जब भारत जैसे विशाल देश में एक फिल्म पर तीन महीने तक सुबह शाम टीवी पर चर्चा हो सकती है और नागरिकों से लेकर जानकारों तक ने इस बहस में हिस्सा लिया है तो उम्मीद है कि उनमें नौकरियों पर हमारी सीरीज़ का 8वां एपिसोड देखने की दिलचस्पी बची होगी. अलग-अलग राज्यों में परीक्षाओं से जुड़े छात्र उदासी के शिकार हो रहे हैं. उन्हें नौकरियों का इंतज़ार है मगर नौकरी कहीं है नहीं. एक महिला ने लिखा है कि क्या सरकार ही सारी नौकरी देगी, तो फिर सरकार को साफ साफ कह देना चाहिए कि हम सरकारी सेक्टर में नौकरी नहीं देंगे. जब तक सरकार भर्ती निकालती है, फॉर्म के पैसे लेती है, परीक्षा रद्द करती है और कई साल और कई महीने तक परीक्षा नहीं लेती है, तब तक यह पूछना बिल्कुल जायज़ है कि राज्य सरकारों के चयन आयोग नौजवानों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं. हालत यह है कि जगह-जगह परीक्षाओं की संघर्ष समिति बन गई है.
बीटीसी प्रशिक्षु संघ
बीटीसी संघर्ष समिति
राजस्थान लिपिक संघर्ष समिति
जस्टिस फॉर एसएससी सीजीएल 2016
उद्यान बेरोजगार संघर्ष मोर्चा उत्तराखंड
बेरोज़गार एकीकृत महासंघ, राजस्थान
इन नौजवानों को इसलिए कमतर निगाह से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि कोई सरकारी नौकरी मांग रहा है. अगर सरकारी नौकरी की चाह इतनी ही बुरी है तो फिर सरकार चलाने के लिए नेताओं को वोट भी नहीं मांगना चाहिए. राज्य दर राज्य छात्र वाकई बहुत परेशान हैं. अब देखिए खादी ग्रामोद्योग आयोग ने 22 अक्टूबर 2017 को भर्ती निकाली. 14 नवंबर को सूचना आती है कि परीक्षा अस्थाई तौर पर रद्द कर दी जाती है. इस कारण 24 दिसंबर 2017 को परीक्षा नहीं होती है, यह कौन सा अस्थाई कारण है जो ढाई महीने के बाद भी दूर नहीं हो सका है, 341 पदों के लिए करीब 40,000 छात्रों ने फॉर्म भरा था. 1200 रुपये लगे थे फॉर्म भरने में. फॉर्म भरने के बाद भी क्या इन नौजवानों को जानने का हक नहीं है कि परीक्षा कब होगी. आप रिकॉर्ड देखिए. कोई भी परीक्षा सही तरीके से नहीं होती है. साल भर छात्र इस बात से डरे रहते हैं कि कब परीक्षा रद्द हो जाएगी और उनकी सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी.
29 जनवरी को यूपी पुलिस भर्ती व प्रोन्नति बोर्ड ने अपनी तीन परीक्षाएं रद्द कर दी हैं. इनमें से दो वैकेंसी 22 दिसंबर 2016 और तीसरी 3 मई 2017 को निकली थी. लिपिक, लेखा, गोपनीय सहायक, कंप्यूटर ऑपरेटर की परीक्षा ली गई थी. 13 और 18 सितंबर को यूपी के कई ज़िलों में ऑनलाइन परीक्षा ली गई थी. अब इन तीनों परीक्षाओं को निरस्त कर दिया गया है. अगर प्रक्रिया में चूक हो रही है तो यह ग़लती तो सरकार की है. इन ग़लतियों के कारण दो लाख से अधिक नौजवान परेशान हैं. दो परीक्षाएं अखिलेश सरकार के समय की हैं, एक योगी सरकार के समय की है. अब अगर कोई परीक्षा विश्वसनीय तरीके से नहीं हो सकेगी तो ये नौजवान कहां जाएंगे. इस सरकार से उस सरकार के बीच शटल कार्क की तरह घूमते रहेंगे.
