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This Article is From Jan 31, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : देश की हालत पर क्या कहता है आर्थिक सर्वे?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 31, 2017 21:27 pm IST
    • Published On जनवरी 31, 2017 21:27 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 31, 2017 21:27 pm IST
बजट से पहले आने वाला आर्थिक सर्वे आ गया है. सर्वे मोटामोटी पिछले साल की अर्थव्यवस्था का पुख़्ता हाल और अगले वित्त विर्ष का अंदाजा पेश करता है. इस सर्वे को पूरा तो नहीं पढ़ पाया, 319 पेज की रिपोर्ट में से करीब 100 पेज ही पढ़ सका हूं. सर्वे हिन्दी में भी है मगर इसकी हिन्दी ऐसी है कि आपको समझने के लिए ग्रीक और लैटिन में पीएचडी होने की ज़रूरत है. वैसे अंग्रेज़ी में भी समझना आसान नहीं है. अगर आपको लगता है कि अर्थव्यवस्था से दूर भागना चाहिए तो सर्वे के एक चैप्टर के कथन का ज़िक्र करना चाहता हूं जिसकी शुरुआत में महान अर्थशास्त्री कीन्स का कथन है - अर्थशात्रियों और राजनीतिक दार्शनिकों के विचार, सही हों या ग़लत, जितने आम तौर पर समझे जाते हैं, उससे कहीं अधिक ताकतवर होते हैं. सच तो यह है कि विश्व पर यहीं शक्तियां शासन करती हैं.

अर्थशास्त्री और राजनेता ही आप पर शासन करते हैं, इसलिए इनकी रिपोर्ट और भाषण से भागिए मत. सर्वे में नोटबंदी पर 30-40 पेज खर्च किया गया है. नोटबंदी दूरगामी और तात्कालिक असर के बारे में जो कहा गया है, उसे मैं कोट कर रहा हूं. शब्दश: नहीं है फिर भी अनुवाद है तो इधर उधर हो सकता है. तात्कालिक असर के बारे में एक जगह कहा गया है कि अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का तात्कालिक असर क्या होगा, इन लागतों का आंकलन करना मुश्किल है, क्योंकि नोटबंदी के बाद सेक्टर दर सेक्टर आंकड़ों का आना अभी शुरू हुआ है. नोटबंदी के दीर्घकालिक बदलावों की दिशा और व्यापकता का आंकलना करना जल्दबाज़ी होगी. कई साल लग जाएंगे यही जानने में कि नोटबंदी का काले धन पर क्या असर पड़ेगा. वित्तीय बचत पर क्या असर पड़ेगा. यानी तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के असर का पता लगाना मुश्किल है.

अगर आप उम्मीद करते हैं कि बजट के पहले इस प्रथम सरकारी दस्तावेज़ में यह सब लिखा होगा कि भारतीय रिज़र्व बैंक के पास कितना पैसा आया, कितना पैसा नहीं आया, कितने नकली नोट जब्त हुए, काला धन कितना पकड़ाया तो आपको निराशा होगी. कैशलेस की वकालत है मगर यह बात भी पढ़ने को मिली कि आर्थिक गतिविधियों के लिए कैश आवश्यक है. उदाहरण के लिए कृषि उत्पादकों को मज़दूरी देने के लिए कैश की ज़रूरत पड़ती है. 2018 के वित्त वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत गिरने से भारत को जो लाभ मिल रहा था वो शायद अब न मिले. अगर 60 से 65 डॉलर प्रति बैरल भी हो गया तो सरकार के संसाधन पर गंभीर असर पड़ेगा क्योंकि तेल महंगा होगा, महंगाई बढ़ेगी और लोग फिर खर्च कम करने लगेंगे.

2017-18 के लिए फोरकास्ट - 2016 की तुलना में 2017 में अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों में 10 से 15 प्रतिशत तक वृद्धि होगी. कर्ज़ सस्ता होगा तो लोग हाउसिंग और उपभोक्ता सामानों पर खर्च करने लगेंगे. निजी निवेश 2017 के स्तर पर शायद ही पहुंचे. सरकार के निवेश पर भी असर पड़ेगा. इन सब कारकों को मिलाकर देखें तो 2018 के साल में जीडीपी की दर 6.75 से 7.5 रहेगी.

आर्थिक सर्वे में एक जगह 2015-16 के वित्त वर्ष में सातवें वेतन आयोग की भूमिका सकारात्मक मानी गई है लेकिन कई पन्नों के बाद 2017-18 के वित्त वर्ष के लिए सातवें वेतन आयोग को बोझ के रूप में देखा गया है. एक साल सातवां वेतन आयोग उपभोग का स्तर बढ़ाता है, एक साल बाद सरकारी खज़ाने पर बोझ बन जाता है. सर्वे कहता है कि काला धन का अनुमान सिर्फ इससे नहीं मिलेगा कि रिजर्व बैंक के पास कितने पुराने नोट लौटे हैं, बल्कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत जो काले धन का खुलासा होगा, उस पर जो टैक्स आएगा, इन सबको जोड़ कर देखना होगा. आर्थिक सर्वे में नोटबंदी को लेकर भले ही ठोस आंकड़े नहीं दिये गए हैं मगर नोटबंदी के दौरान मीडिया रिपोर्ट की कई बातों को सही माना गया है. बल्कि सर्वे तैयार करने में मीडिया रिपोर्ट का भी सहारा लिया गया है. जैसे जनधन खाते में कितना काला धन आया इसके बारे में आर्थिक सर्वे में तो ठोस और आधिकारिक रूप से कुछ कहना चाहिए था, मगर हैरानी हुई कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की इस रिपोर्ट में जनधन खाते में जमा पैसे के लिए अखबारों की रिपोर्ट को सहारा बनाया गया है. क्या मुख्य आर्थिक सलाहकार को बैंक वाले डेटा नहीं दे सकते थे कि जनधन खातों में कितना पैसा जमा हुआ. अंग्रेजी वाले आर्थिक सर्वे के पेज नंबर 62 पर कहा गया है कि खूब रिपोर्ट हुआ है कि 8 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच जन धन खातों में जमा राशि में उछाल आई है. हालांकि इस उछाल के बाद भी जो राशि जमा हुई है वो तुलनात्मक रूप से छोटी थी- 42,000 करोड़.

