15 अगस्त के आस-पास दिल्ली अपनी सुरक्षा को लेकर सतर्क हो ही जाती है, इसके बाद भी संसद के बिल्कुल करीब कंस्टीट्यूशन क्लब के बाहर उमर ख़ालिद पर गोली चलाने की कोशिश होती है. सुरक्षा के लिहाज़ से इस हाई अलर्ट ज़ोन में कोई पिस्टल लेकर आने की हिम्मत कैसे कर गया और फरार भी हो गया. उमर ख़ालिद कंस्टीट्यूशन क्लब के बाहर चाय की दुकान से पेप्सी पीकर लौट रहे थे कि पीछे से हमला होता है. उन्हें मुक्का मार कर गिरा दिया, लेकिन उमर ने उसका हाथ पकड़ लिया जिसके हाथ में पिस्तौल थी. ढाई बजे से वहां 'ख़ौफ़ से आज़ादी' नाम का कार्यक्रम होने वाला था, उसी के लिए उमर ख़ालिद समय से पहले पहुंच कर चाय पी रहे थे. तभी वहां कोई शख्स आया जो सफेद शर्ट में था और उमर ख़ालिद को धक्का देने लगा.
सब कुछ बीस-पच्चीस सेकंड में हुआ. पीछे से किसी ने उमर पर हमला किया. उमर के साथियों ने हमलावर को पकड़ने का प्रयास किया वे उसके पीछे दौड़े. मगर वो भागने में कामयाब रहा. क्या हमलावर अचानक आ गया या वो वहां से गुज़र रहा होगा यूं ही पान खाने के लिए, हाथ में पिस्तौल लेकर और उमर दिख गया होगा तो सोचा होगा चलो गोली सोली चलाते हैं. क्या यह सोचना ही भयावह नहीं है कि एक छात्र को गोली मारने के लिए कोई पीछे से आ धमकता है, उसे मारता है और फिर पिस्तौल छोड़ कर भाग जाता है.
यही वो चाय की दुकान है जहां उमर ने पेप्सी पी थी. उसके साथ कुछ साथी भी थे जो पीछे रह गए और उमर आगे चल दिया ताकि कंस्टीट्यूशन क्लब में होने वाले कार्यक्रम में हिस्सा ले सके. इस जगह से आप सामान्य दिनों में भी चारों तरफ से नज़र घुमाएंगे तो मुस्तैद अवस्था में पुलिस दिखेगी. 15 अगस्त के दिन तो और भी यहां की सुरक्षा चाक चौबंद होती है. गोली चलाने वाला कामयाब नहीं हो सका मगर अपने मकसद के बिल्कुल करीब पहुंच गया था. दोपहर 2 बज कर 40 मिनट पर हमारे सहयोगी राजीव रंजन न्यूज़ रूम में ख़बर भेजते हैं कि उमर ख़ालिद पर गोली चलाने की कोशिश हुई है मगर वे सुरक्षित हैं. उसके बाद आती है ज़मीन पर गिरी पिस्टल की ये तस्वीर. राजीव ने उमर के साथ चाय पीने गए ख़ालिद सैफ़ी से भी बात की.
उमर सुरक्षित है. क्या अभी भी बहुत दिमाग लगाने की ज़रुरत है कि कौन लोग हैं जो पिस्तौल कर बीच दिल्ली में घूम रहे हैं और किसकी तलाश कर रहे हैं. क्या यह सब अचानक हो जाता है या फिर कहीं कुछ है जहां बड़ी तैयारी के बाद फैसला लिया जाता होगा. गौरी लंकेश की हत्या के बाद जो जांच में बातें सामने आ रही हैं, क्या इसके बाद भी उमर ख़ालिद पर हुए इस हमले को हल्के में लिया जा सकता है.'ख़ौफ से आज़ादी' कार्यक्रम में रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, जेएनयू के लापता छात्र नजीब की मां फातिमा नफ़ीस, जुनैद की मां फ़ातिमा, जुनैद जिसकी, फरीदाबाद के पास चलती ट्रेन में पीट कर हत्या कर दी गई थी. पूर्व आईपीएस अफसर एस आर दारापुरी, राज्य सांसद मनोज झा, प्रशांत भूषण, आरफ़ा ख़ानम शेरवानी, अमित सेनगुप्ता, पूर्व सांसद अली अनवर बोलने वाले थे. झारखंड में भीड़ ने जिस अलीमुद्दीन की हत्या कर दी थी, उसकी पत्नी भी बोलने वाली थी. गोरखपुर के बी आर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर कफील ख़ान भी बोलने वाले थे. अंकित सक्सेना के पिता यशपाल सक्सेना भी बोलने वाले थे.