इस फैसले से दो लाख नौजवानों पर क्या बीत रही होगी. इन छात्रों ने मेसेज कर परेशान कर दिया है, मगर मैं इनकी परेशानी समझता हूं. सवाल यह नहीं कि ये सरकारी नौकरी के इंतज़ार में हैं, सवाल यह है कि जिस सरकार का काम विश्वसनीय तरीके से इम्तहान कराना है, वो अभी तक देश के किसी भी हिस्से में फुल प्रूफ आयोग क्यों नहीं बना पाई है. झारखंड पब्लिक सर्विस कमिशन की छठे बैच की परीक्षा 29 जनवरी को होनी थी, जिसे कैंसिल कर दिया गया. पांच हज़ार से अधिक छात्र मेन्स की परीक्षा के लिए झारखंड पहुंच गए थे. बहुतों ने हवाई जहाज से लेकर रेल गाड़ी का टिकट कटा लिया था. बहुत से छात्र कुछ दिन पहले ही रांची पहुंच गए थे ताकि दिक्कत न हो. राज्य की संस्था की नाकामी के कारण इन छात्रों को कितना नुकसान उठाना पड़ा. झारखंड से एक इंजीनियर ने अच्छी अंग्रेज़ी में हमें पत्र लिखा है. हम उसका हिन्दी अनुवाद आपको पढ़कर सुना रहे हैं.
आपको लगेगा कि मैं क्या कर रहा हूं, लेकिन आप जब इन नौजवानों की व्यथा सुनेंगे तो पता चलेगा कि भर्तीनिकालकर परीक्षा लेने के नाम पर इन्हें कैसे महीनों सताया जाता है. ये किस हद तक अकेलेपन की ज़िंदगी जीने लगते हैं. स्टाफ सलेक्शन कमीशन का इम्तहान पास कर चुके एक नौजवान ने लिखा है कि जुलाई 2016 में मेन्स की परीक्षा पास कर गया तो घर वालों ने नवंबर 2016 में शादी करा दी. फरवरी 2017 को टाइपिंग की आखिरी परीक्षा पास कर ली और अब सिर्फ ज्वाइनिंग बाकी थी. तब से अब तक ज्वाइनिंग का ही इंतज़ार कर रहा हूं. बेटी भी हो चुकी है और घर बेरोज़गार की तरह बैठना अच्छा नहीं लगता है. पत्र लिखने वाला वाकई बहुत उदास लगा.
आप इन मंत्रियों को जानते हैं तो कभी हाथ जोड़ कर ही निवेदन कर लीजिए कि इन्हें ज्वाइनिंग करा दें. इन नौजवानों को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए. एसएससी की परीक्षा पास कर चुके छात्र रोज़ सीएजी, पोस्टल विभाग, सूचना प्रसारण मंत्रालय फोन करते हैं, कि हमारी ज्वाइनिंग की चिट्ठी कब आएगी. जबकि इनकी संख्या 20,000 से अधिक है फिर भी इनकी कोई सुनवाई नहीं है.
बेंगलुरु में एनएसयूआई के सदस्य पकौड़े तलने लगे. प्रधानमंत्री ने ज़ी न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा था कि दफ्तर के बाहर पकौड़ा तलने वाला भी 200 कमा लेता है, वो भी तो रोज़गार है. पूरा सोशल मीडिया इस समय रोज़गार पर होने वाली बहस का पकौड़ाकरण कर चुका है. कोई ठोस तरीके से इस सवाल पर बहस नहीं कर रहा है. एनएसयूआई के छात्र यहां तो काफी रचनात्मक लग रहे हैं अगर यही छात्र कर्नाटक राज्य चयन आयोग का रिकॉर्ड पता कर लें तो पकौड़ा तलने से पहले ठंडा हो जाएगा. यूपी से लेकर बिहार, राजस्थान से लेकर पंजाब तक के चयन आयोग छात्रों के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं. बहुत ज़रूरी है कि इस समय विपक्ष रोज़गार के सवाल को सख्ती से उठाए मगर उससे भी ज़रूरी है कि विपक्ष ठोस रूप में उठाए, अपना प्लान बताए कि वह कैसे रोज़गार देगा, वह कैसे इन चयन आयोगों को बेहतर करेगा. सवाल का जवाब दीजिए, पकौड़ा तल कर बच निकलने से कुछ नहीं होगा जैसे रोज़गार के सवाल को पकौड़े से जोड़ कर प्रधानमंत्री ने किनारा कर लिया. कम से कम उनके इस बयान से रोज़गार के सवाल को मनोरंजन में नहीं बदला जाना चाहिए. खूब आलोचना होनी चाहिए मगर रोज़गार पर गंभीर राजनीति होनी चाहिए.
