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This Article is From Jun 08, 2018

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद कैसे होगा SC/ST प्रमोशन

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 08, 2018 15:14 pm IST
    • Published On जून 08, 2018 15:13 pm IST
    • Last Updated On जून 08, 2018 15:14 pm IST

गर्मियों की छुट्टी के दौरान काम कर रही अवकाशकालीन पीठ के जजों ने सरकार के विशेष निवेदन पर सिर्फ यह स्पष्टीकरण दिया कि कानून के अनुसार SC/ST वर्ग में प्रमोशन देने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन उसे प्रमोशन के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश बताकर प्रचारित कर दिया गया, जिससे आने वाले समय में समस्या और जटिल हो सकती है. केंद्र और राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के 2006 के आदेश के बावजूद कानूनी प्रक्रिया का पालन करने में विफल रही हैं, तो फिर इस स्पष्टीकरण से हज़ारों कर्मचारियों का प्रमोशन कैसे हो जाएगा...?

कानूनी रोक न होने के बावजूद सरकार द्वारा प्रमोशन क्यों नहीं : सरकार की तरफ से पेश ASG ने 17 मई के आदेश का उल्लेख किया, जिसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट में लम्बित याचिका की वजह से प्रमोशन पर कोई रोक नहीं लग सकती और कानून के अनुसार प्रमोशन दिए जा सकते हैं. आरक्षण विरोधियों की तरफ पेश वरिष्ठ वकील शांतिभूषण ने 2015 के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि इस मामले में संविधान पीठ द्वारा ही कोई भी राहत या अंतरिम आदेश पारित किए जा सकते हैं. इन विरोधाभासी दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन बेंच ने कहा कि अगर कानून के अनुसार प्रमोशन हो सकते हैं, तो फिर सरकार प्रमोशन क्यों नहीं करती...? सरकार ने नागराज मामले में दी गई कानूनी व्यवस्था का पिछले 12 साल से पालन नहीं किया, तो फिर अब सुप्रीम कोर्ट के 'नो ऑब्जेक्शन' मात्र से प्रमोशन में आरक्षण कैसे लागू हो जायेगा...?

प्रमोशन पर 25 साल से चल रही है कानूनी जंग : SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए 1955 में विशेष प्रावधान किए गए, जिन्हें सन् 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले (मंडल कमीशन) में निरस्त कर दिया. 1997 में केंद्र सरकार के डीओपीटी विभाग ने 5 ऑफिस मेमोरैण्डम जारी किए, जिसके बाद वाजपेयी सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण को संविधान में संशोधन के माध्यम से विशेष संरक्षण प्रदान किया. सन् 2006 में नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने प्रमोशन में आरक्षण की नई संवैधानिक व्यवस्था को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन इसे लागू करने के लिए अनेक नियम बना दिए, जिनका सरकार द्वारा पालन नहीं किए जाने से पूरा विवाद है.

संविधान में चार संशोधनों के बावजूद प्रमोशन में आरक्षण पर पेंच : संविधान में सभी को बराबरी का दर्जा मिला है, लेकिन इस बारे में अनेक अपवाद भी हैं. SC/ST वर्ग के आरक्षण के लिए अनुच्छेद-16 में विशेष प्रावधान किए गए हैं, परन्तु दूसरी ओर अनुच्छेद-335 में प्रशासन की कार्यकुशलता के बारे में संवैधानिक प्रावधान हैं और इन दोनों में विरोधाभास की वजह से अनेक कानूनी विवाद हो रहे हैं. प्रमोशन में आरक्षण पर पेंच न फंसे, इसके लिए सन् 1995 में 77वां और वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान सन् 2000 में 81वां, सन् 2000 में 82वां और सन् 2001 में 85वें संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद-16 और 335 में बदलाव कर इस विरोधाभास को खत्म करने की कोशिश की गई. इतने संविधान संशोधनों के बावजूद 14,000 कर्मचारियों का प्रमोशन अटका है, तो फिर किसी भी नए अध्यादेश से यह मामला कैसे सुलझेगा, जिसके लिए केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान समेत अनेक नेताओं ने मांग की है.

प्रमोशन देने के लिए तय शर्तों को पूरा करने में सरकार विफल क्यों : सन् 2006 में नागराज मामले में फैसले से प्रमोशन में आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर को मान्यता नहीं मिली, परन्तु आरक्षण में 50 फीसदी की अधिकतम लिमिट बरकरार रही. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी व्यवस्था दी गई थी कि पिछड़ेपन के आंकड़ों को इकठ्ठा करने के बाद ही सरकार द्वारा प्रमोशन में आरक्षण दिया जा सकता है. इन आंकड़ों के अनुसार SC/ST वर्ग का नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व के आकलन के आधार पर ही चयनित प्रत्याशियों को प्रमोशन में आरक्षण दिया जा सकता है.

अनेक हाईकोर्टों के विरोधाभासी निर्णयों के बाद मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में : दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण देने वाले अगस्त, 1997 के सरकारी आदेश को रद्द कर दिया. बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में मामला आने पर संविधान पीठ के गठन का फैसला लिया गया है. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर मामले में 17 मई को पारित अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षित श्रेणी को आरक्षित श्रेणी में, अनारक्षित श्रेणी को अनारक्षित श्रेणी में तथा मेरिट के आधार प्रमोशन देने पर कोई रोक नहीं है.

SC/ST मुद्दे पर संसद का मानसून अधिवेशन हो सकता है हंगामेदार : प्रमोशन में नागराज फैसला और SC/ST उत्पीड़न कानून मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गिरफ्तारी पर रोक जैसे फैसलों के राजनीतिक नुकसान की आहट से केंद्र सरकार में भड़भड़ी का माहौल है. नागराज फैसले को राज्यों के माध्यम से लागू करना है, जिसके लिए 6 साल पहले दिसंबर, 2012 को राज्यसभा में बिल पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में राजनीतिक दलों के विरोधाभास से यह कानून नहीं बन पाया. नेताओं द्वारा संसद के माध्यम से कानून बनाने की बजाय सुप्रीम कोर्ट में मामले को ठेलने से प्रमोशन में आरक्षण कैसे लागू होगा...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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