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This Article is From Jul 11, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : अमरनाथ यात्रियों पर हमला कश्मीरियत पर धब्बा लगाने की साज़िश?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 11, 2017 23:04 pm IST
    • Published On जुलाई 11, 2017 21:30 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 11, 2017 23:04 pm IST
अमरनाथ यात्रियों पर हमले के बाद की राजनीति ऊपरी स्तर पर कहीं ज़्यादा परिपक्व और संभली हुई है, लेकिन दूसरे दर्जे के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच इस घटना को लेकर प्रतिक्रियाएं सारी सीमाएं पार कर गई हैं. हम उस पर आयेंगे, लेकिन पहले घटना से जुड़े कुछ सवालों और पहलुओं पर नज़र डालना ज़रूरी है. बस ड्राइवर शेख सलीम गफूर भाई ने समझदारी न दिखाई होती तो आतंकवादी बस में सवार यात्रियों पर और कहर बरपा सकते थे. शेख सलीम गुजरात के वलसाड के राज अपार्टमेंट में रहते हैं और 8 साल से यात्रियों को लेकर अमरनाथ जा रहे हैं.

सलीम ने बताया कि आतंकवादी गोलियां चलाते रहे मगर उन्होंने बस रोकी नहीं. सिर झुकाकर 70-80 की रफ्तार से बस भगाते रहे. बाहर घना अंधेरा था और कुछ नहीं दिख रहा था. सेना का कैंप दिखा, तब जाकर बस रोकी. एक महिला ने भी कहा कि ड्राइवर इतना बहादुर था कि बस चलाता ही रहा. तीन तरफ से गोलियां चल रही थीं. उसने हम सबकी जान बचा ली. घटना के एक घंटे बाद रात साढ़े नौ बजे सलीम शेख ने अपने भाई को फोन कर सब कुछ बताया. जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शेख सलीम को 3 लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की है. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने कहा है कि वे केंद्र सरकार को लिखेंगे कि शेख सलीम को बहादुरी का मेडल दिया जाए.

बस का पंजीकरण हुआ था या नहीं. कल से अलग-अलग सूत्रों के हवाले से खबर आ रही थी कि बस अमरनाथ श्राइन बोर्ड से रजिस्टर नहीं है, वर्ना उसे सुराक्षा काफिले के साथ दोपहर बारह बजे ही जवाहर टनल पार करा दिया जाता. सलीम का कहना है कि बस का पंजीकरण हुआ था वर्ना यात्री दर्शन कैसे करते. 2 जुलाई को ही दर्शन हो चुका था और यात्री पर्यटन कर रहे थे. हमारे सहयोगी नज़ीर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बस ने सुरक्षा के छह नाके पार किये मगर उसे रोका नहीं गया. यह कैसे हो सकता है, खासकर तब जब वहां किसी भी मिनट आतंकवादी हमले की आशंका थी. सलीम ने यह भी बताया कि उसके साथ कुछ और बसें भी थीं मगर उसकी बस का टायर पंचर हो गया तो बसें आगे निकल गईं. पंचर ठीक होने के बाद सलीम अपनी बस लेकर आगे निकला तो हमला हो गया. रास्ते में कुछ जगहों पर दो तीन सुरक्षा कर्मचारी दिखे मगर संख्या कम थी इसलिए बस नहीं रोकी. कहीं बयान है कि अंधेरा इतना था कि कुछ दिख नहीं रहा था, कहीं बयान है कि दो तीन सुरक्षा कर्मचारी दिखे तो बस नहीं रुकी. इसलिए लगता है कि सलीम का बयान महत्वपूर्ण होते हुए भी यह चूक कैसे हुई, उसे पर आधिकारिक और अंतिम जवाब नहीं माना जाना चाहिए. इस सवाल का जवाब आना बाकी है कि बस किसके कहने से देर शाम श्रीनगर से रवाना हुई. क्या यात्रियों ने ज़ोर दिया, क्या यात्रियों को नहीं पता था कि जोखिम का काम है. राजीव रंजन का कहना है कि जम्मू कश्मीर की पुलिस मानती है कि शाम सात बजे के बाद हाईवे पर बस नहीं जा सकती थी. नियम ही नहीं है तो बस कैसे गई और जब गई तब नाके पर किसी ने बस को रोका क्यों नहीं. भले ही राम माधव चूक को परिभाषित करते रहें लेकिन उप मुख्यमंत्री भी मानते हैं कि सुरक्षा में चूक हुई है और इसकी जांच होनी चाहिए.

