विमल मोहन की कलम से : 'द फिनिशर' महेंद्र सिंह धोनी फिनिश्श्श्श्श...?

विमल मोहन की कलम से : 'द फिनिशर' महेंद्र सिंह धोनी फिनिश्श्श्श्श...?

एमएस धोनी (सौजन्य : AFP)

कमाल है... मीडिया (टीवी चैनलों और अख़बारों) ने एक ही हफ्ते के भीतर एक परखे हुए खिलाड़ी को पहले 'हीरो' से 'विलेन' बनाया, और फिर मजबूर होकर फिर 'हीरो' बनाना पड़ा... खुद ही आलोचना की, और फिर लिखा कि धोनी (असली नाम महेंद्र सिंह धौनी... वैसे नाम में क्या रखा है...?) ने आलोचकों को जवाब दे दिया...
 
लंदन ओलिम्पिक से ठीक पहले पत्रकारों ने बीजिंग ओलिम्पिक के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा से पूछा था कि वह लंदन में अपनी दावेदारी कैसे देखते हैं... बिंद्रा ने कहा था, "स्पोर्ट्स की स्क्रिप्ट (प्रतियोगिता या मैच) खत्म होने से पहले नहीं लिखी जा सकती..." इसके बावजूद पत्रकारों (तथाकथित एक्सपर्ट्स) ने अभिनव को पदक का पक्का दावेदार बनाकर पेश किया, और जब वह नहीं जीते, तो उनके प्रयास के आगे लिख दिया - फेल...
 
इन दिनों आप हर दूसरे शख्स को बिहार चुनाव का एक्सपर्ट मान सकते हैं... भारत में जो कोई भी राजनैतिक राय रखता है (वैसे भारत में करीब-करीब हर शख्स की कोई न कोई राजनैतिक राय होती ही है), वह एक्सपर्ट की तरह बता देगा कि इस बार बीजेपी 120 से 130 सीटों पर जीत हासिल करेगी, या बीजेपी की हवा निकल जाएगी... नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाकर गलती की है, या लालू-नीतीश गठबंधन का किसको कितना फायदा और कितना नुकसान होगा...
 
डेंगू, अरविंद केजरीवाल, नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी और यही नहीं - नेताजी सुभाष चंद्र बोस ज़िन्दा थे, या हैं, या कैसे मौत हुई थी उनकी, या मार दिए गए थे, इन सब लोगों या विषयों के एक्सपर्ट हर ड्राइंगरूम, और ज्ञानी न्यूज़रूम में आपको ज़रूर मिल जाएंगे... फिर क्रिकेट पर राय... माफ कीजिएगा, एक्सपर्ट राय देना तो हर भारतीय का हक है...
 
ज़रा गौर कीजिए, अगर इंदौर में दक्षिण अफ्रीकी टीम किसी तरह मैच जीत गई होती तो आलोचनाओं की बाढ़ में धोनी के करियर का 'जनाज़ा' निकल गया होता - धोनी फिनिश हो चुके हैं... उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए... उन्हें कप्तानी तो फौरन छोड़ देनी चाहिए... इसके अलावा मैच की कुछ जायज़ आलोचनाएं भी अगले दिन की हेडलाइन हो सकती थीं... मसलन, अमित मिश्रा और हरभजन सिंह की जगह अक्षर पटेल क्यों...? आखिरी ओवर में मोहित शर्मा को बल्लेबाज़ी क्यों नहीं दी गई...? कब तक ढोएंगे सुरेश रैना को...? वगैरह-वगैरह...
 
महेंद्र सिंह धोनी पर कप्तान या खिलाड़ी के तौर पर सवाल उठाने से पहले उनके आंकड़ों पर नज़र डालें... वन-डे क्रिकेट की पिछली 10 पारियों में उनका स्कोर रहा है - 45*, बल्लेबाज़ी नहीं की, 85*, 6, 65, 5, 47, 69, 31 और 92* - यानी तीन बार नॉटआउट और चार अर्द्धशतक... टी-20 में भी धोनी के आंकड़े कुछ मिलती-जुलती दास्तान कहते हैं - 24*, बल्लेबाज़ी नहीं की, बल्लेबाज़ी नहीं की, 22*, 24, 0*, 4*, 27*, 20*, 5 - यानी पिछली 10 पारियों में वह सिर्फ दो बार आउट हुए...
 
हालांकि टेस्ट क्रिकेट के आंकड़ों का धोनी या उनके फैन्स के लिए इस वक्त शायद ज़्यादा मतलब न हो, लेकिन फिर भी आखिरी 10 पारियों में उनका स्कोर इस प्रकार रहा - 50, 6, 71, 27, 82, 0, 33, 0, 11 और 24*...
 
ये सभी आंकड़े कहते हैं कि मैदान के बाहर से बेवजह डाला गया दबाव सिर्फ माहौल बिगाड़ता है... यह कह पाने में कि "कई लोग मैदान के बाहर तलवार निकालकर गलतियों का इंतज़ार करते हैं..." धोनी को 10 साल से ज़्यादा वक्त लग गया...
 
लेकिन भारतीय एक्सपर्ट्स इसे जितनी जल्दी समझ सकें, भारतीय क्रिकेट का उतना भला हो सकेगा... राय रखना एक बात है, लेकिन एक्सपर्ट के तौर पर दवाब डालना अलग बात... पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर, वेस्ट इंडीज़ के पूर्व कप्तान ब्रायन लारा, भारतीय पूर्व कप्तान अनिल कुंबले और क्लासिकल अंदाज़ में बल्लेबाज़ी करने वाले वीवीएस लक्ष्मण अगर धोनी की कप्तानी का दम मानते हैं तो अलग राय रखते हुए भी उनकी बात सुनने में हर्ज़ नहीं है... धोनी के कई रिकॉर्ड उन्हें महान भारतीय क्रिकेटर और महान भारतीय कप्तान की गिनती में खड़ा करते हैं... फैन्स खेल का लुत्फ उठाएं, खेल के आलोचक वस्तुनिष्ठ और तर्कसंगत आलोचना करें, लेकिन फैसला सुनाने का काम उन पर छोड़ दें, जिन्हें यह काम आता है और जिनकी ज़िम्मेदारी है... उस वक्त ज़रूर उसके कुछ मायने होंगे, क्योंकि जिसका काम, उसी को साजे... श्श्श्श्श...


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