विज्ञापन
This Article is From Dec 14, 2015

विराग गुप्‍ता : हरियाणा सरकार के असहिष्णु कानून से संविधान को चुनौती !

Written by Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 14, 2015 18:05 pm IST
    • Published On दिसंबर 14, 2015 16:15 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 14, 2015 18:05 pm IST
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा गरीबी हटाओ के नारे की विफलता पर गरीबों को ही हटाने की मुहिम चालू हो गई, जिसका अंत देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में हुआ। हरियाणा में पूर्ण बहुमत की पहली भाजपा सरकार द्वारा पंचायतों के चुनाव में शैक्षणिक-आर्थिक प्रतिबंधों को लागू करने से एक वर्ष में ही उस अध्याय की शुरुआत हो चुकी है। पंच बनने के लिए हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) कानून 2015 के द्वारा शौचालय की अनिवार्यता एवं न्यूनतम शिक्षा के प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 10 दिसम्बर के निर्णय से सही ठहराने से संवैधानिक संकट पैदा हो गया है-  

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध है-
1. विधायकों और सांसदों की शिक्षा के बारे में संविधान सभा में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, टी.टी.कृष्णामचारी और डॉ. अम्बेडकर ने लम्बी बहस के बाद भी कोई संवैधानिक प्रतिबन्ध नहीं लगाया। हरियाणा या राजस्थान की पंचायतों के चुनाव  पर बगैर संविधान में संशोधन के कोई भी ऐसी शर्तें या प्रतिबन्ध अवैध है।
2. सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज कृष्णा अय्यर ने 1978 में मोहिन्द्र सिंह गिल मामले में यह निर्णय दिया था कि देश के सामान्य व्यक्ति को भी प्रधानमंत्री बनने का हक है। हरियाणा के कानून को अगर सही माना जाये तो अयोग्य व्यक्ति पंच नहीं बन सकता परन्तु विधायक और सांसद बनकर प्रदेश और देश का कानून बना सकता है, जो बहुत ही हास्यास्पद है।  3. हरियाणा में विधायकों की अयोग्यता के लिए ऐसे पैमाने निर्धारित नहीं किये गये तो पंचायतों में ऐसे कानून संविधान के अनुच्छेद 243-एफ (1) तथा जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के अनुसार गैर-कानूनी हैं।  
4. पश्चिम के देशों में लिंग, नस्ल, शिक्षा के आधार पर जब कई प्रतिबन्ध लगाये गये उस समय भारतीय संविधान में सभी को मताधिकार दिया गया था। अब 60 प्रतिशत आबादी को शिक्षा तथा शौचालय के आधार पर शासन प्रक्रिया से प्रतिबन्धित करना संविधान के अनुच्छेद-14, 19 एवं 21 का उल्लघंन है।
5. हरियाणा का कानून भेदभावपूर्ण होने की वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ के नागरिक तथा राजनैतिक अधिकारों के घोषणा पत्र 1966 की धारा 25 के खिलाफ है।
6. यह कानून सर्वोच्च न्यायालय के ए.डी.आर. (वर्ष 2002), तथा पी.यू.सी.एल.(वर्ष 2004) मामलों में दिये गये निर्णय के विपरीत है जिस आधार पर पुर्नविचार याचिका स्वीकृत हो सकती है।

(पढ़ें -राकेश कुमार मालवीय का ब्लॉग : पढ़े-लिखे होने का क्या मतलब?)

महिलाओं एवं वंचितों का बाधित विकास

संविधान के नीति निर्धारक सिद्धान्तों के उल्लघंन की वजह से हरियाणा का कानून असंवैधानिक है-
1. भारत में 15 लाख से अधिक महिलायें पंचायती राज शासन व्यवस्था का हिस्सा है और ऐसे कानूनों से कमजोर वर्ग की महिलाओं का विकास बाधित होगा।  
2. देश में 60या लगभग 70 करोड़ आबादी के पास शौचालय नहीं हैं और इस आर्थिक पिछड़ेपन की जिम्मेदारी सरकार पर है। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के बजाय बड़ी आबादी (दलित और आदिवासी) को चुनाव लड़ने से वंचित नहीं किया जा सकता।
3. हरियाणा जैसे छोटे राज्य में भी 24 प्रतिशत लोग अशिक्षित हैं पर पंचायतों को चलाने के लिए उनके पास बुद्धिमत्ता हो सकती है। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के. कामराज इसकी बड़ी नजीर थे।

कानून का होगा दुरुपयोग तथा बढ़ेगा भ्रष्टाचार
इस कानून से हरियाणा सरकार द्वारा गर्वनेंस के दावों की बजाय भ्रष्टाचार ही बढ़ेगा।
1. राजस्थान के पंचायत चुनाव में फर्जी स्कूल, सर्टिफिकेट दिलाने वाले गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। दिल्ली में आप के कानून मंत्री तथा मोदी सरकार की शिक्षामंत्री की डिग्री भी सवालों के घेरे में है। इस कानून के बाद हरियाणा की पंचायतों में भी फर्जी सर्टिफिकेट्स का गोरखधन्धा चालू हो जायेगा।
2. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि जब सरकार द्वारा आर्थिक सहायता दी जाती है तो फिर लोग शौचालय क्यों नहीं बनवाते। इसको अगर दूसरी तरीके से समझे कि अगर लोग शौचालय नहीं बनवा रहे तो इसका मतलब उन्हें सरकारी मदद नहीं मिल रही है। ऐसे लोग फर्जी किरायानामा दिखाकर शौचालय की कानूनी जरूरत को पूरा कर कानून को ठेंगा दिखा देंगे।  
3. आपराधिक मामलों में सिर्फ चार्जशीट के आधार पर चुनावी प्रतिबन्ध सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2013 में लिली थॉमस मामले में दिये गये निर्णय के विरुद्ध है जिसका हरियाणा में राजनैतिक प्रतिद्वन्दियों के विरुद्ध खुला दुरुपयोग होगा।

चुनावी वादों के अनुरूप हरियाणा की भाजपा सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरुद्ध ठोस कार्यवाही करने या विकास की गति बढ़ाने में विफल रही है। अर्जुनसेन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों की मासिक आमदनी 2150 रुपये है जिसकी वजह से लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं जिन्हें काले कानूनों से पंचायत राज में भागीदारी से वंचित किया जा रहा है। इस कानून में 'न ही सबका साथ है और ना ही सबका विकास'। सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका में यदि इस संशोधन को रद्द नहीं किया और खट्टर की जिद्द जारी रही तो पंचायती चुनाव में प्रतिबन्धित लाखों लोग सरकार के खिलाफ वोट देकर, ब्रांड इमेज बनाने की उनकी कोशिश को राजनैतिक उलटबासियों में तब्दील कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Previous Article
UGC NET 2024 Result Declared Live: यूजीसी नेट रिजल्ट घोषित, JRF के लिए 4,970 और असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 53, 694 अभ्यर्थी सफल, Direct Link
विराग गुप्‍ता : हरियाणा सरकार के असहिष्णु कानून से संविधान को चुनौती !
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और चुनावी धांधली
Next Article
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और चुनावी धांधली
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com