पश्चिम बंगाल के इस चुनाव में एक तीसरा मोर्चा भी है, जो काफी अहम है, इस मोर्चे में वामपंथी दल हैं, कांग्रेस है और अब्बास सिद्दीकी का इंडियन सेक्युलर फ्रंट है... इस तीसरे मोर्चे की पश्चिम बंगाल के चुनाव में उतनी चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन आप यकीन कीजिए, मोर्चा काफी अहम है और मुझे लगता है, यह 'किंगमेकर' भी साबित हो सकता है.
इस तीसरे मोर्चे में CPM है, जिसने 34 साल तक पश्चिम बंगाल में राज किया, लेकिन ममता बनर्जी ने आंधी की तरह आकर CPM के किले को ध्वस्त कर दिया था. 2016 के विधानसभा चुनाव में साढ़े 19 फीसदी वोट CPM को मिले थे, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में घटकर साढ़े सात फीसदी रह गए. अब इस पार्टी पर संकट छाया हुआ है, लेकिन इस विधानसभा चुनाव में CPM ने नई रणनीति बनाई है. इस बार पार्टी ने युवा चेहरों पर दांव खेला है.
भले ही CPM का नेतृत्व 80 साल के बिमान बोस कर रहे हों, लेकिन विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार अधिकतर वे लोग हैं, जो कॉलेज की पॉलिटिक्स कर रहे हैं या कुछ दिन पहले तक यूनिवर्सिटी पॉलिटिक्स में थे. जैसे, आयशी घोष. 26 साल की घोष दुर्गापुर की जमुरिया सीट से चुनाव लड़ रही हैं. आपको याद होगा, आयशी पर JNU में हमला किया गया था और सिर पर पट्टी बांधे उनकी तस्वीर तो बहुत-से लोगों को याद होगी ही. ठीक उसी तरह मीनाक्षी मुखर्जी नंदीग्राम से, प्रिथा वर्धमान से, शुभम बनर्जी सोनारपुर साउथ से, सयनदीम मित्रा कमरहाटी से, मोनालिसा सिन्हा सोनापुर नॉर्थ से, दीप सीताधर बाली से और सृजन भट्टाचार्जी सिंगूर से चुनाव मैदान में हैं.
27 साल के सृजन जाधवपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के नेता है और सिंगूर जैसी जगह से किस्मत आजमा रहे हैं, जो पश्चिम बंगाल में वामदलों के लिए वाटरलू साबित हुआ था. हालांकि सृजन का कहना है कि अब सिंगूर का औद्योगिकीकरण करना होगा. वह वही बात कर रहे हैं, जो बहुत साल पहले बुद्धदेब भट्टाचार्य ने कही थी - खेती हमारा फाउंडेशन है, उद्योग हमारा भविष्य... उम्मीद की जानी चाहिए कि सिंगूर में कुछ उद्योग लग जाएं, मगर सृजन जैसे CPM उम्मीदवारों के लिए राह इतनी आसान नहीं है, क्योंकि CPM का वोट प्रतिशत लगातार गिरा है.
2016 में CPM को मिला 19.5 फीसदी वोट 2019 के लोकसभा चुनाव में घटकर 7.5 फीसदी रह गया, लेकिन इस बार कांग्रेस और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ बने गठबंधन का फायदा CPM को मिल सकता है. गांव-गांव में CPM के झंडे लगे हैं और शहरों का युवा वोटर भी CPM की ओर आकर्षित हो रहा है. हाल ही में कोलकाता में तीसरे मोर्चे की एक रैली, या कहें रोड शो हुआ था, जिसमें हज़ारों की तादाद में युवक-युवतियां हाथों में CPM का झंडा लेकर आए थे. मतलब यह है कि जिस ढंग से युवाओं को CPM ने उम्मीदवार बनाया है, या अगली पीढ़ी को कमान सौंपी है, उसका फायदा मिल सकता है. इसका एक उदाहरण बिहार विधानसभा चुनाव से भी मिलता है, जहां लेफ्ट फ्रंट ने BJP को अपना प्रतिद्वंद्वी बनाया, और RJD और कांग्रेस के साथ मिलकर सेक्युलर मोर्चा बनाया, जिसकी बदौलत 29 में से 16 सीटें वामदल जीते, और स्ट्राइकिंग रेट 63.15 फीसदी रहा. यानी, वे बिहार में सीट जीतने के मामले में BJP के बाद दूसरे नंबर पर रहे.
...तो क्या यही कारनामा पश्चिम बंगाल में भी दोहराया जा सकता है. CPM के नेता मानते हैं - हां, दोहराया जा सकता है... हमने युवाओं को आगे किया है, क्योंकि हमें मालूम है कि देश में 65 फीसदी से अधिक जनता 40 साल और उससे कम उम्र की है, और यही वजह है कि हमने अधिक टिकट युवाओं को दिए हैं. इसके अलावा, CPM में ओवरहॉलिंग भी हो रही है, नई पीढ़ी सामने आ रही है, जिससे CPM को काफी उम्मीदें हैं. इन्हीं से पार्टी का भविष्य अच्छा होगा, लेकिन CPM के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि पश्चिम बंगाल में वह अच्छा प्रदर्शन कर दिखाए, और कम से कम उतनी सीटें ज़रूर जीते, जितनी पिछली बार उनके पास थीं.
पिछले चुनाव नें CPM ने 26 सीटें जीती थीं. इस बार चुनाव में कांग्रेस और वामदलों ने अपनी सीटें बचाकर रखीं या उनमें मामूली बढ़ोतरी भी की, तो इतना ज़रूर कह सकते हैं कि पश्चिम बंगाल का चुनाव काफी दिलचस्प हो जाएगा. कई जानकार बंगाल में त्रिशंकु विधानसभा की भी बात कर रहे हैं, लेकिन उन हालात में क्या CPM और कांग्रेस अपना समर्थन तृणमूल कांग्रेस को देंगी, इससे भी फिलहाल इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन सबसे अहम यही है कि CPM और कांग्रेस को अच्छा प्रदर्शन करना होगा, और यही इन पार्टियों के लिए भी अच्छा होगा... और कई जानकारों का मानना है कि पश्चिम बंगाल के लिए भी यही अच्छा होगा.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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