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This Article is From Feb 28, 2018

श्रीदेवी मृत्यु प्रकरण :  48 घंटे के सस्पेंस का मौका क्यों बना ?

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 28, 2018 00:06 am IST
    • Published On फ़रवरी 28, 2018 00:05 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 28, 2018 00:06 am IST
श्रीदेवी मृत्यु प्रकरण में आखिर मामला खत्म होने की खबर आ गई. लेकिन देश दुनिया में इस दौरान रहस्य और सनसनी फैलती रही. क्या इस स्थिति से बचा जा सकता था? इस मामले ने क्या हमें इतना जागरूक कर दिया है कि आगे ऐसे किसी मामले में हम फिजूल की सनसनी और विवादों में नहीं उलझा करेंगे.

संशय कहां से शुरू हुआ
मृत्यु क्योंकि अस्वाभाविक थी. दुबई के होटल के कमरे में विदेश की प्रसिद्ध अभिनेत्री की मौत हुई थी, इसलिए जांच पड़ताल होनी ही थी. पोस्टमॉर्टम होना ही था, साथ में दूसरे रासायनिक परीक्षणों के लिए नमूने लेकर उन्हें सुरक्षित रखना जरूरी था, लेकिन यह इतनी देर का तो नहीं था कि दुबई, भारत और पूरी दुनिया के मीडिया को अटकलें लगाने की छूट मिलती. पोस्टमॉर्टम हो चुका था. उसकी रिपोर्ट में लिखा जा चुका था कि मौत दुर्घटनावश डूबने से हुई, लेकिन साथ में जब यह भी कहा गया कि मृतक के खून में एल्कोहल के अंश भी मिले हैं तो आगे की जांच की गुंजाइश बन गई.

इससे संशय खड़ा हो गया और पोस्टमॉर्टम के बाद शव को पब्लिक प्रोसीक्यूशन डिपार्टमेंट को सौंपा गया. उससे 24 की बजाए 48 घंटे लग गए. बस इसी देरी ने मीडिया को अटकलें लगाने का मौका दे दिया. पुलिस जांच क्या बाद में भी शुरू हो सकती थी. बेशक पुलिस की जांच बाद में भी शुरू हो सकती थी. कम से कम मौतों के मामले में पोस्टमॉर्टम और दूसरे नमूने रख लेने के बाद परिवार को शव जल्द से जल्द सौंपने का चलन है, लेकिन यहां मामला विदेशी नागरिक की मौत का था. लिहाजा शव सौंपने के पहले परिवार के लोगों के बयान और उनसे भविष्य में सहयोग करने का भरोसा लेना भी जरूरी था. यह देखना भी जरूरी था कि किसी और तरह की जांच के लिए नमूने लेने की जरूरत तो नहीं है. इसीलिए और देर लग गई. हालांकि देर लगने से भी उतनी दिक्कत नहीं हुई, बल्कि झंझट इस बात से खड़ी हुई कि मीडिया बार बार यह सूचना देता रहा कि आज शाम को शव मिलेगा, कल सबेरे मिलेगा, फिर शाम तक, उसके बाद अगले दिन सबेरे. 

ऐसे में लोगों में यह संशय बढना कौन सी हैरत की बात है कि इस मामले में कोई रहस्य है, जबकि अब पता चल रहा है कि ऐसे मामलों में इतना वक्त तो लग ही जाता है. इसे शुरू से ही बता कर रखने में अड़चन क्या थी? पहले से ही हो सकता था देरी का एलान ये समझना आसान था कि देर हुई तो संशय और रहस्य की बातें पैदा होंगी. इसे दूर करने के लिए यह एलान किया जा सकता था कि एक दिन लग जाएगा. यह भी बताया जा सकता था कि एक सेलिब्रिटी की मौत का मामला है सो सारे संशय को दूर करने के बाद ही शव को सौंपा जाएगा. वैसे भी लगभग हर मामले में इस तरह की प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही मृतक का शव परिवार को सौंपा जाता है. लेकिन इसमें दिक्कत यह आई होगी कि फिर यह भी बताना पड़ता कि कौन-कौन से संशय दूर करने की प्रक्रिया चल रही है.

जाहिर है किसी मृत्यु की जांच में स्वाभाविक, दुर्घटनावश, हत्या और आत्महत्या के पहलुओं की जांच होती ही है. तो इन चारों संभावनाओं का जिक्र करना ही पड़ता और वहीं से मीडिया में सनसनी फैलना शुरू हो जाती है. इसीलिए आमतौर पर पुलिस या फॉरेंसिक विज्ञानी किसी मामले में तुरंत ही कोई सूचना देते नहीं हैं. दुर्घटनावश मौत के मामलों में भी देखे जाते हैं दूसरे संशय दुर्घटनावश मौत के मामलों में भी हत्या और आत्महत्या के संशय को दूर करने के लिए विशेषज्ञों को कई परीक्षण करने पड़ते हैं.

इन परीक्षण के होने की सूचना जन सामान्य तक पहुंचने से आजकल यह अंदेशा रहता है कि मीडिया फौरन ही एलान करने लगता है कि अरे हत्या का मामला लग रहा है. अरे आत्महत्या का लग रहा है, वगैरह वगैरह. इससे तरह-तरह की बातें होने लगती हैं. यह मामला तो फिल्मी दुनिया के मशहूर परिवार का मामला था तो प्रशासन की तरफ से हत्या या आत्महत्या के संशय को दूर करने की बात करना भी मुश्किल था. लेकिन यह बचाव तब ही संभव था जब पोस्टमार्टम और बाद की कार्यवाहियों को जल्दी निपटा लिया जाता या कम से कम ये बता दिया जाता है कि दुर्घटनावश हुई इस मौत के मामले में कानूनी खानापूरी भी जरूरी है और इसमें इतना समय लग जाता है. खैर जो हो चुका उसे अनहुआ करने का इंतजाम नहीं है, लेकिन आगे से इसका ध्यान रखने का सबक मिला.

फॉरेंसिक मामले में उन्नत है दुबई धनवान होने के कारण उसके पास एक से बढ़कर एक आधुनिक सुविधाएं और विशेषज्ञ हैं. उनके यहां शोध की भी सुविधाएं होंगी ही. वे चाहते भी होंगे कि जटिल मामलों से उन्हें अपना ज्ञान विज्ञान बढ़ाने का मौका मिले. दुर्घटनावश डूबने से मौत के इस प्रकरण से उन्हें भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं से बचाव के उपाय और ऐसे मामलों में जांच पड़ताल के नए पहलू जानने समझने का मौका मिलेगा. हो सकता है कि भविष्य में शोध अनुसंधान की गुंजाइश देखते हुए फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने हर पहलू को गौर से देखा हो.


सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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