कनार्टक विधानसभा चुनावों के नतीजे तो आ गए और खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ है. किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. बीजेपी 104 पर रुक गई, बहुमत से 8 सीट दूर है. कांग्रेस 78 पर, जेडीएस 37 पर और बसपा एक पर है. दोपहर तक हार से निराश कांग्रेस ने अचानक सबको चौंका दिया जब कांग्रेस ने बीजेपी को बहुमत से दूर हटता देख, मौके को भांप लिया और अपना पत्ता चल दिया. कांग्रेस ने जेडीएस के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश कर दी और कुमारस्वामी ने भी इसे स्वीकार कर लिया. दोनों के पास संख्या 116 है, बहुमत से 4 सीट ज्यादा. इससे पहले तमाम विश्लेषणों में दावे के साथ कहा ही जा रहा था कि सीटें कम होंगी तो जेडीएस के सहयोग से बीजेपी सरकार बना लेगी. यानी बीजेपी के लिए जेडीएस बुरी तो नहीं हो सकती है बस बुरा यह हुआ है कि जेडीएस कांग्रेस का प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है. चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी जेडीएस नेता देवेगौड़ा की तारीफ भी करते रहे, उनके अपमान का सवाल भी उठाते रहे, ऐसे में अब बीजेपी के लिए भी जेडीएस को बुरा कहना मुश्किल हो जाएगा.
मगर इसी जेडीएस को कांग्रेस ने चुनावों में आरएसस की बी टीम कहा था. दोपहर तक कांग्रेस जेडीएस की बी टीम हो चुकी थी. दिन की शुरूआत होते ही तस्वीर बताने लगी कि जेडीएस ने अपनी पकड़ तो बनाए रखी है मगर बीजेपी ने बहुमत की संख्या पर पहुंच कर उसकी भूमिका को खत्म कर दिया है. किंग मेकर और किंग को लेकर मज़ाक उड़ने लगा कि किंग मेकर घर पर ही बैठा रह गया और किंग कोई और बन गया. मैंने भी इस तरह की चुटकी ली और लगा. मगर कांग्रेस के प्रस्ताव के बाद कुछ देर के लिए किंग बनने जा रहे येदियुरप्पा भी सकपका गए होंगे जब यह देखा होगा कि किंग मेकर खुद कहीं किंग न बन जाए. फिलहाल कुमारस्वामी और कांग्रेस अब मिल चुके हैं.
बीजेपी हाथ में आई सत्ता को कैसे जाने दे, गोवा और मणिपुर में उसने सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को छका कर रोक दिया था, इस बार कांग्रेस ने बीजेपी को छका दिया. बीजेपी कांग्रेस की रणनीति के जवाब में अपनी चाल चलने लगी जबकि एक वक्त साफ बहुमत से उसकी सरकार बनती दिख रही थी. येदियुरप्पा मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे, राज्यपाल से मिलने चले गए.
बीएस येदियुरप्पाके साथ अनंत कुमार, सांसद शोभा करंदलाजे, राजीव चंदशेखर राजभवन मिलने गए. भाजपा प्रवक्ता ने बताया कि बीजेपी ने अपना दावा किया है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का मौका उसे मिलना चाहिए. बीजेपी प्रवक्ता ने बताया कि राज्यपाल ने हमारा दावा तो ले लिया मगर कोई तारीख नहीं दी. यह शाम साढ़े पांच बजे की बात है. येदियुरप्पा ने कहा कि सरकार सौ फीसदी बीजेपी की ही बनेगी. येदियुरप्पा भी कांग्रेस-जेडीएस की हर रणनीति का जवाब साथ का साथ दे रहे थे. कर्नाटक प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर, जे पी नड्डा और धर्मेंद्र प्रधान को बीजेपी ने बंगलुरु रवाना कर दिया. सुबह से रुझान में बीजेपी ने बढ़त ही नहीं बनाई बल्कि साफ बहुमत के करीब पहुंचने लगी. लेकिन अचानक सांप और सीढ़ी के खेल की तरह 99 पर पहुंच कर नीचे सरकने लगी. देखते देखते ढोल नगाड़े थम गए. बिहार में भी ऐसा हुआ था, बीजेपी ने पहले ही जीत का जश्न मना लिया लेकिन बाद में महागठबंधन की सरकार बनी. ये और बात है कि अब बिहार में जेडीयू और बीजेपी की सरकार है. नतीजे आने के साथ ही न्यूज़ फ्लैश होने लगा कि अमित शाह दोपहर तीन बजे प्रेस कांफ्रेंस करेंगे. बीजेपी के नेता अपनी जीत की प्रतिक्रिया में उत्साहित थे मगर सब कुछ ठंडा पड़ गया और वो सब होने लगा जिसे बाहर नहीं बताया जा सकता था.
जिस वक्त कांग्रेस पर अहंकारी होने, गठबंधन न करने के तोहमत मढ़े जा रहे थे उसी वक्त कांग्रेस के नेताओं ने अपनी रणनीति से सारा खेल बदल दिया. कांग्रेस के नेता देवेगोड़ा के घर पहुंचने लगे. फोन पर संवाद कायम बनने लगा.