इन दोनों को लेकर आए दिन व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के ज़रिए प्रोपेगंडा किया जाता है जैसे कि दुनिया को इन्हीं से ख़तरा है. और जो सबसे सुरक्षित क्षेत्र हैं वहां इनके पीछे पिस्तौल लेकर पहुंचने वाले को कोई ख़तरा नहीं है. अभी हाल ही में ख़बर आई थी कि जेएनयू उमर ख़ालिद और कन्हैया की पीएचडी नहीं ले रहा है. कोर्ट के आदेश के बाद इनकी पीएचडी जमा हुई है. झारखंड के सिंहभूम ज़िले में 1800 से लेकर 2000 के बीच अलग-अलग शासनों और कानून के बहाने वहां के लोगों के हकों पर किस तरह से हमला हुआ है, उस पर उमर ख़ालिद की पीएचडी है. कन्हैया ने भी कहा है कि इस घटना में कौन लोग शामिल हैं यह पता लगाने का काम दिल्ली पुलिस का है, लेकिन यह पता लगाने की ज़रूरत नहीं है कि उमर या कन्हैया की बातों से किन लोगों को दिक्कत हो रही है.
उमर खालिद ने मार्च 2016 में भी पुलिस सुरक्षा की मांग की थी. नहीं मिली. दो महीने पहले उमर खालिद को फिर धमकी आई तो उसने दिल्ली के वसंत कुंज नॉर्थ थाने में शिकायत दर्ज कराई और पुलिस सुरक्षा की मांग की मगर नहीं मिली. हम आपको बता दें कि 10 फरवरी 2016 को जेएनयू मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था. फरवरी 2016 से अगस्त 2018 आ गया मगर चार्जशीट तक फाइल नहीं हुई है. न आरोप का पता है न सबूत का. इसमें ज़िम्मेदार मीडिया भी है. इन दोनों को इस तरह से पेश किया जाता है जैसे भारत की सारी समस्याओं की जड़ यही हैं. दिल्ली पुलिस को पहुंचने में वक्त तो नहीं लगा. पुलिस ने उसे तुरंत अपनी कस्टडी में ले लिया. हमला करने वाला अभी तक गिरफ्त में नहीं आया है. यह इलाका सीसीटीवी कैमरे से चाक चौबंद होगा ही.
उम्मीद है पुलिस को वहां से कोई सुराग मिले. क्राइम ब्रांच ने दस टीमें बनाई हैं. मौके से कारतूस की भी तलाश हो रही है.
उसी जगह पर दिल्ली बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक हो रही थी. बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी भी घटनास्थल गईं. लेखी कहती हैं कि उमर खालिद ज़िंदाबाद के नारे लग रहे थे, ख़ौफ से आज़ादी कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आए एस आर दारापुरी कह रहे हैं कि वहां उमर खालिद ज़िंदाबाद का कोई नारा नहीं लगा.
उधर, आज सुबह जब नवीन भाटी का मैसेज आया कि दादरी में सांप्रदायिक तनाव फैलाने का प्रयास किया जा रहा है. यह जगह जीटी रोड पर है और गाज़ियाबाद से बुलंदशहर के बीच. भाटी का मैसेज देखकर लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है. बच्चे को भी पीछे से गोली मारकर कौन भाग रहा है. बुज़ुर्ग पर कौन पीछे से गोली चला रहा होगा. हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर जब पड़ताल करने पहुंचे तो पाया कि घटना सही है. मुकेश लंबे से अपराध की पत्रकारिता करते रहे हैं. उनके लिए भी दादरी के इन घायल लोगों से मिलकर अजीब लगा. मुकेश का कहना है कि कोई सनकी भी होगा तो एक बार गोली चलाएगा, लेकिन वो कौन है क्या वो किसी संगठन का है जो एक समुदाय के लोगों को गोली मार कर चला जा रहा है.