उपेंद्र कुशवाहा मानव संसाधन राज्य मंत्री हैं. इन्होंने शिक्षा को लेकर बिहार में मानव ऋंखला बनाई है. आज कल मानव ऋंखला का फैशन चल निकला है. मगर उपेंद्र कुशवाहा जी यही बता दें कि मानव संसाधन मंत्री रहते हुए क्या उन्होंने देखा कि देश के तमाम कॉलेजों में पढ़ान के लिए पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं. उन शिक्षकों की बहाली के लिए कुछ होता नहीं है, होता भी है तो राजनीतिक सिफारिशों से लेक्चरर प्रोफेसरों की नियुक्ति हो रही है.
पटना और दिल्ली में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी ने मानव ऋंखला बनाई. इस ऋंखला का नाम है शिक्षा सुधार मानव कतार. नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में मंत्री के तौर पर काम करते हुए उपेंद्र कुशवाहा राजद नेताओं के साथ मानव कतार बना रहे हैं तो इसका संबंध शिक्षा से है या राजनीति से है. आप समझ सकते हैं. इतनी ईमानदारी दिखानी चाहिए कि कम से कम शिक्षा पर सरकार के भीतर की जानकारी वे बाहर ला दें ताकि नौजवान देखें कि कैसे कॉलेज के कॉलेज को शिक्षकों से खाली रखा गया है. उन्हें एडमिशन करा कर बर्बाद किया गया है. अच्छी बात है कि अपनी राजनीति करने के लिए ही सही उपेंद्र कुशवाहा ने शिक्षा को मुद्दा तो बनाया. बेहतर है नेता शिक्षा स्वास्थ्य और रोज़गार के सवाल पर जल्दी जल्दी लौटने लगें.
अब प्राइम टाइम की नौकरी सीरीज़ का असर. असर कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि जिस परीक्षा का विज्ञापन 2014 में निकला हो वो अगर चार साल बाद 2018 में पूरी होते लगे तो इसे असर नहीं कहते हैं. 1 सितंबर 2014 को सचिवालय सहायक और अन्य पदों के लिए 3,295 पदों का विज्ञापन निकला था. 2014 से अप्रैल 2016 आ गया तब जाकर मेन्स की परीक्षा का रिजल्ट निकला. इसके बाद शारीरिक जांच की परीक्षा पूरी होने में 2016 बीत गया. उसके बाद कुछ पता ही नहीं चला कि परीक्षा कहां गई, परिणाम कहां गए. छात्र राज्य कर्मचारी आयोग के दफ्तर के सामने धरना देते रहे मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया. इसी 10 जनवरी को कई घंटों तक धरने पर बैठे मगर कोई नतीजा नहीं निकला. अब तय हुआ है कि वन क्षेत्र पदाधिकारी का इंटरव्यू जल्दी हो जाएगा, क्योंकि 15 पदों की वजह से 3000 से अधिक पदों के लिए रिज़ल्ट नहीं आ रहा था. 18 जनवरी के प्राइम टाइम में हमने यह मसला दिखाया था. 27 जनवरी को बिहार कर्मचारी चयन आयोग ने नोटिस निकाला कि वन क्षेत्र पदाधिकारी के लिए मेन्स परीक्षा पास कर चुके छात्र 6 फरवरी को इंटरव्यू दें. परीक्षार्थियों को उम्मीद है कि बाकी प्रक्रियाएं भी जल्दी होने लगेंगी. मैं बहुत उत्साहित नहीं हूं जब तक कि जल्दी रिज़ल्ट नहीं आ जाता है. फिर भी लगता है कि सरकार में कोई है जो प्राइम टाइम देख रहा है और एक्शन ले रहा है. जो भी है उसका शुक्रिया। हमारा मकसद यही है कि इम्तहान टाइम से हो और रिज़ल्ट भी टाइम से निकले.
