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This Article is From Jun 12, 2017

उपवास ख़त्म करने के लिए झूठे वायदों का राष्ट्रधर्म ?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 12, 2017 15:00 pm IST
    • Published On जून 12, 2017 14:33 pm IST
    • Last Updated On जून 12, 2017 15:00 pm IST
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राष्ट्रधर्म हेतु किया गया उपवास मध्य प्रदेश में शांति बहाली के बाद उन्होंने ख़त्म कर दिया. तीन दौर में सत्ता की मलाई खाने के बाद सीएम का उपवास बनता है, पर किसानों से किए गए वायदों का राष्ट्रधर्म पूरा न होने के द्रोह का मूल्यांकन कैसे होगा? सीएम के अनशन के बाद क्या अब भाजपा में मंथन होगा?  

सर्वाधिक कृषि विकास वाले हैप्पी प्रदेश के संवैधानिक मुखिया का उपवास क्यों?
ब्रांडिंग की बदौलत देश में सर्वाधिक कृषि विकास वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री किसानों के असंतोष को न भांप सके और अब अब इंटेलिजेंस की विफलता के अजब तर्क दिए जा रहे हैं. मृत किसानों का शुद्ध तथा त्रयोदशी संस्कार होने के पहले उनके परिजनों को भोपाल बुलाकर उपवास ख़त्म करने की रस्म अदायगी करने वाले चौहान अब हैप्पी प्रदेश के मुखिया का दावा कैसे कर सकते हैं?     

ऋण माफी की बैसाखी की राह ताकता पंगु किसान अब हिंसक क्यों? 
सरकार द्वारा खेती तथा गावों की उपेक्षा से किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है. कर्ज में डूबे 52 फीसदी किसानों को ऋण माफी से बैंक तथा वित्तीय व्यवस्था चरमरा जायेगी. स्मार्ट सिटी तथा बुलेट ट्रेन आधारित आर्थिक नीतियों में बदलाव करके गाँवों को सशक्त बनाने की ठोस पहल की बजाय ऋण-माफी की राजनीति से किसान कैसे अपने पैरों में खड़ा हो सकेगा? जंतर-मंतर में किसानों के शान्तिपूर्ण आंदोलनों पर संवेदनहीन सरकार हिंसा के बाद मुआवजे को 20 गुना बढ़ाकर 1 करोड़ कर देती है, फिर भविष्य में हिंसक आन्दोलनों पर लगाम कैसे लगेगी?   

नोटबंदी तथा जीएसटी के डिजिटल इंडिया में किसानों की हालत और बदतर
सरकार द्वारा आंकड़ों को दबाने की भरपूर कोशिशों के बावजूद नोटबंदी के दुष्परिणाम, मंदी तथा बेरोजगारी के रूप में सामने आने लगे हैं. जीएसटी से बड़ी कंपनियों को भले ही फायदा हो परंतु असंगठित क्षेत्र के रोजगारों में कमी आ सकती है. डिजिटल इंडिया के नाम पर विदेशी कंपनियों को भारत में व्यापार की खुली छूट से छोटे व्यापारी तबाह हो रहे हैं. 55 फीसदी रोजगार देने वाली ग्रामीण व्यवस्था की जीडीपी में 17 फीसदी की भागीदारी सरकार की विसंगत आर्थिक नीतियों से और भी कम हो रही है.

स्मार्ट सिटी के दौर में किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे हो
खेती की क्षीण 1.2 फीसदी विकास दर के बावजूद किसानों की आमदनी सन 2022 तक कैसे दुगनी हो सकती है? इस बारे में घोषणापत्र में वादे और राजनीतिक बयानबाजी तो हो रही पर ठोस ब्लू प्रिंट नदारद है. मुख्यमंत्री चौहान को उपवास के दौरान स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट पढ़ने का मौका मिला फिर इतने सालों से किसानों को उपज का डेढ़ गुना मूल्य दिलाने का दावा वे कैसे भांज रहे थे? खेती के विकास हेतु ठोस पहल की बजाय, पशुवध जैसे वाहियात कानूनों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था और बदहाल हो रही है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने व्याख्यान में कहा था कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणा-पत्र के वायदे पूरा न करने पर दंडित करने का कानूनी प्रावधान होना चाहिए. मुख्यमंत्री चौहान के तमाम दावों और लुभावनी घोषणाओं के रिजल्ट के पब्लिक ऑडिट से, क्या इसकी शुरुआत नहीं होना चाहिए?

खेल, सेना, अर्थ एवं विदेश नीति में राजनीति फिर किसान की राजनीति बुरी क्यों
सीएम के अनुसार शांतिप्रिय किसानों को हिंसा के लिए कांग्रेस और विरोधियों द्वारा उकसा कर गन्दी राजनीति हो रही है. गाय, सेना, पाकिस्तान, खेल, नर्मदा सेवा समेत अन्यान्य विषयों पर राजनीति करने वाली भाजपा को विपक्ष की राजनीति पर आपत्ति क्यों? शहरों में डेंगू से कुछ दर्जन मौतों पर हल्ला मचाने वाली व्यवस्था तीन लाख किसानों की आत्महत्या पर मौन क्यों है? स्मार्ट सिटी के हसीन दौर में किसानों की बदहाली खत्म करने के लिए ठोस प्रयास यदि नहीं हुए तो सोशल मीडिया के दौर में हिंसक आंदोलनों पर पुलिसिया डंडे से लगाम कब तक लगाई जायेगी? 

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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