प्राइम टाइम इंट्रो : अस्थायी शिक्षकों के भरोसे देश की शिक्षा व्‍यवस्‍था

हमारी राष्ट्रीय रचनात्मकता और उत्पादकता की धार को भोथरा करने का प्रोजेक्ट का नाम है यूनिवर्सिटी सिस्टम. भारतीय यूनिवर्सिटी में गाइड भले न मिले मगर गाइडलाइन्स ज़रूर मिलेगी.

प्राइम टाइम इंट्रो : अस्थायी शिक्षकों के भरोसे देश की शिक्षा व्‍यवस्‍था

अवैध खनन की मार झेलता गोड्डा कॉलेज, गोड्डा (फाइल फोटो)

यह यूनिवर्सिटी सीरीज़ का 20वां अंक है. मुझे पता है कि अब आपके लिए झेलना मुश्किल हो गया लेकिन यह सीरीज़ उन लाखों नौजवानों के लिए है जो इस सिस्टम को झेल रहे हैं, जब यही नौजवान कालेजों से निकलेंगे तो समाज और देश को झेलना मुश्किल हो जाएगा. हमारी राष्ट्रीय रचनात्मकता और उत्पादकता की धार को भोथरा करने का प्रोजेक्ट का नाम है यूनिवर्सिटी सिस्टम. भारतीय यूनिवर्सिटी में गाइड भले न मिले मगर गाइडलाइन्स ज़रूर मिलेगी. सबके पास गाइडलाइन्स हैं मगर किसी के पास लाइन लेंथ नहीं है. हिन्दी में गाइडलाइन को दिशानिर्देश कहते हैं. दिशार्निदेश जारी तो किए जाते हैं मगर वे किसी दिशा में नज़र नहीं आते हैं. यूजीसी ने एक गाइडलाइन बनाने के लिए कि कितने छात्र पर कितने शिक्षक होने चाहिए तो इसके लिए एक कमेटी बनाई. जेएके तारीन की अध्यक्षता में कमेटी बनी. 16 मार्च 2011 को प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो की प्रेस रीलीज़ में कहा गया है कि तारीन कमेटी ने सुझाव दिया है कि स्नातक, अंडर ग्रेजुएट कॉलेजों में साइन्स के 25 छात्रों पर एक शिक्षक होगा. सोशल साइन्स के 30 छात्रों पर एक शिक्षक होगा. पीजी साइन्स में 10 छात्रों पर एक शिक्षक होगा. पीजी सोशल साइन्स में 15 छात्रों पर एक शिक्षक होगा.

यही नहीं Institutions of Eminence के लिए यूजीसी ने गाइडलाइन बनाई है. यह वही है जिसका ज़िक्र प्रधानमंत्री ने पटना यूनिवर्सिटी के 100 साल होने पर किया था कि 10 प्राइवेट और 10 पब्लिक यूनिवर्सिटी को विश्व स्तरीय बनाया जाएगा ताकि दुनिया की 200 यूनिवर्सिटी में स्थान प्राप्त हो सके. ये रैंकिंग पर भी कभी अलग से बात करूंगा. एक नए किस्म का झुनझुना है. बहरहाल यूजीसी ने Institutions of Eminence के लिए जो गाइडलाइन बनाई है उसमें साफ साफ लिखा है कि किसी संस्थान को प्रतिष्ठित संस्थान घोषित करने की अधिसूचना जारी करते समय 1 शिक्षक पर 20 छात्र ही होने चाहिए और पांच साल में 10 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए.