मीडिया की इस रिपोर्ट को सर्वे ने भी सही माना है कि दुपहिया वाहनों की बिक्री में भारी गिरावट आई है। एक्साइज़ शुल्क में बढ़ोत्तरी के दावे के वक्त मीडिया ने कहा था कि पेट्रोलियम उत्पाद की बिक्री बढ़ने के कारण ऐसा हुआ है. सर्वे में इस फैक्टर को सही माना गया है, लेकिन मीडिया में रोज़गार में हुई कमी की जितनी भी रिपोर्ट छपी है उनका सहारा लेकर सर्वे ने कुछ भी दावा नहीं किया है. सर्वे रोज़गार के बारे में कहने से बचता है. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मणियन की प्रेस कांफ्रेस की रिकार्डिंग देख सकते हैं. वो पूरी तैयारी के साथ रस लेकर तमाम बातों को रख रहे थे. शुरूआत में उन्होंने एक दिलतचस्प बात कही। अर्थशास्त्री जे एम कीन्स का कथन है "it must try and do everything..it must draw upon history, mathematics, philosophy...it must study the present and past and very importantly purposeful and objective and its authors must be as aloof and incorruptible as an artist, yet sometimes as near to earth as a politician."

जॉन मेनार्ड कीन्स के दो-दो कथन हैं. इन्हीं कीन्स साहब के कथन का ज़िक्र पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में किया था. इन द लांग रन वी आल आर डेड. लंबे समय में हम सब इस दुनिया में नहीं होंगे. अमिताभ बच्चन को कोट करते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि आर्थिक सर्वे में ड्रामा होना चाहिए, ट्रेजडी होनी चाहिए कॉमेडी होनी चाहिए. इसी की तलाश करते हुए हम पहुंचे हिन्दी वाले सर्वे के पेज नंबर 42 से 51 के बीच. उन पन्नों को पढ़ कर लगा कि मुख्य आर्थिक सलाहकार ये कह रहे हैं कि भारत में शुरुआत में ही व्यापक लोकतंत्र आ गया जिसके कारण हम निजी क्षेत्र के प्रति संकोची हो गए और तरक्की नहीं कर पाए. चीन, कोरिया, सिंगापुर, थाइलैंड, इंडोनेशिया, ताइवान का उदाहरण देते हुए कहा है कि यहां पार्टी, तानाशाही और मिलिट्री का राज रहा. इस कारण पहले तरक्की हो सकी. इसे विस्तार से बताते हुए सर्वे में भारत के शुरुआती लोकतंत्र को अपूर्ण और बंटा बिखरा लोकतंत्र कहा है, जिसके कारण यहां के लोगों का निजी क्षेत्र में विश्वास नहीं रहा. इसके विपरीत सोवियत संघ, जिसने कुछ ही दशकों में स्वयं को कृषि राष्ट्र से औद्योगिक शक्ति के रूप में बदल लिया, के उदाहरण से स्पष्ट है त्वरित विकास तभी संभव है, यदि राष्ट्र अर्थव्यवस्था पर प्रभावपूर्ण ढंग से नियंत्रण रखे और संसाधनों का उपयोग प्राथमिकता क्षेत्र में करे.

आर्थिक सर्वे में इस बात की क्या ज़रूरत थी. क्या यह कहा जा रहा है कि कोई एक मज़बूत नेता है, लोकतंत्र रुकावट न बने, वो अपने हिसाब से तरक्की करे और फिर उसका लाभ सबमें बांटा जाए. तुरंत नतीजे पर मत पहुंचिये, पहले पढ़िये और समझिये कि क्या कहा जा रहा है. किस संदर्भ में कहा जा रहा है. भारत के राज्य चाहें जितना दावा करें, आर्थिक सर्वे कहता है कि राज्यों का सकल वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है. यूपी के चुनावी पोस्टर देखिये, वहां लिखा है कि पलायन अब बंद होगा. इस सर्वे में गर्व के साथ बताया गया है कि नब्बे लाख लोग हर साल ट्रेन से काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं. यानी आर्थिक सर्वे के लिए पलायन गुड है, वोट लेने के लिए बैड है. वैसे 100 वोटर में सात जना ही टैक्स देते हैं और सैटेलाइट से पता चला है कि जयपुर और बेंगलुरु में 5 से 20 प्रतिशत ही प्रॉपर्टी टैक्स देते हैं.

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