कवि से आम आदमी पार्टी के राजनेता बने डॉ कुमार विश्वास संभवतः पार्टी के भीतर अपनी राजनैतिक भूमिका के अंत तक पहुंच गए है, क्योंकि अब अरविंद केजरीवाल उनके उन संदेशों का भी जवाब नहीं दे रहे हैं, जिनमें वह अपने 12 साल पुराने साथ का हवाला देते हुए मुलाकात की ख्वाहिश जता रहे हैं. कुमार विश्वास द्वारा लगातार भेजे जा रहे संदेशों और फोन कॉलों को अरविंद केजरीवाल पिछले लगभग एक महीने से काफी दृढ़ता के साथ नज़रअंदाज़ करते आ रहे हैं.
यह दरार राज्यसभा की उन तीन सीटों के मुद्दे पर है, जो 'आप' को मिलना तय है, और जिनकी वजह से पार्टी के भीतर चल रहा घमासान उजागर हो गया है. डॉ कुमार विश्वास पहली बार NDTV के लिए मुझे दिए गए इंटरव्यू में इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से बोले थे, और तीन में से एक सीट पर दावा पेश किया था, खुद के लिए.
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अरविंद केजरीवाल का मानना है कि उनके और मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर पार्टी की स्थापना करने वाले कुमार विश्वास ने पार्टी में तख्तापलट की साज़िश रची थी, और वह (केजरीवाल) उस समय भी विचलित नहीं हुए, जब विश्वास ने अपने समर्थकों को 'आप' कार्यालय में तम्बू गाड़ने भेज दिया, जिनकी मांग थी कि पार्टी उनका आग्रह कबूल कर ले. विश्वास इस बात से काफी आहत महसूस करते हैं कि वह हमेशा 'ब्राइड्समेड' ही बने रहे, और कभी 'दुल्हन', यानी 'ब्राइड' बनने का मौका उन्हें नहीं मिला. उनका यह भी मानना है कि उनके मित्रों ने ही उन्हें नीचा दिखाया, जिन्होंने खुद के लिए 'खासे अच्छे' पद हासिल कर लिए.
बताया जाता है कि कुमार विश्वास से एक कदम आगे रहने की कोशिश में अरविंद केजरीवाल ने ये तीन सीटें 'जानी-मानी हस्तियों' को दिए जाने की पेशकश की, लेकिन काम नहीं बना. RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सार्वजनिक रूप से 'नहीं, शुक्रिया' कह डाला, और BJP के बागी नेताओं यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज टीएस ठाकुर, जाने-माने वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम, उद्योगपति सुनील मुंजाल तथा इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति की ओर से भी मिलते-जुलते जवाब ही आए, हालांकि वे कुछ 'चुपचाप' आए.
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'आप' की पेशकश को ठुकराने वालों में से एक ने मुझे नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर बताया कि उनका मानना है कि 'आप' की अपरम्परागत राजनीति पर वह अपनी साख को दांव पर नहीं लगा सकते. उन्होंने सवाल किया, "क्या होगा, अगर मुझसे सदन में (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी पर व्यक्तिगत हमला करने के लिए कहा जाएगा...?"
'इंकार' की इस झड़ी के बाद 'आप' नेता संजय सिंह का काम बन गया लगता है और वह अपने दस्तावेज़ तैयार कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दो बाहरी लोगों - चार्टर्ड एकाउंटेंट एनडी गुप्ता तथा पूर्व में कांग्रेस के साथ जुड़े रहे व्यवसायी सुशील गुप्ता - के नाम भी शॉर्टलिस्ट किए गए हैं. इससे 'आप' के कई वरिष्ठ नेताओं का संसद के उच्च सदन में पहुंचने का सपना चूर-चूर हो जाएगा, जिनमें पूर्व पत्रकार आशुतोष भी शामिल हैं, जिनका दावा काफी मजबूत माना जा रहा था. इस बात से पार्टी कैडर और विधायक भी नाराज़ हैं. 'आप' विधायक अल्का लाम्बा ने सोशल मीडिया पर खुलकर पूर्व बैंकर मीरा सान्याल का समर्थन करते हुए कहा था कि राज्यसभा सीट उन्हें मिलनी चाहिए. आशुतोष को लिस्ट से बाहर रखे जाने की सफाई पेश करते हुए 'आप' के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "हम आशुतोष को लोकसभा में भेजे जाने लायक सदस्य के रूप में देखते हैं..."
दिल्ली के मंत्री तथा दो अन्य विधायकों को केजरीवाल ने यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा है कि पार्टी विधायक दोनों बाहरी लोगों के पक्ष में ही मतदान करें. दरअसल, राज्यसभा में पहुंचने के इच्छुक एक शख्स द्वारा पिछले सप्ताह एक दावत दी गई थी, जिसमें 40 से ज़्यादा विधायकों ने शिरकत की थी.
