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This Article is From Nov 30, 2018

यदि CBI चीफ घूसखोर हों, तो जज क्या करें...?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    November 30, 2018 14:17 IST
    • Published On November 30, 2018 14:17 IST
    • Last Updated On November 30, 2018 14:17 IST
जब मेड़ ही खेत को खाने लगे, तो किसान क्या करे...? देश के वरिष्ठतम वकील फली नरीमन के सामने सुप्रीम कोर्ट के जज केएम जोसफ ने ऐसा ही यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के इन सवालों का नरीमन के साथ पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने भी जवाब दिया. विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से सिब्बल इस मामले में पैरवी कर रहे हैं. खड़गे तीन-सदस्यीय नियुक्ति समिति के सदस्य थे, जिसके द्वारा आलोक वर्मा का CBI डायरेक्टर के तौर पर चयन किया गया था. सवाल करने वाले जज केएम जोसफ अपनी ईमानदारी और बेधड़क फैसलों के लिए जाने जाते हैं. उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के नाते उन्होंने राष्ट्रपति शासन को रद्द करने का निर्णय दिया था, जिसकी उन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी. केंद्र सरकार द्वारा जोसफ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने में अनेक रोड़े अटकाए गए, फलतः वे वरिष्ठता क्रम में नीचे हो गए. देश में नियम और कानूनों की कमी नहीं है, लेकिन सरकारों की मनमर्जी से समस्याएं पैदा होती हैं. अदालतों द्वारा मामलों को टालने के साथ, भ्रष्ट जजों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से व्यवस्था की सड़ांध और बढ़ रही है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के घूसखोर जज को नहीं हटाया गया : न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने जनवरी, 2018 में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अनेक मामलों पर सवाल उठाए गए थे, जिनमें मेडिकल काउंसिल में भ्रष्टाचार का मामला प्रमुख था. मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिए जाने में अनियमितताओं के मामलों में जजों को घूस दिए जाने के अनेक प्रमाण मिले थे. CBI द्वारा जांच के दौरान हाईकोर्ट के पूर्व जज आईएम कुदुसी की गिरफ्तारी की गई, जिन्हें बाद में ज़मानत मिल गई. न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के उस पिरामिड में पूर्व तथा वर्तमान जज शामिल थे. उच्चस्तरीय न्यायिक जांच के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एसएन शुक्ला को न्यायिक कार्यों से विरत कर दिया गया. भ्रष्टाचार के अनेक प्रमाणों के बावजूद जस्टिस शुक्ला को न तो हटाया गया और न ही उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया गया...!

भ्रष्ट न्यायिक तंत्र में आज तक किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग नहीं : समाज और सरकार के अन्य हिस्सों की तरह अदालतें भी भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं. कोलेजियम प्रणाली को बरकरार रखने के NJAC सुनवाई मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों ने न्यायिक प्रणाली में भाई-भतीजावाद और सड़ांध को स्वीकार किया था. वी रामास्वामी, दिनाकरन और सौमित्र सेन समेत अनेक जजों पर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं. जजों की स्वतंत्रता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए उन्हें अनेक संवैधानिक संरक्षण दिए गए हैं. संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत अक्षमता और कदाचार के आधार पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को निकालने की प्रक्रिया इतनी कठिन है कि आज तक कोई भी जज महाभियोग के तहत नहीं हटाया गया. भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद पद छोड़ने वाले जजों को पेंशन और अन्य सुविधाएं मिलना, कानून के मुंह पर करारा तमाचा ही है.

CBI के पूर्व डायरेक्टरों के भ्रष्टाचार पर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी : कहावत है कि शक्ति से भ्रष्टाचार पनपता है और अनियंत्रित शक्ति से पूरी व्यवस्था भ्रष्ट हो जाती है. सुप्रीम कोर्ट और CBI दोनों पर देश की जनता के अपार भरोसे की वजह से, ऐसी संस्थाएं सुपर-शक्तिशाली होने के साथ भ्रष्टाचार का शिकार हो गईं. CBI के पूर्व डायरेक्टर रंजीत सिन्हा समेत अन्य मुखियाओं के खिलाफ बड़े मामलों में भ्रष्टाचार के गंभीर प्रमाणों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने प्रभावी कार्यवाही नहीं की. सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी के बाद अफसरों और नेताओं का हौसला बुलन्द होता गया, जिसकी परिणति CBI बनाम CBI से हुई.

CVC और अस्थाना के लिए सुप्रीम कोर्ट की जवाबदेही : केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC) के लिए संसद द्वारा 2003 में कानून पारित किया गया, जिसके तहत CBI चीफ को भी दो साल के कार्यकाल की सुरक्षा दी गई. CVC की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने CBI चीफ आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला लिया, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा के खिलाफ चल रही CVC की जांच की कमान पूर्व जज पटनायक को सौंपकर CVC के प्रति भी अविश्वास जाहिर किया. केवी चौधरी पर भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से CVC नियुक्त करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर हुआ था. CBI के नंबर दो अधिकारी राकेश अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में FIR दर्ज हुई है. CBI में अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर होने के बावजूद उन्हें CBI में प्रवेश मिलने के लिए सुप्रीम कोर्ट को भी जवाबदेही लेनी होगी. PIL मामलों में सुप्रीम कोर्ट के असमंजस से अनेक बार भ्रष्ट ताकतें भी लाभान्वित हो जाती हैं. अपने खिलाफ मामला रद्द होने पर, मुलायम सिंह यादव ने खुद को CBI प्रमाणित ईमानदार नेता बताकर न्यायिक प्रक्रिया को हास्यास्पद बना दिया था.

चयन समिति की जवाबदेही और लोकपाल का भविष्य : कानून के तहत CBI चीफ की नियुक्ति के लिए तीन सदस्यों की समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल हैं. इस विवाद में कोई भी फैसला हो, इसके बावजूद चयन समिति को जनवरी, 2019 से पहले आलोक वर्मा के उत्तराधिकारी के बारे में निर्णय लेना होगा. विपक्ष के नेता ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के सामने अर्ज़ी लगाई है, तो समिति के दो सदस्य भविष्य में कैसे फैसला लेंगे...? CBI विवाद के बाद, क्या अगले आम चुनाव में भ्रष्टाचार और लोकपाल के मुद्दे पर भी बहस होगी...? असल सवाल यह है कि जब संवैधानिक पदों पर बैठे सर्वोच्च व्यक्ति भ्रष्टाचार के दायरे में आ रहे हों, तब देश को स्वच्छ लोकपाल कब और कैसे मिलेगा...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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