विज्ञापन
This Article is From Jan 12, 2017

राजनीति में जूतों का क्‍या काम...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 12, 2017 03:04 am IST
    • Published On जनवरी 12, 2017 03:04 am IST
    • Last Updated On जनवरी 12, 2017 03:04 am IST
पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल 90 साल के हैं और देश के वरिष्ठ राजनेताओं में से हैं. मौजूदा समय में वे अकेले ऐसे राजनेता होंगे जो आज़ादी के समय भी 28-30 साल के नौजवान रहे होंगे. हर राजनेता से जनता अलग अलग कारणों से नाराज़ रहती है. ख़ूब विरोध करती है मगर इन सब तौर तरीकों की एक परंपरा है. आज जिस व्यक्ति ने उनकी तरफ जूते चलाये हैं वो अपने गुस्से को तो जानता है मगर यह नहीं जानता कि एक ग़लत के जवाब में वो एक बेहद ग़लत परंपरा की बुनियाद डाल रहा है.

पंजाब की यह घटना शर्मनाक है. ऐसी घटनाओं से न तो भड़कने की ज़रूरत है न ही रस लेने की. हमें सोचना चाहिए राजनीतिक बातों को लेकर किस तरह की लोक संस्कृति बनती जा रही है. इस घटना के बाद केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर का बयान तो और भी उत्तेजक है कि अगर प्रकाश सिंह बादल अकाली कार्यकर्ताओं से हिंसा के लिए कह दें तो आम आदमी ज़िंदा नहीं बचेगी. उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था. बहू के नाते उनकी भावना समझ में आती है. एक बुज़ुर्ग पिता और नेता के साथ इस तरह की घटना पर कोई भी अतिरेक भरा बयान दे सकता है. इसे तूल देने की ज़रूरत नहीं है.

अच्छा होता कि सारे दल के नेता और उनके समर्थक दो मिनट के लिए सोचें कि इस राजनीति से स्कार्पियो और बोलेरो के अलावा ऐसा क्या मिल रहा है जिसके लिए वे इतना मारकाट कर रहे हैं. चुनाव जीत कर विधायक ही तो बनेंगे. ज़्यादातर की गिनती सरकार बनाने की संख्या के लिए ही होती रहती है. इससे ज़्यादा उनका काम क्या है. विधानसभा की बैठकें तो लगातार कम होती जा रही हैं. मुख्यमंत्री के सामने बोल नहीं सकते. सांसद का भी वही हाल है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकल कर डाक बम की तरह एक बात को दोहराते रहना है.

गूगल बताता है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और मुख्यमंत्री केजरीवाल पर दो दो बार जूते फेंके गए हैं. अख़बारों ने इन घटनाओं के संदर्भ में ट्विटर की प्रतिक्रयाओं से भी ख़बर बनाई है. ज़्यादातर लोग मज़े ले रहे हैं. लतीफे बनाते बनाते एक किस्म की अनावश्यक सियासी संस्कृति को मान्यता दे रहे हैं. 2009 में पत्रकार जरनैल सिंह ने पी चिदंबरम पर नौ नंबर का रिबॉक जूता फेंक दिया था. कांग्रेस मुख्यालय के अंदर यह घटना हुई थी, तब भी उनके ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ और न ही गिरफ्तारी हुई और न ही चिदंबरम ने उन्हें देख लेने की धमकी दी. जरनैल ने एक इंटरव्यू में अफसोस जताया था कि जूता नहीं फेंकना चाहिए था. कम से कम एक पत्रकार को इस तरह की हरकत से बचना चाहिए था. जरनैल आगे चलकर आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े और विधायक बने. जब चर्चा हो ही गई है तो जरनैल की किताब कब कटेगी 84 ज़रूर पढ़ियेगा. 84 के सिख नरसंहार पर है. केंद्रीय मंत्री किरेण रिजीजू ने हाल ही में एक ख़बर से चिढ़ कर कहा था कि न्यूज़ प्लांट करने वाले उनके इलाके में जायेंगे तो जूते पड़ेंगे.