कांग्रेस के अमीर विधायक डी के शिवकुमार एक निर्दलीय विधायक को लेकर पहुंच गए और कहा कि आलाकमान का जो भी आदेश होगा हम उसका पालन करेंगे. हम कर्नाटक में सरकार चाहते हैं. नागेश निर्दलीय जीते हैं जिन्हें कांग्रेस ने समर्थन दिया था. दूसरे निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस में रह चुके हैं. शिवकुमार ने दावा किया कि वे भी कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं. अगर कांग्रेस इन दो निर्दलीय विधायकों पर अपनी पकड़ बनाए रखती है तो फिर बीजेपी के लिए नंबर जुटाना और मुश्किल हो जाएगा. इन दो के सहारे कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की संख्या 118 हो जाती है. क्या ये निर्दलीय विधायक अपना पाला बदलेंगे या फिर कांग्रेस के साथ रहेंगे यह सब बहुत कुछ पर निर्भर करता है. इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि सिद्धारमैया और कुमारस्वामी बात कर रहे हैं. राजनीति में कुछ भी हो सकता है. देवेगौड़ा ने कभी कहा था कि मैंने सिद्धा को मौका दिया मगर उन्होंने मेरी पीठ में छुरा भोंक दिया. अब वही सिद्धा उनके बेटे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उनसे बात कर रहे थे. ये कमाल है कुर्सी और सत्ता का. गुलाम नबी आज़ाद, सिद्धारमैया, शिवकुमार और कुमारस्वामी राजभवन गए थे. सिद्धारमैया किनारे बैठे हैं जैसे मन मारकर कर बैठे हों. गुलाम नबी आज़ाद कुमारस्वामी के साथ ऐसे बैठे हैं जैसे वही कांग्रेस के नेता हों.
सबकी निगाह राज्यपाल वजूभाई वाला पर है. ऐसे वक्त में राज्यपाल पर ही निगाह होती है मगर राज्यपाल की निगाह किसी और को देख रही होती है कि उसका इशारा क्या है और क्या करना है. ये और बात है कि सबसे पहले येदियुरप्पा सरकार बनाने का दावा कर आए. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक ट्वीट कर अपना दबाव बनाना शुरू कर दिया. जब राष्ट्रपति के आर नारायणन ने 12 मार्च 1998 को जब अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, तब एक साफ और संवैधानिक मिसाल कायम कर दी थी. सुरजेवाला ने के आर नारायणन के पत्र के एक हिस्से का उदाहरण भी दिया जिसमें लिखा है कि 'जब कोई पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन की पार्टियों का स्पष्ट बहुमत नहीं है, तो राज्य का प्रमुख भारत में या कहीं भी पहला अवसर पार्टी और पार्टियों के समूह को दे जिसने सबसे ज़्यादा सीट जीती हो. जिसे एक निश्चित समय के भीतर सदन के पटल पर बहुमत साबित करने का मौका दिया जाए.'
क्या बीजेपी पार्टी तोड़ कर सरकार बनाएगी, बहुमत कहां से लाएगी. क्या बीजेपी इसके लिए कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों में सेंध लगाएगी, क्या देवेगौड़ा अपनी पार्टी को बचा सकेंगे. खबर है कि मायावती ने देवेगौड़ा को मनाने में भूमिका अदा की है. देवेगौड़ा और मायावती के रिश्ते उनके प्रधानमंत्री के समय से ही अच्छे बताए जाते हैं. देवेगौड़ा उनका काफी सम्मान करते हैं.
सुबह से कुमारस्वामी के घर पर सन्नाटा पसरा था मगर कांग्रेस का प्रस्ताव आते ही वहां की रंगत ही बदल गई. घर पर चहल-पहल बढ़ गई और ढोल नगाड़े उनके घर के बाहर बजने लगे. सिद्धारमैया ने दावा किया कि कांग्रेस और जेडीएस के पास नंबर है. इस बार बीजेपी को सफलता नहीं मिलेगी. राज्यपाल कानून के हिसाब से ही फैसला करेंगे. कुमारस्वामी ने भी कन्नड़ में बोलते हुए अपना पक्ष साफ किया.
कुमारस्वामी दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे. सिद्धारमैया भले ही दूसरी बार सीएम न बन पाएं हो मगर उनकी पार्टी के समर्थन से कुमारस्वामी दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंग. क्या इस खेल में कांग्रेस और जेडीएस मिलकर बीजेपी को मात दे पाएंगे या बीजेपी के पास अब भी ऐसे दांव हैं जिसका अंदाज़ा किसी को नहीं है. गोवा और मणिपुर का उदाहरण दिया जा रहा है.
बिहार में भी जब राजद से जेडीयू ने गठबंधन तोड़ा तब राजद को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते राज्यपाल ने नहीं बुलाया. मणिपुर गोवा का उदाहरण आपके सामने है ही. ऐसे उदाहरण बहुत हैं.
This Article is From May 15, 2018
कर्नाटक का सियासी नाटक जारी
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 16, 2018 14:22 pm IST
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Published On मई 15, 2018 23:29 pm IST
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Last Updated On मई 16, 2018 14:22 pm IST
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