आजकल क्रिकेट में राजनीति इतनी हावी हो गई है कि ऐसा लगने लगा है क्रिकेटरों को नहीं, बल्कि राजनेताओं को क्रिकेट खेलना चाहिए। क्रिकेट को चलाने वाले क्रिकेटर नहीं, ज्यादा से ज्यादा राजनेता हैं। कई राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी राजनेता हैं। कहीं ऐसा समय न आ जाए कि क्रिकेट टीम में भी राजनेताओं के लिए जगह रिज़र्व रखनी पड़े?
पिछले कुछ सालों से जिस तरह शिवसैनिक क्रिकेट को राजनीति से जोड़ रहे हैं, यह भी चिंता की बात है। पहले पाकिस्तान की टीम को मुंबई में खेलने से रोक रहे थे, अब तो पाकिस्तान के अंपायर अलीम दार को धमकी दी गई है कि वह भारत-दक्षिण अफ्रीका मैच में अंपायरिंग न करें। इस वजह से आईसीसी ने उन्हें इस मैच में अंपायरिंग से हटा दिया है। मुंबई में होने वाली पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और बीसीसीआई की मीटिंग भी शिवसैनिकों की वजह से रद्द करनी पड़ी। हो सकता है कि शिवसैनिक यह फरमान भी जारी कर दें कि महाराष्ट्र का कोई भी खिलाड़ी पाकिस्तान टीम के खिलाफ मैच न खेले, फिर पाकिस्तान और भारत के बीच होने वाले किसी भी मैच को महाराष्ट्र के दर्शक न देखें।
क्या देशभक्ति का मतलब यही है कि हम क्रिकेट को राजनीति की चश्मे से देखें और राजनीति करें? क्या ऐसा करने से हमारी देशभक्ति बढ़ जाती है? यह पहली बार नहीं है कि शिवसैनिक ऐसी हरकत कर रहे हैं। वर्ष 1991 में शिवसैनिकों की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच मुंबई में होने वाला टेस्ट मैच रद्द करना पड़ा था, 1999 में शिवसैनिकों ने दिल्ली के फ़िरोज़ शाह स्टेडियम की पिच को भी खोद डाला था। शिवसैनिकों के विरोध के वजह से किसी भी पाकिस्तानी खिलाड़ी को आईपीएल में जगह नहीं मिली। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच रद्द करना पड़ा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट रिश्ता काफी पुराना है। आज़ादी के बाद दोनों देशों के बीच कई मैच खेले गए हैं। क्रिकेट को राजनीति से हमेशा दूर रखने की कोशिश की गई है। दोनों देश के बीच मुंबई में भी तीन टेस्ट मैच खेले जा चुके हैं। आज़ादी के बाद पहली बार पाकिस्तान टीम ने अक्टूबर 1952 में भारत का दौरा किया था और पांच टेस्ट मैच खेले थे। इसमें से एक मैच मुंबई में भी खेला गया था जिसमें भारत को जीत मिली थी। फिर 1955 में भारत ने पाकिस्तान का दौरा किया और पांच टेस्ट मैच खेले।
दोनों देशों के बीच यह सिलसिला फरवरी 1961 तक चलता रहा। तनाव की वजह से 1961 से 1977 तक कोई भी टेस्ट मैच नहीं खेला जा सका था। ऐसा लग रहा था कि शायद दोनों देशों के बीच क्रिकेट का रिश्ता ख़त्म हो गया, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की कोशिश से 1978 में भारतीय टीम ने पाकिस्तान का दौरा किया और तीन टेस्ट मैच खेले। वाजपेयी उस वक़्त मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री थे। फिर अगले साल पाकिस्तान टीम ने भारत की दौरा किया और छह टेस्ट मैच खेले। इसमें से एक मैच मुंबई में भी खेला गया था और भारत ने इसे 131 रन से जीता था। इतना ही नहीं, 1999 की कारगिल लड़ाई के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट रिश्ता लगभग ख़त्म हो गया था। फिर अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की कोशिश की वजह से भारतीय टीम ने पाकिस्तान की दौरा किया और तीन टेस्ट मैच की सीरीज 2-1 से जीतकर आई।
क्या विरोध करने से पाकिस्तान सुधर जायेगा और सीमा पार आतंकवाद बंद कर देगा? अगर ऐसा होता तो अब तक सीमा पार आतंकवाद बंद हो गया होता। भारत ने अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश की है कि राजनीति को क्रिकेट से दूर रखा जाए। क्रिकेट के जरिये दोनों देशों को करीब लाया जा सकता है। कई बार देखा गया है कि जब दोनों देश तनाव की वजह से बातचीत के लिए तैयार नहीं होते थे, तब क्रिकेट को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करके बातचीत के लिए मनाया जाता था। क्रिकेट को राजनीति के चश्मे से नहीं बल्कि राजनीति को क्रिकेट के चश्मे से देखना चाहिए।
This Article is From Oct 22, 2015
सुशील महापात्रा : क्रिकेट को राजनीति के चश्मे से नहीं, राजनीति को क्रिकेट के चश्मे से देखें
written by sushil mohapatra
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 22, 2015 17:33 pm IST
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Published On अक्टूबर 22, 2015 16:03 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 22, 2015 17:33 pm IST
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