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This Article is From Dec 24, 2014

विमल मोहन की कलम से : हकीकत हॉकी की - कितने पानी में है भारतीय हॉकी टीम...?

Vimal Mohan, Vivek Rastogi
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  • Updated:
    दिसंबर 24, 2014 18:52 pm IST
    • Published On दिसंबर 24, 2014 18:47 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 24, 2014 18:52 pm IST

भुवनेश्वर में हुई चैम्पियन्स ट्रॉफी के दौरान भारतीय हॉकी टीम से करिश्मे की उम्मीद थी। टीम इतिहास बनाने के बेहद करीब नज़र आ रही थी, लेकिन वर्ष 1982 में हुई चैम्पियन्स ट्रॉफी की तरह पदक भी हासिल नहीं कर पाई। भारतीय हॉकी टीम आठ देशों के एलीट टूर्नामेंट में चौथे नंबर पर रही, जिसके साथ टीम की हकीकत को लेकर कई सवाल खड़े हो गए...?

इसी टूर्नामेंट में भारत ने हॉलैंड के खिलाफ जीत हासिल कर वह कर दिखाया, जो पिछले ढाई दशकों में वह करने में नाकाम रही थी। चैम्पियन्स ट्रॉफी में भारत ने हॉलैंड को 28 साल बाद शिकस्त दी और तब से ही उम्मीद बंधने लगी कि टीम कुछ कारनामा कर सकती है।

इसी दौरान भारत ने दुनिया में चौथे नंबर की टीम बेल्जियम के खिलाफ भी जीत हासिल की और वर्ल्डकप में मिली हार का बदला ले लिया, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ क्वार्टर फाइनल ने इस टीम की कलई खोल दी। पाकिस्तान ने भारत को 4-3 से हराकर भारतीय दर्शकों को सन्न कर दिया। साफ हो गया कि टीम और बड़ी ट्रॉफियों के बीच अब भी बड़ा फासला है।

भारत-पाकिस्तान मैच के बाद हुए इस विवाद ने जानकारों का ध्यान भी भटकाया, लेकिन यह साफ था कि भारतीय टीम को अब भी कई सबक लेने बाकी हैं। पाकिस्तान के कोच शहनाज़ शेख ने खुलकर इल्जाम लगाया कि मीडिया ने बिना वजह छोटी-सी बात को तूल दिया, जिससे भारतीय टीम की हार की बात छिप गई। वह कहते हैं कि इसका पूरा फायदा भारतीय हॉकी संघ को ही हुआ।

पाकिस्तान के कप्तान मोहम्मद इमरान ने भी कुछ ऐसे ही सुर में बात की। ज़ाहिर है, विपक्षी टीम के कप्तान और कोच ने भारतीय हॉकी के बारे में टिप्पणी अपना मकसद साधने के लिए की, लेकिन ये बातें टीम की कमियों की ओर इशारा तो करती ही हैं, क्योंकि भारतीय हॉकी टीम ने चैम्पियन्स ट्रॉफी में इतिहास बनाने का एक शानदार मौका गंवा दिया।

इस पूरे साल भारतीय हॉकी सुर्खियों में रही, लेकिन हॉकी तंत्र के सामने कई सवाल बरकरार हैं। टीम के डच कोच रोलैंट ऑल्टमैन्स कहते हैं कि यह टीम दबाव में या थकान होने पर योजनाओं को भूल जाती है। टीम के उपकप्तान पीआर श्रीजेश कहते हैं कि मौका मिलने पर विपक्षी टीम गोल करती है, जबकि भारतीय टीम मौके गंवा देती है। वह कहते हैं कि दूसरी टीमों और भारतीय टीम में यही फर्क है, जिसे ठीक करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

