उधमपुर में हुए आतंकवादी हमले के बाद यह जानने की जरूरत है कि पाकिस्तान में आतंकवादी पैदा करने के लिए वहां किस तरह से 'जन्नतें' बनाई गई हैं।
उधमपुर में पकड़े गए आतंकवादी की तस्वीर देखकर सहज अंदाजा हो जाता है कि उसकी उम्र कितनी कम है। उससे 'सामूहिक पूछताछ' की जारी तस्वीर में वह जिस तरह से बेतकल्लुफ़ अंदाज़ में सवालों के जवाब देता दिख रहा है, उससे भी उसकी उम्र का अल्हड़पन जाहिर होता है। उसकी स्वभाविक हंसी से यह भी नहीं लगता कि उसे कसाब की जिंदगी के हश्र का पता होगा।
आखिर किस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है आतंकवाद के मिशन पर निकले ऐसे नौजवानों को कि उन्हें एहसास भी नहीं होता कि उनके अपने मुल्क़ के कुछ लोग किस तरह से उनका इस्तेमाल करने जा रहे हैं। किस तरह से उन्हें मौत के मुंह में धकेला जा रहा हैं। जैसे कि इस केस में, एक साथी मारा गया है और दूसरे को एहसास नहीं कि वह दूसरा कसाब हो गया है।
पाकिस्तान में स्वात और बाजौर जैसे इलाके का दौरा करने के क्रम में कुछ ऐसी जानकारियां मिलीं जो चौंकाने वाली रहीं। इनमें से एक है फिदायीन हमलों के लिए तैयार किए जाने वाले आतंकवादियों को 'जन्नत' में जाकर वहां की जिंदगी दिखाने का तरीका।
इसके लिए आतंकवादियों के ट्रेनर कुछ कमरों के मकान में ऐसी 'जन्नत' तैयार करते हैं जिनमें खास तौर पर किशोरावस्था के लड़कों को बहला फुसलाकर लाया जाता है। इन कमरों की छतें नीले रंग की होती हैं। लड़कों के दिमाग में डाला जाता है यह आसमान है। ऊपरी दीवारों पर पेड़-पौधे और तितलियां बनीं होती हैं। यह उनके लिए हरा भरा जंगल होता है। निचली दीवारों पर पानी की बहती धारा होती है। यह नदियां होती हैं।
नए रिक्रूट को यहां लाकर बताया जाता है कि जन्नत यही है। हूरें भी यहीं बसती हैं। जिज्ञासा ऐसी पैदा की जाती है कि बात जन्नत में होने वाली हूर पर आकर टिक जाती है। फिर वहां एक से लेकर कई 'हूर' तक छोड़ दी जाती हैं। एक नौजवान जो अपने सेक्स से जुड़े सपनों को सच होता देखता है तो उसका उसके ट्रेनर पर भरोसा पुख़्ता होता है। कुछ दिनों के बाद उसे बताया जाता है कि जो तुमने यहां 'भोगा' है वह तो कुछ भी नहीं, असल 'जन्नत तो ऊपर है, वहां जाओगे तो ऐश करोगे'।
जाहिर है ऐसी बातों में भरोसा पालने वाले लड़के इसलिए भी मिल जाते हैं क्योंकि पाकिस्तान में शिक्षा की घोर कमी है, खास तौर पर आतंकवाद ग्रस्त इलाकों में। उन इलाकों में आधुनिक शिक्षा की कोई किरण कभी पहुंची ही नहीं। वहां का बचपन एक खास तरह की मज़हबी शिक्षा का शिकार रहा है। वहां के अल्हड़ किशोरों को सिर्फ अपनी शरीर में पनपी जरूरतों और दिमाग की गढ़ी फंतासियों में जीना होता है। उसी के आसपास आतंकवाद के मास्टरमाइंड अपना तानाबाना बुनते हैं। फिदायीन दस्ता तैयार करते हैं। इसके लिए ऐसा आत्मघाती जैकेट भी तैयार कर पहनाते हैं जिसमें उनके शरीर का 'खास हिस्सा' बचा रहे ताकि ऊपर की 'जन्नत' में वे ऐश कर सकें!
This Article is From Aug 05, 2015
कैसे 'जन्नत' में तैयार किए जाते हैं, पाकिस्तान में युवा आतंकवादी...
Reported by Umashankar Singh, Edited by Suryakant Pathak
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Updated:अगस्त 07, 2015 13:34 pm IST
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Published On अगस्त 05, 2015 19:55 pm IST
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Last Updated On अगस्त 07, 2015 13:34 pm IST
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