कोलकाता से एक और ख़बर चल रही है. एक इमाम ने प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ फ़तवा दिया है कि जो उनके बाल उतार लाएगा उसे 25 लाख रुपया देंगे. मैंने इनका नाम नहीं लिखा क्योंकि ये किसी लायक नहीं हैं. प्रधानमंत्री का सम्मान करते हुए भी उनकी पचासों तरीके से आलोचना की जा सकती है. विरोध किया जा सकता है. अगर इमाम साहब मुझे दो लाख के भी नए नोट दे दें तो मैं उन्हें बीस नए तरीके बता सकता हूं. जो भी व्यक्ति 25 लाख के लालच में कमांडो दस्ते से घिरे प्रधानमंत्री के करीब जाने की हिम्मत करेगा उसका कचमूर ही निकलेगा. जितना इनाम पाएगा, उससे ज़्यादा इलाज पर ख़र्च हो जाएगा. बीजेपी के लोगों को एक आइडिया देता हूं. वे इस इमाम के ख़िलाफ़ एफआईआर की ज़िद छोड़ें. घूम घूम कर प्रचार करें कि इस मस्जिद में कोई दान दक्षिणा या ज़क़ात न दें. बगल की मस्जिद में दें. इमाम साहब के पास बहुत पैसे जमा हो गए हैं. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा तो फ़तवे के नाम पर लुटा रहे हैं. मुझे यकीन है इमाम अपना बयान वापस ले लेंगे.

इमाम जी को अपनी हरकत से बाज़ आना चाहिए. उनका यह बयान सामान्य नागरिकों को नाराज़ तो करता ही है, बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के लिए भी ख़ुराक का काम करता है. वैसे तो आक्रोशित तबक़ा तब चुप रहता है जब उसके विरोधी पर कोई जूता फेंक देता है. लेकिन अपने नेता के साथ कोई कर दे तो कैसे चुप रह जाए. क्या इसी के लिए भक्त बना है. जैसे ही उसे किसी इमाम का चेहरा दिखा, सक्रिय हो गया है. मज़हबी संगठनों को भी ऐसे इमाम पर अंकुश लगाना चाहिए. गुज़ारिश करनी चाहिए कि आपको किसी का बाल उतारने का इतना ही शौक है तो आप सलून खोल लें, मस्जिद छोड़ दीजिए. इमाम साहब गुस्से में मेरे ख़िलाफ़ फ़तवा देना चाहते हैं तो मैं यही गुज़ारिश करूंगा कि वे मुझे सिर्फ 25 लाख दे दें. फ़तवा अपने पास रख लें. मैं इस पैसे से कोई अच्छी सी मस्जिद बनवा दूंगा.

आप सोच रहे होंगे कि साक्षी महाराज के बयान पर क्यों नहीं बोला. क्या हर फालतू चीज़ों पर बोलना ज़रूरी है. फिर साक्षी महाराज के बयान को फ्री में क्यों झेलें. वे भी तो इमाम साहब की तरह कुछ इनाम रखें. मुझे यकीन है इमाम के बयान पर उत्तेजित तबका साक्षी महाराज के बयानों पर भी बवाल काट रहा होगा. जी जान से धर्म के आधार पर नफरत की राजनीति के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहा होगा. मैंने देखा है कि इस तबके ने केजरीवाल और राहुल गांधी पर जूता फेंकने के वक्त कितना आंदोलन किया था कि ऐसी संस्कृति हम कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते. आपने नहीं देखा? लगता है कि आप लोग ट्रैफिक जाम में फंस गए थे.

इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार NDTV के पास हैं. इस लेख के किसी भी हिस्से को NDTV की लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता. इस लेख या उसके किसी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किए जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
प्रकाश सिंह बादल, प्रकाश सिंह बादल पर जूता फेंका, पंजाब के मुख्‍यमंत्री, रवीश कुमार, राजनीति में जूता, Shoe Thrown At Parkash Singh Badal, Prakash Singh Badal, Punjab CM, Ravish Kumar, Shoe In Politics
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com