दलित बहुल गांवों में रात बिताने का बीजेपी नेताओं का फैसला क्या उनके लिए सिरदर्द बन रहा है? या फिर वे ऐसा सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए कर रहे हैं.
यह सवाल इसलिए क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी की सभी मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और बीजेपी नेताओं पर कड़ी नज़रें हैं. पिछली कैबिनेट की बैठक में उन्होंने मंत्रियों से पूछा भी कि उनमें से किस-किस ने दलित गांवों में रात बिताई है? इस बारे में एक रिपोर्ट भी तैयार करने को कहा गया है.
दरअसल, एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार पर दलितों की उपेक्षा के आरोप लगे. इस फैसले के विरोध में भारत बंद के दौरान हुई हिंसा के बाद कुछ बीजेपी शासित राज्यों में दलित युवाओं के खिलाफ कथित ज्यादती को लेकर बीजेपी के भीतर से ही आवाज़ें उठीं. कुछ बीजेपी सांसदों ने पीएम को पत्र लिखा. विपक्ष ने माहौल बनाना शुरू किया कि 2014 के चुनाव में बहुत मुश्किल से जुटाए गए दलित वोट बीजेपी के पाले से खिसकने लगे हैं.
बीजेपी ने तुरंत इसकी काट निकाली. पीएम मोदी ने बीजेपी संसदीय दल की बैठक में ऐलान किया कि चौदह अप्रैल को बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती से लेकर पांच मई तक दलित बहुल 20 हजार से ज्यादा गांवों में सरकार की योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया जाएगा. इसके लिए हर सांसद को गांव में एक रात और मंत्री को दो रातें बिताने को कहा गया. इसके पीछे सोच यह भी है कि पार्टी और दलितों के बीच दूरी बढ़ाने की विपक्ष की कोशिशों को नाकाम किया जाए.
लेकिन इसी के साथ विवादों का पिटारा भी खुल गया है. पार्टी की ताकतवर नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने इस फैसले से असहमति जताई है. वे छतरपुर के नौगांव में थीं जहां उन्होंने दलितों के साथ खाना खाने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे दलितों के घर खाना खाने के बजाए उन्हें अपने घर बुलाकर अपने हाथ से भोजन कराएंगी. उमा भारती ने यह भी कहा कि वे भगवान राम नहीं हैं कि अगर दलितों के साथ भोजन किया तो वे पवित्र हो जाएंगे.
वैसे उमा भारती की बात में दम है. क्योंकि किसी गरीब के घर जाकर भोजन कर उस पर आर्थिक बोझ डालने से बेहतर है कि उसे अपने घर बुलाकर सम्मान दिया जाए. यह कवायद दिखावटी ज्यादा लग रही है शायद इसलिए उमा भारती इससे अलग हुईं.
लेकिन विवादों का सिलसिला यहीं नहीं थमा. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के मंत्री सुरेश राणा अलीगढ़ के लोहागढ़ में एक दलित के घर खाना खाने पहुंचे. वहां खाना खाया भी. लेकिन मंत्रीजी के लिए खाना, पानी और बर्तन का इंतजाम बाहर से हुआ. उनके रात रुकने के लिए गद्दों और कूलर का इंतजाम भी किया गया.
ऐसा ही एक बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भी हो चुका है जब उनके लिए दलित के घर में एसी तक लगा दिए गए थे जो अगले दिन उतार लिए गए थे. हालांकि बाद में जब योगी रात बिताने गए तो वे सिर्फ चारपाई पर सोए और उनके लिए केवल पंखा लगाया गया था.
लेकिन एक मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह एक क़दम और आगे निकल गए. उन्होंने कहा कि दलित घर में खाना खाकर उन्होंने वही किया जो राम ने शबरी के बेर खाकर किया था. साफ़ है कि मानसिकता यही है कि दलित नीचे हैं, आप उनके घर खाकर उन पर कृपा कर रहे हैं.
तो क्या बीजेपी की ये दलित डिनर पॉलिटिक्स अपने मक़सद से दूर जा रही है? हम चाहें तो यहां गांधी को याद कर सकते हैं- पहले उन्होंने अछूतोद्धार कार्यक्रम चलाए. बाद में कहा कि उद्धार की ज़रूरत अछूतों को नहीं है, उन सवर्णों को है जो ये छुआछूत बनाकर रखे हुए हैं.
जाहिर है, दलितों को ताकत देने का सवाल, उनको बराबरी का एहसास दिलाने का सवाल, उनको सबके साथ जोड़ने का सवाल एक बड़ा सवाल है जिसका वास्ता दलितों से ज्यादा हमारे मंत्रियों-संतरियों के व्यवहार से है. लोहिया कहते थे कि जाति तोड़ने के लिए रोटी-बेटी का नाता जोड़ना होगा. बीजेपी राजनीतिक रोटी का नाता जोड़ने को तैयार दिख रही है, लेकिन वह सामाजिक नाता कैसे जुड़ेगा जिसमें दलित के यहां खाना-सोना अलग सा काम नहीं माना जाएगा- यह सवाल बचा हुआ है.
(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From May 02, 2018
बीजेपी के लिए दलितों के घर रात बिताने का फैसला क्या सिरदर्द बना?
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:मई 02, 2018 20:26 pm IST
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Published On मई 02, 2018 20:26 pm IST
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Last Updated On मई 02, 2018 20:26 pm IST
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