क्या हद होगी स्लेजिंग की, क्या हद होनी चाहिए बयानबाज़ी की?

नई दिल्ली:

सेमीफ़ाइनल में स्लेजिंग को हथियार बनाएंगे ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी। कप्तान माइकल क्लार्क ने आख़िरी मौक़े पर मदद के लिए शेन वॉर्न को बुलाया। 2003 फ़ाइनल की तरह आक्रामक खेलकर ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी हावी होने की कोशिश करेंगे। ये सारी बातें मीडिया में ऑस्ट्रेलियाई आक्रामक तेवर से ज़्यादा उनके बौख़लाहट की तस्वीरें पेश कर रही हैं।

मैच का अंजाम चाहे जो हो ऑस्ट्रेलियाई टीम इस वक्त सहज तो बिल्कुल नहीं कही जा सकती। इसके विपरीत टीम इंडिया के खिलाड़ी नपे-तुले शब्दों में जवाब दे रहे हैं। कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी तो अपने ही अंदाज़ में बिल्कुल चुप हैं। वो जानते हैं कि जो जवाब देना है मैदान पर देंगे।

यही माही का जाना-माना अंदाज़ है और टीम इंडिया भी अमूमन इसी अंदाज़ में खेलती रही है। ये और बात है कि रोहित शर्मा और विराट कोहली जैसे खिलाड़ी 'लोहे को लोहा काटता है अंदाज़ में भी खेलना जानते हैं। इसलिए अगर कंगारू खिलाड़ियों ने सीमा लांघी तो उनके लिए ख़तरे की बात हो सकती है।

अहम ये है कि क्या सिडनी का सेमीफ़ाइनल जेंटलमैन गेम की छाप छोड़ पाएगा? क्या बगैर स्लेजिंग के ये मैच मुमकिन हो पाएगा? पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर कहते हैं कि मीडिया को स्लेजिंग की ख़बरों को तवज्जो नहीं देनी चाहिए। उनके मुताबिक छींटाकशी, बयानबाज़ी, गाली-गलौच या स्लेजिंग की इस खूबसूरत खेल में कोई जगह नहीं है। वो कहते हैं कि दक्षिण अफ़्रीका ने न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ पहले सेमीफ़ाइनल में शानदार खेल दिखाया। उन्होंने पूरे मैच के दौरान कोई स्लेजिंग नहीं की। इसलिए पहला सेमीफ़ाइनल इतना रोमांचक और ख़ूबसूरत दिखा।

गावस्कर की तरह ही पूर्व टेस्ट क्रिकेटर कहते हैं कि स्लेजिंग की इस खेल में कोई अहमियत नहीं होनी चाहिए। वो ये भी कहते हैं कि कई खिलाड़ियों को पता है कि किस खिलाड़ी पर इसका उल्टा असर पड़ सकता है। इसलिए, लक्ष्मण कहते हैं, 'सीमा में रहकर उन्हीं खिलाड़ियों पर बयानबाज़ी दबाव डालना चाहिए जो खेल पलट ही ना दें।'

वो ये भी कहते हैं कि मॉडर्न जेनेरेशन के क्रिकेटर स्मार्ट हैं और उन्हें इसका पूरी तरह अंदाज़ा है। लेकिन लक्ष्मण ये भी मानते हैं कि किसी भी सूरत में स्लेजिंग निजी स्तर तक नहीं पहुंचनी चाहिए। क्योंकि वहां खेल का ज़ायका बिगड़ जाता है। भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया सेमीफ़ाइनल से पहले स्लेजिंग को हथियार बनाने की बात कहकर जेम्स फ़ॉकनर ने साफ़ कर दिया है कि दोनों टीमें मैदान पर दुश्मनों की तरह ही टकराएंगी। लेकिन लक्ष्मण कहते हैं कि भारत-ऑस्ट्रेलिया मैच को सिर्फ़ इन दोनों देशों के फ़ैन्स ही नहीं पूरी दुनिया के क्रिकेट फ़ैन्स देखेंगे।

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वो मानते हैं कि क्रिकेटर्स रोल मॉडल होते हैं और उन्हें रोल मॉडल की तरह ही व्यवहार करना चाहिए। 2011 वर्ल्ड कप से लेकर भारत और ऑस्ट्रेलिया की टीमें ऑस्ट्रेलिया में 16 बार टकरा चुकी हैं। टीम इंडिया को सिर्फ़ दो बार- एक वनडे और एक टी 20 में जीत हासिल हुई है। लेकिन बात अब आंकड़ों से आगे पहुंच गई है। टीम इंडिया के लिए शायद सबसे बड़ी बात ये है कि उनके कप्तान माही कैप्टन कूल हैं जो बेइंतहा दबाव लेना जानते हैं। उनका फ़ोकस सिर्फ़ क्रिकेट होगा और सिर्फ़ जीत होगी। उससे कम कुछ भी नहीं।