अगर ये बात है तब तो फिर हर कॉलेज में यह अनुपात होना चाहिए ताकि छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सके. क्या यूनिवर्सिटी या कॉलेज में आने वाले छात्रों के पास यह सूचना होती है, क्या उनके उस फार्म या ब्रोशर पर लिखा होता है जिसे वे 1000 से 1500 रुपये देकर खरीदते हैं, क्या उस पर यह नहीं लिखा होना चाहिए कि आपका यहां स्वागत है, यूजीसी के हिसाब से तो हर छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए मगर हम 300 से 400 छात्रों पर एक शिक्षक देंगे. क्या यही कारण है कि क्लास में समझ नहीं आने पर छात्र रेखा गाइड, जसपाल गाइड और चैंपियन गाइड की शरण में जाकर पास होने की गति प्राप्त करते हैं. यह मज़ाक भारत के युवाओं के साथ ही हो सकता है, उन्हें पता नहीं चलता क्योंकि वे कान में ईयर पीस (ईपी) डाले लेटेस्ट सांग सुन रहे होते हैं. हमने इस सीरीज़ के दौरान देखा कि जयनारायण लाल मोहन लाल पुरोहित राजकीय महाविद्यालय, फलौदी में 1900 छात्र हैं मगर एक भी परमानेंट टीचर नहीं हैं. एसकेएम कॉलेज, बेगूसराय में 1200 छात्रों पर एक शिक्षक हैं. आर के कॉलेज, मधुबनी में 500 पर एक शिक्षक हैं. जैन कॉलेज, आरा में 180 छात्रों पर एक शिक्षक हैं. महाराजा कॉलेज, आरा में 270 छात्रों पर एक शिक्षक हैं.

आपने छात्र और शिक्षक का अनुपात देख ही लिया, सर पीटने की ज़रूरत नहीं है, इस संख्या के लिहाज़ से हर कॉलेज में शिक्षकों के मंज़ूर पदों की संख्या भी कई गुना हो जाएगी और नेट परीक्षा पास करने वाले योग्य उम्मीदवारों की लॉटरी खुल जाएगी. मगर भारत के शिक्षक बनने की योग्यता रखने वाले बेरोज़गारों की एक और खूबी है. वे भी नहीं चाहते हैं कि नौकरी मिले. उनमें से भी कइयों को मैं देखता हूं, ज्यादा समय हिन्दू मुस्लिम में लगे रहते हैं, नौकरी और रोज़गार की संभावना पर कम बात करते हैं. बिहार के बेगुसराय का एक कॉलेज श्रीकृष्ण महिला कॉलेज में साढ़े दस हज़ार छात्राएं पढ़ती हैं मगर यहां शिक्षकों के लिए मंजूर पदों की संख्या मात्र तीस है. जबकि होना चाहिए 350. इस तीस में से भी 9 ही लेक्चरर प्रोफेसर हैं. सोचिए हालात कितने गंभीर हैं, आप कहते हैं यूनिवर्सिटी बोझिल हो चुका है. हमारे सहयोगी सैय्यद मेराज़ ने बिहार के आरा के जैन कॉलेज के बारे में जो सूचना भेजी है, उसे सुनकर आप दस पूड़ी ज़्यादा खा लेंगे.

जैन कॉलेज आरा के गलियारे में बैठे ये बच्चे ग्रुप बनाकर पढ़ाई कर रहे हैं. कंपटीशन की तैयारी कर अपना रास्ता खुद खोज रहे हैं. आरा में आपको कॉलेज के खंडहरों के बीच इसी तरह छात्र समूह में पढ़ते मिल जाएंगे. इस तस्वीर को देख कर आप कह सकते हैं कि इनमें पढ़ने की इच्छा में कोई कमी नहीं है लेकिन इनकी प्रतिभा रेलवे के इम्तहान पास कर लेने तक ही सीमित रह जाती है. अगर इन होनहार छात्रों को मौका मिला होता, योग्य शिक्षक मिले होते तो ये क्या नहीं कर सकते थे. सरकारों ने इनके सपने कुचल दिए. इन्हें जाति और धर्म में बांट कर अधमरा कर दिया है. 1918 में हरप्रसाद दास जैन ने आदिनाथ ट्रस्ट की स्थापना की थी और आरा नगर में उच्च शिक्षा के प्रसार हेतु एक महाविद्यालय की स्थापना की इच्छा व्यक्त की. 1919 में इस काम के लिए 60,000 रुपये दान में भी दिए, सोचिए साल 1919 और रुपया 60,000 ताकि आरा में उच्च शिक्षा का प्रसार हो. उनके जीवन में कॉलेज नहीं बन सका तो 1942 में आदिनाथ ट्रस्ट ने फिर से 1 लाख 55 हज़ार रुपया दान दिया. हमारी सरकारों ने हरप्रसाद जैन जी के सपनों की भी हत्या कर दी है. गला घोंट दिया है. 1945 में डुमरांव महाराज श्री राम रणविजय प्रसाद ने आरा रेलवे स्टेशन के पास 21 बिगहा 10 कठ्ठा जमीन दी. आप दिल्ली से पटना रेल से जाएंगे तो बायीं तरफ जैन कॉलेज आरा दिखता है. लेकिन कितनों को पता है कि इस कॉलेज के बनने के सपनों को हमारे नेताओं ने हत्या कर दी. इसमें कुल 17 विभाग है जिसमें इंटरमिडिएट से लेकर पीजी तक की पढ़ाई होती है. इसमें शिक्षकों की कुल संख्या 132 होनी चाहिए जबकि मात्र 65 हैं.