एशियाड के फाइनल में पाकिस्तान को हराकर रियो ओलिम्पिक का टिकट हासिल करने वाली टीम चैम्पियन्स ट्रॉफी में कई वजहों से चूक गई। सालभर में करीब 40 मैच खेल चुकी टीम की थकान आखिरी टूर्नामेंट में साफ नज़र आने लगी। कोच टेरी वॉल्श का टूर्नामेंट से ठीक पहले चले जाना, टूर्नामेंट के दौरान टीम का स्ट्रक्चर को भूलना जैसी कई गलतियां हुईं, लेकिन एक गलती को लेकर फैन्स और जानकारों की फिक्र ज़रूर बढ़ गई। पाकिस्तान और जर्मनी के खिलाफ टीम आखिरी लम्हों में मैच हाथ से गंवा बैठी।

जिस दिन भारतीय हॉकी टीम को चैम्पियन्स ट्रॉफी में पाकिस्तान के हाथों हार का सामना करना पड़ा, उससे कुछ घंटे पहले भारतीय क्रिकेट टीम एडिलेड में आखिरी मौकों पर चूक गई। वैसे आखिरी मौकों पर चूकना भारतीय खिलाड़ियों की फितरत रही है। भारतीय खेलों के इतिहास में इसके कई उदाहरण हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के चयनकर्ता और पूर्व कोच बैरी डांसर कहते हैं कि यह परेशानी मनोवैज्ञानिक नहीं है। उनका मानना है कि इन सबका लेना-देना प्रैक्टिस से है। वह कहते हैं कि जज़्बे और आत्मविश्वास के सहारे आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मैच जीत सकते हैं, लेकिन आखिरी लम्हों पर आप नहीं हारें, इसके लिए आपको अभ्यास के दौरान ही मेहनत करनी होगी।

जबकि 'वन थाउज़ेंड लेग्स फॉर हॉकी' (One Thousand legs for Hockey) नाम की संस्था के सहारे हॉकी को प्रोमोट करने वाले हॉकी एक्सपर्ट के. अरुमुगम कहते हैं कि इन सबका हल मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री दे सकते हैं। वह कहते हैं कि आखिरी मौकों पर लिएंडर पेस जैसे कई खिलाड़ी जीतते भी हैं। जानकार जिस बड़ी कमी का हल सिर्फ टीम में ढूंढने की कोशिश कर रहे है, कहीं उसकी वजह हमारे सिस्टम में तो नहीं...?

हिन्दुस्तानी हॉकी की ज़मीनी हकीकत आज भी यही है कि हमारे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पीड से भरी हॉकी खेलने के लिए तैयारी टर्फ पर नहीं कर पाते। ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर हॉकी खेलते हुए ये खिलाड़ी जब तक तैयार होते हैं, टर्फ में डाइव लगाने, स्पीड से गेंद को नियंत्रण करने जैसी कई खूबियों को अपनाने में देर कर चुके होते हैं। टर्फ की स्पीड का इस घास पर शायद ही कोई मुकाबला हो, लेकिन हॉकी से फिर भी उम्मीद तो बंधी ही रहती है।

भारत की इस साल की कामयाबी का असर किसी भी शहर के छोटे मैदानों पर देखा जा सकता है। टर्फ पर पहुंचने से पहले हॉकी घास के मैदानों के रास्ते ही अपने बेशुमार टैलेंट की वजह से बुलंदियों को छूती रही है। ध्यानचंद की स्टिक ने हॉकी में कामयाबी की गाथा लिखनी शुरू की, और भारतीय हॉकी टीम ओलिम्पिक में गोल्ड मेडल जीतती रही, मिथक बनते रहे। लेकिन टर्फ का ज़माना आते ही लेकिन भारतीय अधिकारी ज़मीनी हकीकत को भूल गए।

हिन्दुस्तान की हॉकी ज़मीन से ऊपर उठकर बुलंदियों को कैसे छुएगी, यह चाहे कितना भी बड़ा सवाल हो, लेकिन हॉकी लाखों खेलप्रेमियों के दिलों से जुड़ी है, इसलिए इस खेल से उम्मीदें भी बरकरार रहती हैं।