राजस्थान में 26 जुलाई 2013 को लोअर डिविज़नल क्लर्क ग्रेड पे टू का विज्ञापन जारी हुआ था. 7,538 पदों के लिए विज्ञापन जारी हुआ था, कब जारी हुआ था, 2013 में. अभी क्या चल रहा है जनवरी 2018 बीत गया है. पांच साल हो गए हैं. जुलाई 2013 में विज्ञापन निकला और 11 जनवरी 2014 को लिखित परीक्षा होती है. पेपर लीक हो जाता है और परीक्षा रद्द हो जाती है. इस परीक्षा का आयोजक है राजस्थान पब्लिक सर्विस कमिशन. 23 अक्टूबर 2016 को फिर परीक्षा होती है और रिजल्ट आता है 16 जनवरी 2017 को. टाइपिंग टेस्ट का फाइनल रिज़ल्ट निकलता है 7 और 8 मार्च 2017 को. 6200 छात्र लिखिति से लेकर टाइपिंग की परीक्षा के बाद पास हो जाते हैं फिर हो जाता है केस. कुछ छात्र राजस्थान हाईकोर्ट चले जाते हैं.
आधार यह था कि फॉर्म भरते समय कइयों ने कंप्यूटर में डिप्लोमा नहीं किया था मगर रिज़ल्ट आते-आते डिप्लोमा कर चुके थे. हाईकोर्ट ने कहा फॉर्म भरने की अंतिम तारीख तक जिनके पास योग्यता है वही योग्य माने जाएंगे. फिर छात्र डिविज़न बेंच चले जाते हैं. डिविज़न बेंच का फैसला आता है कि जिन छात्रों के पास 31 मार्च 2017 तक डिप्लोमा आ गए हैं वे भी योग्य माने जाएंगे. अब इसके बाद 7 जुलाई 2017 को अंतिम परिणाम निकाला जाता है. आदेश के बाद भी बहाली का अता पता नहीं. चार-चार साल इम्तहान में गंवा कर छात्रों का धीरज जवाब दे चुका था. उन्होंने 45 दिनों तक यानी जुलाई से अगस्त के बीच धरना दिया. 26 दिसंबर 2017 को परीक्षा में पास हुए छात्रों को विभाग आवंटित कर दिया जाता है. अब इनकी शिकायत थी कि गृह ज़िले में बहाली कर दी गई. इसके खिलाफ विभागों में शिकायत हुई तो खामी दूर करने के नाम पर अभी तक इनकी ज्वाइनिंग नहीं हुई है. 2013 से 2018 आ गया है. एक इम्तहान के पीछे पांच साल लग गए. हमारे पास सरकार का पक्ष नहीं है. मगर पांच साल एक इम्तहान में लगे उसके लिए किसका पक्ष लिया जाए, ऊपर वाले के अलावा.
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सरकार हमें मौत दे दो, ये हेडिंग है राजस्थान पत्रिका की, जो इसी से संबंधित है. पत्रिका ने लिखा है कि जब इनकी ज़िलों में नियुक्ति हो रही थी तो उसमें काफी गड़बड़ी हई. जब उम्मीदवारों ने प्रशासनिक सुधार विभाग में शिकायत कर दी. अब शिकायत के बाद फिर से यह प्रक्रिया अटक गई है. एक लिपिक की परीक्षा के लिए दस-दस साल लगा देते हैं लोग. 20 जनवरी को दैनिक भास्कर ने जो लिखा है उसे जानकर आप सन्न रह जाएंगे. इसलिए ज़रूरी है कि अब सरकारों के साथ साथ अदालतों का भी दरवाज़ा खटखटाया जाए कि नौकरियों के मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में है. दैनिक भास्कर के सीकर संस्करण में खबर छपी है कि राजस्थान में 77, 413 पदों की भर्तियां कोर्ट में अटकी हुई है. इनमें से 61,800 पदों पर नियुक्तियां कांग्रेस कार्यकाल की है और 15, 613 भर्तियां भाजपा सरकार के कार्यकाल की है. 2013 में विद्यालय सहायक के लिए 33,000 भर्तियां निकाली गईं थीं. मगर 2018 तक इनका कुछ अता पता नहीं है.