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सूत्रों का कहना है कि डॉ कुमार विश्वास तथा अरविंद केजरीवाल के बीच दरार 'राष्ट्रवाद' के मुद्दे पर शुरू हुई थी. विश्वास के करीबी सूत्रों के मुताबिक उन्होंने (विश्वास ने) पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रश्नचिह्न लगाने तथा पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान 'खालिस्तानी तत्वों' को ढील देने के लिए केजरीवाल की खुलेआम आलोचना की थी. सूत्रों ने कहा कि इसके बाद विश्वास से पीछे रहने और पंजाब में प्रचार नहीं करने के लिए कहा गया. विश्वास अपनी इस छवि के लिए केजरीवाल के आसपास मौजूद 'कोटरी' को दोषी मानते हैं, और यह बात उन्होंने NDTV के लिए मुझे दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहा था कि केजरीवाल उनसे और जनता व कार्यकर्ताओं के बीच उनकी लोकप्रियता से साफ-साफ डर रहे हैं.
विश्वास अब लगभग 'अछूत' हो गए हैं, और पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता उनसे दूरी बनाए हुए हैं. उन्हें 'RSS एजेंट' बताया जाने लगा है, और उन्हें अब पार्टी सदस्यों की पुस्तकों के विमोचन समारोहों तक में नहीं बुलाया जाता है. विश्वास के करीबी तख्तापलट के आरोपों से साफ इंकार करते हैं, लेकिन लगता है कि उन पर कोई यकीन नहीं करता है.
विश्वास की वजह से पेश आई यह समस्या 'आप' के लिए 'कशमकश' की स्थिति पैदा कर रही है. निश्चित रूप से कुमार विश्वास को मात देने के लिए जानी-मानी हस्तियों को राज्यसभा में भेजे जाने का आइडिया लाया गया, लेकिन सभी जानी-मानी हस्तियां 'आप' से दूरी बनाए रखना चाहती हैं, यह सच्चाई साफ-साफ दिखाती है कि 'आप' द्वारा अपनाई गई राजनीति उन्हें कितना दूर तक ले जा सकती है.
विपक्ष की राजनीति में 'आप' एक पार्टी की हैसियत से कतई अलग-थलग पड़ चुकी है, और दिल्ली के चुनावों में 'आप' के हाथों बुरी तरह पटखनी खा चुकी कांग्रेस भी उनके साथ काम नहीं करना चाहती, और उन्हें BJP की 'टीम बी' कहकर पुकारती है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा वामदलों के एक हिस्से ने कांग्रेस से बात कर उन्हें मनाने के भरसक प्रयास किए, लेकिन काम नहीं बना. केजरीवाल की नाम ले-लेकर आरोप लगाने की आदत की वजह से अन्य पार्टियों के बड़े नेता हमेशा सशंकित रहते हैं, हालांकि केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले करना बिल्कुल बंद कर दिया है.
शुरुआती दिनों में 'आप' अपरम्परागत पार्टी के रूप में सामने आई थी, लेकिन कड़वाहट भरे माहौल में वरिष्ठ नेताओं प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव की विदाई और फिर विश्वास के लिए रास्तों का बंद हो जाना उन आलोचनाओं को बल प्रदान करता रहा, जिनमें केजरीवाल को ऐसा 'अधिकारवादी' नेता बताया जाता है, जो किसी अन्य ताकतवर नेता को हर्दाश्त नहीं कर सकता. इस बात से वे कार्यकर्ता नाराज़ हो गए, जो कुमार विश्वास के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं.
भले ही सतह पर सब कुछ शांत दिखाई दे रहा हो, और केजरीवाल का फरमान ही फिर लागू हो जाए, लेकिन यह भी लगता है कि अंदरूनी लड़ाई के फलस्वरूप 'आप'-स्टाइल के स्टिंग ऑपरेशन और सीडी कांड सामने आ सकते हैं.
विश्वास के गुट का कहना है कि जिस वक्त नवजोत सिंह सिद्धू ने BJP का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया था, विश्वास को BJP ने राज्यसभा सीट की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था. लेकिन अब इस सार्वजनिक अपमान के बाद बहुत-सी भद्दी सच्चाइयां सभी के सामने आएंगी.
आज होने जा रही अंतिम बैठक, जिसमें प्रत्याशियों के नामों को अंतिम रूप देकर सार्वजनिक किया जाएगा, के बाद कवि महोदय अपनी तकलीफों को लेकर जनता के पास जा सकते हैं.
भले ही केजरीवाल का पलड़ा भारी हो, लेकिन अब दोनों ही पक्ष अपना-अपना खेल खेलेंगे. 'जानी-मानी हस्तियों' ने तो इंकार करना ही था...
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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This Article is From Jan 03, 2018
अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास के बीच 'जंग' ले सकती है 'घमासान' का रूप
Swati Chaturvedi
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 03, 2018 11:44 am IST
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Published On जनवरी 03, 2018 11:44 am IST
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Last Updated On जनवरी 03, 2018 11:44 am IST
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