मुकेश सिंह सेंगर दादरी के मेवातियन मोहल्ला और नई आबादी में रहने वाले इन पांच लोगों के घर गए जिन्हें गोली मारी गई है वो भी पीछे से. हम आपको इन सभी पांच लोगों की दास्तान बताना चाहते हैं. केस नंबर एक. सिलाई का काम करने वाले फैयाज़ अहमद काम ख़त्म कर रात के साढ़े दस बजे अपने घर लौट रहे थे. 57 साल के फैयाज़ की जेब में 30,000 रुपये थे तभी दादरी मेन रोड पर बाइक पर दो सवार आते हैं. दोनों का चेहरा ढंका होता है और गोली मार कर चले जाते हैं. कोई बात नहीं होती है, पैसे की लूट नहीं होती है.
ये पहली घटना थी. किसी को भी लगा होगा कि सामान्य अपराध की घटना है. मगर 9 अगस्त तक इसी तरह पांच लोगों को पीछे से गोली मारी जाती है, जिसमें एक बच्चा भी है. 12 जुलाई को सातवीं क्लास में पढ़ने वाला 14 साल का मोहम्मद फैज़ान पिताजी के मीट की दुकान से घर लौट रहा था. वक्त हो रहा था 9 बज कर 40 मिनट. बाइक पर सवार दो लड़के आते हैं, जिनका मुंह खुला हुआ था. बिना बात के फैज़ान को कमर में गोली मारते हैं. ठीक उसी तरह से जिस तरह से फैयाज़ अहमद को गोली मारी गई थी. यह घटना भी दादरी मेन रोड की है.
तो आपने देखा कि 10 जुलाई और 12 जुलाई को फैयाज़ और फैज़ान को एक ही तरह से पीछे से गोली मारी जाती है. कोई झगड़ा नहीं, कोई दुश्मनी नहीं. तीसरी घटना 14 जुलाई की है. 26 साल का इरफ़ान अपनी कपड़े की दुकान से निकल ही रहा था कि बाइक सवार आते हैं और पीछे से गोली चलाते हैं. रात के साढ़े नौ बजे थे. अंधेरे के कारण इरफान बच गया, उसे गोली नहीं लगी. घरवालों ने डर कर मारे पुलिस में शिकायत तक दर्ज नहीं कराई.
अब आते हैं केस नंबर चार. हम आपको फिर से बता दें कि दादरी इलाके में एक खास समुदाय के छह लोगों को पीछे से गोली मारी गई है. इन छह में पांच घायल हैं और एक बच गया है. मुकेश सिंह सेंगर ने हर किसी के घर जाकर मामले की पड़ताल की है. केस नंबर चार का मामला है तीस साल के शौकीन का. शौकीन बेलदारी करता है. बेलदारी मतलब कुदाल चलाता है. मिट्टी निकालता है. बेहद गरीब परिवार का है. शौकीन अपना मोबाइल चार्ज कराकर लौट रहा था. घटना 22 जुलाई की है और वक्त वही था साढ़े नौ बज रहे थे. इसके अनुसार तेज़ी से एक बाइक आती है. जिस पर तीन लोग सवार थे. उन्होंने पीछे से कमर में गोली मारी. इससे पहले वह संभलता, हमलावर भाग गए. शौकीन की हालत गंभीर थी इसलिए उसे दादरी से सफदरजंग अस्पताल लाया गया. वहां से दो तीन दिन के इलाज के बाद वापस भेज दिया गया.
