राजसत्ता बनाम धर्मसत्ता : डेरा प्रकरण का सीधा प्रसारण और कुछ नए पहलू...

देश भर से आकर डेरे के बाहर डेरा डाले डेरा भक्त सिर्फ भक्त ही नहीं बल्कि जिस तरह से जागरूक दिख रहे हैं यह अभूतपूर्व है.

राजसत्ता बनाम धर्मसत्ता : डेरा प्रकरण का सीधा प्रसारण और कुछ नए पहलू...

राजसत्ता बनाम धर्मसत्ता : आखिर किसका प्रभुत्व? कुछ और पहलू...

नई दिल्ली:

राजसत्ता और धर्म सत्ता के बीच की जटिलताओं का एक भरा पूरा राजनीतिक इतिहास है. अब तक यह राजनीतिक चिंतन का ही विषय था लेकिन डेरा प्रकरण ने इसे न्यायिक क्षेत्र का विषय भी बना दिया. अब तक यह गंभीर विषय माना जाता था लेकिन इस प्रकरण से इसमें रोचकता का तत्व भी आ गया. रोचक इसलिए क्योंकि सिरसा और पंचकूला से डेरा प्रकरण का जो सीधा प्रसारण देखने सुनने को मिल रहा है उसमें नाटयशास्त्र के लगभग सारे अंग एकसाथ दिख रहे हैं. आमतौर पर शांत और रौद्र रस एक साथ देखने को नहीं मिलते लेकिन यहां दोनों गुंथे गए. वैसे बाकी और सात रसों से भरपूर इस प्रकरण में राजनीतिक ज्ञान विज्ञान और शिक्षा का पाठ भी भरपूर है. आइए सोचें कुछ पहलू...

 पढ़ें : पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में 72 घंटे के लिए मोबाइल और इंटरनेट सेवा बंद

राजसत्ता बनाम धर्मसत्ता
किसका प्रभुत्व? यह राजनीतिक चिंतन पुराना है. ज्यादातर देशों में अस्वीकृत भी है. लेकिन अनिर्णीत है. खासतौर पर एक बात को लेकर कि व्यवस्था में प्रभुत्व किस का रहे लेकिन डेरा प्रकरण में एक नई बात है. वर्तमान परिस्थितियां दोनों सत्ताओं के बीच समन्वय का दृश्य प्रस्तुत कर रही हैं. और मान लें कि न्याय के प्रति दोनों में सम्मान का भाव है तो क्या यह नहीं दिख रहा है माननीय न्यायालय राजसत्ता से कह रहा है कि डेरा भक्तों को हटाइए और सरकार कह रही है कि हम बल प्रयोग नहीं करेंगे बल्कि निवेदन का उपाय अपनाएंगे जो पिछले बीस घंटो से कारगर नहीं हो रहा है. सरकार पिछले 20 घंटे से आश्वस्त करती चली आ रही है कि हालात काबू में हैं. न्यायालय कह रहा है कि फैसला सुनाने लायक हालत बनाइए. न्यायालय का कहना है कि प्रशासन धारा 144 के अपने एलान को लागू क्यों नहीं कर पा रहा है. इस सवाल का जवाब उसे अदालत में देना पड़ेगा.