एक सवाल बार बार उठता है कि जहां टीचर की संख्या इतनी कम है उन कॉलेजों को ग्रेड कैसे मिल जाता है. क्या नैक की ग्रेडिंग का कोई मतलब है, जैन कॉलेज आरा की कुछ इमारतों को नैक की टीम के चक्कर में तीन तीन बार रंगना पोतना पड़ गया. आखिर जहां 132 शिक्षक होने चाहिए, 65 ही हैं तो फिर उसे कोई भी ग्रेडिंग किस चीज़ की दी जा रही है, क्या आरा के नौजवानों को झांसा देने के लिए कि इसे बी ग्रेड हासिल है आप यहां एडमिशन लेते रहिए और फिर क्लास की जगह बरामदे में मुंडी गाड़कर रेलवे गार्ड की तैयारी करते रहिए. भारत सरकार को नैक सिस्टम की ही जांच करनी चाहिए कि यह सब हो क्या रहा है. नैक की टीम हर जगह जाने और ग्रेड देने के लिए फीस लेती है कॉलेज से.

जैन कॉलेज आरा में साढ़े ग्यारह हज़ार बच्चे पढ़ते हैं. इस संख्या के हिसाब से यहां शिक्षकों के लिए मंज़ूर पदों की संख्या 350 से 400 के बीच होनी चाहिए लेकिन मंज़ूर पदों की संख्या 132 ही है. इस 132 में से 65 शिक्षक ही हैं. यहां के पुराने प्रिंसिपल ने कॉलेज को काफी बर्बाद किया लेकिन जो नए आएं हैं वो काफी प्रयास कर रहे हैं जिसका कोई नतीजा नहीं है. प्राचार्य ने लिखित में दिया है कि यहां शिक्षक की भारी कमी है. आप जानते ही हैं कि भारत में किसी समस्या को लिखित में दे देना कितनी बड़ी बात होती है. जैन कॉलेज आरा के पूर्वी गेट पर ओपन मूत्रालय है. कॉलेज में शौचालय का इतना बुरा हाल है कि शिक्षकों को घर जाना पड़ता था, दरअसल आप समझ ही सकते होंगे कि वे भी ऐसे किसी पूर्वी गेट का ही सहारा ले लेते होंगे. शिक्षकों ने बताया कि नए प्रिंसिपल के आने के पहले तो आप कॉलेज के शौचालय का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते हैं, उन्होंने साफ सफाई पर ध्यान दिया है. प्रिंसिपल साहब समझ गए हैं कि शिक्षकों की भर्ती उनके बस की बात नहीं है इसलिए उन्हें बायोमेट्रिक सिस्टम पर ही सहारा है ताकि जो नहीं आते हैं वो तो आने लग जाएं.