मुकेश सिंह सेंगर के अनुसार शौकील बहुत बोलने की हालत में नहीं था. मां और चार भाई मज़दूरी करते हैं. इसका इलाज नहीं हो पा रहा है क्योंकि पैसे नही हैं. मुकेश को लगा कि शौकीन की हालत अच्छी नही है. इसे तुरंत बेहतर चिकित्सा की ज़रूरत है क्योंकि संक्रमण यानी इंफेक्शन तेज़ी से फैलता जा रहा है. शौकीन की शादी नहीं हुई है. इसे कानून की इतनी भी जानकारी नहीं है कि घर से कोई एफआईआर की कॉपी लेने नहीं गया है. जबकि इस मामले में केस दर्ज हो चुका है.
तो आपने अभी तक देखा कि 10 जुलाई, 12 जुलाई, 14 जुलाई और 22 जुलाई की घटना का हिसाब. कैसे एक ही समुदाय के लोगों को कमर या कमर से नीचे पीछे से गोली मारी जाती है. अब मुकेश सिंह सेंगर पहुंचते हैं केस नंबर पांच पर. 24 साल का सलमान और 30 साल का अफ़सार, ये दोनों ईंट के भट्टे में चलने वाले ट्रकों के ड्राइवर हैं. 9 अगस्त की रात 10 बजकर 20 मिनट पर अपने घर से दोनों ही साथ निकले थे. घर के पास ही गली में पैदल जा रहे थे. तभी दो लड़के बाइक से आए, इस बार इनका चेहरा ढंका नहीं था मगर अंधेरा होने के कारण चेहरा नहीं दिखा. सलमान और अफसार से कोई बातचीत नहीं, कहासुनी नहीं बस पीछे से गोली मार दी. जिसमें 24 साल के सलमान के कमर के पीछे गोली लगती है और अफसार के पैर में गोली लगती है. दोनों का इलाज दादरी में ही चल रहा है. मुकेश की मुलाकात सलमान से हुई मगर अफसार से नहीं क्योंकि वह उस वक्त अस्पताल गया था. अफसार की मां से बात हुई.
ग़रीब तबके के एक ही समुदाय के लोगों को एक महीने के भीतर पीछे से गोली मारी जाती है. सभी को एक ही जगह के आसपास गोली लगती है. गोली चलाने का वक्त भी एक सा है. सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इन गरीब लोगों को गोली मारने वाले का मकसद क्या रहा होगा. अगर उसका इरादा वाकई साप्रदायिक तनाव पैदा करने का रहा होगा या है तो सरकार को तुरंत एक्शन लेना चाहिए. वैसे एक महीने में एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है. मुकेश सिंह सेंगर ने एसपी ग्रेटर नोएडा आशीष श्रीवास्तव से बात की. उन्होंने भी माना की ऐसी घटनाएं हो रही हैं.
हमला छह लोगों पर हुआ था. चार केस दर्ज हुए हैं क्योंकि एक में दो लोगों पर हुआ था और एक ने केस ही दर्ज नहीं कराया. हम चाहते थे कि मुकेश सिंह सेंगर इस मामले पर अपनी टिप्पणी दें. तो आपने सुना 10 जुलाई से यह घटना हो रही है. नवीन भाटी वकील हैं और समाजवादी पार्टी के नेता भी हैं. स्थानीय निवासी याकूब मल्लिक ने शक जताया है कि कोई भाईचारे में आग डालना चाहता है. एक ही तरह से गोली मारे जाने की यह घटना कई तरह के सवाल पैदा करती है. क्या कोई कोशिश कर रहा है कि किसी को उकसाया जाए, ताकि उससे बहस हो, तनाव हो और माहौल खराब हो. हमारी भी समझ से बाहर है कि न तो दुश्मनी है, न लूट पाट है बस कोई आता है और किसी को गोली मारकर भाग जाता है. वो भी एक समुदाय के लोगों को. फैज़ान, फैयाज़, इरफ़ान, शौकीन, सलमान और अफसार को किस बात के लिए गोली मारी गई है.
This Article is From Aug 13, 2018
कब मिलेगी ख़ौफ़ से आज़ादी?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 13, 2018 23:33 pm IST
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Published On अगस्त 13, 2018 23:33 pm IST
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Last Updated On अगस्त 13, 2018 23:33 pm IST
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