अब हॉकी के सपनों को ज़िन्दा रखने के लिए टीम में कई रोल मॉडल बन गए हैं। गोलकीपर श्रीजेश इस साल ज़बरदस्त फॉर्म में नज़र आए हैं, और केरल के इस 26-वर्षीय खिलाड़ी ने अपने प्रदर्शन से सबका दिल जीता है। जर्मन गोलकीपर निकोलस जैकोबी गोलकीपर भी श्रीजेश के कायल हो गए हैं, और कहते हैं कि श्रीजेश ने चैम्पियन्स ट्रॉफी में बेहतरीन गोलकीपर का खिताब जीता है, जिसके वह सही हकदार हैं।

इस टीम ने चैम्पियन्स ट्रॉफी में बेशक पोडियम पर जगह नहीं बनाई हो, लेकिन टीम पहले से बेहतर हुई है, ऐसा मानने में जानकारों को ऐतराज़ नहीं। ज़्यादातर जानकार टीम फिटनेस को मॉडर्न हॉकी का सबसे बड़ा हथियार मानते हैं। अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ सालों में टीम की फिटनेस पर खास ध्यान दिया गया है, इसलिए पूरे मैच के दौरान टीम आपको एक ही रफ्तार से अटैक और डिफेंस करती नज़र आती है।

जूनियर हॉकी टीम के कोच हरेंद्र सिंह कहते हैं कि भारतीय टीम की फिटनेस की वजह से अब टीमों का फासला घटने लगा है। कोच और पूर्व ओलिम्पियन जूड फिलिक्स भी मानते हैं कि टीम की फिटनेस का स्तर पहले से कहीं बेहतर है। ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ता बैरी डांसर भारतीय टीम को एक खतरनाक
टीम मानते हैं। उन्हें उम्मीद है कि यह टीम रियो ओलिम्पिक में और खतरनाक नज़र आएगी।

भारतीय टीम आखिरी मौकों पर तैयारी करती है, इसकी एक बड़ी मिसाल भुवनेश्वर में भी देखने को मिली। पूरे टूर्नामेंट के दौरान कोई भी भारतीय चयनकर्ता खिलाड़ियों का आकलन करता नज़र नहीं आया, जबकि ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ता बैरी डांसर अपनी टीम के साथ दूसरी टीमों की ताकत और कमियों का जायज़ा लेते रहे।

टीम की कामयाबियों का असर बाज़ार पर फिलहाल चाहे बड़ा नहीं दिख रहा हो, लेकिन बाज़ार की नज़र हॉकी के मैदान पर ज़रूर है। हाल में ही क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने 'रांची रेज़' नाम की टीम खरीदी है, और क्रिकेट कप्तान की लोकप्रियता का फायदा इस खेल को ज़रूर मिल सकता है। टीम अगर अपनी कामयाबी का सिलसिला जारी रखती है तो हॉकी फिर से नए स्टार पैदा कर सकती है।

अंतरराष्ट्रीय हॉकी परिषद, यानि एफआईएच के अध्यक्ष लियोन्द्रो नेग्रे कहते हैं, "मैं जबसे एफआईएच का अध्यक्ष बना हूं, भारत को स्ट्रैटेजिक पार्टनर मानता हूं... यहां हॉकी और बेहतर होगी... आप धैर्य रखें..."

मॉडर्न हॉकी में पेनल्टी कॉर्नर किसी भी टीम का अहम हथियार माना जाता है। भारत के पास तीन खतरनाक ड्रैग फ्लिकर हैं, लेकिन अहम मैचों में ये कितना असर छोड़ पाए हैं...? चैम्पियन्स ट्रॉफी के दौरान भारतीय टीम नाकाम रही तो उसकी एक बड़ी वजह पेनल्टी कॉर्नर में टीम का पिछड़ना भी रहा। सिर्फ चैम्पियन्स ट्रॉफी के दौरान भी भारत को 15 मौके मिले, जिनमें भारत ने सिर्फ चार गोल किए, जबकि 11 मौके गंवा दिए गए। बड़ी बात यह भी है कि भारतीय टीम यूरोपीय टीमों की तरह पेनल्टी कॉर्नर के बड़े मौके बनाने में नाकाम रही। यानि हमारे स्ट्राइकर ऐसा करने से चूकते रहे, इसलिए रूपिन्दरपाल सिंह, वी रघुनाथ और गुरजिंदर सिंह जैसे ड्रैग फ्लिकर होने के बावजूद टीम इंडिया चैम्पियन्स ट्रॉफी जैसे एलीट टूर्नामेंट में बड़ा मुकाम ढूंढती ही रही।