जैन कॉलेज आरा के शौचालय की एक कहानी पता चली है. यहां लड़कियों के लिए शौचालय नहीं है जबकि यहां पांच से छह हज़ार लड़कियां पढ़ती हैं. लड़कियों के कॉमन रूम में शौचालय के लिए एक ही कमरा है जिसमें चार पांच शौचालय हैं. लड़कियों के लिए अलग से एक शौचालय और बना था लेकिन वो दो ढाई साल से बंद था. नैक की टीम के स्वागत की तैयारी के लिए जब कॉलेज ने उस शौचालय को खोला तो उसमें लड़कों के यूरिनल लगे थे. ऐसा घोटाला और कहां हो सकता है. फिर से उस शौचालय को बंद कर दिया गया ताकि कॉलेज की बदनामी न हो. आप सोचिए पांच हज़ार लड़कियों पर कुल पांच शौचालय हैं. जबकि 6 लड़कियों पर एक शौचालय होना चाहिए. क्या इस स्थिति में छात्राएं कॉलेज आती होंगी. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री राजकुमार सिंह आरा के ही सांसद हैं. मगर यह समझना होगा कि इस समस्या को बीस पचीस साल से पाला पोसा जा रहा है. आखिर आरा जो कि इतना ऊर्जावान शहर है अपने एक कॉलेज को क्यों नहीं संभाल सका. फिर आरा ज़िला घर बा, कौन बात के डर बा कहने का क्या मतलब है. उस साहस का क्या फल मिला शहर को.

महाराजा कॉलेज पहले जज साहब की कोठी के नाम से मशहूर थी. डुमरांव के महाराज कमल सिंह ने अपने पिता की याद में कॉलेज के लिए 25 बीघा ज़मीन दान में दी थी. इसकी कुछ इमारतें रंगी पुती हैं. मगर अंदर ये यह कॉलेज भी भारत की उच्च शिक्षा की निम्नतम स्थिति का आदर्श उदाहरण है. यहां दस हज़ार छात्र पढ़ते हैं. मैं तो सुनकर हैरान रह गया कि यहां इंटर से पीजी तक इतिहास विषय में 2500 छात्र पढ़ते हैं. किसी को पता लगाना चाहिए कि यहां इतिहास इतना लोकप्रिय क्यों है, क्या शिक्षक कमाल के हैं या फिर छात्रों को पता है कि भविष्य तो बर्बाद हो चुका है तो क्यों न जीते जीते जी इतिहास बन जाएं. 2500 छात्रों को इतिहास पढ़ाने के लिए इस कॉलेज में पूरे कॉलेज में एक ही स्थायी शिक्षक है. क्या आपको अब भी यूनिवर्सिटी सीरीज़ बोरिंग लग रही है. यहां पर एक स्थायी शिक्षक के भरोसे इंटर से पीजी के 2500 छात्र इतिहास पढ़ रहे हैं. तीन अस्थायी शिक्षक हैं जिन्हें वेतन नहीं मिलता है. 1997 से इन शिक्षकों को पैसा नहीं मिला है. यह सब सुनते हुए आपको क्या लग रहा है, आप नया इंडिया में है या गया इंडिया में हैं. 1997 से किसी को पैसा न मिले तो वो क्यों पढ़ाए या क्यों पढ़ा रहा है, क्या सिस्टम ने नौकरी की उम्मीद देकर इंसान से इंसान होने का हक छीन लिया है. 750 छात्र फिजिक्स ऑनर्स में है और 4 शिक्षक ही हैं. क्या यह सब देख सुनकर आपका कलेजा नहीं फटता कि 2500 छात्रों पर एक शिक्षक हैं. महाराजा कॉलेज में 82 पद मंज़ूर हैं मगर 37 शिक्षक ही हैं. छात्रों की संख्या के हिसाब से देखेंगे तो यहां शिक्षकों के मंज़ूर पदों की संख्या 300 से 400 होनी चाहिए मगर मंज़ूर पदों में भी घपला है. आप इस छात्र को सुनिये और सोचिए कि हमारी यूनिवर्सिटी सिस्टम ने नौजवानों की क्या हालत कर दी है.

बीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी के तहत ये दोनों कॉलेज आते हैं. बीर कुंवर सिंह की जयंती पड़ जाए तो सब मंत्री कार लेकर पहुंच जाएंगे और उनका वारिस बताने लगेंगे मगर उनके नाम पर बनी यूनिवर्सिटी की ये हालत है. कर्मचारी कह रहे हैं कि वे एपीएल से बीपीएल में चले गए हैं. सरकारों ने कॉलेजों की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया है. कोई नेता उच्च शिक्षा पर बहस नहीं करना चाहता है क्योंकि अब ये ठीक नहीं हो सकता है. कर्मचारियों की मांगें तीन सूत्री से शुरू कर ग्यारह सूत्री, सोलह सूत्री हो गई हैं. धरने मियादी से बेमियादी हो कर बेअसर हो चुके हैं. लोकतंत्र में लोक की दुर्दशा की प्रयोगशाला का नाम है यूनिवर्सिटी.

सेंट्रल यूनिवर्सिटी अजमेर की हालत को आंदोलन की पुरानी तस्वीरों के ज़रिए समझा जा सकता है. यहां के वीसी जब हर समस्या के जवाब में कहते थे कि मैं स्थाई नहीं हूं तो यहां सिंतबर 2015 में बकायदा स्थाई वीसी की मांग को लेकर छात्रों ने 14 दिनों की हड़ताल की. ए के पुजारी परमानेंट वीसी बनकर आ गए मगर समस्याएं भी स्थाई हो गईं. लिहाज़ा सितंबर 2016 में छात्रों ने फिर विरोध प्रदर्शन किया. वीसी ने सारी मांगें मानने का वादा कर दिया मगर छात्र संघ के चुनाव से मुकर गए. छात्र अड़ गए तो 50 से 60 आंदोलनकारी छात्रों को 15 दिनों के लिए रेस्टिकेट कर दिया गया. मार्च 2017 में मेस को लेकर जब छात्रों ने प्रदर्शन किया तो चार छात्रों को एक सत्र के लिए ही निकाल दिया. छात्र हाईकोर्ट गए, हाईकोर्ट ने कहा कि कॉलेज जाइये. इनमें से एक छात्र को अभी तक वापस नहीं लिया गया है. इस छात्र को कॉलेज के अंदर आने की मनाही है. क्या ये ज़्यादती नहीं है कि एक छात्र को कॉलेज में न आने दिया जाए, प्रदर्शन करने की इतनी बड़ी सज़ा दी जाए, फिर जिन कॉलेजों में टीचर नहीं हैं, पढ़ाई नहीं होती है उनकी सज़ा छात्र किसे दें. सुनील चोपड़ा को हास्टल से निकला दिया है.

जब छात्र आवाज़ नहीं उठाएंगे, धरना प्रदर्शन नहीं करेंगे तो हालात कैसे बेहतर होंगे. सेंट्रल यूनिवर्सि‍टी के रिसर्च स्कालर ने केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह को पत्र लिख कर कई बातों पर उनका ध्यान खींचना चाहा है. इसमें लिखा है कि वीसी आवास की लागत एक करोड़ 62 लाख से बढ़कर 2 करोड़ 25 लाख हो गई है. क्रिकेट मैदान की लागत 1 करोड़ 72 लाख से बढ़कर 3 करोड़ 75 लाख हो गई है. आज तक मैदान, पिच, प्रैक्टिस नेट कुछ भी तैयार नहीं हो सका है. सीएजी ने भी यहां दर्जनों अनियमितताओं को दर्ज किया है जिसे दबा दिया गया.

हमने वीसी को ईमेल किया मगर कोई जवाब नहीं आया. यूजीसी ने वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी बनाने के लिए जो गाइडलाइन बनाई है उसके अनुसार वहां एडहॉक टीचर नहीं हो सकते हैं. जब 20 कॉलेजों में एडहॉक या गेस्ट टीचर नहीं हो सकते हैं तो बीसों हज़ार कॉलेज में गेस्ट टीचर के भरोसे पढ़ाई कैसे चल रही है. दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज तो एडहॉक के भरोसे ही चल रहे हैं. 7 नंवबर को दिल्ली यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ वीसी ऑफिस के सामने धरना देने वाला है. 2009 से शिक्षकों को प्रमोशन नहीं मिला है. कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी का गठन नहीं हुआ है. यह सब दिल्ली विश्वविद्यालय का हाल है. 9 नवंबर से दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक टीचर भी आंदोलन करने वाले हैं. वीसी ऑफिस के सामने घेरा डालो, डेरा डालो आंदोलन होगा. यूनिवर्सिटी सीरीज़ जारी रहेगी. स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव का नाम आज भी यूपी की राजनीति में लिया जाता है मगर उनके नाम पर बने कृषि विश्वविद्यालय की भी हालत ख़राब है.