महाराष्ट्र के डहाणू से निर्मला ठाकुर भी यात्रियों में शामिल थीं. उनकी मौत हो गई. उनकी बेटी नीतू सिंह ने यात्रा आयोजक पर लापरवाही का आरोप लगाया है. इस घटना का देश भर में सभी समुदायों ने मिलकर विरोध किया है, लेकिन सोशल मीडिया पर कई लोग इस घटना के बहाने सांप्रयादिक उन्माद फैलाने का जो प्रयास हुआ है, उसका भी अलग से अध्ययन करना चाहिए. घटना को लेकर गुस्सा और प्रतिक्रिया की आड़ में ज़िम्मेदार व्यक्ति सुरक्षा को लेकर सवाल नहीं कर रहे थे, कश्मीर की नीतियों की नाकामी को लेकर सवाल नहीं कर रहे थे, उन लोगों पर सवाल कर रहे थे जिनका इस घटना से लेना-देना नहीं था और जो पूर्व की हिंसात्मक घटनाओं की निंदा करते रहे हैं. इसी की चपेट में आकर एक महिला ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह के ट्विटर पर अभद्र भाषा में उनसे कह दिया कि कश्मीरियत की परवाह किसे है. आपका काम तुष्टीकरण नहीं है. उन कायरों को खींच कर भून दीजिए. तो इस पर गृहमंत्री ने चुप्पी नहीं साधी और न ही घुमा फिरा कर जवाब दिया. उन्होंने कहा, मिस कालरा, ये मेरा काम है कि मैं देश के हर हिस्से में शांति और सद्भाव बनाऊं, सभी कश्मीरी आतंकवादी नहीं होते हैं.

पब्लिक स्पेस में राजनाथ सिंह का यह जवाब एक शानदार उदाहरण है. उन्होंने राजीनति की परवाह न करते हुए अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी साफ शब्दों में बता दी कि गृहमंत्री का काम है सबकी चिंता करना और सबकी सुरक्षा करना. उन्होंने यह भी कहा कि सभी कश्मीरी आतंकवादी नहीं होते हैं. मिस कालरा भी राजनाथ सिंह की शालीनता के आगे शर्मसार हो गईं और उन्होंने अपना ट्वीट डिलिट कर लिया. इसके लिए मिस कालरा की भी तारीफ की जानी चाहिए कि वे गृहमंत्री की बातों को समझ गईं. उमर अब्दुल्ला भी राजनाथ के इस जवाब के कायल हो गए और लिखा कि शानदार राजनाथ जी, आपने मुझे मुरीद बना लिया, मैं आपको सलाम करता हूं. आज आपके नेतृत्व के लिए शुक्रिया.