क्या ये कोई पैटर्न है, हर राज्य में एक ही पैटर्न कैसे हो सकता है. 33,000 पदों पर भर्ती न निकले तो उसका राज्य की क्षमता पर कोई असर तो पड़ता होगा. नौजवानों की उम्र और क्षमता पर तो असर पड़ता होगा. गनीमत है कि भारत की राजनीति में बेरोज़गारी का मुद्दा नहीं चलता है. युवाओं की भूमिका को लेकर हम मीडिया वाले और नेता कुछ ज़्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर कहते हैं कि युवा देश बदल रहा है. वह अपने हालात को तो बदल नहीं सकता, देश क्या बदलेगा.
पहले तीन साल में बीए हो जाए, जल्दी नौकरी ले ले यही बहुत है. छह साल में बीए करेगा, दस साल में क्लर्क बनेगा तो वह देश नहीं, देश के नेता उसे अपने हिसाब से बदल रहे हैं. यह सीरीज़ यह भी बताती है कि हमारे युवाओं की पोलिटिकल क्वालिटी कैसी है. हमने आपको बताया था कि उत्तराखंड में 2016 में उद्यान विभाग भर्ती निकालता है मगर 2018 जनवरी बीत जाने के बाद भी भर्ती का भरता बना हुआ है. पता नहीं कब होगी. युवा जब अपने आपको यह समझ कर मंत्री से मिलने गए कि मंत्री बेरोज़गारों से खौफ खा जाएंगे तो मंत्री ने वही कहा जो सच्चाई है. वैसे वो बात तो बुरी है लेकिन वो बुरी बात बेरोज़गारों को सोचना चाहिए कि आज की राजनीति में उनकी क्या जगह है. मंत्री का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने युवाओं को उनकी सही जगह बता दी. अगर युवा बेरोज़गारों की इतनी खराब पोलिटिकल क्वालिटी न होती तो कोई मंत्री उन्हें इस तरह का लेक्चर नहीं सुना सकता था. मंत्री जी ने इन्हें कहा कि मुझे तुमने विधायक नहीं बनाया है. आप उत्तराखंड के उद्यान मंत्री का यह वीडियो सुनिए. आनंद आ जाएगा, 29 जनवरी का यह वीडियो है.
बेरोज़गार - सर, हम अपनी बात रखना चाहते हैं
मंत्री - क्या बात रखनी है, सेक्रेट्री को करने दो एग्ज़ामिन. तुम आंदोलन करोगे तो मैं बात नहीं मानूंगा. जाके मुख्यमंत्री को बोल दो इसको हटा दें
बेरोज़गार - सर बात तो सुनें. हम अपनी बात रखना चाहते हैं
मंत्री - बात क्या रखनी है. आज मैं अख़बार में पढ़ रहा हूं, फोटो देख रहा हूं, छप रही है. करते रहो विरोध, करते रहो. मुझे तुमने नहीं बनाया विधायक.
बेरोज़गार - सर हम बारह हज़ार बेरोज़गारों का मैटर है.
मंत्री - बारह छोड़ो, बीस हज़ार हो जाओ. तुम आंदोलन करके करवा लो. मैं नहीं सुनुंगा. तुम आंदोलन कर लो.
मंत्री ऐसा होना चाहिए. मुख्यमंत्री से भी न डरे और बेरोज़गार युवाओं से भी न. उम्मीद है इन मंत्री जी का अपना प्रदर्शन शानदार होगा और लोग बाग काफी खुश होंगे इनके काम से.
This Article is From Jan 30, 2018
सरकारी नौकरियां आख़िर हैं कहां - भाग 8
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 03, 2018 11:11 am IST
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Published On जनवरी 30, 2018 22:15 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 03, 2018 11:11 am IST
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