धारा 144 के रोचक दृश्य
देश भर से आकर डेरे के बाहर डेरा डाले डेरा भक्त सिर्फ भक्त ही नहीं बल्कि जिस तरह से जागरूक दिख रहे हैं यह अभूतपूर्व है. देश के तेजतर्रार मीडिया का जबाव देने में डेरा भक्तों ने चतुर और दबंग पत्रकारों को भी लाजवाब कर दिया. मसलन एक पत्रकार पूछ रहा था आप यहां कब से हैं? उसका जवाब था जन्म से. दूसरे का जबात था यह हमारा घर है हम तो यहीं के हैं. पुलिस से मीडिया का सवाल था कि 144 के बाावजूद इतने हजार या लाख लोग जमा कैसे हो गए? उसका जवाब था चार की पाबंदी है लेकिन दो-दो तीन-तीन करके आ गए. सीमाएं सील थीं फिर बसें और दूसरे वाहन  कैसे आ गए? इसका जवाब यह कि समर्पित भक्त है मीलों पैदल चलकर आ गए. अदालती आदेश के बाद उन्हें हटाया क्यों नहीं जा पा रहा है. जवाब कि हम बल प्रयोग नहीं करेंगे. इस तरह 144 का मतलब क्या? इसका जवाब ये कि भीड़ शांत है तो इसकी क्या ज़रूरत. अन्ना आंदोलन की नज़ीर हाज़िर है. किसी ने बात नहीं कि धारा 144 एहतियात की है. भीड़ जमा होने से रोकने की है ताकि अफे- दफे हो ही न पाए. यहां सरकार की मुद्रा यह कि कोई अफे दफे नहीं होने जा रही. और जब होगी तो हम उसके लिए तैयार हैं लेकिन मामला कानून के पालन का तो बन ही गया. बहरहाल, आगे से क्याा हुआ करेगा ये आगे देखा जाएगा.

पढ़ें- गुरमीत राम रहीम ने अपने अनुयायियों से की शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील

भक्तों का गजब का साहस
यहां सवाल यह है कि यह साहस आता कैसे है और आता कहां से है. अपराधशास्त्रीय पर्यवेक्षण है कि विधि निरेपेक्षता या निर्भयता का यह भाव एक संदेश से आता है? जितने भी ऐतिहासिक धरने प्रदर्शन हुए हैं या होने दिए गए हैं उसमें एक बात पाई गई है कि यह चर्चा कराई जाए कि अंदर की बात है पुलिस हमारे साथ है. अन्ना प्रकरण में इसका चमत्कारिक प्रयोग हुआ था. चारों तरफ से लोग अनशन का फंक्शन देखने पहुंचने लगे थे. समीक्षाधीन प्रकरण में एक अतिरिक्त लक्षण है कि सरकार भी हमारे विरोध में नहीं है.अपने गुरू की रक्षा में लाखों लोगों के चले आने में धर्म का तत्व तो है ही है। यानी जिन्हें इतनी भीड़ जमा होने में वाकई आश्चर्य होता हो या जो आश्चर्य का दिखावा करते हों उन्हें आश्चर्य होना नहीं चाहिए.

बाबा, सरकार, पुलिस, मीडिया और अदालत
सरकार ने बाबा से निवेदन किया कि अदालती फेसला सुनने के लिए हैलिकोप्टर से चलिए लेकिन बाबा ने इनकार कर दिया और कार के बड़े काफिले के साथ सड़क से जाने को पसंद किया. मुसलसल मुस्तैद और तैनात होने के बावजूद मीडिया वह दृश्य कैद ही नहीं कर पाया कि बाबा कब अपने आवास से निकले, न यहे रिकॉर्ड कर पाया कि उनके काफिले को कहां कहां रोक रक छोटा किया गया. दृश्य की बजाए यह सूचना उसने सिर्फ बोलकर दी. सरकार और पुलिस अदालत में पेश करने के लिए अपनी मुस्तैदी के सबूत बनाने में लगी रही कि हमने आपके आदेश के मुताबिक हालात पर लगातार नज़र बनाए रखी.
  
किस स्तर का प्रकरण है यह
अभी भारतीय मीडिया में इसका आकलन शुरू नहीं हुआ है लेकिन इस समय इस रोचक और गंभीर प्रकरण का सीधा प्रसारण दुनिया के सारे देश देख रहे हैं. इनमें रोचक प्रकरण मानकर चलने वाले सामान्य दर्शक तो होंगे ही लेकिन अपने अपने धर्मों की सत्ता के प्रभुत्व के आंकाक्षी भक्त भी होंगे और राजनेता और राजनीतिक चिंतक भी होंगे. इस तरह प्रसारण के लिहाज़ से ये प्रकरण  विश्वव्यापी साबित होता है. भले ही दुनिया में इस समय इस तरह के प्रकरणों का राजनीतिक आगा-पीछा सोचने का माहौल बिल्कुल भी नहीं बचा हो लेकिन राजनीति विज्ञान के विद्वान और शोधछात्र सोचे बगैर रह नहीं पा रहे होंगे.


सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com