़ा किया गया ताकि अदालत में टिक न सके. अभियोजन पक्ष, इस मामले में सीबीआई का इतना राजनीतिकरण हो गया, राजनीतिक हितों के कारण बड़े-बड़े मिथक रच दिए गए, आंदोलनों का सिलसिला चला, कि किसी ने परवाह ही नहीं कि तथ्यों की पड़ताल भी की जाए. देखना होगा कि उनका फोकस क्या था, जेल भेजना या हेडलाइन में जगह पाना.'

क्या सब कुछ खेल की तरह हुआ. सात साल से सुप्रीम कोर्ट निगरानी कर रहा था तब फिर सीबीआई ने कैसे सबूत नहीं पेश किए, कैसे अपना काम नहीं किया और सारे आरोपी छूट गए या फिर यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि सीबीआई जज के सामने सबूत ही नहीं पेश कर पाई. जज ओपी सैनी ने लिखा है कि वे हर दिन सुबह से शाम तक इंतज़ार करते रहे कि कोई सबूत लेकर आएगा, कोई आया ही नहीं. तो अब क्या माना जाए, क्या अदालत के फैसले को नहीं मानें कि कोई घोटाला नहीं हुआ या फैसले के बाद भी वही किया जाए तो 2010 से 2017 तक होता रहा कि घोटाला हुआ था. 1 लाख 76 हज़ार करोड़ कौन खा गया आखिर. ये किसकी जेब में गया. आरोपियों को बचाने वालों की जेब में तो नहीं गया मगर बचाने वाले कौन है.

2जी घोटाले के कवरेज ने टीवी के चरित्र को बदल दिया. यह वही दौर था जब टीवी में डिबेट आया. अन्ना आंदोलन के कवरेज में टीवी के बनाए सारे फार्मेट ध्वस्त हो गए. कई घंटे तक आंदोलन टीवी पर लाइव होता था. संसद में बीजेपी घोटाले को लेकर सरकार पर आरोप लगा रही थी. यूपीए सरकार के लोग आरोपी की तरह हर तरफ नज़र आ रहे थे. सीएमस मीडिया लैब की रिपोर्ट बताती है कि 2009 से टीवी पर भ्रष्टाचार के कवरेज़ काफी बढ़ गए थे. सरकार से संबंधित 2जी, सीडब्ल्यूजी, आदर्श और बोफोर्स. सीएमस की रिपोर्ट बताती है कि 2जी को टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स ने दूसरे अखबारों के मुकाबले ज़्यादा कवरेज किया. 2जी घोटाले को टीवी में अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनलों ने ज़्यादा कवरेज किया.

बोफोर्स का हाल आप जानते हैं. हेडलाइन ही बनती है, आरोप साबित नहीं होता है. बांबे हाईकोर्ट ने 22 दिसंबर को आदर्श घोटाले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि इस मामले में आरोपी कांग्रेस नेता अशोक च्वहाण पर मुकदमा नहीं चलेगा. जब यह घोटाला सामने आया था तब अशोक च्वहाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. 2जी घोटाले के दौर में टीवी काफी कुछ बदल गया था. रिपोर्टिंग बंद हो गई, प्रवचन चालू हो गया.

ए राजा किताब लिखकर उन लोगों का खुलासा करने वाले हैं जिन्होंने साज़िश रची और उसे अंजाम दिया, सीएजी और सीवीसी संस्थाओं में बैठे लोगों ने. क्या उनकी किताब ही अंतिम राय होगी या फिर 2जी को लेकर हेडलाइन ही बनती रहेगी, झूठ बोलकर लोगों को ठगा जाता रहेगा या क्या यह संस्थाओं की ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि इतने बड़े घोटाले को अंजाम तक पहुंचाएं या फिर लोगों से कहें कि कोई घोटाला नहीं था. इस फैसले से बिहार में लालू यादव उत्साहित हो गए हैं. चारा घोटाला मामले में अगले हफ्ते फैसला आ सकता है. लालू यादव का कहना है कि अमित शाह के मामले में स्पेशल कोर्ट के फैसले को अभी तक चुनौती नहीं दी गई है. सीबीआई निष्पक्ष तरीके से काम नहीं कर रही है.

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