1975 में आचार्य नरेंद्र देव एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की इमारतें बाहर से देखने पर ठीक ठाक लगती हैं. शायद हमारे देखने का यही नज़रिया हो गया है कि बिल्डिंग और कैंपस ठीक है तो कॉलेज या यूनिवर्सिटी ठीक होगी. मगर जब हमारे सहयोगी प्रमोद श्रीवास्तव यहां गए तो पता चला कि यहां 42 विभागाध्यक्ष होने चाहिए थे मगर 32 ही हैं. प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर की कमी है. लैब की हालत बहुत खराब है. इस लैब को देख कर नहीं लगेगा कि किसी यूनिवर्सिटी का है. छात्रों ने बताया कि उनके हास्टल में शौचालय बहुत गंदा है. अमर उजाला की एक ख़बर के अनुसार नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय में भारी पैमाने पर घोटाले की शिकायत खुद वाइस चांसलर ने राज्यपाल से की है. राज्यपाल से जब यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कोई शिकायत नहीं मिली है. ऐसा अमर उजाला में छपा है.

संसाधनों की कमी है वरना इच्छा थी कि कृषि विश्वविद्यालयों पर गहराई से रिपोर्ट करता. इनकी हालत भी बहुत अच्छी नहीं है. हमारे सहयोगी अर्शदीप ने लुधियाना से बताया है कि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में 40 प्रतिशत टीचिंग और नॉन टीचिंग के पद ख़ाली हैं. यूनिवर्सिटी सीरीज़ के 18वें अंक में हमने दिखाया था कि गोड्डा के ललमटिया आदिवासी इंटर कॉलेज किस तरह गिरने के कगार पर है. इस कालेज के ठीक नीचे कोयला माफिया ने सुरंग बनाकर कोयला निकाल लिया है जिसके कारण कॉलेज की बुनियाद कमज़ोर हो गई है. जल स्तर गायब हो गया है. कॉलेज कभी भी भरभरा कर गिर सकता है. आस पास खदान में धमाके होने से छात्रों को प्रदूषण का भी सामना करना पड़ता है. छात्र यहां आते हैं तो मगर हाज़िरी बनाकर भाग जाते हैं, इस डर से कि कहीं इमारत न गिर जाए. हमारी स्टोरी का यही हुआ है कि छोटी मोटी राजनीति होने लगी है. 6 नवंबर को लोहड़िआ काली मंदिर में इस कॉलेज के छात्रों की एक पंचायत हुई जिसमें कांग्रेस की ज़िला अध्यक्ष दीपिका पांडेय सिंह पहुंची. विचार हुआ कि इस इस कॉलेज को की इमारत और ज़मीन के लिए मांग की जाएगी. छात्र पंचायत में माता पिता भी आए थे. प्रिंसिपल की भूमिका को लेकर भी सवाल उठे. यहां छात्रों ने वो बात भी बताई जिसका पता हमें नहीं था. उन्होंने कहा कि स्कॉलरशिप लेने से पहले रिश्वत देनी पड़ती है. दीपिका ने गोड्डा के कमिश्नर को पत्र भी दिया है. नेताओं को ऐसे कॉलेज के बारे में पहले से पता होना चाहिए. यह नहीं कि टीवी में आया तो प्रदर्शन करने के लिए तैयार हो गए. बीजेपी सासंद निशिकांत दुबे ने ईसीएल के अधिकारियों से बात की है और इस मुद्दे को उठाया है.


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