कश्मीर में इस घटना का विरोध वहां के हर स्तर के नेताओं ने किया है. मीर वाइज़ उमर फारूक़, सैयद गिलानी और यासिन मलिक ने साझा बयान जारी कर इस घटना की निंदा की है. कहा है कि यह घटना कश्मीरियत के खिलाफ है. अमरनाथ यात्रा सदियों से शांति से पूरी होती रही है. हमारी संवेदनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ है. श्रीनगर में टूर एंड ट्रैवल्स चलाने वालों ने भी प्रदर्शन कर इस घटना की निंदा की है. दिल्ली में जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी के गेट पर शिक्षकों ने भी मोमबत्ती जलाकर अपनी संवेदना प्रकट की और जंतर मंतर पर नॉट इन माइ नेम वाले फिर जमा हो गए. घटना के दसवें मिनट से ही लोग लिखने लगे कि कहां हैं नॉट इन माई नेम वाले. क्या अब वे प्रदर्शन करेंगे जब हिन्दू भाई मरे हैं. वो यह भूल गए कि नॉट इन माई नेम की तख्ती लेकर लोग भीड़ की हिंसा के खिलाफ उतरे थे. बीजेपी के नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हाराव भी शामिल हो गए. जीवीएल को राजनाथ सिंह का ट्वीट संभाल कर रख लेना चाहिए. उन्होंने ट्वीट किया कि अमरनाथ हत्या पर क्या नॉट इन माई नेम गैंग विरोध कर रहा है या ये विरोध प्रदर्शन सिर्फ अख़लाक़ों, जुनैदों और पहलू ख़ान के लिए होते हैं, भगवान शिव के भक्तों के लिए नहीं. जीवीएल के इस ट्वीट का क्या मतलब है. घटना के तुरंत बाद निंदा की जगह परनिंदा होने लगी. कोई इसके लिए बुद्धिजीवियों को ज़िम्मेदार ठहराने लगा तो कोई हाल ही में भीड़ की हिंसा के ख़िलाफ हुए नॉट इन माई नेम प्रदर्शनों को टारगेट करने लगा. नॉट इन माइ नेम को कोसा जाने लगा कि क्या अब वे अमरनाथ के हिन्दू यात्रियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेंगे. ऐसे लोगों के सामने एक समस्या थी अगर वो खुद प्रदर्शन करने उतरते तो उन्हें अपने पसंद की सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी करनी पड़ती, लिहाज़ा वो उन्हें टारगेट करने लगे जो प्रदर्शन करने लगे. एक तरह से ये लोग नॉट इन माइ नेम को सिर्फ टारगेट नहीं कर रहे थे, बल्कि उनसे उम्मीद कर रहे थे कि वे सड़कों पर आएं और प्रदर्शन करें.

जिस तरह से इस कैंपेन को टारगेट किया गया है लगता है कि अब कोई विरोध तब तक विरोध नहीं माना जाएगा जब तक नॉट इन माई नेम की तख्ती लेकर प्रदर्शन नहीं होगा. यह उनकी बड़ी कामयाबी है. इस खेल में चालाकी हो रही थी. कश्मीर की नीति, वहां की चुनौतियां, नाकामी पर सवाल नहीं हो रहे थे, सुरक्षा में चूक को लेकर सवाल नहीं हो रहा था, किसी की जवाबदेही को लेकर सवाल नहीं हो रहा था, इस्तीफे की बात नहीं हो रही थी, बात हो रही थी नॉट इन माइ नेम वालों की. यह बेहद चालाक तरीका है ज़िम्मेदारी के सवाल को कहीं और शिफ्ट कर देना. तुम कहां थे, तब बोले तो अब बोलो. किसी को यह पूछना चाहिए था कि जब जम्मू कश्मीर के पुलिसकर्मियों की मौत होती है तो उनके लिए कौन निकलता है, क्या वो लोग प्रदर्शन करने गए थे जो नॉट इन माई नेम वालों को खोज रहे हैं. इस तू तू मैं मैं का कोई मतलब नहीं है. वैसे मंगलवार दोपहर खबर आने लगी कि नॉट इन माई नेम के आयोजकों ने नागरिकों से अपील की है कि वे जंतर मंतर पर आएं. हृदयेश जोशी जंतर मंतर पर थे. वहां जमा हुए लोगों में कश्मीर के भी थे और पत्रकारिता के महापुरुष गणेश शंकर विद्यार्थी के गांव से भी कोई आ गया था.

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