भुवनेश्वर में हुई चैम्पियन्स ट्रॉफी से ठीक पहले फिल ह्यूज के हादसे और मौत की खबर का असर हॉकी के मैदान पर भी दिखा। हॉकी से जुड़े ज़्यादातर लोगों ने माना कि सुरक्षा इंतज़ामों को बढ़ाने की ज़रूरत है। लेकिन कई जानकार यह भी मानते रहे कि पेनल्टी कॉर्नर की वजह से हॉकी का ग्लैमर अलग नज़र आता है। भारत के कप्तान सरदार सिंह और पाकिस्तान के कप्तान मोहम्मद इमरान मानते हैं कि हॉकी टर्फ पर सुरक्षा के इंतज़ाम बढ़ने चाहिए, लेकिन गोलकीपर श्रीजेश कहते हैं कि पेनल्टी कॉर्नर हॉकी का खास आकर्षण है, इसलिए इसके नियमों से ज़्यादा छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

भुवनेश्वर में चैम्पियन्स ट्रॉफी के दौरान फैन्स का लंबी कतार में लगकर टिकट लेना, टीम हारे या जीते, तालियां बजाकर खिलाड़ियों की हौसलाअफज़ाई करना इस बात का सबूत है कि फैन्स इस खेल की और भारतीय टीम को बुलंदियों पर देखना चाहते हैं। कुछ ऐसे भी फैन्स हैं, जो बरसों से टीम का साथ निभाते आए हैं, इस उम्मीद में कि हॉकी के सुनहरे दिन ज़रूर लौटेंगे।

कई जानकार इसका रास्ता भारत-पाक हॉकी के सहारे देखते हैं। पाकिस्तान के कोच शहनाज़ शेख कहते हैं कि यही एक रास्ता है, जिसके जरिये हॉकी ज़िन्दा हो सकती है।

हॉकी के अधिकारियों ने इस खेल से एमएस धोनी जैसे बड़े नामों को जोड़कर इसका रुतबा बढ़ाने की कोशिश की है। लेकिन 'चक दे' जैसी फिल्म के सात साल बाद भी हॉकी का बाज़ार कमज़ोर नज़र आता है तो उसकी वजहों को फौरन ढूंढने की ज़रूरत है।

खिलाड़ियों ने भी कई मौकों पर अपने प्रदर्शन से खेल को बुलंदियों पर पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन 1998 में बैंकाक एशियाड में भारत की जीत हो या दक्षिण कोरिया में 2014 में मिली जीत, जश्न का मौका पीछे छूट गया। विवाद हर बार हावी हो गए। कभी कोच का लफड़ा, कभी टीम का चुनाव, कभी मैच में टीम का लड़खड़ाना, कभी हॉकी सिस्टम में आपस का टकराव... कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जो टीम को बीमार करते रहे हैं, और उनका इलाज ढूंढने में जितना वक्त लगेगा, खेल पिछड़ता रहेगा।

क्या भारतीय हॉकी के पुराने दिन लौट आएंगे...? क्या हॉकी इंडिया और टीम सही दिशा में कोशिश कर रही है...? ये सवाल बरकरार हैं...

अब आंकड़ों में भारतीय हॉकी - 2014 में भारतीय टीम का प्रदर्शन

मैच खेले - 37
मैच जीते - 19
मैच हारे - 15
ड्रॉ किए - 3
गोल किए - 90
गोल खाए - 77
भारतीय टीम की ओर से सबसे ज़्यादा गोल - रूपिन्दरपाल सिंह (17)
भारत को पेनल्टी कॉर्नर के मौके मिले - 15
पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदला - 4
भारत के खिलाफ पेनल्टी कॉर्नर - 20
भारत के खिलाफ पेनल्टी कॉर्नर के जरिये गोल हुए - 3

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